Hame tumse pyar kitna.. - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

हमे तुमसे प्यार कितना... - 11 - सबक

ऐसी कोई खास बात नही है बस किसीको सबक सिखाना है.....मायरा ने कहीं खोए हुए कहा।

किसको सबक सिखाना है? किसने तुम्हे परेशान करने की कोशिश की? उसका वोह हाल करेंगे की दुबारा अपनी शक्ल आइने में देखने की हिम्मत नही करेगा। हार्दिक ने गुस्से भरे लहज़े में कहा।

हां तू एक बार बोल बस....कियांश के चेहरे के एक्सप्रेशंस भी बदल गए थे।

वोह इतना भी इंपोर्टेंट पर्सन नही है की में अपने दोस्तों को इंवॉल्व करूं उसके लिए तो में अकेले ही काफी हूं।
और वैसे भी मैने सोच लिया है की मुझे क्या करना है।

मायरा ने अपने सभी दोस्तों को अपनी तरह से समझा दिया था की इस छोटे से काम के लिए उसे किसी मदद की जरूरत नहीं है अगर लगा की उसे मदद चाहिए तो वो सबको जरूर बताएगी।

कुछ देर बाद मायरा ने कुछ दिया पियुन को और एक एड्रेस पर पहुंचाने को कहा।


ये दीदी को क्या हुआ है मम्मी? कल से देख रहा हूं कुछ खोई खोई सी है... किंशू ने अपनी मम्मी मेघना से पूछा।

खाना भी ठीक से नही खा रही है पता नहीं क्या हुआ है मैने पूछा भी था लेकिन ठीक से कोई जवाब ही नहीं दिया बस अपने कमरे में बैठी हुई है। मेघना जी ने किंशू के सवाल का जवाब दिया।

वोही तो मम्मी जिस लड़की के पैर घर में टिकते नही वोह घर में बैठी है मुझे तो कुछ गड़बड़ लगती है! किंशू अपना सीआईडी वाला दिमाग चलाते हुए बोला।

चुप कर अपनी बहन के बारे में कुछ भी बोलता है में देख लूंगी उसे तू जा अपनी पढ़ाई कर। मेघना जी ने अपने बेटे किंशू को डपटते हुए कहा।

कुछ देर बाद मेघना जी ने कायरा के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया लेकिन कई बार भी खटखटाने से कायरा ने दरवाज़ा नही खोला तो मेघना जी ने ये सोच कर छोड़ दिया शायद सो रही होगी।

दिन ढलने को था लेकिन विराज ने सभी को आज काम पर लगा रखा था। एक के बाद एक फाइल्स मंगवा रहा था और इत्मीनान से सब चेक कर रहा था। काफी देर ऐसे ही काम करते रहने के बाद किसी ने उसके कैबिन का डोर नॉक किया,,,,,विराज की इजाज़त से वोह अंदर आया। सामने एक स्टाफ हाथ में एक पैकेट लिए था उसने बताया की ये विराज के नाम से आया है क्या में इसे इधर रख दूं। वोह स्टाफ जा चुका था और विराज उस पैकेट को गौर से देखा रहा था। उसके मन में सवाल उठने लगे किसीको नही पता था की वोह यहां इंडिया आया है तो उसके नाम का पैकेट उसके ऑफिस में कोई क्यों देगा। क्या उसके दुश्मनों ने भेजा है क्या उन्हे भनक लग गई वोह यहां आ चुका है। कोई तो है उसके स्टाफ में जो ऑफिस की बात बाहर पहुंचा रहा है। उसके दुश्मनों को उसकी खबर लग चुकी है और इस पैकेट में क्या भेजा होगा या किसी और ने लेकिन ज्यादा लोग तो जानते नही है विराज के आने की खबर से। विराज अपने ख्यालों में ही रहता अगर उसका फोन ना बजता।

हैलो! विराज ने फोन आंसर करते ही कहा।

हैलो! विराज कैसा है, मुझे तेरी याद आ रही है। सामने से आवाज़ आई।

अभी मुझे छत्तीस घंटे भी नही हुए यहां पहुंचे हुए और तुझे मेरी याद आ गई। विराज ने बिना किसी भाव के कहा।

अरे मेरी जान! गुस्सा क्यों हो रहा है बड़ा भाव खाता है अच्छा बता इंडिया कैसा लगा तुझे। फिर सामने से आवाज़ आई।

में अभी बिज़ी हूं बाद में बात करता हूं। कह कर विराज ने बिना दूसरी तरफ की बात सुने फोन काट दिया।

बड़ा ही बेरहम है, पता नही जब इसकी शादी होगी इसकी बीवी इसे कैसे झेलेगी हुंह! अपना सिर झटकते हुए दूसरी तरफ वाले इंसान ने भी अपना फोन रख दिया।

विराज अपने काम में लग चुका था वो एक भी पल वेस्ट नही करना चाहता था। तभी फिर किसी ने डोर नॉक किया।

यस कम इन....

सर काफी लेट हो गया है और अब सब स्टाफ भी चला गया है तो.....

विराज ने घड़ी की तरफ देखा तो नौ बजा रही थी। उसने कहा "आप घर चले जाइए गुप्ता जी में कुछ देर और यहां रुकूंगा, सिक्योरिटी बिल्डिंग लॉक कर देंगे।

सर पर..... (गुप्ता जी पूछना चाहते थे कि क्या आज ही सारा काम खतम करना है क्या विराज एक ही दिन के लिए आएं है क्यों वोह इतनी देर तक काम कर रहे हैं या ये उसकी आदत है लेकिन उनको पूछने की हिम्मत नही हुई और शब्द उनके गले में ही अटक गए।)

विराज ने एक नज़र गुप्ता जी को देखा फिर फाइल में लग गया।

गुप्ता जी भी अब बिना कुछ कहे वहां से चले गए और सिक्योरिटी को हिदायत देकर की विराज सर अभी ऑफिस में बैठे हैं उनके जाने के बाद ठीक से सब बंद कर देना।


सब लोग साथ में डिनर कर रहे थे पर आज मायरा और कायरा दोनो ही कहीं खोई हुई सी थी। ये मेघना जी और शेखर जी महसूस कर रहे थे। लेकिन उन्होंने कुछ पूछा नही उन दोनो से। शेखर जी ने मेघना जी को ये कह कर समझा दिया की अभी अभी दोनो बच्चियों ने काम करना शुरू किया है हो सकता है ऑफिस की कोई टेंशन हो एक दो दिन में खुद ब खुद सब नॉर्मल हो जायेगा और अगर नही हुआ तो वो जरूर उनसे बात करेंगे।

अब तक थोड़ी थोड़ी विराज को भी भूख लगनी शुरू हो चुकी थी। उसने घड़ी में फिर नज़र घुमाई इस बार ग्यारह बजने को थे। उसने अपने टेबल पर रखी फाइलें देखी अभी भी काफी बची हुई थी फिर अपने हाथ में पकड़ी फाइल बंद कर दी और उसे टेबल पर रख कर उठ खड़ा हुआ। खिड़की के पास पहुंच के उसने किसी को फोन लगाया और बात करने लगा कुछ देर बाद फोन रख कर अपने पॉकेट से सिगरेट निकाली और होठों से लगा कर उसे जला दिया। सिगरेट के कश भरते हुए वो कुछ सोच रहा था। चार सिगरेट पीने के बाद भी उसे चैन नहीं पड़ रहा था। सिगरेट की डब्बी वापिस अपने पॉकेट में रख कर वोह वापिस पलटा तो उसकी नज़र उस पैकेट पर गई को किसी स्टाफ ने उसे दिया था जिस पर विराज सिसोडिया का नाम था।
आखिरकार विराज ने उसे खोलने का फैसला किया। विराज ने पैकेट उठाया और उसे खोल दिया उसमे नोटों का एक बंडल था इतने सारे पैसे इस तरह से विराज कुछ सोचने लगा फिर उसे एक कागज़ दिखा उसी पैकेट में। उसने उसे निकला यह एक दो बार फोल्ड किया हुआ कागज़ था जिसे बंद में ही पता चल रहा था की कुछ लिखा हुआ है। विराज अपनी कुर्सी पर बैठते हुए उसे पढ़ने लगा।

हैलो मिस्टर एरोगेंट,

पहली लाइन पढ़ते ही विराज उन शब्दों को घूर ने लगा ये किसके लिए है क्या मेरे लिए ही है क्या भेजने वाले ने मुझे एरोगेंट कहा है। चेहरे पर बल पड़ गए। फिर विराज ने आगे पढ़ना शुरू किया।

"अपंग, घटिया इंसानों और टूटी हुई चीजों के लिए मेरे दिल में हमदर्दी है।" "इन पैसों से अपने दिमाग का इलाज करा लेना!"

पढ़ते ही विराज की मुट्ठी कस गई चेहरे पर गुस्से के भाव बन गए। उस कागज़ के टुकड़े को गुड़ मुड़ कर के मुट्ठी में बंद कर लिया फिर पास ही रखे कचरे के डब्बे में तुरंत फेक दिया।

एक सिगरेट और निकली और खिड़की के पास जाके फिर पीने लगा बार बार उस कागज़ पर लिखे शब्द कानों में गूंज ने लगे। "अपंग, घटिया इंसानों और टूटी हुई चीजों के लिए मेरे दिल में हमदर्दी है"

घटिया इंसान!....हम्मम! विराज ने मन मे ही कहा।



सिगरेट आधी जलती ही फेक कर अपने घर के लिए निकल गया।


आज की रात किसी की आंखों में नींद नही थी ना ही विराज के ना ही मायरा के और ना ही कायरा के। उन तीनो के साथ ऐसा कुछ हुआ था जो पहले कभी नहीं हुआ था। अपने अपने कमरों में अपने बिस्तर पर लेटे तीनों अपनी ही सोच में गुम थे और कब नींद की आगोश में गए तीनो को ही पता नही चला।















कहानी अभी जारी है...



धन्यवाद🙏