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पाज़ेब - भाग(१)

शहनाज़! कहाँ जा रहीं हैं आप? हमीदा ने अपनी बेटी से पूछा।।
अम्मीजान घर में बैठें बैठें बोर हो गए हैं,सोच रहे थे कि बाहर ही घूम आएं,शहनाज़ बोली।।
सुनिए ये गाँव है आपका शहर नहीं है जो कहीं भी घूम कर आ जाएं,ऊपर से ये हमारा मायका है यानि के आपके मामूजान का घर ,उन्हें पता लगा कि आप अकेली बाहर घूमने गई थीं तो आपके साथ साथ हमें भी डाँट पड़ जाएगी,हमीदा बोली।।
अम्मीजान ! अब हम बड़े हो गए हैं,इतनी इजाजत तो मिलनी चाहिए ना हमें,शहनाज़ बोली।।
जिद़ कर रही हैं आप,हमीदा बोली।।
जिद़ नहीं कर रहें हैं अम्मीजान गुजारिश कर रहे हैं,शहनाज़ बोली।।
अगर ये गुजारिश़ है तो आप बाहर जा सकतीं हैं लेकिन याद रखिएगा कि थोड़ी देर में लौट भी आएं,नहीं तो अल्लाह कसम आपके साथ साथ हमारी शामत भी आ जाएगी,हमीदा बोली।।
शुक्रिया! मेरी प्यारी अम्मी और इतना कहकर शहनाज़ बाहर घूमने चली गई,वो आज बाहर आकर बहुत ही खुश थी,वो पहली बार गाँव आई थी और यहाँ उसे बाहर घूमने-फिरने की इजाज़त ना थी,गाँव के कायदे-कानून अलग ही होते हैं और वो गाँव के कायदे-कानून से महरूम थी,वो हमेशा से दिल्ली जैसे शहर में पली-बढ़ी थी,उसके अब्बाहुजूर एम.टी.एन.ल. में अभियन्ता के पद हैं,
हमीदा अपने भाई मुर्तजा अन्सारी की इकलौती बहन और इकलौती रिश्तेदार है,मुर्तजा ने ही अपने अम्मी-अब्बू के गुज़र जाने के बाद हमीदा को पाला था,वो उम्र भर निकाह नहीं पढ़वाना चाहते थे लेकिन फिर दुनिया के कहने पर उन्होंने निकाह पढ़वा लिया , लेकिन उनकी बीवी सनोबर, हमीदा की उम्र की थी ,अपने शौहर मुर्तजा से उम्र में काफी़ छोटीं थीं,
लोंग तो कहते थे कि उनका कोई चाहने वाला उनसे मिलने आता था और वें एक दिन उसी के साथ भाग गईं,अब ये हकीक़त थी या अफवाह़ ये तो अल्लाह ही जानता है,लेकिन हमीदा बताती थी कि उसने उस प्रेमी को कई बार सनोबर से मिलते देखा था हो ना हो सनोबर उसी के साथ भाग गई हैं...
सनोबर के भागने के कई दिन बाद तक दोनों भाई-बहन ग़म मेँ डूबे रहें क्योंकि मुर्तजा अपनी बीवी सनोबर पर जान छिड़कता था उसे यकीन नहीं होता था कि सनोबर ऐसा कुछ कर सकती है,वो भी तो मुर्तजा को इतना चाहती थी लेकिन हो सकता है कि वो प्यार का दिखावा करती रही हो,जो भी हो लेकिन सनोबर के जाने के बाद मुर्तजा बीमार सा रहने लगा और अब भी काफी़ बीमार है इसलिए हमीदा उसे अपनी बेटी शहनाज़ के साथ यहाँ देखने आई है,शहनाज़ बिल्कुल अपनी अम्मी हमीदा की हमशक्ल थी।।
शह़नाज़ गाँव घूमते-घूमते एक पुराने से वीरान हवेलीनुमा घर के बाड़े में जा पहुँची,वो घर टूटा-फूटा खण्डहरनुमा था,लेकिन उस हवेली में एक अज़ीब सी कशिश थी,उस कशिश के ज़रिए शह़नाज़ उस हवेली के भीतर तक पहुँच गई,वहाँ काफी़ अँधेरा था तभी उससे किसी ने कहा...
क्यों आई हैं यहाँ पर फौरन चली जाइए यहाँ से ? अगर अपनी खैरियत चाहतीं हैं तो....
वो डरावनी सी आवाज़ सुनकर शहनाज़ बहुत डर गई और डरते-डरते पूछा.....
कौन हैं आप? और यहाँ क्या रहीं हैं?
हम जो भी हैं आपको उससे कोई सरोकार नहीं होना चाहिए,लेकिन आप यहाँ से फौरन चली जाइए,वो आवाज़ फिर से गूँजी....
ये सुनकर शहनाज़ खौफज़दा हो गई और फौरन वहाँ से चली आई...
उसने घर आकर ये बात अपनी अम्मी हमीदा से कही,हमीदा ने जब ये सुना तो खौफ़ की वजह से उसके माथे पर पसीना आ गया और वो बेहोश होकर फर्श पर गिर पड़ी,ये देखकर शहनाज़ को कुछ समझ नहीं कि उसकी अम्मी के बेहोश होने की वज़ह क्या है ? और वो पानी लेने भागी,फिर उसने हमीदा के चेहरे पर पानी छिड़का और तब हमीदा को होश आ गया...
होश में आते ही हमीदा ने शहनाज़ को हिदायत दी कि आज के बाद आप उस पुरानी खण्डहरनुमा हवेली का रूख़ कभी नहीं करेंगीं।।
हमें वो हवेली पसंद आई तो हम वहाँ चले गए,शहनाज़ बोली।।
आज तो आप गलती से वहाँ चलीं गईं लेकिन आइन्दा ऐसा कभी ना हो ये ख्याल रखिएगा,हमीदा बोली।।
लेकिन क्यों अम्मीजान? शह़नाज़ ने पूछा।।
हमें नहीं मालूम,बस ऐसे ही सालों से वहाँ कोई नहीं जाता,हमीदा बोली।।
तभी बाहर से मुर्तजा साहब घर के भीतर आकर बोले....
क्या बहस चल रही है? माँ-बेटी में,जरा हम भी जाने।।
कुछ नहीं भाईजान! बस ऐसे ही शहनाज़ बाहर घूमने की जिद़ कर रहीं थीं,इनकी छोड़े आप अपनी बताएं क्या कहा शहर के डाक्टर ने?कोई फिकर की बात तो नहीं,हमीदा बोली....
पुराना मर्ज़ है,आसानी से थोड़े ही जाएगा,लगता है अब तो ये हमारी ज़ान लेकर ही रहेगा,मुर्तजा साहब बोले।।
ये कैसीं बातें कर रहे हैं भाईजान?मरे आपके दुश्मन,ये मुआँ कौन सा मर्ज़ है जो छूटता ही नहीं,हमीदा ने पूछा।।
जिनके साथ हम जाते हैं ना! डाक्टर के पास वो हमारे पुराने हमदर्द मिर्जा साहब!वो तो मुझे कुछ बताते ही नहीं ,खुद ही डाक्टर के पास रिपोर्ट दिखा लाते हैं और बाहर आकर हमसे कहते हैं कि सब ठीक है बस अल्लाह का रहम है जो आपकी तबियत अभी सम्भली हुई है,लेकिन हमें पता है ना कि हमें कौन सा मर्ज सता रहा है,मुर्तजा साहब बोले।।
भाईजान! जरा हम भी सुनें कि आपकी तकलीफ क्या है? हमीदा ने पूछा।।
बस वही सनोबर का हमसे दग़ाबाजी करना बरदाश्त नही हो रहा सालों से,अरे वो हमारी बेग़म थीं ,हमारे दिल का सुकून और आँखों का नूर थी,अगर उनका कोई पुराना आश़िक था तो हमसे कहतीं ,खुदा कसम! हम खुशी खुशी उनको रवानगी दे देते लेकिन बिना किसी खबर के घर से भाग जाना,ये कहाँ की शराफत हुई भला,मुर्तजा साहब बोले।।
आप उनकी बातें क्यों लेकर बैठ जाते हैं भाईजान? सनोबर बेवफा थीं तो उसमे आप का क्या कुसूर है?कुसूरवार तो वो थी जो आप जैसे शौहर के संग ना रह सकी,हमीदा बोली।।
लेकिन हमारा दिल गँवारा नहीं करता कि उन्होंने हमारे संग ऐसा किया है,मुर्तजा साहब बोले।।
उन्हें आपकी कद़र ही नहीं थीं,इसलिए तो भाग गईं अपने आशिक के साथ,हमीदा बोली।।
आप उन्हें कुछ भी समझें लेकिन हम उन्हें अभी तक बेवफा नहीं समझते,मुर्तजा साहब बोले।।
जैसी आपकी मर्जी,शाम होने को आई है हम रात के खाने की तैयारी कर लेते हैं और ये कहकर हमीदा बावर्चीखाने में आ गई.....
लेकिन उसका मन भी खाना बनाने में नहीं लगा और वो भी खिड़की के पास खड़े होकर सनोबर के बारे
में सोचने लगी....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....