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जीवनधारा - 7

“मैडम, आपके पति-मिस्टर सौरभ की कार दुर्घटना में मृत्यु हो गयी है।” – सिटी हॉस्पिटल पहुँचते ही पुलिसवाले ने पूजा को बताया ।...

...सौरभ के मृत्यु की खबर सुन पूजा के पैरों तले जमीन खिसक गयी ।

मूर्दाघर में रखी हुई सौरभ की क्षत-विक्षत लाश देख वह दहाड़ मार कर रोने लगी । बड़ी मुश्किल से पुलिस इंस्पेक्टर और नर्स ने उसे उसे संभाला ।

घर पर अकेले बूढ़े सास-ससुर को यूं फोन पर बताना पूजा ने ठीक न समझा । जतिन को फोन लगा सारी जानकारी दी और जल्दी से अस्पताल पहुँचने को कहा । फिर, जतिन और पूजा सौरभ के शव को लेकर घर पहुंचे ।

अपने बेटे को खोकर सौरभ के बूढ़े माँ-बाप की पूरी दुनिया उजड़ चुकी थी । वहीं, दूसरी तरफ नंदिनी अपने पापा के अचानक ऐसे चले जाने से रो-रो कर पूरा आसमान सिर पर उठाये थी ।

आँखों में आँसू लिए पूजा एक तरफ अपनी बेटी को चुप कराती, तो दूसरे तरफ बूढ़े सास- ससुर को सांत्वना दे रही थी । पूजा की तो हँसती-खेलती दुनिया ही खत्म हो गयी थी।

अभी तो टिफिन देकर ऑफिस भेजा था सौरभ को, ऐसे कैसे चला गया हमेशा के लिए - पूजा को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था की सौरभ उसकी दुनिया से हमेशा के लिए जा चुका है ।

सौरभ के असामायिक मौत की खबर पाकर पूजा के माता-पिता भी भागे-भागे आयें ।

सौरभ के शव का दाह-संस्कार और अंतिम क्रियाक्रम हुआ। तेरहवीं के बाद सबों के चले जाने के पश्चात पूरा घर वीरान हो गया था ।

सौरभ की अनुपस्थिति में घर चलाने के लिए पूजा ने नौकरी करने का निर्णय लिया ।

“भाभी, भईया ने ढेर सारे जीवन बीमा करा रखे थें । इन्सुरेंस एजेंट को बुलकार बात कर उन्हे कागजात दे दो । मैं फोन कर उन्हे बुला लेता हूँ, वह सब देख लेगा ।”- जतिन ने पूजा को बताया ।

इस बारे में पूजा को ज्यादा जानकारी नहीं थी । इसलिए, उसने सौरभ के रखे सारे कागजात चेक किए तो इंसुरेंस के पेपर्स मिले, जिसे उसने इंसुरेंस एजेंट को सौंप दिया । एजेंट ने बताया कि सौरभ ने करीब तीन करोड़ की पॉलिसी ले रखी थी ।

तीन करोड़ का नाम सुन जतिन की आँखें चमक उठी । एजेंट ने पॉलिसी के कागजात पर पूजा के हस्ताक्षर लिए और बताया कि कुछेक महीनों में पैसे उसके अकाउंट में आ जाएंगे।

उस दिन के बाद से, जतिन का रवैया पूजा के लिए बिलकुल बदल गया । अब, वह पूजा का ध्यान रखता । नंदिनी को खुद ही स्कूल ले जाता और वापसी में घर भी लेकर आता। साथ ही, अपना कोई व्यवसाय शुरू करने की भी बात करने लगा । बूढ़े माँ-बाप का भी ध्यान रखने लगा ।

जतिन में अचानक से इतना बदलाव देखकर पूजा को थोड़ा सुकून हुआ कि घर संभालने वाला कम से कम एक इंसान तो खड़ा हुआ, जो सब की ज़िम्मेदारी उठा सके ।

पर…….यह सब कहीं आने वाले किसी तूफान की ओर तो संकेत नहीं कर रहें थें !

जतिन में अचानक से आया यह बदलाव उसके माँ-बाप को अजीब-सा लग रहा था। पूजा को भी वे दोनों बार-बार आगाह कर रहें थें कि जतिन के क्रियाकलापों पर ध्यान रखे और उसकी किसी भी बातों पर आँख मूँद कर भरोसा न करे ।

लेकिन, पूजा आश्वस्त थी क्यूंकि पिछले कुछेक महीनों से जतिन पूरी तरह सुधर गया और काफी जिम्मेदार भी हो गया था ।

पूजा ने एक रेडियो FM चैनल में रेडियो जॉकी का काम पकड़ लिया और वह दिन भर ऑफिस में ही रहती । घर लौटते-लौटते उसे शाम हो जाया करता । बुढ़े सास-ससुर के लिए घर पर एक नौकरानी रख दी । नंदिनी को स्कूल जतिन पहुंचा देता और छुट्टी होने पर ले भी आता । वह भी अपना कोई व्यवसाय शुरू करने का प्रयास कर रहा था और दिनभर उसी के लिए भागदौड़ करता रहता ।

सौरभ के बिना अकेली पड़ी पूजा किसी तरह से ज़िंदगी की गाड़ी खीचने की कोशिश कर रही थी ।

एक दिन शाम के चार बजे ।
पूजा ड्यूटी से वापस घर की तरफ निकली । बहुत दिनों से नंदिनी खिलौनो को लिए ज़िद्द कर रही थी । सो, रास्ते से कुछ खिलौने खरीदते हुए घर वापस लौटी ।

घर का दरवाजा बंद था । खटखटायी, पर अंदर से कोई आवाज़ नही आया और न ही किसी ने खोला । फिर से आवाज़ लगायी, पर किसी ने न खोला ।

थोड़ा इंतज़ार कर फिर से प्रयास किया , पर सारे प्रयास बेकार । अपने मोबाइल से घर के लैंडलाइन पर फोन लगाया । भीतर कमरे से फोन की घंटी के बजने की आवाज़ आ रही थी, पर कोई उठा न रहा था । अब उसे चिंता होने लगी और उसने जतिन के मोबाइल पर फोन लगाया । पर, उसका मोबाइल स्वीच्ड ऑफ आ रहा था ।

इस तरह से, रात करीब आठ बजे तक वह दरवाजे के पास ही बैठी रही । पड़ोसियों से पूछा तो किसी को कुछ भी पता न था।...