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जीवनधारा - 2

“शांत, शांत ! मैडम जी, शांत हो जाइए..... । पानी ले रहा था तो सोचा कि आपको भूख भी लगी होगी । इसलिए, कुछ खाना भी पैक करा लूँ ।” – पूजा को शांत करता हुआ रूपेश बोला ।

पूजा चुपचाप रूपेश की बातें सुन रही थी, कुछ भी न कहा उसने । फिर, एक दूसरे को देखते हुए दोनों खिलखिला कर हंस दिए ।

"मैं समझ सकता हूँ । खाली पेट गुस्सा आता है, सभी को । यह मुझे पता है ।" थोड़ी खिंचाई करते हुए रूपेश ने पूजा से कहा ।

“जी नहीं, ऐसी कोई बात नही हैं। चुप हो जाइए, आप बिल्कुल । नहीं तो, मुझे फिर से गुस्सा आ जाएगा ।" हंसती हुई पूजा बोली ।

फिर, रूपेश ने पानी का बॉटल पूजा की तरफ बढ़ा दिया ।

बॉटल पकड़ने के लिए पूजा हाथ आगे बढ़ायी तो रूपेश की हथेली उसके हाथों से छू गएँ । इससे पूजा सिहर उठी और शरमा कर अपने सीट पर आकर बैठ गयी । थोड़ी देर वह खिड़की से बाहर झाँकती रही ।

रूपेश समझ गया और चुप्पी तोड़ते हुए खाने का पैकेट पूजा के तरफ बढ़ाया और बोला-“अब थोड़ी पेट पूजा कर लीजिए । नही तो आपको फिर से गुस्सा आ जायेगा ।”

झेंपती हुई पूजा ने पैकेट ले लिया और उसे खोलकर खाने लगी ।

"उफ्फ........,कितनी मिर्ची है !" – पूजा बोली । दांतो तले मिर्ची आ जाने से सिसियाते हुए पूजा की आंखें आंसुओं से भर गई थी । लेकिन, हाथ गंदे थें । इसलिए, रूपेश ने बॉटल उठाकर उसके मुंह से लगा दिया और पलक झपकते ही पूजा बॉटल का आधा पानी गटक कर गयी । तब जाकर उसे राहत मिली ।

खाना खाकर, रूपेश सीट से उठते हुए बोला कि अब आप सो जाइए और मुझे भी नींद आ रही है । मैं भी सोने जा रहा हूँ । और फिर दोनो अपने बर्थ पर आकर लेट गए । लेटते ही उनकी आंखें लग गईं ।

अगले दिन, सुबह करीब छह बजे। ट्रेन अपनी रफ्तार से पटना की तरफ बढ़ी जा रही थी। रूपेश ऊपर अपने बर्थ पर सोया था । तभी, पीछे से किसी ने हाथ देकर उसे जगाया ।

हाथों में चाय लिए हुए यह पूजा थी ।

“गुड मॉर्निंग, लीजिये चाय पी लीजिये।”– रूपेश की ओर चाय की प्याली बढ़ाते हुए पूजा उससे बोली । फिर, रूपेश नीचे उतरकर पूजा के बर्थ पर आया और दोनों साथ में चाय की चुस्की लेने लगें ।

“आप जल्दी-जल्दी अपने सारे बैग चेक कर लीजिये । थोड़े ही देर में हमलोग पटना पहुँचने वाले हैं ।” –अपनी चाय खत्म करके रूपेश ने पूजा से कहा ।

“आपसे मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा । अब देखिए न ! पटना में रहकर भी हमलोग आजतक एक-दूसरे को नहीं जानते थें ।” - पूजा ने रूपेश से कहा।

“कोई नहीं, देर आयें, दुरुस्त आयें । चलिये, आप मेरा मोबाइल नंबर लिखिए और अपना नंबर मुझे दीजिए । हमलोग हमेशा एक-दूसरे से कांटैक्ट में रहेंगे ।” - रूपेश ने पूजा को बीच में ही टोकते हुए कहा।

तबतक, ट्रेन भी पटना स्टेशन में प्रवेश कर चुकी थी । रूपेश ने कूली को अपना और पूजा का भारी-भरकम बैग थमाया और उसके पीछे-पीछे स्टेशन से बाहर टैक्सी तक आया । पूजा का बैग टैक्सी में रख उसे अलविदा किया।

बारह घंटे के इस छोटे से सफर में पूजा रूपेश के लिए एक अपनापन-सा महसूस कर रही थी । जाते हुए टैक्सी से वह रूपेश को उसके ओझल होने तक निहारती रही।

रूपेश भी एक टैक्सी कर अपने घर की ओर रवाना हो गया।

घर पहुँचकर पूजा नहाधोकर कपड़े बदली और बैग से कुछ निकालने के लिए आगे बढ़ी तो ये क्या ! उसके और रूपेश के बैग की अदला-बदली हो गयी थी । ...