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जीवनधारा - 9

...अगले ही दिन, सबके एक संबंधी के यहाँ होने की बात कह पूजा ने उनके गुमशुदा हो जाने का अपना आवेदन वापस ले लिया । फिर, अपने पापा की सहायता से तीन करोड़ रुपये जतिन के बैंक अकाउंट में जमा करा दिए ।

बैंक वालों ने बताया कि पैसे जतिन के अकाउंट में पहुँच गए हैं । तब, पूजा ने उसी नंबर पर कॉल लगाया, जिससे जतिन ने फोन किया था । लेकिन, नंबर बंद आ रहा था । पागलों की तरह वह लगातार उस नंबर पर डायल करती रही । लेकिन, वह नंबर चालू न हुआ ।

पूजा को कुछ भी नहीं सुझ रहा था - कहाँ जाये, क्या करें। उसके पिता से रहा न गया और पूजा के लाख मना करने के बावजूद भी वह उसे अपने घर ले आयें ।

“मेरा सबकुछ खत्म हो गया, माँ । एक नंदिनी ही थी, मेरा सहारा । उसे भी मुझसे छीन लिया ।” – यह कहते हुए पूजा अपनी माँ के गोद में सिर रखकर फूट-फूट कर रोने लगी ।

नंदिनी को हानि पहुंचाने के डर से पूजा पुलिस के पास भी नहीं जा रही थी । खुद से हर जगह नंदिनी की तलाश की, पर उसका कहीं भी पता न चला ।

करीब एक महीने होने को आएँ ।

थक-हार कर पूजा ने अब घर से निकालना भी बंद कर दिया । बिना कुछ खाए-पिये अपने आप को दिन भर कमरे में बंद किये रहती ।

अपनी इकलौती बेटी की ऐसी हालत पूजा के माता-पिता से देखा न जा रहा था । उन्होने भी अपना प्रयास न छोड़ा और खुद भी जितना बन पड़ा, चारो तरफ नंदिनी को ढूंढा। लेकिन, उसका कहीं भी कोई सुराग न मिला ।

अचानक,एक दिन पूजा के पिताजी को पक्षाघात हुआ । उनके कमर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया और उन्होने बिस्तर पकड़ लिया ।

चलने फिरने से लाचार पिताजी के घर पर बैठ जाने से घर चलाना मुश्किल हो रहा था ।

एक ज़िंदा लाश बन चुकी पूजा फिर से खड़ी हुई और थोड़ा प्रयास कर रेडियो जौकी का काम पकड़ ली ।

चुपचाप घर से रेडियो स्टेशन जाना और वापस घर आना – बस यही उसकी ज़िंदगी का हिस्सा होकर रह गया था ।

एक बेरंग सी ज़िंदगी चल रही थी पूजा की । केवल अपने माँ-बाप के लिए नौकरी कर रही थी वह । नहीं तो, अब उसके जीने की चाह तक खत्म हो चुकी थी ।

एक दिन शाम में ।

पूजा रेडियो स्टेशन से वापस अपने घर की ओर पैदल लौट रही थी । एकदम से सामने एक गाड़ी आकर खड़ी हुई । गाड़ी रूपेश चला रहा था । पूजा को देखकर गाड़ी रोका और बाहर आया ।

“कैसी हो पूजा ? घर पर सब कैसे हैं ? पति और बेटी कैसी है ?” – रूपेश के इतना कहते ही पूजा के आँखों से आँसू निकल पड़े ।

अचानक से पूजा को रोते देख रूपेश भयभीत हो गया । उसे शांत करते हुए रोने का कारण पूछा । सिसकती हुई पूजा ने रूपेश को सौरभ के कार दुर्घटना से हुई मृत्यु से लेकर नंदिनी के खोने और फिर अपने पिता के पक्षाघात तक की पूरी बात बतायी ।

यह सुन, रूपेश की आँखें गीली हो गयी । उसने खूद को संभाला और पूजा को कार में घर तक छोड़ देने के लिए पूछा । रूपेश को साफ इंकार करते हुए पूजा पैदल ही अपने घर की ओर बढ़ चली ।...