Chhal - 2 in Hindi Moral Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | छल - Story of love and betrayal - 2

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छल - Story of love and betrayal - 2

प्रेरित मां के पास आता है और उनके सिर पर हाथ फेरते हुए कहता है –

" क्या बात है मां, जो आपको इतना परेशान कर रही है और जो आप मुझसे कहना चाहती हो" |

पुष्पा एक गहरी सांस लेती है और कहती है, –

"बेटा… मैं तुम्हें एक बात बताना चाहती हूं, यह एक ऐसा राज है जो बरसों से मेरे दिल में चुभ चुभ कर नासूर बन गया है, मैं अब मरने वाली हूं यह मैं जानती हूं इसीलिए सच्चाई बता रही हूं | यह सच सुनकर शायद तू मुझे कभी माफ ना करें लेकिन तेरा जो भी फैसला होगा मंजूर होगा, हो सकता है इस बात को सुनने के बाद तू मुझे अपनी माँ ही ना माने या फिर मेरी चिता को आग ना दे लेकिन फिर भी मुझे मरने के बाद यह पछतावा नहीं रहेगा कि मैंने तुझे यह राज नहीं बताया" |

प्रेरित ने रोते हुए कहा :-

" मां तुम ऐसा क्यों कह रही हो आखिर ऐसा क्या है जो मुझे आपसे अलग कर सकता है" |

पुष्पा ने एक आह भरते हुए कहा :-

" बेटा… तुम अपने पिताजी से बहुत प्यार करते थे यह मुझे पता है, उन्होंने भी तुम्हें बहुत प्यार दिया लेकिन सच यह है कि……."।

पुष्पा इतना कहकर रुक गई, आगे के शब्द वह बोल ना सकी तो प्रेरित ने कहा–

"रुक क्यों गई मां….? तुम बेहिचक अपने दिल की बात कहो चाहे वह बात कैसी भी क्यों ना हो"।

प्रेरित की बात सुनकर पुष्पा ने हिम्मत करके कहा,

"प्रेरित बेटा…… सच तो यह है की जिन्हें तुम आज तक अपना पिता समझते आए हो वो….वो तुम्हारे पिता नहीं हैं, तुम उनके बेटे नहीं हो " |

यह सुनकर प्रेरित चौंक गया, उसके माथे पर हजारों सवालों की रेखाएं उभर आई |

प्रेरित ने सकुचाते हुए कहा -

" यह क्या कह रही हो माँ, ऐसा नहीं हो सकता अगर वह मेरे पिताजी नहीं थे तो फिर कौन है? क्या मैं अनाथ हूं"?

पुष्पा ने रोते हुये कहा -

"नहीं बेटा, तुम अनाथ नहीं हो, सच तो ये है की तुम अशोक के नहीं अपने चाचा रंजन के बेटे हो" |

यह सुनकर प्रेरित भौचक्का रह गया उसके दिल की धड़कन रुक सी गई, उसकी हथेलियों में पसीना आ गया ।

उसने मां का हाथ छुड़ाते हुए कहा,

" चाचा जी "??

पुष्पा अपनी नजरें दूसरी ओर करते हुए बोली -

“हां बेटा, तुम्हारे चाचा ही तुम्हारे पिता है "|

वह आगे कुछ बोल ना सकीं | प्रेरित भी आगे कुछ ना बोल सका, रोने लगा उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया, उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी जमीन में अंदर धसते जा रहा है |

कुछ देर बाद उसने सिसकियां भरी आवाज में कहा,

" लेकिन मां..? यह सब कैसे.."?
वह इतना ही कह पाया" |

पुष्पा ने कहा - "अक्सर तुम्हारे पिताजी बाहर ही रहते थे और मैं महीनों उनका बस इंतजार किया करती थी, कुछ ऐसा ही वो महीना था, वो दिसंबर की रात जब वो आने वाले थे, मैं बेसब्री से उनका इंतजार कर रही थी, इंतजार करते करते रात के एक बज गए थे तभी अचानक फोन की घंटी बजी ।