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एक घर ऐसा भी

जिंदगी के अब तक के पड़ाव में सुख व दुख दोनों से जुड़े लम्हें जिए है। जिनसे जिंदगी में कुछ सीखा जा सके ऐसे बहुत से सज्जनों को पढ़ा है, सुना है, देखा है उनके साथ रहने का मौका मिला है। सब अपनी जगह ठीक हैं लेकिन आज अचानक से मुझे लगता है और मेरी कल्पनाएं एक ऐसी दुनियां सजा रही है जिनमें मैं पेड़-पौधों, नदी-झरनों, पहाड़ो के बीच अपना घर बनाकर रहूं। मैंं चाहता हूँ ये घर इनसब प्रकृति के प्रहरियों के बीच हो। जहां सब कुछ प्रकृति हो जहाँ का वातावरण एकदम प्रकृतिमय हो। पेड़ पौधों की सुंदर लताएँ उनपर उगे फूल-फल हवाओं के झोंकों के साथ झूमते हुए सदैव कहें जिंदगी में उतार चढ़ाव आएंगे लेकिन हमेशा मुस्कुराते रहिए। वो कहें जिंदगी में ऐसे वक्त भी आएंगे जब लगेगा सब कुछ खत्म हो चुका है लेकिन फिर से वसंत की भांति एक पतझड़ वृक्ष भी नई पत्तियों लताओं,फूलों-फलों से भर जाता है। जहां फूल कहेंगे दूसरों को आकर्षित करने वाली सुगंध, मिठास स्वयं में निर्मित करिए लेकिन खुद के लिए नही जो भी तुम्हारे समीप आए उन सब के लिए। वहां मैं पेड़ों से सीखूं निस्वार्थ होना जिस प्रकार एक पेड़ अपने अस्तित्व का कण कण दूसरों को समर्पित कर देता है। एक लकड़हारा उसकी काया पर कुल्हाड़ी से प्रहार कर उसकी शाखा को काट ले जात हैं। कोई पुष्प, तो कोई फल तोड़ ले जाता है। यदि कोई फलों को न भी तोड़े तो भी पकने पर वो स्वयं उसे गिरा देता है, मानव हो, पशु हो या फिर पक्षी सभी के लिए पेड़ निस्वार्थ सेवा करता है।प्रकृति के निस्वार्थी अवयवों में से एक पेड़ भी है जो हमेशा देता है बिना अपेक्षा के। तो इसलिए मैं चाहता हूँ ऐसे परम् प्रेरणादायी वृक्षों के मध्य उनकी गोद में एक घर।
ये घर भी तो पेड़ वनस्पतियों से ही बना होगा जो मुझे प्रत्येक क्षण सिखाता रहेगा, स्वयं को जरूरतमन्दों के लिए समर्पित कर दो। उस घर गिरता झरना, बहती झील सब अनवरत इस प्रकृति की सेवा के लिए बिना स्वार्थ समर्पित है।
प्रभात वेला में उदय होता सूर्य जो समस्त सृष्टि को संचालित करने के लिए ऊर्जा देता है। क्या बदले में वो कुछ लेता है?- नही ना। ऐसे वातावरण में मैं अपनी जीवन को जीना चाहता हूँ।
कई बार हम सुनते है व्यक्ति की जैसी संगत होती है धीरे धीरे उसके संस्कारों पर उनका असर पड़ता है और अच्छे संस्कारों वाला व्यक्ति गलत संगत के प्रभाव से गलत होने लगता है। अवगुणों वाला व्यक्ति अच्छी संगत के प्रभाव से धीरे धीरे अच्छे संस्कारों को सीखने लगता है।
"मनुष्य" इस संसार का सबसे बुद्धिमान प्राणी है और सबसे ज्यादा प्रकृति को नुकसान पहुँचाने वाला भी चूंकि मनुष्य की प्रवर्ति दोहन कर अपनी महत्वाकांक्षओं को पूरा करने की है। यही मनुष्य को स्वार्थी बनाता है परन्तु ऐसा भी नही प्रत्येक व्यक्ति ऐसा सोचता है कुछ लोग होते हैं। जो बिना स्वार्थ जीते है।
मैं भी इसी स्वार्थी दुनिया से हूँ। तो स्वार्थी होना स्वभाविक ही है। जब मैंने सोचा इस दुनिया में स्वार्थी कौन नही तो मुझे ये प्रकृति के अवयव ही दिखाई पड़े।
जिनमें पेड़ पौधे,वनस्पतियां, नदी इत्यादि।