Gyarah Amavas - 49 books and stories free download online pdf in Hindi

ग्यारह अमावस - 49




(49)

पुलिस लॉकअप में दीपांकर दास फर्श पर अपने घुटनों में सर रखकर बैठा था। पुलिस ने उस पर जो आरोप लगाया था उसे सुनकर वह बहुत अधिक परेशान हो गया था। वह समझ नहीं पा रहा था कि शैतान उस पर इस तरह कैसे हावी हो जाता था कि उसने इतना घिनौना काम किया। वह तो ऐसा नहीं था। उसके अंदर इतनी निर्ममता कैसे आ गई। यह सब सोचते हुए उसके ज़ेहन में कुमुदिनी की लाश उभर आई। लाश पर उन दरिंदों की वहशियत के निशान दिखाई पड़ रहे थे। उसकी नसें गुस्से में तनी जा रही थीं। वह ज़ोर से चिल्लाया,
"तुम लोगों ने मेरी बच्ची को इतना दर्द दिया था। मैंने उसका बदला ले लिया।"
उसके इस तरह चिल्लाने से लॉकअप में हलचल मच गई। लॉकअप के अंदर दीपांकर दास गुस्से से चिल्ला रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे उस पर कोई दौरा पड़ा हो। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे भागकर उसके पास गया। उसने आदेश दिया कि लॉकअप का दरवाज़ा खोला जाए। वह उससे बात करना चाहता है। उसके आदेश का पालन हुआ। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे लॉकअप के अंदर चला गया। उसने कंधे से पकड़ कर दीपांकर दास को झकझोरा। ऐसा लगा जैसे कि वह किसी सपने से बाहर आया हो। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को कुछ देर तक देखने के बाद वह रोने लगा।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को वह कुछ बीमार सा लगा। ऐसा लग रहा था कि वह किसी मानसिक बीमारी का शिकार है। उस पल उसके मन में दीपांकर दास के लिए दया का भाव जाग उठा। उसके मन में आया कि यह इंसान किसी की उस निर्ममता से हत्या नहीं कर सकता है जैसे कि बलि चढ़ाने के लिए की गई थीं। पर इस खयाल के साथ ही उसे उस पुलिस रिपोर्ट का ध्यान आया जिसके मुताबिक दीपांकर दास पाँच लड़कों की हत्या करके भागा था। उनमें से किशोर उम्र के लड़के रंजीत सिन्हा को तो बहुत बेरहमी से मारा गया था। उसके मन में उपजा दया का भाव दूर हो गया। उसके मन में दीपांकर दास के लिए एक नफरत जागी। उसने रोते हुए दीपांकर दास को डांटा,
"चुप हो जाओ। तुम्हारा ये नाटक काम नहीं आएगा। तुमने निर्दोष बच्चों की बलि चढ़ाई है। क्या लालच था तुम्हें कि उनकी इस तरह हत्या की।"
उसकी डांट से दीपांकर दास सहम गया था। उसने कहा,
"मुझे किसी चीज़ का लालच नहीं था। मैं इस तरह किसी को नहीं मार सकता हूँ।"
"तुमने मारा है। कोलकाता पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में तुम पर पाँच लड़कों की हत्या का संदेह ज़ाहिर किया है। तुमने अपनी बेटी पर हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए उन्हें मारा था ना।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे की बात सुनकर दीपांकर दास के सामने अपनी बेटी कुमुदिनी के गुनहगारों की तस्वीर उभर आई। एकबार फिर उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसकी आँखों में नफरत दिखाई पड़ने लगी। उसने कहा,
"हाँ.... मैंने मार दिया उन पाँचों दरिंदों को। नहीं मारता तो मेरे भीतर रह रही लिपा कभी शांत ना हो पाती।"
दीपांकर दास के मुंह से नया नाम सुनकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को आश्चर्य हुआ‌। उसने पूछा,
"लिपा कौन है ?"
"मेरी बच्ची....मेरी कुमुदिनी... मैं प्यार से उसे लिपा कहता था। कुमुदिनी चली गई। पर आज भी लिपा मेरे मन में जीवित है। उसे शांत करने के लिए ही मैंने उन जल्लादों को मारा था।"
यह बताते हुए दीपांकर दास के चेहरे पर संतोष था। एकबार फिर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के दिल में उस पिता के लिए हमदर्दी जागी जिसकी बेटी के साथ उन लड़कों ने अत्याचार किया था। लेकिन उसने अपनी भावनाओं को काबू में करके कहा,
"अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए तुमने पाँच हत्याएं कीं। जो एक अपराध था। लेकिन उन किशोर उम्र के लड़कों की तुमने बलि क्यों चढ़ाई। उससे तुम्हारी बेटी को कैसे शांति मिलेगी।"
दीपांकर दास ने यह सुनकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे की तरफ देखा। उसके चेहरे पर उलझन साफ दिखाई दे रही थी। उसने कहा,
"उन पाँच लोगों की हत्या मैंने अपने होश में की थी। अपनी बेटी का बदला लेने के लिए। पर मैं नहीं जानता हूँ कि मैंने उन लोगों की बलि चढ़ाई या नहीं।"
उसका जवाब सुनकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"इसका क्या मतलब है ? तुम उस जगह से पकड़े गए थे जहाँ बलि चढ़ाई गई थी। तुम खून से सने हुए थे। तुमने शैतान का चोंगा पहना हुआ था। तुमने ही वो बलि चढ़ाई थी। इससे पहले भी तुम हर अमावस को यह काम करते थे।"
अपने ऊपर लगे इल्ज़ाम को सुनकर दीपांकर दास के चेहरे पर पीड़ा झलकने लगी। उसने कहा,
"मैं नहीं जानता कि मैं उस जगह कैसे पहुँच गया। एक दो बार पहले भी मैंने खुद को इसी तरह शैतान के चोंगे और मुखौटे में खून से सने हुए पाया था। लेकिन मुझे ऐसा याद नहीं पड़ता है कि मैंने किसी की बलि चढ़ाई हो। शुबेंदु ने मुझसे कहा था कि मुझ पर कोई शैतान सवार हो जाता है। उस समय मुझे संभालन मुश्किल हो जाता है। अगर ऐसा हुआ है तो मैंने अपने होश में यह नहीं किया है। कोई शक्ति है जो मुझ पर सवार हो जाती है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने महसूस किया कि दीपांकर दास संभ्रम की स्थिति में है। उसके मन में कुछ गलत करने की ग्लानि तो थी पर उसने लोगों की बलि चढ़ाई है इस बात को स्वीकार भी नहीं कर पा रहा था। एकबार फिर उसके मन में आया कि उसकी मानसिक स्थिति सही नहीं है। लेकिन उसने इस विचार को परे ढकेल कर कहा,
"इस तरह की बातें करके तुम खुद को निर्दोष साबित नहीं कर सकते। तुम्हें तुम्हारे किए की सज़ा तो मिलेगी ही। यह बताओ कि तुम्हारा साथी शुबेंदु कहाँ है ?"
"मुझे नहीं पता। मुझे किसी ने कैद करके रखा था। जबसे मैं और शुबेंदु शांति कुटीर से निकले थे हमारी मुलाकात नहीं हुई।"
"किसने तुम्हें कैद करके रखा था और कहाँ ?"
"मुझे नहीं पता....."
"उस दिन शिवराम हेगड़े और सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह तुम्हारा पीछा कर रहे थे। उसके बाद से दोनों गायब थे। शिवराम हेगड़े तो तुम्हारे साथ मिला। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह का अभी भी कोई पता नहीं है। उन्हें तुमने गायब किया था।"
"मैं कैसे कर सकता था। मैंने बताया ना कि मैं खुद भी किसी की कैद में था। उसने ही मुझे उस जगह पर छोड़ा होगा। मेरा यकीन करो मैंने कुछ नहीं किया है। मुझे कुछ भी नहीं पता।"
दीपांकर दास कुछ भी जानने से इंकार कर रहा था। वह बहुत परेशान दिख रहा था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने आगे कोई पूछताछ नहीं की। वह लॉकअप से चला गया।

अपने केबिन में आकर उसने अपने लिए एक कप चाय लेकर आने को कहा। दीपांकर दास से पूछताछ करते हुए उसका सर भन्ना रहा था।‌ जितनी देर वह उसके पास रहा खुद उलझन में था। दीपांकर दास को देखकर ऐसा लग रहा था कि वह अपनी सही मानसिक स्थिति में नहीं है। अगर उसने हत्याएं की भी हैं तो अपनी बिगड़ी हुई मानसिक स्थिति के कारण। उसका दिल दीपांकर दास को गुनहगार मानने और ना मानने के बीच झूल रहा था।
जबसे उसने दीपांकर दास को गिरफ्तार किया था उसके मन में कई सवाल उठ रहे थे। उन सवालों को लेकर वह परेशान था। सबसे बड़ा सवाल था कि पुलिस को फोन करके सूचना देने वाला कौन था। सूचना देने के बाद उसने अपना फोन स्विचऑफ कर दिया। पुलिस ने उसकी सूचना पर इतनी बड़ी गिरफ्तारी की। मीडिया में इतनी चर्चा हुई। पर उसने सामने आकर कोई श्रेय लेने की कोशिश नहीं की। उसके मन में आ रहा था कि दीपांकर दास अकेले सारा कुछ नहीं कर रहा होगा। उसके साथ और लोग भी रहे होंगे। उसको छोड़कर बाकी के लोग कहाँ चले गए। वह अपने सवालों पर विचार कर रहा था कि तभी उसके केबिन के दरवाज़े पर नॉक हुई। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को लगा कि चायवाला होगा। पर जब उसने नज़र उठाकर देखा तो शिवराम हेगड़े था। उसने कहा,
"इंस्पेक्टर हेगड़े तुम अभी तक वापस नहीं गए।"
शिवराम हेगड़े अंदर आकर कुर्सी पर बैठ गया। उसने कहा,
"आकाश मुझे नहीं लगता है कि केस पूरा हुए बिना मुझे लौटना चाहिए।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"इस केस का मुख्य अपराधी पकड़ा गया है। तुम भी तो दीपांकर दास पर नज़र रखने के लिए बुलाए गए थे।"
शिवराम हेगड़े कुछ जवाब देता तभी चायवाला चाय लेकर आ गया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने शिवराम हेगड़े से चाय के लिए पूछा तो उसने मना कर दिया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने उससे इजाज़त लेकर चाय ली और अपनी कुर्सी पर बैठ गया। शिवराम हेगड़े ने उससे कहा,
"आकाश तुमको लगता है कि दीपांकर दास को गिरफ्तार करके केस पूरा हो गया। तुमको लगता है कि वह सही अपराधी है।"
यह सुनकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे सोच में पड़ गया। दीपांकर दास को लेकर तो उसके मन में भी शंका थी। फिर भी अपने मन की बात को दबाकर बोला,
"शुरू से ही हमारा शक तो दीपांकर दास पर था। फिर वह उस जगह से गिरफ्तार हुआ था जहाँ सरकटी लाश मिली थी।"
"उस जगह पर तो मैं भी था। लेकिन मैं जानता हूंँ कि मैं अपने आप उस जगह नहीं पहुंँचा। किसी ने एक योजना के तहत इतने दिनों तक मुझे कैद करके रखा था। सही मौका देखकर उसने मुझे उस जगह ले जाकर छोड़ दिया। मेरी तरह दीपांकर दास को भी वहाँ ले जाकर उस हालत में छोड़ दिया गया। क्योंकी कोई चाहता था कि वह पकड़ा जाए। मैं उस समय उसके साथ रहूँ।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे चाय का गिलास हाथ में पकड़े हुए बैठा था। वह बड़ी गंभीरता के साथ शिवराम हेगड़े की बात पर विचार कर रहा था। उसे उसकी बात एकदम सही लग रही थी।