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सजा--अनोखी कथा (पार्ट 1)

उसका अपराध क्षम्य नही था।उसने जघन्य अपराध किया था।कानून की नज़र में वह गुनहगार थी।उसका गुनाह उसे हत्यारिन सिद्ध करने के लिए काफी था।हत्यारिन को सजा मिलनी ही चाहिए।जरूर मिलनी चाहिए।और उसकी सजा सिर्फ एके ही थी।अदालत का निर्णय होता मौत।मौत से कम सजा उसे उसके किये अपराध के लिए मिल ही नही सकती थी।और सजा होने के बाद उसे एक दिन फांसी केबतखते पर खड़ा कर दिया जाता।और जल्लाद उसकी नरम नाजुक गर्दन में फंदा डाल देता।और हमेशा के लिए वह मौत की नींद सो जाती।
पर नही।उसे यह सजा नही मिली थी।उसके पति राघव ने उसे पुलिस के हवाले नही किया।उसकी नज़र में सुधा के लिए मौत की सजा काफी नही थी।मौत की सजा यानी गले मे फांसी का फंदा।सिर्फ चंद मिनट का कष्ट।उससे क्या होता?अपराधी को अपने किये अपराध का भान न हो।उसे जब तक पता न चले कि मेरा अपराध क्या है और इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी।तब तक सजा निर्थक है।राघव की नज़रो में सुधा को मौत की सजा मिलने पर उसका कुछ नही बिगड़ता।बल्कि उस सजा का परिणाम राघव को भी भुगतना पड़ता।इसलिए उसने अपनी पत्नी सुधा के लिए ऐसा दंड चुना था कि वह मर भी न सके और जी भी न सके।
राघव,राम दयाल का इकलौता पुत्र था।राघव की माँ का देहांत हो चुका था।राम दयाल अपनी पत्नी कमला से बहुत प्यार करते थे।इसलिए उसकी मौत से वह टूट गए थे।अगर राघव को पालने की जिम्मेदारी उन पर न होती तो वह बैरागी हो जाते।पर बेटे की वजह से वह ऐसा नही कर पाए
जब तक राघव बड़ा नही हो गया और उसने अपना पुश्तेनी धंधा खेती नहीं सम्भाल लिया तब तक राम दयाल सांसारिक बनकर अपनी हर जिम्मेदारी को निभाते रहे।राघव के जवान होने पर रूपसी कन्या देखकर राघव की उससे शादी कर दी।और फिर एक दिन सब कुछ त्यागकर बिना बताए ऐसे गायब हुए की फिर लौटकर वापस घर नही आये।ऐसा नही है राघव ने अपने पिता को ढूंढने का कोई प्रयास न किया हो।लेकिन उसके सारे प्रयास भागदौड़ निरर्थक साबित हुई।
राघव जैसी सुंदर और समझदार पत्नी चाहता था।राधा बिल्कुल वैसी ही थी।राघव,राधा को पाकर खुश था।खिलता रंग,इकहरा बदन,बड़ी बड़ी झील सी आंखे,सुर्ख लाल होंठ।राधा सिर्फ सुंदर ही नही थी।उसका व्यक्तित्व काफी आकर्षक था।राघव तो उसका दीवाना था।दोनो जी जान से एक दुसरे को चाहते,प्यार करते थे।
गांव में ही राघव की पैतृक जमीन थी।जिस पर खेती होती थी।खेत पर ही काफी बड़ा मकान बना हुआ था।गाय, भैंस और बैल पाल रखे थे।जिनकी देखभाल के लिए नोकर थे।राघव ने सब कुछ नौकरों के भरोसे नही छोड़ रखा था।वह स्वंय सब कार्य की देखभाल करता था।नौकरों के साथ लगा रहता।राधा घर का सब काम देखती थी।पति पत्नी दोनों खुश थे।हंसते खेलते न जाने कब शादी के बाद तीन साल गुजर गए।उन्हें पता ही नही चला।वैसे तीन साल का समय कोई लम्बा समय भी नही होता।पर अगर शादी के तीन साल बाद भी औरत मा नही बने तो चर्चा होने लगती है।ऐसा ही राधा के साथ हुआ।जब तीन साल बाद भी वह मा नही बनी तो चर्चा होने लगी।दबी जबान में होने वाली बातें उसके कानों तक भी पहुंची।