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सावधान शैतान ( A Unique Horror Story )

राम के पापा आलोकनाथ सरकारी नौकरी में ऊंचे पद पर थे । वर्षों पहले ही गांव छोड़ कर परिवार संग शहर आ बसे थे । बढिया स्कूल और कालेजों मे राम को शिक्षा मिली थी । राम के चाचा विशम्भरनाथ आज भी अपनी बेटी संग गाँव मे रह कर ही खेती बाडी करते थे ।एक दिन जब वह शाम को घर लौटा तो उसे माँ कुछ गम्भीर और चिंतामग्न दिखी ।

पूछने पर माँ पार्वती ने बताया..

"बेटा हमे आज ही गाँव मे तेरे चाचा जी के पास जाना होगा । क्योंकि तेरी बहन शोभा आजकल कुछ बीमार सी चल रही है ।"....

राम के चाचा विशम्भरनाथ की लडकी का नाम शोभा था ।

माँ के मुँह से शोभा के बीमार होने की बात सुनकर राम उनसे बोलता है ।

" अरे माँ मौसम बदल रहा है । इसमे चिन्ता करने की कौन सी बात है , किसी डॉक्टर को दिखा दवाई दे दें । इतनी सी बात में हमे चिंता करने की क्या जरूरत है ।.." राम ने कहा ।

राम की बात सुनकर पार्वती बोली

" नही बेटा ये तबियत खराब होने का चक्कर नही है बल्कि ये बात कुछ और ही है । ""

राम को माँ पार्वती की यह अजीब सी बात बिलकुल भी पल्ले नहीं पड़ी । उसकी माँ पार्वती उसकी हैरानी देख उससे बोली ।...

"""अब तुझे कैसे समझाऊं बेटा कि शोभा पर किसी बुरी आत्मा का साया मंडरा रहा है । उसके अजीबों गरीब व्यवहार और बदले रवैये ने सबको हैरान किआ हुआ है । """

माँ की बात सुनकर राम सर पीटते हुए बोला ।...

"" क्या माँ आप भी , पढ़ी लिखी होकर ऐसी अंधविश्वास भरी बातें करतीं हैं । आज विज्ञान का युग है । ""

"" होगा बेटा , लेकिन इससे सच्चाई बदल नही जाती । बुजुर्गों की बात पर यकीन करना सीखो । तुमसे पहले वो इस दुनिया मे आये हैं और तुमसे बेहतर इन चीजों को समझते हैं । पर तुम मॉर्डन ज़माने के लड़के लड़की कहाँ इन बातों की गहराई को समझोगे । बेचारी की माँ भी नही है । वो अकेले कैसे सबकुछ झेल रहे होंगे में समझ सकती हूँ । तू चल रहा है या नही साथ , ये बता । वरना मुझे गाड़ी में बैठा दे में अकेली भी जा सकती हूँ ।"" माँ का सख्त लहज़ा देखकर राम साथ चलने को तैयार हो जाता है ।

आलोकनाथ किसी जरूरी मीटिंग की वजह से उनके साथ नही जा सके । माँ बेटे दोनो नियत समय पर घर से निकलते हैं और कुछ ही घण्टो में गाँव पहुंच जाते हैं । गाँव पहुंचकर राम सबसे पहले चाचाजी विशम्भर नाथ के पांव छूते हैं । ये देखकर वो बड़े खुश होते हैं ।

"" वाह बेटा , जुग जुग जिओ । शहर में रहकर भी अपने संस्कार नही भूले । बहुत गर्व है हमे तुम पर । "" कहते हुए विशम्भर नाथ उसकी पीठ थपथपाते हैं ।

लेकिन पार्वती शोभा को लेकर बहुत परेशान होती है । उसका पूछती है । जवाब में विशम्भरनाथ बोलते हैं ।

"" अंदर अभी अभी सोई है । पड़ोस की लीला बहन उसके पास बैठी है । उसी ने अबतक सबकुछ सम्भला है शोभा का । यदि वो नही होती तो में अकेला कुछ नही कर सकता था इस मामले में । आइए अंदर चलकर पहले शोभा को देख लीजिए । "" सभी अंदर शोभा के कमरे में दाखिल होते हैं । शोभा गहरी नींद में सोई रहती है । और उसके पास लीला बहन बैठी रहती है ।

पार्वती , शोभा को सोते देख उसके सर पर प्यार से हाथ फेरती है ।

"" कैसी सूख गई मेरी बच्ची । बिन माँ की बच्ची को भगवान कैसा दुख दे रहा है । है ईश्वर दया कर इस मासूम पर । "" पार्वती ईश्वर से दोनो हाथ जोड़कर प्रार्थना करती है । फिर वो लोग कमरे के बाहर आ जाते हैं ।

विशम्भर नाथ , पार्वती को पूरी बात शुरू से बताते हैं ।

"" भाभी , कुछ दिन पहले तक सबकुछ ठीक था । हंसती खेलती मेरी बच्ची पूरे घर मे इधर से उधर घूमती रहती थी । फिर वो मनहूस दिन भी आया जिस दिन से इसकी सारी खुशियां छिन गईं ।

हुआ यूं कि में तो खेतों पर ही रहता हूँ दिन भर । घर आते आते शाम हो जाती है । दिन में खाना वहीं खेत पर ही खाता हूँ । शोभा ही मेरे लिए खाना लेकर आती थी खेत पर । उस दिन भी वही आई थी । हमने खेत पर खाना खाया , तभी रामधन की लड़की नीलू वहाँ आई और पास के गांव में मेला लगने की बात की । उसने शोभा को भी अपने साथ ले जाना चाहा । मेने पहले तो मना किया की लड़की जात है अकेले कैसे भेज दूँ , पर शोभा जिद पकड़ के बैठ गई । आखिर मुझे उसकी जिद के आगे झुकना ही पड़ा । चूंकि वो लोग तभी जाने वाले थे , इसलिए खेत से ही सीधी वो नीलू के साथ मेला घूमने चली गई । यहीं खेत के पास से एक शार्ट कट है जो जल्दी उस गांव पहुंचा देता है । बस वो दोनो उसी रास्ते से चलीं गई । जब शाम को काफी देर हो गई तो मुझे चिंता हुई । शोभा या नीलू के पास कोई मोबाइल भी नही है जिसपर में उससे बात कर पूछ लेता । में उनलोगों को देखने जाने ही वाला था कि तभी दोनो वापिस आ गई । पर शोभा जैसे ही आई सीधी अपने कमरे में ऊपर चली गई । मुझसे बात करना दूर मेरी तरफ देखा तक नही उसने । मेने नीलू से पूछा , तो वो बोली ,

"" काका मेले में तो सब ठीक था । पर बाद में पता नही क्या हुआ ये इतनी बदल गई । कुछ देर पहले तक हंसती खेलती शोभा अचानक से गम्भीर हो गई । हमलोग मेले से वापिस आ रहे थे । अंधेरा हो चुका था । तभी शोभा को लघुशंका की इक्छा हुई । वो झाड़ियों में चली गई । पर जब काफी देर हो गई वो बाहर नही आई तो मैने झाड़ियों में जाकर देखा तो वो तो बेहोश पड़ी थी । में घबरा गई । मेने उसे पानी के छींटे मारकर होश में लेकर लाई , पर बस । शोभा जबसे होश में आई तबसे ऐसी ही है । फिर पूरे रास्ते उसने मुझसे बात तक नही की । बस नाक की सीध में चलती रही । बाकी आपने अभी देख ही लिया । "" नीलू की बात सुनकर में कुछ समझ नही पाया । लेकिन अगले दिन से शोभा फिर से सबसे अच्छे से बात करने लगी । जैसे कुछ हुआ ही ना हो । मेने उससे पूछा भी की कल रात क्या हुआ था वो चुप चाप क्यो हो गई थी । पर उसने मेरी इस बात का कोई जवाब नही दिया । लेकिन वो पहले की तरह सबसे हंसने बोलने लगी थी तो मैने भी ज्यादा ध्यान नही दिया । बात आई गई हो गई ।

एक दिन दोपहर में खेत पर काफी इंतज़ार करने के बाद भी जब शोभा खाना लेकर नही आई तो मुझे चिंता हुई । में उसे देखने घर आया । पर वो कहीं भी नही दिखी । मेरा ध्यान अचानक बाथरूम के खुले दरवाजे की तरफ गया । मेने अंदर देखा तो भौंचक्का रह गया । शोभा निर्वस्त्र होकर ज़मीन पर लौट लगा रही थी , और मुंह से अजीब सी गुर्राहट जैसी आवाज़ निकाल रही थी । बाथरूम के फर्श को अपने नाखूनों से खुरच रही थी । ये देख में बुरी तरह डर गया । वो तो भला हो लीला बहन का जो उस वक़्त अचानक घर किसी काम से आई थी । जब उन्होंने ये सब देखा तो शोभा को कपड़े पहनाकर कमरे में लाई । जैसे ही वो उसे पलंग पर लिटाने लगी , अचानक शोभा तेज़ तेज़ मर्दाने स्वर में बोलने लगी ।

"" छोड़ दो मुझे , मुझे जाना है , छोड़ दो ।"" ये सुनकर लीला बहन अपनी अनुभवी आँखों से फ़ौरन ताड़ गई । उनको ये समझते देर नही लगी कि शोभा पर किसी ऊपरी हवा का साया है । उन्होंने फ़ौरन शोभा की चींटी उंगली पकड़ कर उससे कड़क स्वर में पूछा ।

"" कौन है तू , बोल क्यो इस मासूम को परेशान कर रही है । "" पहले तो वो कुछ नही बोली , पर जब लीला बहन ने बार बार जोर देकर उग्र स्वर में पूछा तो शोभा अचानक से बड़ी बड़ी आँख निकालते हुए दहाड़ी ।

‘‘मैं संग्रामपुर का रहने वाला था । मेरा नाम डेविड है । इसने मुझे जगा दिया है। मैं इसे नहीं छोडूंगा । इसे अपने साथ लेकर जाऊंगा । मेरा दिल इस पर आ गया है । ""

शोभा की ये हालात देखकर में तो वही धम्म से बैठ गया । कुछ समझ नही आया कि ये सब क्या हो रहा है । पर लीला बहन ने बड़ी हिम्मत रखी । उन्होंने उससे बोला ।

"" जो तुम मांगोगे हम तुम्हें देंगें पर इसे छोड़ दो। अब वो दुष्ट आत्मा अब अपने पूरे रूप में आ गई और बोली। ...

‘‘मुझे एक मुर्गा एक बोतल शराब , और दूल्हे के सिंगार का पूरा सामान लाकर दो तो मैं चला जाऊंगा । नहीं तो इसे अपने साथ ही लेकर जाउँगा । जल्दी करो , जल्दी करो दफा हो जाओ, ये सामान लेकर ही आना , वरना इसे तो मैं अपने साथ लेकर ही जाऊंगा ’’। और तेज़ तेज़ डरावने अंदाज़ में हंसने लगा ।

मेरा चेहरा तो पीला पड़ गया । पर लीला ताई के कहने पर में वो सब जैसे तैसे लेकर आया । और उसे दिया । मेरे देखते ही देखते शोभा पूरी बोतल एक सांस में खाली कर गई । और मुर्गे को ऐसे नोच नोच के खाया की उसकी हड्डियां तक चबा गई । और एक तरफ लुढ़क गई । ऐसा भयंकर डरावना दृश्य देखकर तो मेरी बोलती ही बंद हो गई । पूरा कमरा दुर्गंध से भर गया ।

उस दिन के बाद से कुछ दिन तो सब ठीक ठाक रहा । पर एक दिन अचानक फिर से शोभा की तबियत खराब हो गई । उसने फिर से वही रुप धारण कर लिया । मेने फिर लीला बहन को बुलाया । लीला बहन से फिर से उससे बात की । उसने फिर से वही सब मांगा । मेने फिर वो सब लाकर दिया । बस उस दिन के बाद से आये दिन यही नाटक शुरू हो गया । वो डेविड की आत्मा जब भी उसके शरीर मे आती यही सब चीज़ मांगती । में तो परेशान आ गया हूँ इन सबसे । "" विशम्भर नाथ दोनो हाथ सर पर रखकर परेशान होकर बोले ।

राम और पार्वती विशम्भरनाथ की बातें बड़े गौर से सुन रहे थे । पार्वती ने पूछा ।

"" आपने किसी को दिखाया नही । मेरा मतलब किसी ओझा तांत्रिक को ।""

"" अरे बताया भाभी , मेरे दोस्त मंगल के कहने पर एक तांत्रिक आया था । उसने भी ये सब अपनी आंख से देखा । उस डेविड की आत्मा ने उससे भी वही सब वस्तुएं मांगी । जब उसकी इक्छा फिर से पूरी की गई और उस तांत्रिक ने उससे वचन भी लिआ की अब वो दोबारा कभी लौटकर नही आयेगा । उस तांत्रिक ने कोई पूजा भी की । बाद में सबकुछ ठीक भी हो गया था । पर होली की एक रात पहले फिर से इसकी तबियत खराब हो गई । और वही सब नाटक दोबारा । आप पीछे आँगन में जाकर में देखो । शराब की कितनी बोतले इक्कट्ठी हो चुकी हैं । में तो अब परेशान आ गया हूँ भाभी , इन सबसे । कुछ समझ नही आता क्या करूँ । "" विशम्भरनाथ दोनो हाथ सर पर रखकर नीचे बैठ गए ।

"" इतना कुछ हो गया भैया और आपने हमे अब जाकर बताया !!!!!!!""" पार्वती ने हैरानी से बोला ।

"" क्या करता भाभी , क्या बताता , किस मुँह से बताता । भाईसाहब को तो आप जानती ही हो । कभी यकीन नही करते इन बातों पर । जब बात इतनी बढ़ गई तब मैंने आपलोगो को बताना ही उचित समझा । ""

राम तो ये सब सुनकर बिल्कुल हैरान रह गया । उसे विश्वास नही हुआ कि ऐसा भी होता है । वो तो आज के पहले ये सब अंधविश्वास समझता था । पर चाचाजी झूठ नही बोलेंगे । अब उसे भी यकीन होने लगा । वो उठकर शोभा के पास जाकर बैठ गया । उसे बड़े गौर से देखने लगा । उसे बचपन की सारी बातें याद आने लगी । कैसे शोभा उसे छेड़कर भाग जाती थी कैसे वो उसके साथ खेलता था । और आज उसकी बहन ये मरणासन्न हालत में पड़ी थी। शोभा बहुत कमजोर हो गई थी ।

जब उसे होश आया और उसने राम और पार्वती को देखा तो मुस्कुरा दी । राम ने उसे सीने से लगा लिया ।

"" तुझे कुछ नही होने दूंगा मेरी बहन , ये वादा रहा । अभी तेरा भाई जिंदा है । में कुछ भी करूंगा कुछ भी पर तुझे इस हाल में किसी हाल में नही रहने दूंगा । यदि तुझे कुछ हुआ तो पूरे प्रेतलोक को बर्बाद तबाह कर डालूंगा । "" राम शोभा से और खुद से वादा करता है ।

राम फ़ौरन वहाँ से उठकर बाहर आ जाता है । और माँ से बोलता है ।

"" बस माँ अब बहुत हुआ । बहुत परेशान हो गई मेरी गुड़िया । अब कोई तांत्रिक नही । हमलोग सीधे कलकत्ता जाएंगे । वहाँ काली मइया का प्रसिद्द स्थान है । मेने बहुत सुन रखा है उस जगह का । पहले में इन सबपर यकीन नही करता था । पर वो मंदिर सिद्ध है । वहां जाकर मेरी गुड़िया जरूर ठीक हो जायेगी । हम लोग कल ही निकल रहे हैं । चाचाजी से बोल दो तैयारी कर लें । में बाकी का इंतज़ाम करके आता हूँ । हम लोग बाय रोड ही जायेंगे । लीला ताई को भी साथ मे ले लीजिए । उनकी मदद के बिना शोभा को संभालना मुश्किल होगा । में फोन पर वहां के पुजारीजी से बात कर लूंगा । आप चिंता मत कीजिये । "" इतना कहते ही राम वहाँ से कहीं चला गया ।

राम को वापस आते आते काफी रात हो गई थी । वो खाना खाकर एक बार शोभा को उसके कमरे में देखने गया । वो सो रही थी । राम चुप चाप दूसरे कमरे में आकर सो गया । आधी रात को अचानक उसकी नींद खुली । उसे महसूस हुआ कि कोई उसकी छाती पर बैठा है और उसका गला दबा रहा है । उसने आंख खोलकर जैसे ही देखा , उसके ऊपर शोभा सवार थी । बाल एक दम फैले हुए । आंखे बड़ी बड़ी लाल लाल । और दांत बाहर निकालते हुए किट किटाती हुई उसका गला दबाए जा रही थी ।

"" नही छोडूंगा तुझे साले , तू आया है तू , इसे बचाने । हहहहह हम्म्म्म गुर्रर्ररर, में संग्रामपुर का डेविड हूँ डेविड । बहुत शक्तिशाली हूँ , मेरा तू तो क्या कोई कुछ नही बिगाड़ सकता । साले तेरी इतनी हिम्मत की तू इसे मुझसे दूर करेगा । अरे ये तो मेरे साथ जायेगी । प्रेतलोक में । कोई मेरे रास्ते मे नही आ सकता । सबको मार डालूंगा सबको । हा हा हा हा हा गुर्रर्ररर """

ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कई डरावने मर्दाना स्वर एक साथ बोल रहे हों । शोभा भयंकर चेहरा बनाते हुए गर्दन को धीरे धीरे आसपास गोल घुमाते हुए वो राम को खूंखार नज़रों से घूरे जा रही थी । और गर्दन पर दवाब बढ़ाये जा रही थी । उसके मुँह से ये बात सुनकर राम का मानो खून उबाल आ गया हो । राम ने पूरी शक्ति से खुद को उससे छुड़ाया । और उसे एक तरफ छिटक दिया । तबतक पीछे से विशम्भरनाथ और पार्वती दोनो आ चुके थे । इधर राम ने हिम्मत से तेज़ी से एक हाथ से शोभा के दोनो हाथ कस कर पकड़ लिए और दूसरे हाथ को शोभा के सर पर रख बड़ी बड़ी आँख निकालते हुए प्रचंड गर्जना कर बोलना शुरू कर दिया । पूरा वातावरण उन अत्यंत प्रभावशाली पंक्तियों से गुंजायमान हो उठा ।

"" जय हनुमान ज्ञान गुन सागर , जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
राम दूत अतुलित बलधामा , अंजनि पुत्र पवनसुत नामा
भूत प्रेत निकट नही आवे , महावीर जब नाम सुनावे
नासे रोग हरे सब पीरा , जपत निरन्तर हनुमत बीरा ""

राम प्रचंड स्वर में हनुमान चालीसा की ये विशेष प्रभावी चौपाइयाँ बोले जा रहा था । और शोभा बुरी तरह से तड़प रही थी । राम फिर दांत पीसते हुए गुस्से में गरजा ।

"" ऐ बुरी आत्माओं ऐ शैतानों , सावधान , बहुत सुन चुका हूं तुम्हारे बारे में । किस किस तरह से हम निर्दोष लोगों को सताती हो । लेकिन अबतक तुम्हारा किसी सच्चे हनुमान भक्त से पाला नही पड़ा होगा । एक सच्चे हनुमानभक्त के पास भले कोई तंत्र शक्ति ना हो , पर हमारे पास ऐसी शक्ति है जो सभी शक्तियों पर भारी है । तू बेटा डेविड , तेरी औकात क्या है बे । जिंदा होगा तब भी सबको परेशान किया होगा , और अब मरने के बाद दादागिरी कर रहा है । तेरी आत्मा की तो बैंड बजाकर रहूंगा में । मेरी बहन पर नज़र डालने की हिम्मत भी कैसे की तूने । अब तुझे बर्बादी का वो मंज़र दिखाऊंगा जिसे देखकर तू तो क्या समूचे आत्मालोक प्रेतयोनियों शैतानों की चड्डी ना खिसक जाए तो बोलना बेटा ।

इतने में शोभा के शरीर मे घुसे डेविड ने तेज़ प्रहार किया राम पर । राम ने एक हाथ से वो प्रहार रोकते हुए उसे दूर झटक दिया । वो चाहकर भी उस शैतान पर हाथ नही उठा सकता था, क्योंकि वो शैतान उसकी बहन शोभा के शरीर मे था । चोट शोभा को लगती । राम बस उसके हर प्रहार को विफल कर रहा था ।

"" जय बजरंग बली तोड़ दे दुश्मन की नली "

इतना कहते ही राम ने बड़ी बड़ी आँखे निकालते हुए शोभा के कान के पास जाकर तेज़ स्वर में कहा ।

""जय श्री राम , जय बजरंग बली ""

श्रीराम जी और हनुमानजी का नाम उसके कानों में पड़ते ही उसने दोनो हाथों से अपने काम बंद कर लिए । और भयंकर गर्जना करते हुए एक तरफ लुढ़क गई ।

राम ने उसे उठाकर वापिस पलंग पर लेटा दिया । और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरने लगा । पार्वती ने आज राम का ये अलग ही रुप देखा था । जो लड़का कभी इन सब बातों पर विश्वास नही करता था वो अचानक उस आत्मा से भिड़ गया । और प्रचंड स्वर में हनुमान चालीसा का वो पाठ किया कि उस समय पूरे वातावरण में जो जो भी प्रेत आत्माएं विचरण कर रही होंगी सभी दुम दबाकर भाग गई होंगी । विशम्भरनाथ भी पहली बार राम का ये उग्र स्वरूप देख अंदर तक दहल गए थे ।

अगले दिन सभी लोग कार से कलकत्ता रवाना हो गए । वहां मंदिर के पुजारीजी से राम ने पहले ही सबकुछ फोन बताकर सारी बात कर ली थी । वहाँ पहुंचते ही जब शोभा को उनके समक्ष बैठाया गया तो शोभा वापिस से बाल फैलाकर नाटक करने लगी । पर जैसे ही उसकी नज़र पास में बैठे राम पर पड़ी तो सर को गोल गोल घुमाना बंद कर दिया । पुजारीजी ने उससे पूछा कि कौन है और क्या चाहता है । तब शोभा ने मर्दाना स्वर में बोलना शुरू किया ।

"" में संग्रामपुर का डेविड हूँ । मै बहुत ही बिगड़ैल मिज़ाज़ का इंसान था । शराब पीना , नाच गाना देखना , मांसाहार करना मेरे शौक हुआ करते थे । मेने ना जाने कितनी मासूम लड़कियों का बलात्कार किया । ना जाने कितने निर्दोषों को मौत के घाट उतारा । एक दिन मेरी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया , और में अकाल मौत मारा गया । तबसे मेरी आत्मा भटक रही थी । उस दिन जब ये लड़की पेशाब करने वहाँ झाड़ियों में आई तो मेरी नज़र इस पर पड़ी । में इसे देखता ही रह गया । मेरा दिल तबसे ही इसपर आ गया था । हम्मममम्म गुर्रर्ररर """

उसकी बातें सुनकर वहाँ बैठे सभी लोग बुरी तरह डर गए सिवा राम के । राम ने जैसे ही शोभा के शरीर मे घुसे डेविड को गुस्से से देखा तो शोभा गुर्रर्ररर गुर्रर्ररर करना बंद कर चुप बैठ गई ।

पुजारीजी ने राम को एक तांबे की छोटी मटकी और कुछ सामान लाने को कहा । राम वो सब समान ले आया । पुजारीजी ने मन्त्र पढ़कर मटकी को शोभा के सामने रख दिया । और बोले ।

"" आ तू इसमें समा जा । आ इसमें आ । "" पर शोभा पर कोई असर नही हुआ । फिर राम ने जैसे ही शोभा का हाथ पकड़ा , कुछ देर बाद मटकी अपने आप हिली । और शोभा एक तरफ लुढ़क गई । डेविड की आत्मा मटकी में आ चुकी थी । पुजारीजी ने उस मटकी को अभिमन्त्रित धागे से बांध कर वो मटकी समंदर में फेंक दी ।

कुछ देर बाद शोभा को होश आया गया । राम ने उसे गले से लगा लिया । अब शोभा सामान्य थी । पर पार्वती ने अब राम को वो रूप देखा था जो उसने इसके पहले कभी नही देखा ।

राम ने बस पार्वती से इतना कहा ।

"" माँ आम इंसान सोता हुआ वो शिकारी है जिसे चाहे वो कोई भी हो जिंदा हो या मुर्दा कोई भी सतायेगा , वो शिकारी यदि जाग गया तो इन बब्बर शेर टाइप आत्माओं का ऐसा शिकार करेगा कि इनकी संख्या भी धरती पर बचे शेरों जितनी ही रह जायेगी । क्योंकि आम इंसान शेर नही बल्कि एक खतरनाक शिकारी है । जो इन जैसे बब्बर शेरों का शिकार करना खूब जानता है । बस जिम्मेदारियों के चलते अपने परिवार की खातिर जरा झुकना पड़ता है । लेकिन झुकना हमारी कमजोरी बिल्कुल नही है । ""

राम के ये अजबोंगरीब गैर फिल्मी डायलॉग सुनकर पार्वती कुछ समझ नही पाती । सभी हंसी खुशी वापस आ जाते हैं ।

Happy Ending ... 🤗

लेखक - अतुल कुमार शर्मा " कुमार "