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सरकार के सलाहकार

 सरकार के सलाहकार

​यशवन्त कोठारी

 

​सरकार है तो सलाहकार भी है। ऐसी किसी सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती है जिसके पास सलाहकार नहीं हो। वैसे भी सरकारों के पास सलाहकारों की कभी कमी नहीं रहती। किसी ने ठीक ही कहा है सलाह मुफ्त और बिना मांगे मिलती है। सलाहकार यदि सरकारी हो तो क्या कहने ? वो सरकार को हर काम के लिए सलाह देने को तत्पर रहता है। वैसे भी सलाहकारों का काम सरकारों को सलाह देकर डुबोना ही होता है। आपने कभी सोचा है कि सरकार के पास कितने प्रकार के सलाहकार हो सकते है ? सरकार के पास आर्थिक सलाहकार, राजनैतिक सलाहकार, रक्षा सलाहकार, मिडिया सलाहकार, संस्कृति सलाहकार यहॉं तक कि मेडिकल सलाहकार और व्यायाम सलाहकार भी होते है, ये सभी सलाहकार सरकार को विभिन्न विपयों पर सलाह देते रहते है और अक्सर ये सलाहें एक दूसरे के विपरीत होती है। आर्थिक सलाहकार की सलाह को राजनैतिक सलाहकार काट देता है और राजनैतिक सलाहकार की राय को मीडिया सलाहकार जनता में गलत संदेश के नाम से अस्वीकृत कर देता है सलाह देने वाले सलाह देकर चैन की बांसुरी बजाने लग जाते है और सरकार की जान सासंत में पड़ जाती है।  लगभग सभी सलाहकार चिन्तक, दार्शनिक, बुद्धिजीवी की छवि वाले होते है। ये सलाहकार मंहगी ष्शराब, मंहगे चश्मे, फटी जीन्स, बढ़ी हुई दाढ़ी, और बगल में लड़की लेकर घूमते रहते हैं। चिन्तक दार्शनिक मुद्रा के कारण आम जनता इन सलाहकारों से दूर ही रहती है। कभी कदा ये सलाहकार जनता की सलाह पर बदल दिये जाते है। वास्तव में सलाहकार असम्पादित फिल्मी अंश की तरह होते है जो कभी भी रद्दी की टोकरी की शोभा बढ़ा सकते हे। लगभग सभी सलाहकार किसी न किसी सरकारी समिति में घुस जाते है और उस समिति को डुबोने में लग जाते है। सलाहकार समितियों में विशपज्ञ होते है, सरकारी अधिकारी होते है और ये अधिकारी हर सलाह को नियमों के विपरीत बता देते हे। मुझे एक सलाहकार ने बताया कि राज्य सरकारों में उपसचिव और केन्द्र सरकार में संयुक्त सचिव विकास व योजनाओं में सबसे बड़ा रोड़ा होता है जब कि सचिवों का मानना है कि जो काम नहीं करना हो उसे सलाहकार समितियों के हवाले कर दें। सब गुड़ गोबर हो जायेगा।

​सलाहकार चिन्तक की मुद्रा में सरकार के पास जाता है और अपनी स्वयं सेवी संस्था की रपट के आधार पर अनुदान मांगता है वो अनुदान के आधार पर सलाह देता है। चुनाव व संक्रमण काल में सलाहकारों का महत्व बहुत बढ़ जाता हे। हर सलाहकार मानता है कि उसी की सलाह से चुनाव जीता जा सकता है, मगर चुनाव के परिणाम आते ही सब टांय टांय फिस्स हो जाता है। जब सरकार संकट में होती है तो सलाहकार संकट से उबारने के रास्ते बताता है, मगर ये रास्ते सरकार को ओर भी गहरे संकट में डाल देते है। कुल मिलाकर सलाहकार एक जलसाघर बनाते है और उसमें रम जाते है। सलाहकार विशेपज्ञ होते है और सरकार को विपय की जानकारी देते है, मगर ये जानकारी सरकारी फाइलों, आकड़ों की समझ में नहीं आती श्रेप्ठतम सलाह के आधार पर बनी श्रेप्ठ योजना भी सरकारी मकडजाल में फंस कर रह जाती है। आज स्थिति ये है कि सरकारी जलसाघर में प्रेमचन्द के बजाय चेतन भगतों का बोलबाला है। सरकार को गालिब नहीं गुलजार चाहिये। कबीर-तुलसी नहीं रहीम चाहिये। आईने- अकबरी लिखने वाले इतिहासकार चाहिये। सरकारी सलाहकार बनने के लिए विद्वान, चिन्तक, दार्शनिक होना काफी नहीं है। आपके पास राजनैतिक आकाओं से जुडे ने का प्रमाण पत्र भी चाहिये। आपके पास एक विचार नहीं विचारधारा का मुखैटा चाहिये, एक प्रभामण्डल चाहिये, जिसकी चमक, दमक में आपका चेहरा सरकार को नजर आये। सलाहकार निर्वस्त्र सत्य को भी नकार सकता है और आवरण युक्त झूठ को सत्य बता कर परोस सकता है। सलाहकार गधे की मौत के बाद आदमी की ष्शवयात्रा निकालने की तजबीज जानता है ओर उसे अमल में ला सकता है। जब रोम जलता है सलाहकार बॉसुरी बजाता है। सता के आस पास मण्डराने वाले सलाहकार राजधानी के गलियारों में सत्ता की दलाली करते रहते है। वैसे भी सलाहकार चेम्बर प्रक्टिस करने में विश्वास रखते है। सलाहकारों की सलाहे अन्धों के हाथी की तरह होती है, जिसे अलग अलग तरह से देखा समझा भोगा जा सकता है। कुछ सलाहकार हर सरकार को सलाह देने की हिम्मत रखते है। फिर सरकार का कुछ भी हो। इतिहास गवाह है कि कई सल्तनते केवल गलत सलाहों के कारण डूब गई। आप पूछ सकते है सरकारों को सलाहकारों की जरुरत क्यों पड़ती है तो भाई साहब सत्ता के ताबूत में आखिरी कील जड़ने वाले भी तो चाहिये, ये सलाहकार यहीं काम काफी अच्छे से कर लेते हैं। मगर प्रजातन्त्र हर बार मजबूत होता है क्यों कि वोट देने वाला किसी सलाह पर विश्वास नहीं करता वो तो मन मरजी का मालिक है। फोन की घंटी बज रही है शायद किसी को सलाह की जरुरत है। आमीन!

 

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यशवन्त कोठारी, 86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर - 2, फोन - 09414461207