Gyarah Amavas - 58 books and stories free download online pdf in Hindi

ग्यारह अमावस - 58




(58)

बिप्लव बर्मन के पास बहुत सारी पुश्तैनी जायदाद थी। व्यापार से भी कुछ धन कमाया था। अचानक उनका मन संसार से उचट गया। उन्होंने व्यापार बंद कर दिया। कोटागिरी में उनका एक भवन था। वहाँ रहने लगे। उन्होंने ध्यान की एक तकनीक विकसित की। उसमें पारंगत होने के बाद लोगों को सिखाने लगे। बिप्लव बर्मन का संबंध शुबेंदु के गांव से था। जिन दिनों शुबेंदु अपने गांव गया था बिप्लव बर्मन भी वहीं थे। शुबेंदु उनसे प्रभावित हुआ। उन्हें भी शुबेंदु ‌अच्छा लगा। उसे अपने साथ कोटागिरी ले गए। शुबेंदु जल्दी ही उनका सबसे प्रिय शिष्य बन गया। उन्होंने अपना सबकुछ उसे सौंप दिया। आश्रम की सारी व्यवस्था शुबेंदु ही देखता था। बिप्लव बर्मन अधिकांश समय अपने विशेष कक्ष में साधना करते थे। उस कक्ष में केवल शुबेंदु को ही प्रवेश का अधिकार था।
बिप्लव बर्मन को जब शुबेंदु की शैतान पूजा के बारे में पता चला तो वह बहुत नाराज़ हुए। उन्होंने उसे हर चीज़ से बेदखल कर देने की धमकी दी। वह अपने विशेष कक्ष में थे। शैतान की पूजा करने से शुबेंदु क्रूर हो गया था। वह किसी भी हद तक जा सकता था। उसने बिप्लव बर्मन की हत्या कर दी। बाहर आकर कहा कि गुरुजी गहन समाधि में चले गए हैं। उन्होंने अब अपने शरीर का त्याग कर दिया है। वहाँ रहने वाले बाकी के शिष्य उसके प्रभाव में थे। सबने बिना आपत्ति के उसकी बात मान ली। बिप्लव बर्मन का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
बिप्लव बर्मन की अधिकांश संपत्ति बंगाल में थी। शुबेंदु चाहता था कि सारी संपत्ति पर जल्द से जल्द अपना कब्जा कर उसे बेच दे। उसके पास अपना उत्तराधिकारी साबित करने के काग़ज़ थे। वह कुछ दिनों बाद उन्हें लेकर बंगाल चला गया। वहाँ उसने बिप्लव बर्मन की बहुत सी संपत्ति बेचकर धन अपने नाम कर लिया। बंगाल में रहने के दौरान जब वह किसी ज़रूरी काम से हावड़ा पहुँचा तो उसे कुमुदिनी और सुनंदा के बारे में पता चला। वह दीपांकर दास से मिला। उसकी हालत ठीक नहीं थी। शुबेंदु को भी कुमुदिनी के बारे में जानकर बुरा लगा था। उसने कुमुदिनी को अपनी बेटी की तरह चाहा था। उसने दीपांकर दास को अपनी बेटी का बदला लेने के लिए उकसाया। दीपांकर दास ने अपनी बेटी के गुनहगारों से बदला ले लिया। लेकिन उसके बाद उसकी मानसिक स्थिति और बिगड़ गई। वह पूरी तरह से शुबेंदु पर आश्रित हो गया था। सिर्फ उस पर भरोसा करता था। शुबेंदु उसे कोटागिरी ले गया। फिर वहाँ से बसरपुर ले आया।
दीपांकर दास शुबेंदु के हाथों में एक कठपुतली की तरह था। उसके ही इशारे पर काम करता था। पर दुनिया की नज़र में वह शांति कुटीर का कर्ता धर्ता था। एक प्लान के तहत शुबेंदु ने बड़ी चालाकी से एसपी गुरुनूर कौर का ध्यान दीपांकर दास की तरफ कर दिया ताकि उसे मोहरे की तरह प्रयोग किया जा सके। उसने जानबूझ कर अहाना के दोषी की उसी तरह हत्या कराई जैसे दीपांकर दास ने रंजीत सिन्हा की की थी।
शुबेंदु को शैतानी शक्तियों का लालच था। पर वह इतना बड़ा अनुष्ठान अकेले करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। जब उसे सिवन का साथ मिला तो उसे लगा कि बिप्लव बर्मन के धन को खर्च करके वह शैतानों के देवता ज़ेबूल को प्रसन्न कर सकता है तो इसमें हर्ज़ क्या है। वह सिवन का साथ देने को तैयार हो गया। लेकिन अब वह डर रहा था।
शुबेंदु उठा और उसने सिवन के आदेश के ‌अनुसार चार लोगों को व्यक्तिगत मैसेज भेजकर मीटिंग के लिए बुलाया।

नज़ीर एक आदमी का पीछा कर रहा था।‌ रानीगंज के बाज़ार में उस आदमी को देखकर उसे याद आया कि उसने इसे एकबार गगन के साथ बंसीलाल की चाय की दुकान के पास देखा था। उसके मन में उम्मीद जगी कि शायद इस व्यक्ति से कोई जानकारी मिल सके। इसलिए वह उसका पीछा कर रहा था।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने अपनी एक नई टीम बनाई थी। इस टीम में उसने कुछ चुनिंदा विश्वासपात्र लोगों को रखा था। उनमें से एक वह भी था। वह सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के इस विश्वास पर खरा उतरना चाहता था। वह कांस्टेबल मनोज के संपर्क में था। उसने कांस्टेबल मनोज को उस जगह के बारे में बता दिया जहाँ इस वक्त वह उस आदमी का पीछा कर रहा था।
वह आदमी बाज़ार में चलते हुए एक गली में गया। यह गली अधिक चौड़ी नहीं थी‌। इस इस गली में दोनों तरफ पुराने रिहायशी मकान थे। वह आदमी एक दरवाज़े के सामने रुका। उसने दरवाज़े पर दस्तक दी। दस्तक देते ही दरवाज़ा खुल गया। वह व्यक्ति अंदर चला गया। नज़ीर उस मकान के पास खड़ा होकर इधर उधर देखने लगा।

उस मकान के ऊपरी हिस्से में बने एक कमरे में वह व्यक्ति अपने साथी के साथ बैठा था।‌ उसके साथी ने कहा,
"पंकज समझ नहीं आ रहा है कि इस बार हमें पर्सनल मैसेज क्यों भेजा गया। क्या हम दोनों के अलावा भी किसी और को यह मैसेज मिला होगा।"
पंकज ने अपने साथी से कहा,
"अजय इसका तो पता नहीं है। लेकिन अगर हम दोनों को पर्सनल मैसेज मिला है तो कोई खास बात होगी। ऐसी बात जो बाकी सबके साथ नहीं हो सकती है। आज देर रात हमें पहुँचने को कहा गया है।"
"पंकज हमसे कहा गया है कि रानीगंज के बाहर जो रिंग रोड जाती है उस पर दस किलोमीटर चलने के बाद एक पुराना मंदिर है जो अब इस्तेमाल नहीं होता है। हमें रात बारह बजे उस मंदिर में पहुँचना है। उसके बाद रंजन सिंह हमें मीटिंग की जगह ले जाएगा।"
"ठीक है अजय मैं करीब पौने ग्यारह बजे तक तुम्हारे घर अपनी बाइक से आऊँगा। उसके बाद साथ चलेंगे।"
अजय ने कुछ सोचकर कहा,
"तुम गली के मोड़ पर आ जाना। मैं वहीं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा। मैं नहीं चाहता कि किसी को कोई खबर हो। नीचे के हिस्से में रहने वाला उस समय तक जागता रहता है।"
पंकज मान गया। वह यह कहकर कि रात ग्यारह बजे के करीब आएगा वहाँ से चला गया। नज़ीर बाहर खड़ा होकर उसकी राह देख रहा था। जैसे ही पंकज बाहर आया वह उसके पीछे लग गया। पंकज गली से बाहर निकल कर फिर बाजार की तरफ चल दिया। नज़ीर ने मनोज से बाजार में आने को कहा था। बाजार में पहुँच कर पंकज एक चाय की दुकान के अंदर चला गया। उसी बीच नज़ीर और कांस्टेबल मनोज मिले। कांस्टेबल मनोज ने बताया कि वह पंकज को पकड़ने की तैयारी से आया है। उन्होंने तय किया कि किसी एकांत जगह में पंकज को धर दबोचेंगे।
दोनों काफी देर तक चाय की दुकान के बाहर खड़े रहे। लेकिन पंकज बाहर नहीं आया। नज़ीर और कांस्टेबल मनोज उसे देखने चाय की दुकान के अंदर घुसे तो पंकज वहाँ नहीं था। उन्होंने देखा कि चाय की दुकान में पीछे की तरफ एक दरवाज़ा और था। नज़ीर समझ गया कि पंकज वहीं से निकल गया है। उसने कहा,
"लापरवाही हो गई। लगता है कि उसको शक हो गया था। इसलिए वह निकल गया।"
कांस्टेबल मनोज ने कहा,
"अब क्या करेंगे। वह उन लोगों को आगाह कर देगा।"
नज़ीर ने कहा,
"फौरन मेरे साथ चलो।"
नज़ीर कांस्टेबल मनोज को लेकर उस मकान की तरफ चल दिया जहाँ पंकज गया था। उसे यकीन था कि वहाँ उसका कोई साथी होगा। उसे पकड़ कर भी बहुत कुछ पता किया जा सकता था। वह और कांस्टेबल मनोज लगभग दौड़ते हुए उस गली में पहुंँचे। अभी दोनों गली के अंदर घुस रहे थे कि सामने से आते पंकज और अजय दिखाई पड़े। पंकज नज़ीर को देखते ही भागने लगा। लेकिन कांस्टेबल मनोज और नज़ीर ने दोनों को पकड़ लिया। कांस्टेबल मनोज ने अपने साथियों को बुला लिया। दोनों को पकड़ कर रानीगंज थाने ले जाया गया।
नज़ीर और कांस्टेबल मनोज को मिली ‌सफलता की सूचना सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को मिली। वह फौरन रानीगंज के लिए रवाना हो गया।

गगन ‌चुपचाप बैठा था। वह आत्म बलि के बारे में सोच रहा था। शुबेंदु ने उसे और उसके साथियों को बताया था कि जो इस प्रकार अपना बलिदान ज़ेबूल के लिए देगा वह उसकी विशेष कृपा का पात्र होगा। उसे अनुष्ठान पूरा होने के बाद पुनर्जीवन मिलेगा। उस जीवन में उसे वह सबकुछ मिलेगा जिसकी वह इस जीवन में चाह रखता है। उसे शुबेंदु के इस दावे पर भरोसा था। वह अपने नए जीवन के बारे ‌में सोच रहा था। संजीव उसके पास आकर बैठ गया। उसने कहा,
"अपने नए जीवन के बारे में सोच रहे हो।"
गगन ने कहा,
"हाँ.....उस जीवन में मेरे पास ताक़त होगी। कोई मेरा मज़ाक नहीं उड़ा पाएगा। मैं उस उर्मी से भी अधिक सुंदर औरत से शादी करूँगा। उर्मी को उसकी बांदी बनाऊंँगा।"
संजीव ने कहा,
"मैं भी अपने दुश्मनों को उनकी औकात दिखाऊँगा। ज़िंदगी का पूरा मज़ा लूँगा।"
उन लोगों की बातों में भानुप्रताप भी शामिल हो गया। उसने कहा,
"मेरा तो बचपन से ही यह सपना था कि मैं इस दुनिया पर राज करूँ। अब मुझे कोई नहीं रोक सकता है।"
शुबेंदु ने उनके दिमाग को अपने बस में कर लिया था। अनजानी शक्तियां पाने के लिए वह अपनी जान देने को भी तैयार थे। उन सभी को यह यकीन था कि ज़ेबूल के सामने आत्म बलि देकर वह सब फिर जीवित हो जाएंगे। पहले से बहुत अधिक ताकतवर हो जाएंगे।
उन तीनों के अलावा रंजन सिंह को भी यह यकीन था कि जांबूर का साथ देकर वह बहुत ताकतवर बन जाएगा।