Tumhara Naam - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

तुम्हारा नाम (पार्ट 1)

"तुम्हारा कार्ड।"
पोस्टमेन की आवाज सुनकर मनीष बाहर गया था।पोस्टमेन ने उसे लिफाफा पकड़ाया था।मनीष ने खोलकर देखा।शादी का कार्ड था।वह श्रेया के कमरे में कार्ड देने गया।श्रेया को कार्ड देते हुए बोला,"तुम्हारा नाम होना चाहिये था लेकिन मनीषा का नाम है"
मनीष दिल्ली का रहने वाला था।यही पैदा हुआ और पढ़ा था।और पढ़ाई पूरी करने के बाद पूना में उसे नौकरी मिल गयी।वह दो तीन महीने बाद छुट्टी लेकर माता पिता से मिलने आता रहता था।पिछली बार आया तब वह कनॉट प्लेस गया था।वहाँ उसकी नज़र बस में चढ़ती युवती पर पड़ी और वह पहली नज़र में ही भा गयी।और फिर उसने उस युवती को खूब खोजा।पर व्यर्थ।दिल्ली जैसे महानगर में आसान नहीं था।ऐसा करनाऔर वह वापस पूना आ गया था।लेकिन उस युवती का चेहरा यहां आकर भी भुला नही था।इस बार वह देहली गया तो माँ उस से बोली,"एक रिशता आया है।लड़की देख आना।"
वह जाना नही चाहता था लेकिन फिर न जाने क्या सोचकर चला गया।वह उस पते पर पहुंचा था।उसकी माँ ने फोन कर दिया था।इसलिए लड़की के मां बाप उसी की राह देख रहे थे।वहां पहुचने पर उसका स्वागत हुआ था।जब लड़की आयी तो वह उसे देखकर उछल पड़ा।वो ही लड़की थी जिसे उस दिन उसने देखा था।
कुछ देर बाद मनीषा की माँ बोली,"तुम दोनों गार्डन में जाकर बात कर लो।"
और वे दोनों बाहर कॉलोनी के गार्डन में चले आये।मनीषा बोली," मैं एक बात कहना चाहती हूँ।"
"कहो"मनीष बोला।
मनीषा कुछ कहती उससे पहले मनीष के फोन की घण्टी बज गयी,"एक मिनट
मनीष फोन पर बात करने लगा।अर्जेंट काल था।वह मनीषा से बात किये बिना चला गया।और फिर मनीषा को अपनी बात कहने का मौका मिला ही नही।और उनकी शादी हो गयी।मनीष कितना खुश था।जिस लड़की को पहली बार देखते ही उसने पसन्द कर लिया था।ईश्वर ने उसे ही उसकी जीवन संगनी बना दिया था।सुहागरात को जब वह कमरे में आया तो मनीषा बोली,"मैं एक बात कहना चाहती हूँ।"
"बोलो?"
"मैं किसी और से प्यार करती हूँ और उसी से शादी करना चाहती हूँ।"
"फिर मुझ से शादी क्यो की?"
"वह दूसरी जाति का है।मेरे घर वाले उसे अपना दामाद बनाने के लिए तैयार नही थे।"
मनीषा कालेज में पढ़ती थी।उसके साथ पवन भी कालेज में पढ़ता था।मनीषा सुंदर थी जबकि पवन का व्यक्तित्व बेहद आकर्षक था।मनीषा की सुंदरता के कॉलेज में कई लोग दीवाने थे।वे उससे दोस्ती करके उसके करीब आना चाहते थे।पर मनीषा को पवन पसन्द आया और उसने उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था।
और वे दोनों दोस्त बन गए।मनीषा अमीर बाप की बेटी थी जबकि पवन गरीब विधवा का बेटा था।दोनो की दोस्ती ऐसी थी मानो राजा और रंक।मनीषा का काफी समय पवन के साथ गुज़रने लगा।समय गुज़रने के साथ मनीषा ,पवन को चाहने लगी।प्यार करने लगी।और एक दिन वेब अपने प्यार का इजहार करते हुए बोली,"पवन मैं तुम्हे चाहती हूँ।प्यार करती हूँ।"
पवन,मनीषा की बात सुनकर कुछ नही बोला तब मनीषा फिर बोली,"मेरा सपना है तुम्हे अपना बनाना।"
"सपने बन्द आंखों का भरम होते है जो पूरे नही होते।"
"जरूर पूरा होगा।"
"अभी पढ़ाई पर ध्यान दो।शादी की बात बाद में।"और उस दिन यह बात वहीं खत्म हो गयी।लेकिन मनीषा का प्यार कम नही हुआ।