Guilhagar (Part 4) in Hindi Love Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | गुनहगार (पार्ट 4)

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गुनहगार (पार्ट 4)

सुधीर ने पत्नी से साफ शब्दो मे कुछ नही कहा लेकिन घुमा फिराकर बहुत कुछ कह दिया।पति की बात माया ने सुन तो ली लेकिन उस पर कोई असर नही हुआ।राजेन्द्र के प्यार में वह अंधी हो किH चुकी थी।राजेन्द्र के प्यार का उस पर ऐसा भूत सवार हो चुका था कि उसने पति की बात को एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया।
माया की अवस्था देख कर वह शंकित हो चुका था।इसलिय एक दिन वह समय से पहले घर लौट आया।और डुप्लीकेट चाबी से दरवाजा खोलकर दबे कदमो से अंदर आ गया।और राजेंद्र के कमरे में जा पहुंचा।माया ,राजेन्द्र के साथ वासना के खेल में लिप्त थी।पत्नी की हरकत देखकर सुधीर आग बबूला हो गया,"मेरे पीछे से यह गुल खिला रही है।"सुधीर पत्नी को घसीट कर नीचे ले गया और राजेेंद्र से जाकर बोला,"अभी के अभी तुम यहां से चले जाओ।"
और राजेंद्र चला गया।जब वह जाने लगा तो माया बोली,"में भी साथ चलूंगी।"
राजेन्द्र चला गया लेकिन अकेला नहीं।माया भी उसके साथ चली गयी।माया के राजेन्द्र के साथ चले जाने पर सुधीर बौखला गया।पत्नी के पराये मर्द के साथ चले जाने से उसकी बहुत बदनामी हुई।वह राजेन्द्र के खिलाफ रिपोर्ट लिखाना चाहता था।तब दोस्तो ने उसे समझाया,"रिपोर्ट लिखाने से कोई फायदा नहीं होगा।माया खुद उसके साथ गयी है।इससे साफ है कि न उसे तुम्हारी चिंता है।न उसे बच्चों का ख्याल है।'
दोस्ती की बात सुनकर सुधीर ने भी सोचा।माया अपनी मर्जी से गयी है।ऐसे में अगर रिपोर्ट लिखाने पर पुलिस उसे ले B भी आये तो वह कब तक उसे अपने साथ रख पायेगा।
सुधीर को दोस्तो की सलाह समझ मे आ गयी।दाम्पत्य जीवन का आधार होता है,विश्वास।पति पत्नी का एक दूसरे पर भरोसा।विश्वास टूट जाये तो कब तक वे साथ रह सकते है।सुधीर पत्नी पर बहुत विश्वास करता था।लेकिन माया उसके विश्वास को तोड़ कर चली गयी थी।
सुधीर के बच्चे छोटे थे लेकिन नासमझ नहीं।वे समझ गए कि उनकी माँ राजेन्द्र अंकल के साथ उन्हें छोड़कर भाग गई है।माँ के भाग जाने से आस पड़ोस के लोगो और स्कूल में इतनी उल्टी सीधी बाते सुननी पड़ी की बच्चों के दिल मे माँ के प्रति नफरत पैदा हो गयी।वह अपनी माँ को देखना तो दूर याद तज नही करना चाहते थे।
राजेन्द्र और माया कहां चले गये।पांच साल तक उनके बारे में कुछ पता नही चला।लेकिन एक दिन अचानक वे मुम्बई में प्रकट हो गए।राजेन्द्र की मुम्बई की एक कम्पनी में नौकरी लग गयी थी।उसने दादर में फ्लैट किराये पर लिया था।राजेन्द्र का फ्लैट सुधीर के घर से करीब 300 मीटर दूर था। सुधीर का उधर से आना जाना नही था।लेकिन दोनों बच्चों के स्कूल के पास था।
माया माँ थी।माँ की ममता होती है लेकिन माया ने बीते पांच वर्षों में अपने बच्चों की कोई सुध नही ली थी।न ही उसके मन मे ममता जागी।न ही कभी बच्चों का ख्याल आया।पर मुम्बई आने पर उसकी ममता जाग उठी।उसे अपने बच्चों का ख्याल आया।और वह फ्लेट की बालकोनी में खड़ी होकर अपने बच्चों के निकलने का इनतजार करती।दोनो बच्चों को भी माँ के आने का पता चल गया था।बच्चे राजेन्द्र के फ्लैट के सामने से गुजरते समय नज़रे झुका लेते