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Secret Admirer - Part 11

तभी उनके घर की डोरबैल बज गई। नमिता जी ने दरवाज़ा खोला और सामने खड़े इंसान को देख कर दंग रह गई।

"कबीर!"

"नमस्ते आंटी," कबीर ने नमिता जी के पैर छूते हुए कहा।

"नमस्ते बेटा! मुझे लगा तुम अपनी मीटिंग की वजह से नही आओगे पर मैं बहुत खुश हूं की तुम आ गए। आओ अंदर।"

"आह! हां! मैने अमायरा को कहा था की अगर टाइम पर मीटिंग खतम हो गई तोह मैं आने की कोशिश करूंगा। उसे लगा होगा की मैं शायद नही आ पाऊंगा।" कबीर तुरंत बात संभालते हुए कहता है।

"ओह! कोई बात नही। तुम अब आ गए हो मेरे लिए यही अच्छी बात है। वोह लड़की पागल है। वोह जरूरी चीज़ तोह हमेशा ही भूल जाती है।" नमिता जी ने मज़ाक करते हुए कहा। और कबीर वोह कमरे में चारों ओर बस अमायरा को ही ढूंढ रहा था, लेकिन उसे सिर्फ इशान और इशिता ही बैठे हुए मिले।

"भाभी किचन में हैं," इशान ने कबीर के कान में फुसफुसाते हुए कहा। वोह समझ गया था की कबीर की नज़रे इधर उधर किसे ढूंढ रही हैं।

"शट अप!"

"अमायरा, एक ग्लास पानी तोह लाओ, बेटा।" नमिता जी ने अपनी बेटी को आवाज़ दी और कुछ ही पलों में हाथ में पानी का ग्लास पकड़े अमायरा किचन से प्रकट हो गई। उसे शॉक लगा, इस बात का नही की एक और नया गैस्ट आ गया उनके बीच बल्कि इस बात का की वोह गैस्ट कबीर है।

अमायरा ने कबीर को घूरते हुए पानी का ग्लास उसके हाथ में पकड़ा दिया।

"यहां बैठो। आज बहुत खाना बना लिया तुमने। मुझे तोह लगता है की पूरे महोल्ले के लिए बना दिया होगा तुमने। अब थोड़ी देर मेरे साथ भी बैठो।" नमिता जी ने अपने साथ में खाली पड़ी सीट पर हाथ रखते हुए अमायरा से कहा। "और तुमने हमे यह क्यों नही बताया था की कबीर भी आएगा? तुम हमेशा इंपोर्टेंट चीज़े क्यों भुल जाति हो?"

"आह!.... एक्चुअली मैं आपसे मिलने के लिए इतनी एक्साइटेड थी की भूल गई बताना।"

*"यू लायर। आपने सबसे झूठ बोला की मुझे पता था की आप आ रहे हो।"* अमायरा ने आंखों ही आंखों से घूरते हुए मन में ही कबीर तक अपनी बात पहुंचाई।

*"तोह क्या करता मैं?"* कबीर ने भी, अमायरा के एक्सप्रेशन समझ कर, मन में ही बात टालने की कोशिश की।

*"किसने कहा आपको यहां आने को? किस हक से आप यहां आए हो?"*

*"उसी हक से जिस हक से तुम मेरे घर पर रह रही हो।"*

*"आप बहुत ही बुरे हो। आप यहां इसलिए आए हो की सबको बता सको की कितने अच्छे इंसान हो आप।"*

*"मुझे इसमें तुम्हारी सर्टिफिकेशन की जरूरत नहीं है। मैं यहां बस फैमिली के लिए आया हूं।"*

"अगर मुझे पता होता की तुम आ रहे हो, तोह मैं तुम्हारे लिए इटेलियन फूड ऑर्डर करती।" नमिता जी ने कहा और अमायरा और कबीर को अपने बीच में चल रही आंखों ही आंखों में मन की बातों को बीच में रोकना पड़ा।

"ओह डेट्स ओके। मैं बस इसलिए आया था क्योंकि इशान और इशिता यहां से सीधे एयरपोर्ट जा रहें हैं, तोह मैं अमायरा को लेने आया था। नही तोह उसे घर अकेले जाना पड़ता।" कबीर ने मुस्कुराते हुए कहा। जिससे नमिता जी खुश हो गईं और उन्हे अपनी बेटी के भविष्य की फिक्र कुछ कम होने लगी। उन्हे इतनी छोटी बात से ही लगने लगा की कबीर अपना पास्ट भुलाने और इस रिश्ते में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है।

खाना खाने के कुछ देर बाद, जब इशान और इशिता हनीमून पर जाने के लिए एयरपोर्ट के लिए निकल गए तब कबीर और अमायरा भी अपने घर के लिए निकल गए।

****
"आप अपने आप को समझते क्या हो?" अमायरा ने कबीर से पूछा जैसे ही कबीर ने गाड़ी स्टार्ट की तब।

"कबीर मैहरा"

"ओह प्लीज़। आप यहां क्यों आए? इतना क्लियर कहने के बाद की आप मुझसे और मेरी मॉम से कितनी नफरत करते हैं, आप यहां आए क्यों?"

"मैं नही चाहता था की तुम्हारी मॉम कुछ भी और सोचे और वैसे भी मैं उनसे नफरत नही करता?"

"क्या कुछ और? की मैं क्यों एक खुदगर्ज इंसान के साथ एक लवलैस शादी में फसी हुई हूं? एक ऐसा इंसान जो मुझसे नफरत करता है और मेरा साथ नही चाहता? वैल, लैट मी टैल यू, मिस्टर मैहरा, मैं भी आपको नहीं पसंद करती हूं। इन फैक्ट मैं आपको बिलकुल भी पसंद नही करती हूं। अगर भगवान मुझे एक चांस देंगे ना तोह मैं यही विश मांगूंगी की वोह मुझे आपसे, इस शादी से आज़ाद करदे। बट यू नो डेट, मैं यह भी नही कर सकती, क्योंकि अगर मैं यह कर सकती, तोह मैं अपने आप को इस आग में नही फेकती।"

"हम दोनो की सोच कितनी मिलती है, है ना।" कबीर ने रोड की तरफ देखते हुए ही कहा।

"नही। हमारी सोच एक जैसी नहीं है। आप सोच भी नही सकते की अचानक कितना गुस्सा आ जाता है मुझे जब भी मैं आपको अपने आस पास देखती हूं। मुझे बस चीज़े तोड़ने फोड़ने का मन करता है।" अमायरा गुस्से से भरी हुई थी।

"ओके। फिर तोह हम सोलमेट्स हुए। मुझे भी बिलकुल ऐसा ही महसूस होता है जब मैं तुम्हे देखता हूं।" कबीर ने शांत भाव से कहा।

"बस करो। बस करो मेरी बातों को दोहराना। आई जस्ट...... हेट यू।"

"मैं भी तुम्हारी बातों को दोहराना नही चाहता, पर क्या करूं? तुम वोही सब कह रही हो जो मैं सोचता हूं, मैं कहना चाहता हूं।" कबीर ने अपने घर के सामने गाड़ी रोकते हुए कहा। और अमायरा वोह तोह गाड़ी रोकते ही तुरंत गाड़ी से उतर गई और आगे बढ़ गई। वोह मेन दरवाजे के पास जा कर रुक गई, और कबीर के भी आने का इंतजार करने लगी।

"मैं जानती हूं की अपनी जगह कैसे बनाई जाती है, मुझे आपकी जिंदगी में, आपके दिल में किसी और की जगह लेने की ज़रूरत नही है। मैं बहुत अच्छे से जिंदा रह सकती हूं बिना आपके दिल में जगह के। और रही बात आपके घर में जगह की, इसमें मैं कुछ नही कर सकती क्योंकि यह आपने खुद चूस किया है। तोह खबरदार अगर कभी दुबारा आपने मुझे दोषी ठहराया जिस तरह से अभी कह रहे थे, क्योंकि यह जो पीड़ित वाली गेम जो आप खेलते हो ना वोह आपके मैचो मैन वाली इमेज पर सूट नही करती, मिस्टर मैहरा।"

इतना कह कर वोह आगे बढ़ गई और लिविंग रूम में ही उसे उसकी सांसू मां मिल गई। अमायरा ने उन्हे गले लगा लिया और उन्हें आज के दिन के बारे में बताने लगी। कबीर चुपचाप अपने रूम में चला गया। वोह इस वक्त क्या महसूस कर रहा था उसे खुद समझ नही आ रहा था।

****
कुछ दिनों बाद जब शाम को कबीर ऑफिस से घर लौटा तोह उसे लिविंग रूम में बैठी उसकी मॉम दिखाई दी।

"कबीर, क्या मैं तुमसे एक मिनट बात कर सकती हूं?" सुमित्रा जी ने पूछा।

"जी मॉम। बताइए क्या बात है।" कबीर ने जवाब दिया।

"हमे तुमसे अमायरा के बारे में बात करनी है।" इंद्रजीत जी ने कहा, वोह भी वहीं थे।

"उसके बारे में क्या?"

"वोह खुश क्यों नही है, कबीर?" सुमित्रा जी अब और नही रुक सकती थी।

"ओ... ओह... अं.. अं.. क...क्या उसने आप दोनो से कुछ कहा?"

"नही। उसने कुछ नही कहा। और यही तोह प्रोब्लम है। वोह हमेशा हमारे सामने खुश रहती है। कभी कुछ नही कहती, कभी कंप्लेंट नही करती। हम जानते हैं की तुम अभी भी उसे अपनी वाइफ मानने की कोशिश कर रहे हो, पर जिस तरह से वोह रहती है उससे यह लगता है की तुम दोनो के बीच सब ठीक है, जो की सच नहीं है। एटलीस्ट अभी तोह नही। और इसीलिए हमें लगता है की वोह जरूर कुछ छुपा रही है।" इंद्रजीत जी ने दुखी मन से कहा।

"डैड... मैं...।"

"कबीर, हम जानते हैं की यह शादी तुम नही करना चाहते थे, लेकिन माता पिता होने के नाते हम तुम्हे खुश देखना चाहते हैं। और अमायरा हमारे लिए किसी से कम नहीं है। हम उसे भी खुश देखना चाहते हैं। मुझे बहुत गिल्टी फील होता है अगर अमायरा मेरे अपने बेटे की वजह से ही दुखी रहे।"

"मॉम, मैं कोशिश तोह कर रहा हूं उसे खुश रखने की लेकिन यह मेरे लिए आसान नहीं है। आप जानती है महिमा मेरे लिए क्या थी।" कबीर ने इमोशनली जवाब दिया।

"हम जानते हैं, कबीर। और हम तुम्हारे दुख को भी समझते हैं। पर अब तुम्हे यह समझना होगा की वोह जा चुकी है। तुम उसके दुख में जिंदगी भर नही रह सकते। और अब अमायरा की जिंदगी भी तुमसे जुड़ चुकी है। वोह अपना घर छोड़ कर तुम्हारे पास इसलिए आई थी क्योंकि वोह तुम पर भरोसा करती है। उसका भरोसा मत टूटने दो, कबीर।" इंद्रजीत जी ने कबीर का कंधा थपथपाते हुए कहा।

"तुम जानते हो की वोह एक बहुत अच्छी लड़की है। और वोह हमारे सामने अपनी दुख को भी बखूबी छुपा लेती है, जबकि वोह जानती है की उसका पति अभी भी किसी और को चाहता है। यह कोई आसान बात नहीं है। एटलीस्ट उसे यह विश्वास तोह दिलाओ की तुम जल्द ही अपना पास्ट भुला दोगे। मैं जानती हूं की वोह कहती है मुझसे की तुम कोशिश कर रहे हो। पर वोह मुझे उसकी आंखों में नही दिखता। और मैं उस चुलबुली अमायरा को बहुत मिस करती हूं जिसे मैं पहले जानती थी, जो दिल से खुश रहती थी।" सुमित्रा जी ने कहा।

"आई एम सॉरी, मॉम। अगर आपको ऐसा लगता है की मैं उसे खुश नही रखता तोह मैं और कोशिश करूंगा।"

"थैंक यू बेटा। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं और मैं अमायरा से भी बहुत प्यार करती हूं। उससे शादी करके, तुमने मुझे दुनिया की सबसे बड़ी खुशी दी है। बस अब अपनी शादी में थोड़ा इंटरेस्ट लाओ। और मुझे पक्का यकीन है की जल्द ही सब ठीक हो जायेगा।"

"जरूर मॉम। अब मैं जाता हूं और चेंज कर लेता हूं। क्या वोह अनाथ आश्रम से वापिस आ गई है?"

"वोह किसी भी वक्त आती ही होगी। तुम जाओ कपड़े चेंज कर लो और मैं खाना लगाती हूं।"
























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