Gyarah Amavas - 60 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

ग्यारह अमावस - 60 (अंतिम भाग)



(60)

एसपी गुरुनूर कौर को मीटिंग वाले कमरे में ले जाया गया था। उस कमरे में सिवन, शुबेंदु और रंजन सिंह मौजूद थे। पहली बार सिवन ने मुखौटा नहीं पहन रखा था। अब उसे इसकी ज़रूरत महसूस नहीं हो रही थी। एसपी गुरुनूर कौर को एक कुर्सी के साथ बांध दिया गया था। सिवन उस कुर्सी के हत्थे पर पैर रखकर खड़ा था। अपने पैर से वह एसपी गुरुनूर कौर का हाथ दबा रहा था। उसके चेहरे पर पीड़ा झलक रही थी। पर वह मुंह से कुछ नहीं कह रही थी। सिवन ने अपना पैर हटाया और रंजन की तरफ देखकर बोला,
"मेरा नाम सिवन है। यह मेरा चेहरा है। अब तक मैंने अपना नाम और चेहरा छिपा कर रखा था। पर इस पुलिस वाली ने मेरा मुखौटा हटा कर मुझे पहचान लिया।"
वह एसपी गुरुनूर कौर की तरफ घूमकर बोला,
"तुम्हें मेरा नाम कैसे पता चला ?"
एसपी गुरुनूर कौर ने कहा,
"ट्रेनिंग के बाद मेरी पोस्टिंग कोयंबटूर में हुई थी। वहाँ पुलिस रिकार्ड में तुम्हारी फाइल देखी थी। उसके हिसाब से तुमने अपने माता पिता और चाचा का कत्ल किया था। पुलिस ने तुम्हें तलाश किया पर मिले नहीं।"
सिवन ज़ोर से हंसा,
"मैं कभी पुलिस के हाथ नहीं आऊँगा।"
उसकी हंसी एसपी गुरुनूर कौर को बुरी लग रही थी। उसने कहा,
"ये तुम्हारा घमंड टूट कर रहेगा। पुलिस पाताल से भी तुम्हें खोज लेगी।"
सिवन ने कहा,
"नामुमकिन.... तुम्हारी पुलिस कुछ नहीं कर सकती है। उन्हें दीपांकर दास मिल गया है। पुलिस उसे ही अपराधी मानकर केस बंद कर देगी।"
रंजन सिंह खड़ा मुस्कुरा रहा था। उसे इस तरह मुस्कुराते हुए देखकर ‌एसपी गुरुनूर कौर को गुस्सा आया। उसने कहा,
"शर्म नहीं आती है। इन लोगों के साथ मिलकर वर्दी को बदनाम कर रहे हो।"
रंजन सिंह ने बेहयाई से दांत निकालते हुए कहा,
"मेरी वर्दी मेरे काम नहीं आई थी। हाँ तुम्हारी वर्दी ज़रूर हमारे काम आई।"
यह सुनकर एसपी गुरुनूर कौर का गुस्सा और बढ़ गया। उसने कहा,
"तुम लोगों ने किसे मारकर मेरी वर्दी पहनाई।"
सिवन ने कहा,
"थी एक नर्स। जब तुमको यहाँ लाया गया था तब तुम्हारी सेवा के लिए उसका अपहरण किया था। बेचारी तुम्हारी कद काठी की थी। उसके बाद हमारे और बड़े काम आ गई। उसने अपने हाथों से तुम्हारी वर्दी उतारी थी।"
एसपी गुरुनूर कौर ने गुस्से से उसे घूरा। शुबेंदु अब तक चुप खड़ा था। उसने कहा,
"मैं पहले ही कह रहा था कि इसे जीवित रखना ठीक नहीं है। अब बिना देर किए इसे ठिकाने लगा दो।"
सिवन ने बड़े ‌इत्मीनान से कहा,
"बस कुछ दिन बचे हैं अगली अमावस में। इसकी बलि चढ़ा देंगे।"
शुबेंदु कुछ कहने जा रहा था तभी भानुप्रताप ने उसे फोन करके नज़ीर के बारे में बताया। सब सुनकर शुबेंदु ने सिवन से कहा,
"खतरा बढ़ता जा रहा है। पुलिस का खबरी नज़ीर मकान के बाहर जासूसी कर रहा था। भानुप्रताप जो सिक्योरिटी रूम में था ने सीसीटीवी कैमरे में उसे देख लिया। उसे बेहोश करके कैद कर लिया है। मेरी मानो तो जितनी जल्दी हो सके इस एसपी गुरुनूर कौर को मारकर यहाँ से निकल लो।"
शुबेंदु ने कहा उसे सुनकर ‌सिवन के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।

सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे अपनी टीम के साथ उस पुराने मंदिर के पास पहुँचा। कांस्टेबल मनोज ने उसे बताया कि नज़ीर इस मंदिर के आगे ही गया था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैं और तुम चलकर देखते हैं। शायद कोई सुराग मिले।"
उसने बाकी लोगों से कहा,
"तुम लोग अलर्ट रहना। जैसे ही मैं कोई मैसेज दूँ उस पर अमल करना। अगर आधे घंटे से अधिक हो जाए तो रानीगंज पुलिस स्टेशन से मदद बुलाकर हमें ढूंढ़ना।"
कांस्टेबल मनोज ने अपनी मोटरसाइकिल निकाली। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे पीछे बैठ गया। दोनों आगे बढ़ गए। दोनों उस मकान के पास पहुँचे जहाँ नज़ीर गया था। वह मकान एकांत में था। उसके चारों तरफ ऊँची बाउंड्री वॉल थी। मोटरसाइकिल मकान से कुछ दूर खड़ी कर दी। उतर कर दोनों मकान की तरफ बढ़ गए। कांस्टेबल मनोज यह देखने की कोशिश कर रहा था कि गेट के अलावा भीतर घुसने का कोई और रास्ता है या नहीं। तभी कोई चीज़ उसके पैर के ‌नीचे आई। उसने उठाकर देखा। यह एक लॉकेट था जो उसने नज़ीर के गले में देखा था। उसने फौरन सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को लॉकेट दिखाते हुए कहा,
"सर इस लॉकेट के यहाँ गिरे होने का मतलब है कि नज़ीर यहाँ आया था। उसे मकान के अंदर ले जाया गया है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे कुछ कहने जा रहा था तभी टॉर्च की रौशनी उन पर पड़ी। दो लोग थे। एक रंजन सिंह था और दूसरा भानुप्रताप। रंजन सिंह को देखकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को आश्चर्य हुआ। रंजन सिंह ने ‌कहा,
"अंदर ‌एक और सरप्राइज़ है। बिना किसी होशियारी के दोनों लोग अपना मोबाइल मेरे साथी को दे दो।"
दोनों ने अपने अपने मोबाइल दे दिए। रंजन सिंह ने सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे से उसका रिवॉल्वर भी ले लिया। रंजन सिंह ‌उन दोनों को मकान के भीतर ले गया।

सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और कांस्टेबल मनोज को उसी कमरे में ले जाया गया जहाँ एसपी गुरुनूर कौर थी। एसपी गुरुनूर कौर को देखकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को खुशी हुई। वह जो सोच रहा था वह सच निकला था। सिवन ने कहा,
"आश्चर्य हुआ अपनी एसपी मैडम को ज़िंदा देखकर।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"बिल्कुल नहीं। हमें तो पूरा यकीन था कि एसपी मैडम जीवित हैं। तुम्हें क्या लगा था कि हम तुम्हारी घटिया चाल में फंस जाएंगे। तुमने लाश को मैडम की वर्दी पहनाई। नेम टैग रहने दिया। फिर चेहरा क्यों कुचल दिया था। ताकि हमको झांसा दे सको। पर हम तुम्हारे झांसे में नहीं ‌आए। आज मैडम तुम्हें गिरफ्तार कर यहाँ से ले जाएंगी।"
यह सुनकर सिवन ने कहा,
"ऐसा नहीं होगा। बल्कि तुम और तुम्हारी मैडम मारे जाएंगे।"
शुबेंदु इस सब बातचीत से घबरा रहा था। उसे लग रहा था कि अब उन लोगों का बच पाना मुश्किल है। उसने कहा,
"बातों में समय बर्बाद मत करो। इन लोगों को निपटाओ और यहाँ से निकल चलो।"
सिवन ने कहा,
"तुम ठीक कह रहे हो। इन लोगों को लेकर वहाँ चलते हैं जहाँ हमने अगली अमावस को अनुष्ठान की व्यवस्था की है। इन्हें मारकर इनकी लाशें वहीं दफना देंगे।"
सिवन की यह बात शुबेंदु को अच्छी लगी। वह उन लोगों को ले जाने की व्यवस्था करने चला गया।

सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे की टीम को जब लगा कि बहुत देर हो गई है तो उन्होंने आदेश के ‌अनुसार रानीगंज पुलिस स्टेशन से मदद मांगी। उनके ‌आने पर पुलिस अपने साथियों को खोजने के लिए आगे बढ़ी। उन्हें ‌एक मकान के पास कांस्टेबल मनोज की मोटरसाइकिल दिखाई पड़ी। उन्हें यकीन हो गया कि सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और कांस्टेबल मनोज इसी घर में हैं। रानीगंज पुलिस स्टेशन से आई टीम को इंस्पेक्टर सलीम लीड कर रहा था। उसने अपनी टीम को सावधानी से काम लेने के लिए कहा। उसका कहना था कि मकान के बाहर सीसीटीवी कैमरा हो सकते हैं। उन्हें उन कैमरों की ज़द से बचते हुए मकान के भीतर पहुँचना है।
सलीम अपने एक साथी मकान के पिछले हिस्से में गया। वहाँ से दोनों मकान के अंदर दाखिल हो गए। वह सावधानी से मकान के आगे के हिस्से में आए। उस समय एसपी गुरुनूर कौर के साथ नज़ीर, सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और कांस्टेबल मनोज को बाहर मकान के आहते में लाया गया था। उन सबके ‌हाथ बंधे हुए थे। रंजन सिंह और भानुप्रताप ने उन्हें ‌गन प्वाइंट पर लिया हुआ था। उन्हें वहाँ खड़ी बोलेरो में बैठाकर कहीं ले जाने की तैयारी थी। सलीम ने अपने साथी से कहा कि दो ही लोगों के पास गन है। वह तैयार रहे। मौका मिलते ही गेट खोलकर बाकी लोगों को अंदर बुला ले।
सलीम ने गोली मारकर भानुप्रताप को ढेर कर दिया। अचानक हमले से मची अफरातफरी का फायदा उठाकर एसपी गुरुनूर कौर ने पास खड़े रंजन सिंह को लात मारी। वह गिर पड़ा और गन उसके हाथ से छिटक गई। सलीम ने भागकर सिवन के सर पर गन तान दी। उसके साथी ने भागकर गेट खोल दिया। बाकी की टीम भी अंदर आ गई। सबकुछ अचानक और अप्रत्याशित था। शुबेंदु परेशान सा खड़ा था। उसका डर सही साबित हुआ था।
सिवन और शुबेंदु के साथ सबको गिरफ्तार कर लिया गया। पूछताछ करके बाकी के लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया गया जो बलि वाले अनुष्ठान में शामिल थे।
बसरपुर में मिलने वाली सरकटी लाशों का केस अंततः सॉल्व हो गया था। सब केस की असलियत जानकर हैरान थे। पुलिस की खूब तारीफ हो रही थी। खासकर एसपी गुरुनूर कौर और सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे की। पुलिस विभाग ने दोनों को मैडल देने की घोषणा की थी। एसपी गुरुनूर कौर जो इस केस के लिए खासतौर पर भेजी गई थी अब वापस जा रही थी। उसको विदाई देने के लिए बसरपुर के कई लोग थाने के बाहर जमा थे। एसपी गुरुनूर कौर के डैडी जनरल कुलदीप सिंह भुल्लर उसे लेने आए थे। लोग जिस तरह से एसपी गुरुनूर कौर का सम्मान कर रहे थे देखकर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया था।
दीपांकर दास निरीह लोगों की बलि चढ़ाने का दोषी नहीं था। परंतु उसने अपनी बेटी कुमुदिनी के अपराधियों की हत्या की थी। जिसके लिए उसे सजा मिलनी थी। लेकिन उसकी मानसिक स्थिति को देखते हुए कोर्ट ने पहले उसे मेंटल फैसिलिटी में भेजे जाने का आदेश दिया।
सिवन, शुबेंदु और बाकी सबको बलि जैसे जघन्य अपराध के लिए फांसी की सज़ा सुनाई गई।