jyotish-pitridosh ko kaise samjhe books and stories free download online pdf in Hindi

ज्योतिष-पितृदोष को कैसे समझें??

शंकर बहुत ही दुखियारा इन्सान है उसने बहुत से ऐसे काम किये थे जो बड़े बुजुर्गों के इज्जत और शान को धूल चटाने जैसा था वे लोग तो गुजर गए पर शंकर के जीवन मे कई सालों बाद बेटे ने जन्म लिया ,बेटा 5 साल का हो गया परन्तु बीमारियां जैसे उसका पीछा नहीं छोड़ती।
बेटे रोहन की तबियत अचानक खराब हो गई गाँव में साधन का अभाव भी एक अलग ही समस्या है । शंकर एक अति निम्न परिवार का व्यक्ति है जो मुश्किल से ही घर खर्च चला पाता है।
आज कोई साधन नही मिल रहा क्या करूँ , बेटे को कैसे हॉस्पिटल ले जाऊं ......" शंकर ने अपनी बीवी कानकट्टी से बोला ......!
कानकट्टी - अजी बच्चा बहुत सीरियस है देखिए तो बड़े भईया के यहां अपनी बाइक है जरा उनसे कहिए वो मेरे बच्चे को हॉस्पिटल ले जाएं ।
शंकर- हांफते हुए दौड़ा दौड़ा अपने बड़े भईया के पास गया , जिनसे कानकट्टी का झगड़ा हो गया था । मुसीबत के वक्त में अपने ही अपनो के काम आते हैं मैं भईया से माफी मांग लूंगा और बोलूंगा मेरे बच्चे को हॉस्पिटल ले चलें शंकर बड़बड़ाते हुए आंगन में पहुंचा तो उसकी भाभी भवानी कपडे सूखा रही थी।
भवानी- अरे शंकर रुक तो कहां जा रहा है अंदर ! तेरे भईया तो अभी अभी निकले हैं किसी काम से , तू एक काम कर हाँथ मुंह धो ले मैं तेरे लिए कुछ खाने को लाती हूँ । बहुत जल्दी में लग रहा है तूँ । कोई बात नहीं आंगन में चारपाई लगी है थोड़ा आराम कर ले।
शंकर- भाभी मेरी बात तो सुनिए.... '
भवानी- अरे शंकर अपनी हालत देख चुप कर अभी । जाकर आराम कर बाद में बताना मैं कहीं भागी नहीं जा रही। वो तो तेरी लुगाई ने ही इनसे झगड़ा किया था ।
शंकर शर्मिंदा था कैसे कहे कि भईया की मदद चाहिए । अब वह चुपचाप बिना बताए वहाँ से भागा ... रास्ते मे एक टांगे वाला मिला ...
!
भईया...भईया ... ओ टांगे वाले भईया ...... शंकर ने आवाज लगाया ।टांगे वाला बिना देर किये बोला ओ भाई..... मैं जल्दी में हूँ कोई और देख ले।
शंकर ने जाकर टांगे वाले का पैर पकड़ लिया और अपनी आपबीती कह दिया । उसने बिना देर किए शंकर को बैठा लिया और घर की तरफ चला ।
घर पर कोई था नहीं ! ना ही बच्चा दिख रहा है और ना ही उसकी पत्नी !
आश्चर्यजनक मुद्रा में शंकर यहाँ- वहाँ देखता है कहीं कोई नहीं ।
पड़ोस की एक महिला बोली ....."अरे ओ शंकर किसे ढूंढ रहा है तेरी लुगाई तो तेरे भईया के साथ गई है और बच्चा बीमार लग रहा था बिचारी खूब रो रही थी।
शंकर शर्मिंदा था कि इतनी लाचारी है जो मैं अपने परिवार को अच्छी सुविधा भी नहीं दे सकता और शंकर रोने लगा थोड़ी देर में बाइक पर बैठकर भईया , बीवी और बच्चे घर पर आए। बच्चे के पैर के नसों में मरोड़ था जिससे वह बेहोश हो जाता था । डॉक्टर ने ग्लूकोज चढ़ाकर इंजेक्शन दिया तो थोड़ी ही देर में बच्चा ठीक हो गया। डॉक्टर ने कहा घबड़ाने की बात नहीं है ठीक हो जाएगा । बच्चा है डर जाता है ।
शंकर ने अपने बच्चे को सही सलामत देखा तो वह भइया से बोला...." भईया मैं घर गया था आप नहीं थे आपको कैसे पता चला???
भवानीनाथ बोले...." बेटा मुझे एक आदमी ने बताया जिसको तुमने खेत हथियाने के झूठे आरोप में खूब मारा था वो तुम्हारे घर तो नहीं गया पर मुझे बताकर गया कि तुम्हारे भतीजे की हालत ठीक नहीं है जल्दी जाओ । और मैं बिना देर किए बाइक लेकर आ गया ।
शंकर और उसकी पत्नी दोनों ने माफी मांगा अब शंकर की आंखे खुल गई थी उसने बोला भईया मुझे लगता है कि हमे पितृदोष का श्राप मिला है और वही पितृगण मेरे घर मे बालक बनके आये हैं या पिछले जन्म का मेरा कोई शत्रु जो मुझसे बदला लेना चाहता है या हिसाब किताब चुकाने आया है पर क्या करूँ इस जन्म में तो मैं उसका बाप हूँ ।
अब हमारे पूर्वजों को हमारे द्वारा दिये गए कष्ट अवहेलना, अपमान का फल है जो गुरु ग्रह कमजोर है और इस बच्चे की कुंडली मे बहुत से ऐसे अशुभ योग है जो यही बताते हैं हमारे पूर्वज हमसे नाराज हैं मैं सर्वग्रह शांति का हवन कराऊंगा क्या आप शामिल होंगे ।
बड़े भईया हंस पड़े हा.... हा.... हा... शंकर' नेकी और पूछ पूछ कर !
यह सुनकर शंकर की पत्नी ने कहा हां भईया मैंने भी सासू मां को मरते वक्त भला बुरा कह दिया था उसके 2 दिन बाद वो दर्द से कराहती हुई चली गई मैं ये ना समझ सकी की शारीरिक कष्ट में इंसान का दिमाग सिर्फ दुख पर फोकस होता है और जिस तरह गुस्से में इंसान बिना सोचे समझे गलत बोल जाता है वैसे ही कष्ट की अवस्था मे कोई अनब शनब बोले तो हमे उसका जवाब ना देकर वहां से हट जाना चाहिए ।
पर मैं बहुत शर्मिंदा हूँ ।
भवानीशंकर बोले....' अरे तुम दोनों को अपनी गलती का पछतावा है तो अच्छी बात है एक काम और करना । बेजुबान जानवरों को खाना ,पक्षियों को दाना,और यतीमों को अपनी सामर्थ्य से कुछ न कुछ दान करते रहना ।
शंकर बोला...' इससे क्या होगा भईया
भवानीशंकर- इससे पूर्व जन्म केप्रारब्ध कर्म कटेंगे और इस जन्म का दुख कुछ कम होगा आगे तुम्हारी मर्जी मैं तो चला।
इतना कहकर भवानीशंकर पीछे मुड़े तो बच्चे ने उंगली पकड़ लिया ...बोला बड़े पापा प्लीज् मत जाइए ।
पिछली बार आप चले गए तो मुझे बाइक पर बैठाकर घुमाने कोई नहीं ले गया और इस बार आप मुझे घुमाने ले गए।
बच्चे के कोमल मन को पढ़कर कोई भी देर तक खफा नही रह सकता। भवानीशंकर के आंखों में आंसू आ गए और बच्चे को गोद मे उठा लिया । और बोले....." अभी मुझे जाना है आपकी बड़ी मम्मी मेरा इंतजार कर रही होंगी उन्हें बिना बताए मैं निकल गया । जब अगली बार आऊंगा तो खूब सारे खिलौने और मिठाइयां लेकर आऊंगा और हाँ तुम्हे बाइक पर बिठाकर घुमाने भी ले जाऊंगा। इतने में बच्चा बोला .....' और बड़ी मम्मी को भी साथ ले आना । बच्चे के कोमल निश्छल संवाद को सुनकर सभी खुश हो गए और रिश्तों से गलतफहमी की धूल हट चुकी थी। रिश्ते बिल्कुल दूर के ढोल हैं जिसमे दूर होकर ही तो गलती का एहसास होता है। और पास रहें तो खटकते रहते हैं।