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स्वप्नशास्त्र - आईने वाला चेहरा


आईना और चेहरे की बड़ी गहरी मित्रता है जिस प्रकार मधुमक्खी को पराग , तितलियों को पुष्प,चातक को स्वाति नक्षत्र और मयूर को नृत्य पसंद है ऐसे ही आईना को मुस्कुराहट भाता है चूंकि आईना भी सजीव है जो रोज सुबह खिल जाता है एक प्यारी मुस्कान से , चेहरे को देखकर किंतु...............!
ये क्या कमल अपना चेहरा देखने का प्रयास कर रहा है वह बहुत दुखी नजर आ रहा है और ऑफिस जाना भी जरूरी है उसके लिए , आखिर बैठकर पेड़ से पैसे तो नहीं बरसेंगे ......' उसे जल्दी निकलना है । सफेद कुर्ता, काला पेंट पहने , लाल टाई बांधे हुए सिर के बाल किसी जेल से सेट करके डैशिंग पर्सनालिटी में हाथ में आईना लेकर खड़ा है और सोच रहा है ।
लेकिन इतनी जल्दबाजी में किसको आईना से बात करने का समय है ?
कमल के मन में हलचल चल रही थी जैसे एक शांत समंदर कब विकराल रूप धर ले , नदी कब बागी हो जाए , ओलावृति कब फसलों का काल बन जाए , कमल के मन की हलचल भी कुछ अलग नहीं थी तभी उसे एक परछाई दिखी । जैसे वह उसे कुछ कहना चाह रही हो कौन है वो जिसे देखकर कमल उसी मुद्रा में खड़ा है जैसा वह आकृति को देखने से पहले था।
' हां मैं दुखी हूं ...." कमल बोला ..!
"बहुत दुखी हूं , इतना दुखी जितना आप दुखी हैं "।
कितना तकलीफ होता है जब घर के सदस्यों में आपस में टूट फूट हो जाए । या ऐसा करने की कोई साजिश रचने लगे ।
कितना तकलीफ होता है जब आपके अपने घर छोड़कर कहीं और बसने की बात कर दें और कसूरवार आप ठहराए जाएं
कितना बुरा लगता है जो लोग फूट डाल रहे हैं वह मेरे ही परिवार के दूर के रिश्ते -नाते हैं ।
हां बुरा तो बहुत लगता है जब आपकी प्रॉपर्टी कोई हथियाना चाहता हो , परिवार का कोई खास सदस्य जो दूसरों के लिए सोने का अंडा उगाने वाला हो उसे पाने के लिए षड्यंत्र क्यों नहीं होगा ??
बिलकुल हो रहा है और मैं बिल्कुल लाचार हो गया हूं क्योंकि अब कुछ भी संभल पाना नामुमकिन है ।
कमल के मन में इतने सारे द्वंद चल रहे हैं और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शीशे में दिखने वाली आकृति भी लफ्जों की खामोशी में एक दूसरे के भीतर छिपे दर्द को पढ़ पा रहे हैं । लेकिन उस आकृति ने मुंह से कोई फरमाइश नहीं की , कोई सलाह नहीं दी , कुछ अच्छा या बुरा कॉमेंट भी नहीं किया । शायद वह जानती थी उनके द्वारा अपने सगे बेटे को दिया गया कसम कि - " रिश्ते नातों का साथ जिंदगी भर निभाना कभी उन्हें अकेला मत करना"...! अंतिम ख्वाहिश बताकर खुद दुनिया से चल बसी ।
वह आकृति जानती थी कि आज भी कमल की नजरों में वह कसूरवार है ।
और हो भी क्यों ना , कसम देना जितना आसान है ताउम्र उस कौल को शिद्दत से निभाना आसन नहीं होता । पल - पल मरना पड़ता है कमल के पिता ने कुछ ऐसा ही जुनून पाल लिया मां का वादा निभाने का कि अपने ही परिवार में कसूरवार बन गए ।
इसी उधड़बुन में कमल की आंख खुल जाती है , कमल अपनी आंखे मिंजता हुआ कमरे को निहारता है , कुछ देर खामोश बैठा रहा उसे स्वप्न का बिलकुल डर नहीं था वह आकृति कोई और नहीं उसकी स्वर्गीय दादी थीं जो दुख का प्रतिबिंब बनी वह कमल के आत्मा की उदासी थी जो शीशे में साफ - साफ दिख रहा था । उसकी दादी के रूप में.... ! जैसे वह कुछ कहना चाह रही हों ।
कमल की मां ने जब सारी घटना सुनी तो कमल के पापा को बोलकर दादी के नाम प्रसाद बांटने को कह दिया ।
और देखते ही देखते कमल के पड़ोसी दादी का अगले दिन देहांत हो गया ।
- कमल बोला ! ' मां' ...! तुम तो कह रही थी कि दादी उदास इसलिए हैं कि घर में परेशानी है , सभी सदस्य एक दूसरे से मतभेद कर रहे हैं कोई फर्ज के लिए कुर्बान है कोई फर्ज ना निभाने को बाध्य कर रहा है , कोई मृत परिजनों को दोष दे रहा है तो कोई परिवार को ही कुछ नहीं समझ रहा । ऐसे माहौल को देख पूर्वजों की आत्मा रोती है ।कमल धाराप्रवाह बोलता रहा जैसे समुंद्र अभी विकराल रूप धर लेने को आतुर हो।
कमल एक ही रट लगाए हुए है ......"मां , तुम और पापा कभी भी अंतिम समय में परिवार या सगे संबंधियों को बांधकर रखने या मिलजुलकर रहने अथवा कोई ख्वाहिश हम पर मत थोंपना जिससे हमारी जिंदगी वैसी ही नर्क बन जाए जैसे आज पापा को दादी के कसम के कारण अपनो से ही निरादर झेलना पड़ रहा है । पापा की मनोदशा क्या होगी ? आप ही बताओ । एक पल को जिंदा इंसान अपनों को ऐसी बदतर हालत में देखकर कसम से मुक्त कर देता हैं परंतु मरने वाला तो उसी अंतिम ख्वाहिश के पूरा होने या ना होने पर मुक्ति के लिए जूझता रहता है। इस बार कलावती के पास बेटे के प्रश्न का कोई जवाब ना सुझा और दोनो की आंखे नम हो गई , ठीक उस आईने वाले चेहरे की तरह , जो एक दूसरे को पढ़ रहे थे और ऐसा लग रहा था मानो खामोशी ही इन प्रश्नों का एकमात्र प्रत्युत्तर हो ।।