Raaj-Sinhasan - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

राज-सिंहासन--भाग(१५)

अश्व पर बैठने से पूर्व निपुणनिका ने अपने खुले केशों को बाँधने की चेष्टा की तो सहस्त्रबाहु बोला....
राजकुमारी निपुणनिका इन्हें ऐसे ही खुला रहने दीजिए,आप खुले केशों में अत्यधिक सुन्दर दिखतीं हैं,तब निपुणनिका ने अपने केशों को यूँ ही खुला छोड़ दिया एवं सहस्त्रबाहु के पीछे अश्व पर बैठ गई.....
सहस्त्रबाहु ने अपना अश्व पवन के वेग से दौड़ाना प्रारम्भ किया तो निपुणनिका ने भय से सहस्त्रबाहु को दृढ़ता से अपने बाहुपाश में जकड़ लिया,तब सहस्त्रबाहु ने निपुणनिका से पूछा....
आप भयभीत हो गई क्या राजकुमारी?
जी! मुझे भय लग रहा है,अश्व की गति अत्यधिक तीव्र है,निपुणनिका बोली।।
किन्तु विवशता है राजकुमारी! हमें शीघ्रता से निवासस्थान जो पहुँचना है,सहस्त्रबाहु बोला।।
मैं आपकी विवशता समझ सकती हूँ,निपुणनिका बोली।।
जी! बहुत बहुत आभार आपका,सहस्त्रबाहु बोला।।
जी! आभार प्रकट करके आप मुझे लज्जित कर रहे हैं? निपुणनिका बोली।।
जी! मैं ऐसा कदापि नहीं चाहूँगा,सहस्त्रबाहु बोला।।
जी! आप अपने गन्तव्य पर ध्यान दें,यही उत्तम रहेगा,निपुणनिका बोली।।
गन्तव्य पर ध्यान किसका होगा,जब इतनी सुन्दर युवती किसी के समीप बैठी हो,सहस्त्रबाहु बोला।।
जी! मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आप मुझसे परिहास कर रहे हैं,मैं इतनी सुन्दर तो हूँ नहीं,जैसा आप कह रहे हैं,निपुणनिका बोली।।
अपनी अपनी दृष्टि है,मेरी दृष्टि में आप संसार की अत्यधिक सुन्दर युवती हैं,सहस्त्रबाहु बोला।।
सहस्त्रबाहु की बात सुनकर निपुणनिका मन ही मन मंद-मंद मुस्कुरा रही थी,उसे भी अपने लिए सहस्त्रबाहु के मुँख से की गई प्रसंशा भा रही थी एवं वो शान्त होकर केवल सहस्त्रबाहु की बातें सुन रही थी।।।
कुछ घण्टों की यात्रा के उपरान्त दोनों ही अपने गन्तव्य जा पहुँचे,वहाँ पहुँचकर सहस्त्रबाहु ने सबसे निपुणनिका का परिचय करवाया,निपुणनिका को देखकर सहस्त्रबाहु की माँ हीरादेवी अति प्रसन्न हुई,तब तक सहस्त्रबाहु के पिता घगअनंग भी आ पहुँचे और सहस्त्र से पूछा.....
तो तुमने राजकुमारी निपुणनिका को खोज ही लिया,मुझे तुमसे ऐसी ही आशा थी पुत्र! अति प्रसन्नता हुई तुम्हारी विजय देखकर,अब मेरी यही इच्छा है कि तुम अपने पिता महाराज सोनभद्र और अपनी माता महारानी विजयलक्ष्मी को भी खोज लो एवं उस दुष्ट, पापी सुकेतुबाली के राज्य पर विजय प्राप्त कर के अपना राज-सिंहासन भी छीन लो जिस पर केवल तुम्हारा ही अधिकार है।।
जी! पिताश्री! ऐसा ही होगा,सहस्त्रबाहु बोला।।
मुझे तुमसे यही आशा है,वर्षों से हम सब तुम्हारे माता-पिता को खोज रहे हैं लेकिन वें हमें कहीं नहीं मिले,घगअनंग बोले।।
जी! मैं प्रयासरत हूँ एवं मुझे पूर्ण विश्वास है कि मुझे इस कार्य में अवश्य सफलता मिलेगी,सहस्त्रबाहु बोला।।
पुत्र! ये तो कहों,राजकुमारी निपुणनिका अब हम सब के समीप ही रहेगी ना! क्योकिं ये अपने भाई ज्ञानश्रुति के संग तो सुरक्षित ना होगी सुकेतुबाली के राज्य में,हीरादेवी ने पूछा।।
जी! आपका कथन सत्य है,इसलिए मैं इन्हें यहाँ आपके समीप लाया हूँ,सहस्त्रबाहु बोला।।
उचित निर्णय लिया पुत्र! घगअनंग बोलें।।
तभी मंत्री भानसिंह भी वहाँ आ पहुँचे और सहस्त्र से बोले....
अन्ततः तुमने राजकुमारी निपुणनिका को खोज ही लिया।।
आपने कैसे पहचाना कि ये ही राजकुमारी निपुणनिका हैं?सहस्त्रबाहु ने पूछा।।
इन्हें देखकर शीघ्र ही पहचान लिया कि ये कोई राजकन्या हैं,भानसिंह बोलें।।
ओह...आपकी दृष्टि तो अति तीव्र है,सहस्त्रबाहु बोला।।
हाँ! वो तो है,मैं तो तुम्हें एक सूचना देने आया था,मैं भी वेष बदलकर सुकेतुबाली के राज्य का भ्रमण करने गया था वहांँ जाकर ज्ञात हुआ कि सुकेतुबाली क्रोध से अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठा है,भानसिंह बोले।।
परन्तु क्यों मामाश्री? उसे इतना क्रोध किस बात पर आया?
क्योकिं उसे ज्ञात हो चुका है कि राजकुमारी निपुणनिका उसके कारागृह से मुक्त हो चुकी है एवं कोई तो ऐसा तंत्रविद्या जाने वाला है जिसने निपुणनिका को मुक्त किया है एवं वो अज्ञानियों की भाँति उस तंत्रशास्त्र के ज्ञानी को खोज रहा है,भानसिंह बोले।।
तो उसे ज्ञात हुआ कि वो कौन है? सहस्त्र ने पूछा।।
अभी तक तो नहीं,किन्तु शीघ्र ही ज्ञात हो सकता है यदि तुम वहांँ समय से ना पहुँचे,भानसिंह बोले।।
ओह...तो मैं शीघ्र ही सूरजगढ़ के लिए प्रस्थान करता हूँ,आप सब राजकुमारी निपुणनिका का ध्यान रखिएगा,सहस्त्रबाहु बोला।।
तुम चिन्ता ना करो पुत्र! निपुणनिका भी हमारी पुत्री की भाँति है,हीरादेवी बोली।।
तो अब मैं प्रस्थान करता हूँ और इतना कहकर सहस्त्रबाहु ने अपने अश्व को वायु के वेग से दौड़ाया और कुछ ही समय के पश्चात वो सूरजगढ़ में उपस्थित था,उसे देखकर सबके मन को शान्ती हुई,तब वीरप्रताप उसके समीप जाकर धीरे से बोला.....
सुकेतुबाली की मानसिक स्थिति बिगाड़ दी आपने भ्राता!आप यहाँ होते तो उसके व्याकुल और क्रोधित मुँख को देखकर आनन्दित होते ,हम सबने तो अत्यधिक आनन्द उठाया।।
ओहो....तो मैं इस सुख से वंचित रह गया,बड़ा खेद है मुझे,सहस्त्रबाहु बोला।।
ऐसा कीजिए शीघ्रता से सुकेतुबाली के कक्ष में जाइए उससे मिल लीजिए,आपको सुकेतुबाली अनगिनत बार पूछ चुका है,वीरप्रताप बोला।।
तो तुमलोगों ने क्या उत्तर दिया?सहस्त्रबाहु ने पूछा।।
हमने कहा उसकी माँ का स्वास्थ्य बिगड़ा हुआ है,माँ को देखने गया है,वीरप्रताप बोला।।
उत्तम...अति उत्तम....उत्तर दिया,सहस्त्रबाहु बोला।।
आप बताइए कैसी रही आपकी मधुरमय यात्रा?वीरप्रताप ने पूछा।।
तात्पर्य क्या है तुम्हारा? सहस्त्रबाहु बोला।।
जी! सुकोमल,सुन्दर राजकुमारी के संग आपकी अविस्मरणीय यात्रा कैसी रही? वीरप्रताप ने पुनः पूछा।।
मैं तुम्हारा अग्रज हूँ,ये भूल गए क्या तुम? सहस्त्र ने पूछा।।
जी! वो तो नहीं भूला तभी तो आपसे आपके हृदय की पीड़ा ज्ञात करना चाहता हूँ,वीरप्रताप बोला।
ऐसा प्रतीत होता कि तुम्हें अब उस वस्तु की आशा है ,सहस्त्र बोला।।
किस वस्तु की आशा? वीर ने पूछा।।
मार नहीं पड़ी तुम्हें कदाचित कई दिन बीत गए ऐसी वस्तु की आशा,समझे या समझाऊँ,सहस्त्र बोला।।
जी! भ्राता! मैं केवल तनिक सा परिहास कर रहा था आपसे,वीरप्रताप बोला।।
अब तुम्हारा परिहास समाप्त हो गया हो तो आगें के कार्य पर ध्यान दिया जाए,सहस्त्रबाहु बोला।।
जी! अवश्य! आगें क्या योजना बनाई आपने,वीर ने पूछा।।
सर्वप्रथम सबसे एक स्थान पर इकट्ठे होने को कहो,सहस्त्रबाहु बोला।।
जो आज्ञा भ्राता! किन्तु कौन सा स्थान उचित रहेगा हम सबके मिलने हेतु,वीरप्रताप ने पूछा।।
वो जो राज्य के बाहर भैरव बाबा का मंदिर है,वहीं पर ,सहस्त्रबाहु बोला।।
तो ठीक है आप वहाँ प्रस्थान करें,कुछ ही समय में मैं सबको वहाँ लेकर पहुँचता हूँ,वीर बोला।।
किन्तु ! ध्यान रहे राजकुमारी नीलमणी को साथ में मत लाना नहीं तो सुकेतुबाली को कहीं हम सब पर संदेह ना हो जाए,सहस्त्रबाहु बोला।।
आप निश्चिन्त रहें भ्राता,मैं कदापि ऐसा ना करूँगा,वीरप्रताप बोला।।
इसके उपरान्त दोनों के मध्य वार्तालाप समाप्त हुआ और सहस्त्रबाहु सर्वप्रथम सुकेतुबाली के कक्ष गया उनसे मिलने....
सहस्त्रबाहु को देखकर सुकेतुबाली ने पूछा...
अब कैसीं है तुम्हारी माँ?
जी! अब उत्तम हैं,सहस्त्रबाहु ने उत्तर दिया।।
तुम किसी तांत्रिक विद्या के ज्ञानी को जानते हो,सुकेतुबाली ने पूछा।।
जी! नहीं! ऐसा तो कोई नहीं है मेरी दृष्टि मेँ,कुछ हुआ है क्या? सहस्त्रबाहु ने पूछा।।
नहीं कुछ नहीं हुआ,अब तुम जा सकते हो,सुकेतुबाली बोला।।
तब सहस्त्र ने भैरव बाबा के मंदिर की ओर प्रस्थान किया,वहाँ पहुँचकर वो सबकी प्रतीक्षा करने लगा,कुछ ही समय पश्चात वे सब भी वहाँ उपस्थित हो गए.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....