Forgotten sour sweet memories - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 3

मुझे जो गुरु पढ़ाते उनका नाम था दीक्षित। पांचवी पास करने के बाद पिताजी का ट्रांसफर बांदीकुई हो गया था।यहां पर मेरी छठी और सातवी की पढ़ाई हुईं थी।पिताजी को गार्ड लाइन में क्वाटर मिला था।मेरे ताऊजी रेलव में ड्राइवर थे।उन्हें बंगला मिला हुआ था।पास वाले बंगले में लोको फोरमैन रहते थे जो मुसलमान थे।सामने और बगल के बंगलो में अंग्रेज ड्राइवर भी रहते थे।उनमें से दो रिटायर होने के बाद इंगलेंड चले गए थे।
उसी समय 1962 का युद्ध हुआ था।जब चीन ने भारत पर हमला कर दिया था।अभी तक याद है ब्लेक आउट और लोगो का चन्दा इकट्ठा करना।उस समय रेलवे स्कूल के प्रिंसिपल श्रीवास्तव बड़े सख्त थे और हिटलर के नाम से मशहूर थे।
उस समय का किस्सा या प्रसंग या पिताजी की प्रेरणा
क्वाटर,स्कूल के पास मिला हुआ था।मैं ििइंटरवेळ मे खाना खाने के लिए घर आता था।छटी क्लास के हाफ इयरली इम्तिहान में मैं इतिहास के पेपर में फेल हो गया।।और उस दिन में खाना खाने घर नही आया।फालतू घूमता रहा।पूरी छुट्टी होने पर ही घर आया।शाम को पिताजी घर आये तो माँ ने मेरे घर न आने की बात बताई।पिताजी के पूछने पर मैने उन्हें फेल होने के बारे में बता दिया।वह बोले,"इसमें परेशान होने की क्या बात है।इतिहास में ज्यादा मेहनत करो।"
और ऐसा ही हुआ।फाइनल परीक्षा में इतिहास में मेरे अच्छे नम्बर आये थे।बाजार से सामान भी मैं ही लाता था।उन दिनों अंग्रेजी बाजार काफी आबाद था और सब सामान मिल जाता था।
हर साल दशहरे पर रामलीला होती थी।बाहर से पार्टी आती और उसे देखने जाते।उन दिनों मनोरंजन का यही साधन था।मेरे ताऊजी भी रामलीला में कोई रोल जरूर करते थे।उन्हें पीने का शौक था लेकिन बंगले पर ही पीते।वह हनुमान के भक्त थे।मंगलवार को दारू नही पीते थे और व्रत रखते।मंगलवार को अंग्रेजी बाजार के मंदिर में जाकर सुंदरकांड का पाठ करते।और बर्फी का प्रशाद चढ़ाते।उन दिनों दो रु की एक किलो बर्फी आती थी।
और एक किस्सा और।
मेरे बड़े ताऊजी ड्राइवर थे।दो नम्बर के खेती सम्हालते और खेत पर ही रहते थे।तीन नम्बर के बांदीकुई में मास्टर थे।वह गांव बसवा में रहते और उप डाउन करते थे।कभी कभी नही जाना होता तो बंगले पर रुक जाते।
अब मुझे तारीख तो याद नही।हमारा गांव बांदीकुई से 13 किलोमीटर है।सुबह ताऊजी पैसेंजर ट्रेन से आते।पर दोपहर मे स्कूल की छुट्टी होती उस समय कोई ट्रेन नही होती थी। इसलिए मेरे ताऊजी और.उनके. दो साथी. पैदल ही गांव के लिए चल पडे।बरसात का मौसम था। बिजली कड़क रही थी।भयंकर गर्जना के साथ बीजली गिरी।हम लोग बरामदे में बैठे थे।ऐसा लगा.बिजली हमारे पास. ही गिरी हो।करीब एक घंटे बाद खबर आई।बिजली इन तीनों पर गिरी थी।ताऊजी गाड़ी लेकर अजमेर जा रहे थे।उन दिनों छोटी लाइन की दिल्ली से अहमदाबाद के लिए 3 up
चलती थी।स्टीम इंजन चलते थे।ट्रेन में इंजन लग चुका था।तब ताऊजी को खबर मिली।ट्रेन खड़ी रही दूसरे ड्राइवर को भेजा गया।
ताऊजी और उनके दो साथी गांव जा रहे थे।ताऊजी आगे उनके पीछे एक साथी और उसके पीछे एक।बिजली बीच मे चल रहे मास्टर पर गिरी थी।उसकी वही मौत हो गयी।ताऊजी बच गए लेकिन झुलस गए थे और ये निशान अंत तक रहे।