Forgotten sour sweet memories - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 5

ताऊजी और मामा बेटिकट।ताऊजी उन दोनों को लेकर झांसी पहुंच गए थे।रास्ते मे ताऊजी ने टी टी ई से बात की थी।वह बोला बाकी स्टाफ तो सही है लेकिन हमारे यहां राम सिंह टी टी ई है।वह स्टाफ को भी नही छोड़ता है।"
ताऊजी को कलकत्ता जाना था।झांसी आने पर वह गेट पर खड़े टी सी के पास गये।टी सी किसी से बात कर रहा था।उन्होंने जाकर टी सी से बात की और बोले,"मुझे बताया है कि बाकी स्टाफ तो सही है लेकिन राम सिंह किसी को नही छोड़ता।"
ताऊजी की बात सुनकर टी सी से बात कर रहा आदमी बोला,"मैं ही राम सिंह हूँ।"
उन दिनों की बात अलग थी।राम सिंह ने सोचा।यह बी बी एंड सी आई रेलवे का स्टाफ है।अगर कॉपरेरेट नही किया तो सब जगह बदनामी करेगा,"मैं लेके चलूंगा
और रामसिंह उन्हें लेकर भी गया और साथ लेकर भी आया
और ताऊजी अंग्रेजी राज्य के बड़े किस्से सुनाते थे।अंग्रेजो में भी आपस मे बनती नही थी।एक दूसरे से ईर्ष्या करते थे।एक अंग्रेज लोको फोरमन थे।अब मुझे नाम याद नही।वह अपने आफिस में एक ही कुर्सी रखते थे।कोई अधिकारी निरीक्षण के लिये आता तो वह अपनी कुर्सी पर बैठे रहते और अधिकारी खड़े।
बांदीकुई में हम चार भाई बहन पहले से ही थे।एक भाई का जन्म जब चीन से युद्ध चल रहा था।तब हुआ था।बांदीकुई से ट्रांसफर होकर पिताजी अजमेर आ गए थे।अजमेर में कुछ समय तक हम नगरा पर एक मकान में किराए पर रहे थे।फिर रामगंज में रेलवे अस्पताल के पास क्वाटर मिल गया था।
अजमेर में मैंने विरजानंद स्कूल,केशरगंज में आठवी क्लास और नवी क्लास की पढ़ाई की थी।आठवी क्लास में मुझे कॉमर्स लेनी पड़ी थी।इस स्कूल के प्रिंसिपल थे,ब्रह्मानंद।बड़े सख्त और अनुशासन प्रिय।वह बड़ी क्लास को अंग्रेजी पढ़ाते थे।एक टीचर थे गौतम।वह पाकिस्तान में जन्मे थे।उन्हें 14 भाषा का ज्ञान था।वह पढ़ाते समय पहले और दूसरे विश्व युद्ध के बारे में बताना नही भूलते थे।गणित के टीचर थे,घनश्याम मालपानी।एक श्रीवास्तव थे।वह अंग्रेजी पढ़ाते थे लेकिन कभी किसी क्लास को हिंदी पढ़ानी पढ़े तो फिर शुद्ध हिंदी ही बोलते थे।एक नए टीचर आये थे रासा सिंह जो बाद में अजमेर के एम पी भी बने थे।
जो क्वाटर हमे मिला था उसके आंगन में बैंगन के पेड़ लगे थे जिसमें बेसुमार बैंगन आते थे।मैं ही सब्जी या अन्य सामान लेने केशर गंज जाता।वहां की कढ़ी कचोड़ी मशहूर थी।आज भी है लेकिन दुकाने बदल गयी है।
जब में आठवीं में पढ़ता था तभी मुझे अखबार पढ़ने का शौक लगा।उस समय राजस्थान में दैनिक नवज्योति अग्रणी था।तब से अब तक अखबार का शौक जारी है।
यहाँ एक घटना का जिक्र।
मेरी माँ अनपढ़ थी।मेरे पिताजी ट्रेनिंग में बलसाड़ गए थे।शायद कितने महीने की थी याद नही।पिताजी हर महीने तनखाह मिलने पर मनी आर्डर से पैसे भेजते थे।पहली बार जब उन्होंने पैसे भेजे मैं आठवी क्लास में पढ़ रहा था।पिताजी ने मेरे नाम मनी आर्डर भेजा।पोस्टमेन ने मुझे मनी आर्डर देने से मना कर दिया क्योंकि मैं वयस्क नही था।पड़ोस के क्वाटर में धनी राम रहते थे।वह आर पी एफ में सूबेदार थे।वह मुझे अगलेदिन हेड पोस्ट आफिस लेकर गए