Killed Gulfam... books and stories free download online pdf in Hindi

मारे गए गुल्फ़ाम...

स्टोरीलाइन--दो भाइयों की कहानी,जिन्हें एक ही लड़की से मौहब्बत हो जाती है,अन्जाम क्या होता है इस मौहब्बत,देखते हैं आगें....

सज्जाद....सज्जाद....मियाँ!कहाँ है आप?एक खातून ने सज्जाद मियाँ को पुकारा...
जी!मोहतरमा!हम यहाँ हैं,कहिए क्यों याद फरमाया आपने?सज्जाद मियाँ ने पूछा।।
ये कमीज़ अच्छी नहीं सिली आपने,देखिए ना फिटिंग ठीक नहीं है,खातून बोलीं।।
लाइए दिखाइए तो जरा हम भी तो देखें,हमसे कहाँ गड़बड़ हुई है,सज्जाद मियाँ बोलें....
लीजिए,ये रही क़मीज़,हम सोच रहे थे कि इसे अपनी बहन की बेटे की सगाई में पहनेगें लेकिन मुई ये क़मीज़ तो किसी काम की ना रही,खातून बोलीं.....
और फिर मियाँ सज्जाद अली उस कमीज़ को उलट पलटकर देखने लगे और बोलें....
ओह....ये खामियाँ हमने नहीं कीं मोहतरमा!
तो फिर किसने कीं,खातून ने पूछा....
वो हमारा लख़्त-ए-जिगर है ना!हमारा छोटा भाई गुल्फ़ाम अली,उसी ने सिई थी ये कमीज,उसी ने गड़बड़ी की होगी,सज्जाद मियाँ बोले...
कहाँ है वो,हम उसकी अभी ख़बर लेते हैं,खातून बोलीं।।
माँफ भी कर दीजिए मोहतरमा!नादान है बच्चा है,आश़िक मिज़ाज जवान छोकरा है,हो गई होगी गड़बड़ फिटिंग में,आप कमीज़ छोड़ जाएं हम ठीक कर देगें,कल इसी वक्त ले जाइएगा,,सज्जाद अली बोले।।
आप कहते हैं तो मान जाते हम आपकी बात,सालों से आपके यहाँ ही हमारे पूरे परिवार की लड़कियाँ अपने कपड़े सिलवाती आईं हैं,मज़ाल है जो कभी गड़बड़ हो गई हो ,आज पहली बार ऐसा हुआ है,वें खातून बोलीं...
अब मुआफ़ भी कर दीजिए,देखिए ना आपका चेहरा गुस्से से सुर्ख लाल हो गया,माशाअल्लाह इस उम्र में भी आपके चेहरें की रंगत गज़ब ढ़ाती है,जवानी में तो आपने तो ना जाने कितने कत्ल किए होगें,सज्जाद मियाँ बोलें....
आप भी क्या सज्जाद मियाँ कैसीं बातें करते हैं?खातून शरमाते हुए बोलीं.....
ठीक हैं तो आप अभी जाएं,कल इसी वक्त इस कमीज़ को ले जाएं,सज्जाद मियाँ बोलें....
और फिर वो मोहतरमा चलीं गई,तभी कुछ ही देर में दुकान पर गुल्फ़ाम मियाँ भी आ पहुँचें और सज्जाद मियाँ ने उनसे पूछा.....
बरखुर्दार!कहाँ से आ रहे हैं?
जी!वो अमीना बेग़म हैं ना!उन्होंने बुलवाया था अपना माप लेने के लिए ,कुछ कमीजें सिलवानी थी उन्हें,ये रहें कमीज़ो के कपड़े,पूरे आठ हैं,गुल्फ़ाम अली बोला....
ओह...तो अब बेग़में आपको घर भी बुलाने लगी माप लेने के लिए,तरक्की पर हो मियाँ!लेकिन मियाँ कमर और सीने की माप लेते लेते किसी के चक्कर में मत पड़ा जाना,नहीं तो किसी के खाविंद को पता चल गया तो जूते पड़ेंगे जूते,सज्जाद मियाँ बोलें...
आप फिक्र ना करें भाईजान!ऐसा कुछ नहीं होगा,गुल्फ़ाम अली बोला।।
ठीक है...ठीक है...लेकिन माप तो सही से लिया करो,अभी एक मोहतरमा शिकायत करके गईं हैं कि उनकी कम़ीज की फिटिंग खराब कर दी आपने,सज्जाद अली बोले....
हो जाता है कभी कभी भाईजान....ऐसा हो जाता है,आखिर गलती इंसान से होती है ,गुल्फ़ाम अली बोला।।

तो ये थे दो भाई सज्जाद अली और गुल्फ़ाम अली जिनका पेशा सिलाई करना है,दोनों के अब्बाहुजूर फतेह अली भी यही पेशा करते थे,साथ में उनकी बेग़म यानि कि सज्जाद और गुल्फ़ाम की अम्मी नसीबा बानो भी छोटी सी दुकान में अपने खाविंद के साथ लगीं रहतीं थीं,फतेह अली ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे पाँच जमात ही पढ़ पाएं थे और तब नौकरी ना होने की वजह से उन्होंने अपने इस खानदानी पेशे को सम्भाल लिया.....
जब सज्जाद पन्द्रह का था तो उनकी अम्मी गुल्फ़ाम को जन्म देते वक्त अल्लाह को प्यारी हो गईं,इसके बाद सज्जाद के अब्बाहुजूर अकेले पड़ गए और बेग़म के ग़म ने उन्हें नाउम्मीद कर दिया,इसलिए दो साल के भीतर वो भी खुदा की खिदमत में चले गए,,सज्जाद को थोड़ा बहुत सिलाई का काम तो आता था,इसलिए उसने खुद को और अपने छोटे भाई गुल्फ़ाम को सम्भाल लिया,दोनों की दादी अभी जिन्दा थीं,इसलिए उन्होंने गुल्फ़ाम की परवरिश में शिरकत की,जब गुल्फ़ाम पाँच साल का हुआ तो दादी जान का भी इन्तेकाल हो गया,
सज्जाद अब लगभग बीस साल का हो चुका था,लोगों ने उसे निकाह पढ़वाने की सलाह दी लेकिन उसने नहीं मानी,उसे डर था कि कहीं उसकी आने वाली बीवी उसके छोटे भाई पर जुल्म ना ढ़ाएं,कहीं उसने ये कह दिया कि तुम्हारा भाई अब हमारे साथ नहीं रह सकता तो वो क्या करेगा? फिर ना तो बीवी को छोड़ पाएगा और ना ही भाई को,अगर निकाह ही फँसाद की जड़ बन गया तो फिर वो निकाह करें ही क्यों? और अब्बाहुजूर ने भी मरते समय कहा था कि अपने भाई का ख्याल रखना,उसे अम्मी-अब्बा की कमी ना महसूस होने पाएं,मैं अपने छोटे भाई के साथ कभी भी नाइन्साफ़ी ना करूँगा,इसलिए सज्जाद ने ये सब सोचकर ताउम्र निकाह ना करने का फैसला किया और इतने सालों से दोनों भाई राजी खुशी एक ही छत के नींचे रह रहे हैं.....
लेकिन जैसा इंसान सोचता है वैसा हो नहीं पाता,जिन्दगी हमारे अनुसार नहीं चलती बल्कि हमें अपने अनुसार चलाती है और जिन्दगी इसी का नाम है,फिर एक दिन एक बहुत बड़े बँगले से जो कि कस्बे के बहुत बड़े रईस शाहजहाँ मिर्जा का था वहाँ से सज्जाद मियाँ के लिए बुलावा आया,उनके घर की सभी नाजनीनों को अपने अपने कपड़े सिलवाने थें,किसी को सरारा,किसी को पटियाला तो किसी को साधारण सी कमीज,क्योंकि उनके घर में एक निकाह होने वाला था,हर मौके के लिए सभी को ख़ास लिबास चाहिए था,सगाई के लिए अलग,मेहंदी के लिए अलग,बरात के लिए अलग,सज्जाद मियाँ ठहरें इलाके के मशहूर दर्जी तो बस मिर्जा साहब ने अपनी एक बाँदी के हाथों पैगाम भिजवा दिया,
फिर क्या था बाँदी पहुँची सज्जाद मियाँ की दुकान पर,बाँदी ने बुर्का डाल रखा था,चूँकि घर और दुकान एक ही थे इसलिए बाहर आने जाने का दरवाजा भी एक ही था,उस बाँदी ने दरवाज़े के बाहर से ही आवाज़ लगाई....
मास्टर जी...मास्टर जी...मास्टर सज्जाद अली हैं.....
जी!अभी आया,भीतर से आवाज़ आई....
और फिर गुल्फ़ाम बाहर निकलकर आया और उस बाँदी से बोला....
जी!मोहतरमा!अभी तो भाईजान घर पर नहीं है,आप मुझसे कह सकती कि आपको उनसे क्या काम है?
जी! मैं उनके लिए मिर्जा साहब का पैग़ाम लाई थी,बाँदी बोली..
जी!बताएं,क्या पैगाम है?गुल्फ़ाम बोला।।
जी!उनके यहाँ निक़ाह होने वाला है,तो उनके घर की औरतों ने उन्हें याद फरमाया है,सभी को अपने मन मुताबिक़ कपड़े सिलवाने थे,बाँदी बोली।।
जी!ठीक है आप अपना नाम दर्ज करा दें,मैं उन्हें पैगाम दे दूँगा,गुल्फ़ाम बोला।।
मैं अपना नाम क्यों दर्ज कराऊँ?आपको तो मिर्जा साहब ने याद फरमाया है और इतना बड़ा बँगला है उनका,सभी को उनका पता मालूम है,बाँदी बोली।।
लेकिन पैगाम तो आप लाईं हैं ना!गुल्फ़ाम बोला।।
इसका क्या मतलब है?पैगाम कोई भी लाएं,बाँदी बोली।।
मोहतरमा!यही कायदा है यहाँ का,नहीं तो मिर्जा साहब से भाईजान क्या कहेगें कि कौन पैगाम लाया था,गुल्फ़ाम बोला।।
बड़े ढीट हैं जी आप,सुनते ही नहीं,बाँदी बोली।।
जी आपका नाम सुनाएं,मैं वही सुनना चाहता हूँ ,गुल्फ़ाम बोला।।
आप मानेगे नहीं,तो सुनिए इनायत नाम है मेरा,बाँदी गुस्से से बोली,
अल्लाह कसम !कितना खूबसूरत नाम है आपकी ही तरह,गुल्फ़ाम बोला।।
आपके कहने का क्या मतलब है मेरी तरह,आपने अब तक मेरी सूरत का कहाँ देखी?इनायत बोली।।
वो तो आपकी सुरमयी आँखों से पता चल गया कि आप कितनी खूबसूरत हैं,गुल्फ़ाम बोला।।
अब बस करें आप,किसी की तारीफ वो भी सूरत बिना देखें,एक तो वहाँ मिर्जा साहब की बेग़म ने मेरी जान खा रखी है,जब देखो तब ये कर दे इनायत .....वो कर दे इनायत,इनायत ऐसा....इनायत वैसा.....मैनें कहा था अम्मी से मुझे काम करने दो,फिर खुद की दुकान चलाने लगूँगी,लेकिन अम्मी हैं कि मानती ही नहीं ,कहतीं हैं इतने पैसे ही नहीं है हमारे पास कि तू काम सीखे,उस काम पर लगवा दिया जिस काम में मेरी दिलचस्पी ही नहीं है ,जहाँ मिर्जा साहब की बेग़म दिन भर मेरे पीछे पड़ी रहती हैं, इनायत बोली।।
ओह...तो ये माजरा है,ये परेशानी है आपकी,आपको आपका काम पसंद ही नहीं,गुल्फ़ाम बोला।।
जी!यही माजरा है,मैं तो तंग आ गई,इनायत बोली।।
अच्छा तो आप ये बताएं कि क्या आप हमारे साथ यहाँ काम करना पसंद करेगीं,अगर आपको ठीक लगता है तो मैं अपने भाईजान से बात करके देखूँ,गुल्फ़ाम बोला।।
जी!लेकिन मेरी अम्मी को कौन समझाएं?इनायत बोली।।
जी!आपकी अम्मी की आप फिक्र छोड़ दे,उन्हें समझाने के लिए ये बंदा हाजिर है,गुल्फ़ाम बोला।।
जी!आप करेगें मेरी मदद,इनायत ने पूछा।।
जी !बिल्कुल,गुल्फ़ाम बोला।।
और फिर क्या था,गुल्फ़ाम ने अपने बड़े भाई सज्जाद को गरीब बेवा की बेटी का हवाला देकर इनायत को दुकान में रखने के लिया मना लिया,बोला हम दो लोंग काम को नहीं सम्भाल पाते एक और हाथ बँटाने वाली मिल जाएगी,उधर इनायत के घर जाकर उसकीं अम्मी को भी मना लिया,अब इनायत काम पर आने लगी,पहले वो छोटे मोटे काम ही करती थी लेकिन अब गुल्फ़ाम ने अपने बचाएं हुए पैसों से उसे एक सिलाई मशीन भी खरीद दी,अब इनायत भी सिलाई करती,जो मोहतरमाऐं और नाजनीनें पहले मर्द समझकर माप और फिटिंग बताने में झिझकतीं थीं,वें अब बेफिक्र होकर इनायत को बता सकतीं थीं,जिससे अब शिकायतें भी नहीं आतीं थीं,दुकान अब और भी तरक्की कर रही थी,कस्बे में और लोगों की सिलाई का धन्धा बैठा जा रहा था और सज्जाद मियाँ अपने छोटे भाई गुल्फ़ाम के इस फैसले से खुश नज़र आते,दिन बीतते जा रहे थे,गुल्फ़ाम को मन ही मन लगने लगा था कि इनायत उसे पसंद करने लगी है.....
इनायत थी भी बड़ी खूबसूरत,सुरमयी बड़ी बड़ी आँखें,गुलाब से होंठ,सुन्दर सी नाक और सुराहीदार गरदन,उस पर गोरा रंग और छहररा बदन,लम्बाई भी कम ना थी,अच्छे से तैयार हो जाएं तो कयामत लगती थी,गुल्फ़ाम मियाँ तो वैसे भी दिलफेंक थे बस क्या था लट्टू हो गए उन पर,जब काम करते तो धागे की रील या कैंची उठाने के बहाने इनायत को छू लेते,इनायत भी उन्हें देखकर मुस्कुरा देती,लच्छेदार बातें तो गुल्फ़ाम मियाँ को आती ही थीं इसलिए उनकी बातों पर इनायत ठहाका मारकर हँस देती और गुल्फ़ाम मियाँ खुशी के मारे पानी पानी हो जाते,गुल्फ़ाम मियांँ को लगने लगा था कि इनायत के दिल में भी उनके लिए इश़्क पनप रहा है,वो भी उन पर फिदा है।।
ऐसे ही दिन गुजरे गुल्फ़ाम को लगा कि अब उसे इनायत को अपने दिल की बात बता देनी चाहिए,इसलिए गुल्फ़ाम मौका ढूढ़ने लगा लेकिन तभी एक दिन सज्जाद मियाँ गुल्फ़ाम से बोले.....
गुल्फ़ाम!दिल्ली से फूफूजान का ख़त आया है,उनकी सबसे छोटी बेटी जन्नत का निकाह तय हो गया है,आप तो जानते हो ही कि उनकी केवल चार ही बेटियाँ है बेटा नहीं है तीन का निकाह वें कर चुके हैं,लेकिन अब फूफाजान का बुढ़ापा आ गया है,उनसे ज्यादा भागादौड़ी वाला काम नहीं होता इसलिए वें चाहते हैं कि उनकी मदद के लिए हम से एक उनके पास पहुँच जाएं,कम से कम एक महीने तो वहाँ रहना पड़ेगा,उनकी मदद के लिए,तो ऐसा कीजिए आप चले जाइएं वहाँ,हम दुकान को सम्भाल लेगें फिर इनायत तो है ही हमारी मदद के लिए......
और फिर गुल्फ़ाम मियाँ बड़े भाईजान का हुक्म ना टाल सकें और जाने के लिए अपनी तैयारियाँ करने लगें,तैयारियांँ हो गई दिल्ली जाने का वक्त आ गया और जाते जाते इनायत से कहते गए कि बड़े भाईजान का ख्याल रखना,उन्होंने अम्मी-अब्बू दोनों बनकर मुझे पाला है.....
जी!आप फिक्र ना करें!मैं उनका ख्याल रखूँगी,अल्लाहताला! ऐसा बड़ा भाई सबके नसीब में बख्शें,इनायत बोली।।
सच कहती हो,रखोगी ना ख्याल ,गुल्फ़ाम ने दोबारा पूछा...
भला ऐसे खुदा के मुआफ़िक़ बड़े भाई का ख्याल कौन नहीं रखना चाहेगा,इनायत बोली।।
इनायत की बात सुनकर अब तो गुल्फ़ाम का दिल बल्लियों उछलने लगा,उसे ये यकीन हो गया कि इनायत कितनी अच्छी है मेरे बड़े भाईजान को वो भी अपना बड़ा भाई मानती है,अब वापस आने पर इनायत से अपनी मौहब्बत का इजहार जरूर कर लूँगा और भाईजान से अपने रिश्ते की बात भी करके इनायत और अपने निकाह के लिए मना लूँगा,अब कब तक हम दोनों भाई कच्ची पक्की रोटियाँ खुद बनाकर खाते रहेगें,एक घर सम्भालने वाली भी तो होनी चाहिए,ये सब सोचकर गुल्फ़ाम दिल्ली रवाना हो गया.....
गुल्फ़ाम दिल्ली में तो था लेकिन उसके दिल-ओ-दिमाग पर बस इनायत ही छाई रहती,अब गुल्फ़ाम को दिल्ली में रहते लगभग एक महीना गुज़र गया था,फूफूज़ान की बेटी का निकाह भी निपट गया था,अब गुल्फ़ाम ने फुफूजान से वापस आने के लिए इजाजत माँगी,फूफूज़ान ने भी खुशी खुशी खूब सारी मिठाई बाँधकर गुल्फ़ाम को रवानगी दे दी...
गुल्फ़ाम खुशी खुशी घर लौटा और जिस रात वो लौटा तो सज्जाद मियाँ बोलें...
गुल्फ़ाम!आपके लिए एक खुशखबर है,
वो क्या भाईजान?गुल्फ़ाम ने पूछा....
वो आपको कल पता चलेगी,आज रात आप आराम से सो जाएं,सज्जाद मियाँ बोलें....
मैं भी आपको एक बात बताना चाह रहा था लेकिन मैं भी कल ही बताऊँगा,आपकी खुशखबर सुनने के बाद,गुल्फ़ाम बोला....
ठीक है तो आप भी कल ही बताइएगा,इतना कहकर सज्जाद मियाँ चले गए.....
सुबह हुई तो सज्जाद मियाँ ने गुल्फ़ाम को जगाया और उसे एक नई शेरवानी देते हुए बोलें....
आज आप ये पहनें...
लेकिन ये क्यों?गुल्फ़ाम ने पूछा।।
खुशखबर के लिए,हमने नाश्ता बना दिया है तैयार होकर नाश्ता कर लें,हमें कहीं चलना है,सज्जाद मियाँ बोलें...
लेकिन कहाँ?गुल्फ़ाम ने पूछा।।
खुशखबर सुनने,सज्जाद मियाँ बोलें...
फिर क्या था गुल्फ़ाम ने तैयार होकर नाश्ता किया और शेरवानी पहनकर तैयार हो गया,सज्जाद ने भी आज नयी शेरवानी पहनीं,फिर दोनों घर से रिक्शे पर सवार मौलवी साहब के यहाँ पहुँचें,वहाँ पहुँचकर सज्जाद मियाँ बोलें....
गुल्फ़ाम मियाँ आप यहाँ तशरीफ़ फरमाएं वें दोनों आती ही होगी....
कुछ ही देर में लाल लिबाज़ और गहनों से सँजी इनायत अपनी अम्मी के साथ वहाँ हाजिर हुई,ये देखकर गुल्फ़ाम ने सोचा....
मैं तो डरपोक था जो अब तक कह ना पाया लेकिन लगता है इनायत ने सबकुछ अपनी अम्मी और भाईजान को बता दिया,तभी तो मेरे आते ही निकाह की तैयारी कर ली,गुल्फ़ाम मन ही मन बहुत खुश था उसका दिल बल्लियों उछल रहा था,वो अपनी जान-ए-जिगर इनायत के इस फैसले से बहुत ही खुश था,जो काम मैं ना कर सका वो इनायत ने कर दिया वो ये सब सोच ही रहा था कि तभी सज्जाद मियाँ बोले....
पसंद आई दुल्हन,अच्छी है ना!
गुल्फ़ाम ने शरमाते हुए कहा....
जी!भाईजान!बहुत अच्छी है.....
तभी सज्जाद मियाँ मौलवी साहब से बोले.....
मौलवी साहब!अब इन्तजार खत्म हुआ ,बस इतने ही लोंग निकाह में शामिल होगें,अब आप जल्दी से हमारा और इनायत का निकाह पढ़वा दें.....
इतना सुनकर तो जैसे गुल्फ़ाम को चक्कर सा आ गया और वो गश़ खाकर गिरने ही वाला था,तभी सज्जाद ने उसे सम्भाला और बोलें....
क्या हुआ आपको?
जी!खुशी के मारें नाचने को जी चाह रहा है और ये आँसू भी खुशी के हैं जो मेरी आँखों में हैं,गुल्फ़ाम बोला।।
हमें मालूम था गुल्फ़ाम मियाँ की हमारा घर बसते देख आपको ही सबसे ज्यादा खुशी होगी,आपके दिल्ली जाने के बाद इनायत ने हमारा ख्याल रखते रखते कब हमारे दिल में जगह बना ली हमें पता ही नहीं चला,जब इन्होंने खुद पहल करके हमसे अपनी मौहब्बत का इजहार किया तो हम निकाह करने से इनकार ना कर सकें और हम दोनों की मौहब्बत का अन्जाम आज आपके सामने है,हमें यकीन है कि आपको अपनी भाभीजान पसंद आईं,ये आपका भी वैसे ही ख्याल रखेगीं जैसे कि हम रखते आएं हैं एक बेटे की तरह,सज्जाद मियाँ बोले।।
जी भाईजान!अल्लाहताला आप दोनों की जोड़ी सलामत रखें,आप दोनों को किसी की नज़र ना लगें,गुल्फ़ाम मियाँ ने दोनों के लिए दुआँएं करते हुआ कहा...
और फिर उस दिन गुल्फ़ाम मियाँ की मौहब्बत खाक़ में मिल चुकी थी और दिल का आशियाना जल चुका था,सारे अरमान आँसुओं में तब्दील हो चुके थे........और बस दिल से यही बोल निकले कि ...
बेचारे मारे गए गुल्फ़ाम....

समाप्त.......
सरोज वर्मा....