Ghutan - Part 4 books and stories free download online pdf in Hindi

घुटन - भाग ४

वीर रागिनी के ख़्यालों में खोया हुआ था कि तभी उसके कानों में आवाज़ आई, "वीर उठो " 

वीर ने चमकते हुए जैसे ही आँखें खोलीं, उसके सामने अप्सरा की तरह खूबसूरत रुक्मणी खड़ी थी। रुक्मणी ने वीर के पास बैठकर उसके गाल पर एक प्यारा सा चुंबन कर दिया तो वीर ने उसकी सुंदरता पर मोहित होकर उसे अपनी बाँहों में भर लिया और रात की बेचैनी को भूलने की कोशिश करने लगा।

रुक्मणी ने कहा, "क्या हुआ वीर, आज रात तुम बेचैन लग रहे थे। बार-बार करवटें बदल रहे थे, तबीयत तो ठीक है ना तुम्हारी?"

"अरे रुकमणी कुछ नहीं थोड़ा पिंडलियों में दर्द हो रहा था और कुछ नहीं।"

"अरे मुझे उठा लेते तो मैं दबा देती, अब कैसा है दर्द?"

"अब ठीक है रात को मुझे लगा था कि तुम चैन से सो रही हो इसलिए तुम्हारी नींद खराब नहीं . . . "

"ऐसा नहीं होता वीर कुछ तकलीफ़ हो तो ऐसा कभी नहीं सोचना और मुझे उठा लेना।" 

"ठीक है रुकमणी आगे से ध्यान रखूँगा।"

उधर उस दिन जब रागिनी अपने घर वापस गई तब उसे उदास देखकर उसकी माँ ने पूछा, " रागिनी क्या हुआ बेटा तुम वीर से मिलने गई थीं ना।"

"हाँ माँ कुछ नहीं हुआ, सब ठीक है।"

"नहीं रागिनी माँ हूँ मैं तुम्हारी, जब भी तुम वीर से मिलकर वापस आती थीं, तुम्हारा चेहरा फूलों की तरह खिला रहता था पर आज मुरझाया हुआ है। बेटा सच बताओ क्या हो गया? क्या वीर से झगड़ा . . . "

अब तक रागिनी रो पड़ी थी और रोते हुए अपनी माँ से लिपट कर उसने कहा, "माँ वीर . . . "

"क्या हुआ वीर को बेटा?"

"उसे कुछ नहीं हुआ माँ, वह धोखेबाज हो गया है। आज उसने मुझे उसके जीवन से अलग कर दिया।"

"क्या? ये क्या कह रही है तू?"

"हाँ माँ मैं सच कह रही हूँ।"

"वह ऐसा नहीं कर सकता। मैं उसकी माँ से मिलूंगी और . . ."

"नहीं माँ मुझे भीख में मिला वीर नहीं चाहिए।" 

इतना सब सुनते ही रागिनी की माँ चक्कर खाकर गिर पड़ीं। रागिनी तुरंत ही अपनी माँ को अस्पताल ले गई। उसकी माँ शाम तक ठीक हो कर घर वापस भी आ गईं। रागिनी अब अपनी माँ का बहुत ज़्यादा ख़्याल रखने लगी थी। अब तक रागिनी के पिता को भी उसके और वीर के ब्रेक अप की बात पता चल चुकी थी।

वीर से बिछड़ने के कुछ ही दिनों में रागिनी को पता चला कि वीर की दी निशानी उसके साथ आ गई है, जो उसके गर्भ में छुप कर अपना स्थान बना चुकी है। रागिनी ने यह पता चलने के बाद वीर को इस बात से अंजान रखा। वह एक धोखेबाज को पिता का स्थान नहीं देना चाहती थी। कई बार उसके मन में ख़्याल आता कि यह बात पता चलने पर समाज क्या कहेगा। वह अपने माता-पिता को कैसे बता पाएगी। वह भगवान से भी शिकायत करती कि हे प्रभु आपने मुझे क्यों ऐसे दलदल में फेंक दिया, जहां से बाहर निकल पाना अब नामुमकिन हो गया।

जल्दी ही रागिनी के प्रेगनेंट होने की बात उसकी माँ को भी पता चल गई। अब रागिनी उस शहर में नहीं रहना चाहती थी इसलिए रागिनी और उसके परिवार ने वह शहर ही छोड़ दिया और पास के एक दूसरे शहर में जाकर बस गए। रागिनी नहीं चाहती थी कि जीवन में अब कभी भी उसे वीर प्रताप की शक्ल भी दिखाई दे।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः