A journey that continues books and stories free download online pdf in Hindi

एक सफर जो ज़ारी है

मुझ से ज़ियादा कौन तमाशा देख सकेगा गाँधी-जी के तीनों बंदर मेरे अंदर – नाज़िर वहीद का ये शेर मेरे जिंदगी का अहम किरदार है

एक सफर जो ज़ारी है

बेमन सा बैठा ख्यालों में गुम था, टेबल  पर रखी चाय न जाने कब कोल्ड टि बन गई , अभी बस कुछ दिन पहले तक तो  सब ठीक था  ये अचानक से सब कुछ उथल पुथल कैसे हो गया ,       इन ही  ख़यालो  में खोया था तभी कानों में रोने की आवाज़ आई तो निंद्रा टूटी तो मैं सन्न रह गया देखा तो पिता जी आँखों से आंसू गिर रहे थे तब ऐसा लगा जैसे ना सर पे आसमान है न पैरो के निचे ज़मीन पहली बार इतने मज़बूत वयक्तित्व के मालिक को इतना कमज़ोर देखा था , जो कभी डिगे नहीं वो आज सहमे हुए थे उस 1 हादसे ने ज़िन्दगी में तूफान ला दिया था मानो सब कुछ खत्म हो गया , इन सबके बीच परिवार की चिंता बिटिया की शादी चिंता खाये जा रही थी समाज के ताने बने जीने नहीं देंगे, बस समय गुज़रता गया हालत वैसे ही रहे,  फिर हुआ यूँ की घर का लाडला ज़िम्मेदारी उठाने निकल पड़ा काम की तलाश में, नाबालिग होने के कारण काम भी मिलना मुश्किल वो कहते है न कोशिश करने से हार नहीं होती तलाश पूरी हुई ! घर का लाडला कब बड़ा हो गया पता ही नहीं चला , खेलने की उम्र में शायद ज़िम्मेदारी ने ऐसा सबक सिखाया की बचपन ही खो गया :: कुछ साल बाद :: रेलवे पलटफोर्म पे बैठा खोया था की पटरी पे आती ट्रैन की शोर ने जगा दिया , पहला सफर जो अकेले करना था डर परेशानी सब माथे पे डटी हुई थी, ट्रैन ने हॉर्न दी और चल पड़ी मैं कोच में कुछ जगह ढूंढ़ने लगा वही फर्श के १ कोने में जगह मिली वही बैठ गया ट्रैन की गति के साथ दिल की गति भी बढ़ती जा रही थी किसी प्रकार ट्रैन का सफर पूरा हुआ और मैं पहुंच गया " सिटी ऑफ़ रैली' यानि दिल्ली ! एक नए सपनों के साथ यहां सब कुछ एक सपना था, हर दिन एक नए तरीके से जीना जहाँ हर पल घर की याद लेकिन जब ज़िम्मेदारी अपना रौब दिखाती तब सब धुन्दला हो जाता है ! फिरसे काम की तलाश इस अनजान शहर में चिलचिलाती धुप का साथ ! हर तरफ आशा भरी उठ रही थी, समय के साथ ये तलाश भी पूरी हुई , काम मिलने से सैलरी मिलने तक का सफर बहुत लम्बा लगने था , फिर माँ को कुछ पैसे भेजे तो माँ की आवाज़ शांत ऐसा लगा उन्हें नई  ज़िन्दगी मिल गई हो ! एक हादसे ने ऐसा तूफान मचाया अपने पल में  पराये हो गये , हर रिश्ता ऊपर से जितना मज़बूत अंदर से  उतना ही खोखला निकला  समय गुज़रता गया हालत बदलते रहे लेकिन चेहरे  के पीछे का चेहरे हमेशा याद रहेंगे साथ देने  वाले और न देने वाले भी ! किसी ने दुआएं दी तो किसी ने सिर्फ बुरा समझा हालात और मुकद्दर ने सबसे पार  पाना सीखा दिया, इस सफर में कई लोग मिले कुछ बिछड़ गए कुछ हमेशा के लिए ज़िन्दगी का हिस्सा बन गए ! जो लड़का शरारती था वो आज गंभीर प्रवृत्ति का हो चूका है जिसे जहा कोई मिले उससे घुलमिलने लग जाता है शायद अपनों के बहुत  गहरे ज़ख़्म है “जब  ज़िन्दगी  आती है मुफ़लिसी , तब अपने ही होने लगते है दूर” जब ज़िन्दगी के पहले सफर पे निकला था तब  माँ से लड़कर गया था , माँ कहती थी न जाओ मैंने कहा था माँ जल्द ही आ जाऊंगा अभी जाने दो ये सफर करने दो बस ज़िद थी  लोगो के ताने थे पिताजी की मजबूरी जो सही नहीं जाती थी नम आँखों से विदा लिया वादे के साथ जल्द ही लौट आऊंगा और अब 12 साल हो गए लेकिन सफ़र  अबतक अधूरा है ! इस सफर में कई चुनौतियां आई सफर बदूस्तर जारी है हर रोज़ एक नई उम्मीद के साथ !!

मेरे हालात को बस यूँ समझ लो परिंदे पर शजर रक्खा हुआ है -  - शुजा ख़ावर