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अंतर

- आप समझने की कोशिश कीजिए मिस्टर, इस तरह बचपना करके आप एक नहीं बल्कि दो- दो जिंदगियों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। डॉ. तिवारी ने कहा।
- पर डॉक्टर, मैं कैसे समझाऊं आपको कि मानसिक तौर पर इस स्थिति के लिए मैं बिल्कुल तैयार नहीं हूं। यह भी एक अजीब संयोग है कि ऐसा हो गया है और मैं अकारण इतनी परेशानी में पड़ गया हूं। मैं आपको अपनी परिस्थितियों का वास्ता देता हूं। कहते हुए विनीत का स्वर अब लगभग कंठ में अटकने सा लगा था।
डॉ. महिमा तिवारी स्टेथेस्कॉप गले में लटकाए अपनी टेबल के क़रीब बैठी पूरे प्रभाव व आत्मीयता से उस नव दंपत्ति को समझाने की कोशिश कर रही थीं जो कि एबॉर्शन केस लेकर उनके पास आया था। विनीत के माथे पर उलझे हुए फैले बाल और लाल आंखें देखकर लगता था कि वो पिछले कुछ दिनों से आराम से सो भी नहीं सका है। सुमन पास ही सिर झुकाए खामोश बैठी थी। उसने इस पूरे वार्तालाप में कहीं किसी प्रकार का हिस्सा नहीं लिया। उसके लिए जैसे उसके पति विनीत और डॉक्टर तिवारी का फ़ैसला ही मान्य था। कैसी बेबसी थी उस मां की, जिसके होने वाले शिशु को जीवन देने के सवाल पर उसके पति और डॉक्टर जिरह कर रहे थे। अपने पति की परेशानी समझ कर सुमन उसी का साथ देना चाहती थी, यद्यपि उसके अपने ही शरीर में उठता ज्वार कुछ और कहता।
- फिर यदि आप को ऐसा निर्णय लेना ही था तो समय से ख्याल रखना चाहिए था न। डॉक्टर ने खामोशी को तोड़ते हुए कहा।
- जी, बात दरअसल ऐसी थी कि आई वाज नॉट हियर। मैं तीन महीने के लिए बाहर चला गया था। लौटते ही आपके पास आए हैं हम। फिर परिस्थिति ही कुछ ऐसी थी कि ये बेचारी भी यहां किसी से कुछ नहीं कह सकी। और इसने सबसे बड़ी गलती यही की, कि यह मेरा इंतज़ार करती रही,इसने मुझे इनफॉर्म नहीं किया। विनीत ने सुमन के चेहरे पर नज़र डालते हुए कहा।
- लेकिन इतना तो आप भी जानते हैं कि इतना समय गुज़र जाने के बाद ऑपरेशन करने में किसी भी दुर्घटना की पूरी संभावना रहती है। भगवान न करे, कि कहीं कुछ हो गया तो आप हमेशा हमेशा के लिए अपराध बोध से दब जायेंगे... मुझे तो आप माफ़ ही कर दीजिए मिस्टर विनीत! और आप भी समझने की कोशिश कीजिए। अपने कठिन वक्त से घबरा कर किसी दूसरे की ज़िंदगी को दाव पर लगा देना किसी भी कोण से बुद्धिमानी नहीं है, और न ही आपको इसका हक है।
अब विनीत के पास वहां से उठने के सिवा कोई चारा नहीं था। बेबसी में उसने कहा - ओ के थैंक यू डॉक्टर, आपकी जैसी इच्छा, पर मैं अब भी यही चाहता हूं कि मेरी ये संतान दुनिया में न आए तो मेरे लिए, और स्वयं इसके लिए बेहतर है। मैं किसी और जगह कोशिश करता हूं। वैसे आपकी बात से मेरा पूरा इत्तफाक है, पर अपनी मजबूरी मैं आपको समझा नहीं सकता। मुझे तो हर कीमत पर यह ऑपरेशन करवाना ही होगा।
- एज यू विश! माय टास्क इज टू एडवाइज़ यू। फिर आगे आपकी मर्ज़ी। कहती डॉक्टर उठकर भीतर चली गईं।
विनीत और सुमन क्लीनिक से बाहर आ गए। तेज़ी से ड्राइव करता हुआ विनीत कार को भगा रहा था, सुमन चुप थी।
- किसी और डॉक्टर के पास कोशिश करते हैं! विनीत ने कहा।
- चलिए। सुमन बेमन से बोली।
- मेरे ख्याल से डॉ माथुर के यहां ज़रा खर्च ज्यादा आयेगा पर थोड़ा ज़ोर देने से मान जायेंगे। उनसे तो कहा भी जा सकता है। यह डॉक्टर तिवारी तो वैसे भी थोड़ी स्ट्रिक्ट मानी जाती हैं। बताओ भला, इनसे कोई कैसे बहस करे!
- एक बात सुनिए...! सुमन ने अचकचाते हुए कहा - क्या यह किसी भी तरह संभव नहीं कि हम डॉक्टर तिवारी की बात मान लें?
- फिर वही, तुम तो बात को समझने की कोशिश ही नहीं करती हो। सुनकर सुमन चुप हो गई।
विनीत ने लगभग दो साल पहले अपने घरवालों की इच्छा के विपरीत सुमन से शादी की थी, और तभी से उन लोगों से उसका संबंध टूट गया था। न वे ही कभी आए और न सुमन व विनीत ने ही कभी जाने की ज़रूरत समझी। एक आध बार औपचारिक पत्रों का आदान- प्रदान हुआ लेकिन उससे संपर्क सूत्र फिर से जुड़ नहीं सका। मशहूर वकील पिता को फिर उनकी ज़रूरत नहीं पड़ी, और न ही बेटे ने उनकी परवाह की।
अब विनीत को अपनी कंपनी की ओर से बाहर जाने का अवसर मिल रहा था, तीन साल के लिए। यह ट्रेनिंग एक महत्वपूर्ण मौके की तरह विनीत के कैरियर में आ गई थी। उसकी निजी ज़िंदगी के बारे में उसकी कंपनी के मैनेजमेंट को पूरी वाकफियत न थी। उसे डर था कि जैसे ही डायरेक्टर झिंगरन, जिन्हें वह अपनी कंपनी में अपना गॉडफादर समझता है, जानेंगे कि वह पिता बनने वाला है, वह विनीत को समझाते हुए यह अवसर किसी और को दे देंगे। क्योंकि विनीत इस हाल में सुमन को अकेला छोड़ कर भी तो नहीं जा सकता था, और उसे साथ ले जाना नामुमकिन था। सुमन का अपना कहने को विनीत के अलावा और कोई था भी तो नहीं। विनीत से विवाह हो जाने के बाद सुमन ने विमाता के हाथ में नाचने वाले अपने घर को कभी पलट कर देखा भी नहीं था। एक कड़वा अतीत जुड़ा था उस घर के साथ, जिसकी देहरी लांघ कर उसने विनीत के साथ विवाह किया। और विनीत अपनी ज़िंदगी में आए इस अवसर को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहता था। यह अवसर उसके लिए विदेश जाने का एक मौक़ा मात्र नहीं था, बल्कि इसके साथ विनीत के भविष्य के प्रमोशनों व कैरियर का सवाल भी जुड़ा हुआ था। एक बार मौका हाथ से जाने के बाद इस कंपनी में तो उसका कैरियर ख़त्म ही था।
घर आकर विनीत ने डॉक्टर माथुर को फ़ोन किया। वह घर पर ही मिल गए। बातचीत होने लगी। विनीत ने कुछ इधर उधर की बातों के बाद असली बात भी उनसे कह दी।
डॉक्टर एक पल को ठहरे फिर बोले - तुम एक काम करो। जब भी समय मिले मेरे पास चले आओ।
विनीत जिस समय डॉक्टर के पास जा रहा था वह अकेले ही था। सुमन घर में ही थी। विनीत को डॉक्टर माथुर से फ़ोन पर बात हो जाने के बाद आशा की एक हल्की सी किरण दिखाई देने लगी थी। उसे लगता, डॉक्टर अवश्य ही उसकी बात मान जायेंगे, इसीलिए तो उन्होंने उसे बुलाया है, अन्यथा बुलाने की ज़रूरत ही क्या थी। मना ही करना होता तो फ़ोन पर ही कह देते। उसने तो साफ़ - साफ़ सारी बात और स्थिति उनके सामने रख दी थी। वैसे भी लेडीज़ तो थोड़ी सेंटीमेंटल होती ही हैं, डॉक्टर माथुर उसके कैरियर को देखते हुए उसकी सहायता करेंगे। उनके क्लीनिक में दो लेडी डॉक्टर भी हैं, देखभाल में किसी तरह की कमी होने का सवाल ही नहीं उठता। यह फंदा एक बार किसी तरह गले से निकल जायेगा तो वह बेखटके मैनेजमेंट के सामने कह सकेगा कि वह इस ट्रेनिंग में अपने एफर्ट्स में किसी तरह की कमी नहीं आने देगा। उसने तो इसीलिए यह बात अभी तक किसी पर जाहिर भी नहीं की थी। यहां तक कि नजदीकी मिलने- जुलने वालों से भी बचा - छिपा कर रखा था सब।
यही सब सोचता विनीत कार को बाहर खड़ी करके डॉक्टर माथुर की कोठी के गेट में प्रविष्ट हुआ। उधेड़- बुन उसके चेहरे पर साफ़ पढ़ी जा सकती थी। पर डॉक्टर माथुर से मिलने और उनसे बात होने के बाद
विनीत के वो सभी पूर्वानुमान गलत निकले जो वह सोचता हुआ आ रहा था। डॉक्टर साहब से विस्तृत रूप से सारी बातें हुईं। उसने निहायत घरेलू व निजी मामलों की जानकारी देने में भी कोई संकोच नहीं किया क्योंकि उसका ध्येय तो किसी भी प्रकार डॉक्टर साहब को अपनी बात के लिए तैयार करने का था।
कॉफी का कप हाथ में लेकर मशहूर व अनुभवी डॉक्टर माथुर सामने बैठे कैरियर - कांशस युवा एक्जीक्यूटिव व निरीह से होने वाले बाप के अंतर को बड़ी दिलचस्पी से परखते रहे। उनकी रुचि उसके तर्कों के दौरान पूरी तरह बनी रही, मगर अंत में उनका निर्णय कैरियर ओरिएंटेड अधिकारी के पक्ष में नहीं गया। उन्होंने अपनेपन के साथ एक गंभीर नम्रता से विनीत को समझाया - यह बचपना है बेटे, अपने जीवन के एक अवसर को खरीदने के लिए किसी की सारी जिंदगी तो कीमत के रूप में नहीं दी जा सकती न! और तब विनीत निरुत्तर हो गया।
उस रात उसने खाना भी नहीं खाया। सो भी नहीं सका। तकिए में मुंह छिपा कर फूट - फूट कर रोते विनीत को घर छोड़ देने के बाद पहली बार मां - बाप की याद बुरी तरह आई। उसके कलेजे में रह - रह कर एक ही बात उठती थी कि उसकी होने वाली औलाद ने दुनिया में आने से पहले ही उसके कैरियर के साथ खिलवाड़ किया है, और इस अपराध के लिए वह उस मासूम को कभी माफ़ नहीं कर सकेगा। वह बच्चा... जन्मते ही अपने पिता के दिल में अपने लिए बेपरवाह सी नफरत लेकर आयेगा और सारी ज़िंदगी पिता के दिल से इस अपराध की लकीर को धो नहीं सकेगा।
सुमन चुपचाप आंसू बहाते रहने के सिवा और कुछ न कर सकी।
बत्तीस साल गुज़र गए हैं आज उस घटना को घटे, जब विनीत और सुमन अपनी औलाद से छुटकारा पाने के लिए शहर - भर के डॉक्टरों के चक्कर काटते फिरे थे।
और उनकी वही औलाद डॉक्टर प्रवीण नारायण, जो सारे शहर में सर्वाधिक कुशल हार्ट स्पेशलिस्ट के रूप में जाने जाते हैं, अस्पताल के चमकते बरामदे में खड़े रुमाल से बार - बार माथे का पसीना पोंछ रहे हैं। विदेशी कॉलेजों द्वारा दिया गया रुतबा और पेशे में जी- तोड़ परिश्रम आज उन्हें मशहूर बना चुके हैं। बड़े से बड़े केस में भी यदि लोग यह जान लेते हैं कि डॉक्टर प्रवीण नारायण का इलाज चल रहा है तो मरीज के भला - चंगा होकर लौटने के प्रति आश्वस्त हो जाते हैं। यही डॉक्टर प्रवीण नारायण पिछले दो - तीन दिनों से न ढंग से खाना खा सके हैं, न ही सो पाए हैं।
विनीत नारायण को तीन- चार दिन पहले अचानक दिल का दौरा पड़ा था। हालत इतनी खराब हो गई कि एक बार तो सुमन लता को लगा कि उनकी दुनिया उजड़ गई। रात के दो बजे अस्पताल की एंबुलेंस जिस समय विनीत नारायण को लेकर गई, उनके पुत्र डॉक्टर प्रवीण नारायण किसी सिलसिले में दिल्ली गए हुए थे। उसी वक्त अस्पताल से ही ट्रंककॉल किया गया और डॉक्टर प्रवीण नारायण कॉन्फ्रेंस अधूरी छोड़ कर अगली सुबह की फ्लाइट से ही यहां पर पहुंच गए। पूरी निगरानी से इलाज हो रहा है। कई डॉक्टर उनकी देखभाल कर रहे हैं।
इससे पहले विनीत नारायण को किसी तरह की खतरनाक बीमारी की शिकायत कभी नहीं रही। बासठ साला उम्र में भी वह अपना सब काम अपने हाथों से पूरी मुस्तैदी से करते रहे हैं। रोजाना घूमने का अभ्यास भी उनका अब तक जारी था। यहां तक कि कोई छोटी- मोटी बीमारी भी तो पिछले आठ- दस सालों में उन्हें नहीं रही।
सुमन लता ने बेटे प्रवीण नारायण को पहले कभी इतना चिंतित नहीं देखा। बड़े से बड़े उलझे हुए गंभीर केसों में भी उनके चेहरे पर शिकन आती किसी ने नहीं देखी थी।
इस बार की उनकी नर्वसनेस की वजह एक तो शायद यही थी कि ख़ुद उनके पिता ही उनके ट्रीटमेंट में थे, दूसरे वो भयंकर बीमारी, जिसने मशहूर डॉक्टरों को भी हैरत में डाल रखा था। सभी डॉक्टरों का एक स्वर से यह मानना था कि यदि समय रहते ऑपरेशन न किया गया तो विनीत नारायण की ज़िंदगी को खतरा है, और कोई आश्चर्य नहीं कि अगले कुछ दिनों में ही वह चल बसें। परेशानी की वजह यह भी थी कि यह ऑपरेशन बेहद खतरनाक था, इसके सफ़ल होने की संभावना बहुत कम थी। विनीत नारायण के दिल के करीब की किसी धमनी में ज़ख्म हो गया था, और कुछ ही दिनों में इस बात की पूरी आशंका थी कि इस घाव के कारण रक्त में विकार आ जाता। दिल के दौरे की वजह भी यही थी।
डॉक्टर प्रवीण ने जगह- जगह फ़ोन करके विशेषज्ञों से मशविरा किया। अंत में यही फैसला किया कि ऑपरेशन के बिना उन्हें बचाना तो असंभव है। यद्यपि ऑपरेशन में भी जबरदस्त रिस्क थी, पर इसके अभाव में उन्हें नियति के भरोसे भी तो नहीं छोड़ा जा सकता था। डॉक्टर प्रवीण को पहले तो महसूस हुआ कि इस ऑपरेशन को वे स्वयं नहीं कर सकेंगे। उनके हाथ इस कल्पना मात्र से ही कंपकंपाने लगे, पर दूसरी ओर वह ये काम पूरी तरह दूसरों पर छोड़ना भी नहीं चाहते थे। न जाने क्यों उन्हें भरोसा नहीं हो पा रहा था। विनीत नारायण की हालत लगातार गिरती जा रही थी।
आज विनीत का ऑपरेशन था। अन्य डॉक्टरों के साथ ख़ुद डॉक्टर प्रवीण उसे करने वाले थे।
सुमन लता बेटे के लाख समझाने पर भी वहीं थीं। न सो सकी थीं, न खा सकी थीं। तबीयत से भी लापरवाह थीं। किंतु उन्हें ये विश्वास सा होने लगा था कि उनके पति इस ऑपरेशन के बाद पूरी तरह ठीक हो जाएंगे।
डॉक्टर प्रवीण उन्हें फिर समझाने आए - मम्मी आप क्यों इतनी परेशानी उठा रही हैं? आपको भी आराम की ज़रूरत है। कितने ही दिनों से आपका ऐसे ही चल रहा है। आपकी तबीयत भी तो ठीक नहीं रहती कुछ समय से। आप थोड़ा रेस्ट कर लीजिए...उठिए। कहते कहते डॉक्टर प्रवीण नारायण का स्वर रुंधने लगा। इससे आगे वो कुछ नहीं बोल सके। पलट कर भीतर की ओर बढ़े।
सुमन लता सिसकने लगीं। आवाज़ का ऐसे ही रुंधना, स्वर का ऐसे ही अटकना उन्होंने आज से पहले भी देखा था एक बार, बत्तीस साल पहले।
जैसी दृढ़ता और विश्वास आज बेटे की आंखों में देख रही हैं वैसी ही सख्ती एक बार पहले भी देखी थी उन्होंने। उन्हें बरसों पहले तेज़ी से कार ड्राइव करके डॉक्टर महिमा तिवारी के क्लीनिक में जाते विनीत की याद आ गई। आंखों में एक दृढ़ चमक की, तल्खी की याद आ गई। वो आंखें... मानो कह रही हों कि मैं तुम्हें इस दुनिया में नहीं आने दूंगा।
आज वही सख्ती, वही तल्खी प्रवीण की आंखों में उतर आई है, मानो कह रही हों - मैं तुम्हें इस दुनिया से नहीं जाने दूंगा।
इन दोनों कठोर इरादों के बीच का तरल अंतर और तरल होकर सुमन लता की बूढ़ी आंखों से बहता रहा!!!
( समाप्त ) ... प्रबोध कुमार गोविल