Nakaab - 13 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | नकाब - 13

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नकाब - 13

भाग 13

पिछले भाग में आपने पढ़ा की ठाकुर गजराज सिंह के सर में सर में दर्द होता है और वो राघव को अपने कमरे में बाम लगाने के लिए बुलाते है। साथ ही वो अपने मन में उत्पन्न शंका का समाधान भी करना चाहते थे। वो अचानक से गुड़िया की शादी की बात उठाने से कुछ अशांत से हो गए थे। अब आगे पढ़े।

राघव पिता के सवाल का जवाब घुमा फिरा कर दे कर पिता को दुखी नहीं करना चाहता था। इसलिए गंभीर स्वर में बोला, "पापा..! आपने जब पूछा है तो मैं भी सच ही बताऊंगा। पापा ..! पर कैसे बताऊं.? ये मेरी समझ में नही आ रहा।"

ठाकुर गजराज जी बेटे की उलझन को देख उसे तसल्ली देते हुए बोले,

"बेटा राघव..! मैं तुम्हारा पिता हूं। तुम्हे मुझसे झिझकने या संकोच करने की कोई जरूरत नहीं है। जो भी कोई बात हो तुम मुझसे खुल के बता सकते हो।" ठाकुर साहब ने राघव को समझाते हुए कहा।

राघव को अपने पिता की बातों से थोड़ा सहारा मिला। उसकी झिझक कुछ कम हुई। अब वो खुद को सामान्य महसूस कर रहा। फिर वो सब कुछ शुरू से अंत तक उन्हे बता डाला। कैसे वो और वैदेही अस्सी घाट पर गए थे..? फिर अचानक वैदेही का गायब हो जाना। फिर कॉलेज में गुड़िया का बदला बदला सा व्यवहार। और अचानक वैदेही के गायब होने का कारण । फिर आज सब कुछ वैदेही का उसे बताना। एक सांस में राघव सब कुछ बयां कर गया। उसने अपनी आवाज को भरसक कोशिश कर के धीमा ही रक्खा था। जिससे घर में मौजूद नौकर, नौकरानी कहीं ना सुन ले। राघव अपनी बात कहता जा रहा था और उसकी बात आगे बढ़ने के साथ ही ठाकुर गजराज की भाव भंगिमा बदलती जा रही थी। बेटे और बहु पर अविश्वास का कोई कारण नहीं था उनके पास। आखिर वैदेही इतना बड़ा झूठ क्यों बोलेगी..? उन्हे बहू वैदेही पर पूरा यकीन था। पर गुड़िया..? उनकी प्यारी बेटी गुड़िया..? ऐसा करेगी इसकी कल्पना उन्होंने सपने में भी नही की थी। गुड़िया को उन्होंने बेटे से भी बढ़ कर पढ़ाया लिखया। जहां समाज के सारे लोग जल्दी जल्दी बेटी का ब्याह कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते है। वहीं उन्होंने समाज की परंपरा के खिलाफ जा कर गुड़िया को शहर पढ़ने भेजा। कितना विश्वास किया उन्होंने..? और गुड़िया ने उनके विश्वाश का ये सिला दिया……?

ठाकुर साहब का रोम रोम क्रोध से सुलगने लगा। वो खुद पर काबू करने की भरसक कोशिश करते हुए राघव से बोले, "हम ठाकुर अपनी आन बान और शान के साथ ही जीते हैं और उसके साथ ही इस दुनिया से जाते है। तुमने और बहू ने बहुत बड़ी गलती की जो मुझे तुरंत नही बताया।"

राघव अपनी मजबूरी जाहिर करते हुए बोला,

"पापा पहले तो वैदेही दुविधा में थी की वो हमें बताएं या नही। क्योंकि गुड़िया ने उसे अपनी कसम दी थी की भाभी आप ये बात किसी को भी मत बताना।" इस कारण से ही वैदेही ये फैसला नही कर पा रही थी वो हमें बताएं या नही। फिर जब उसने सोचा तो उसे लगा की घर की इज्जत और प्रतिष्ठा से बढ़ कर कोई कसम नही हो सकती। फिर उसने आज मुझे सब कुछ बताया। इसी वजह से हमने गुड़िया की शादी की बात शुरू की थी। हमने सोचा की अगर आप शादी के लिए राजी हो जाते है तो हम आपको इन सब बातो से अनजान ही रखेंगे। पर जब आपने सिरे से शादी का प्रस्ताव खारिज कर दिया तो मजबूरन मुझे सब कुछ बताना पड़ा।"

दोनो पिता पुत्र बिलकुल खामोश बैठे थे। अब दोनो को ये ही एक उपाय सूझ रहा था कि जितनी जल्दी हो सके गुड़िया की शादी कर दी जाए।

राघव से लाड़ली बेटी गुड़िया की सच्चाई जान कर ठाकुर गजराज सिंह बेहद आहत हुए। सीधा उनके दिल पर चोट लगी थी। उनका गुड़िया पर अटल विश्वास आहत हुआ था। एक पिता का सम्मान आहत हुआ था।

राघव काफी देर तक उनके पास बैठा रहा। राघव ने बड़े ही प्यार से ठाकुर साहब को चादर ओढ़ाई। और फिर उन्हे ये तसल्ली दे कर की आप चिंता मत करिए "पापा ईश्वर सब ठीक करेगा।" वापस अपने कमरे में चला आया।

वैदेही आतुरता से अपने कमरे में राघव की प्रतीक्षा कर रही थी। उसे बेचैनी थी ये जानने के की आखिर पापा ने उसकी बात का यकीन किया या नहीं। अगर यकीन किया उसकी बातों का तो फिर उनका क्या रिएक्शन हुआ....?

जैसे ही राघव कमरे में आया उससे सब्र नही हुआ। पूछ बैठी,"क्या हुआ..? आपने बताया पापाजी को…? उन्होंने यकीन किया..?" बेसब्री से वैदेही ने राघव से पूछा।

राघव जो चिंतित था गुड़िया को लेकर। अब उसकी चिंता दो गुनी हो गई थी। क्योंकि अब उसे पापा की तबियत की फिक्र हो गई थी। राघव बोला, "पापा भला क्यों मेरी बात का यकीन नहीं करेंगे..? मैं गुड़िया का दुश्मन थोड़े ना हूं। अगर कोई बात उसके खिलाफ कहूंगा तो बेवहज नहीं कहूंगा। ये पापा अच्छे से जानते है। अब कल सुबह बात करते है। देखें क्या हल निकलता है..? बस पापा की तबियत ना खराब हो जाए। मुझे यही चिंता है।"

इसके बाद बड़ी देर तक राघव और वैदेही बातें करते रहे।

इधर ठाकुर गजराज सिंह की आंखों की नींद भी उड़ी हुई थी। उन्हे अब बस इस समस्या से निकलने का एक ही उपाय नजर आ रहा था। राघव और वैदेही की बात मान कर गुड़िया की जल्दी से जल्दी शादी तय कर दी जाए।

दूसरी सुबह उठते ही ठाकुर साहब ने राघव को बुलाया और अपने कुलपुरोहित को सादर ले आने को कहा। राघव ने किसी और को भेजने की बजाय खुद ही गाड़ी लेकर पंडित जी को लाना ज्यादा उचित समझा।

राघव पंडित जी को ले कर हवेली पहुंचा।

ठाकुर साहब उनकी ही प्रतीक्षा कर रहे थे। सम्मान सहित ठाकुर साहब ने पंडित जी को आसान दिया और चरण स्पर्श कर हाल चाल पूछा। कुछ इधर उधर की बातों के बाद वो मुद्दे की बात पर आ गए।

ठाकुर साहब पंडित जी को संबोधित करते हुए उनकी राय मांगते हुए बोले, "पंडित जी …! आप ये बताइए क्या गुड़िया की शादी कर दी जाए..?"

पंडित जी तो जैसे मन ही मन जान रहे थे की ठाकुर साहब यही कहने वाले है।

वो बोले,, "हां.. ! जजमान ! गुड़िया बिटिया की उम्र तो शादी लायक हो ही गई। उसके साथ की सभी बच्चियों की शादियां करवा चुका हूं मैं। आप ही बिटिया को पढ़ाने के फेर में पड़े हुए है।"

"हां पंडित जी ..! आपकी बात बिलकुल सही है। अभी तक मैं सोचता था की पहले बिटिया पढ़ लिख ले। शादी ब्याह होता रहेगा।"

थोड़ा सा ठहर कर, उन्हे अपने इस विचार परिवर्तन पर सफाई भी तो देनी थी। वो पुनः बोले, "पर अब मेरी तबियत ठीक नहीं रहती। जिंदगी का कोई भरोसा नहीं। कहीं ठकुराइन की तरह मैं भी गुड़िया के कन्यादान की इच्छा मन में ले कर ही ना इस दुनिया से चला जाऊं।"

ठाकुर साहब गंभीर स्वर में बोले।

पंडित जी ने ठाकुर गजराज सिंह को टोकते हुए कहा, "क्या.. जजमान..? कैसी उल्टी सीधी बातें कर रहें है आप। मरें आपके दुश्मन। आपकी लंबी उम्र होगी। आप तो सौ साल जीएंगे।"

ठाकुर साहब को पंडित जी ने तसल्ली दी।

अब तक संजू जलपान की चीजे लाकर टेबल पर लगा चुकी थी।

राघव भी वहीं मौजूद था। चाय पीते हुए वो पंडित जी से बोला, "पंडित चाचा जी..! आस पास कोई योग्य वर हो गुड़िया काबिल तो बताइए हमे।"

पंडित जी ने चाय की गिलास बगल रक्खा और अपना थैला खोल कर। कई फोटो निकली। फिर बारी बारी से उन लडकों के खानदान और उसके बारे में पिता पुत्र को बताने लगे।

रिश्ते सभी एक से एक बड़े घरों के थे। पर ठाकुर साहब को लड़का तो योग्य चाहिए था पर वो बहुत बड़े खानदान का या बहुत रईस नही होना चाहिए। कल को कोई बात हो तो वो उनके सामने विरोध न कर सके। वो अपनी संपत्ति देकर उसे अपने अनुसार चला सकें। ऐसा वर चाहिए था उन्हें।

क्या ठाकुर साहब को उनकी इच्छा के अनुसार वर मिला गुड़िया के लिए..? क्या गुड़िया इस बात को जन पाई की उसके पापा उसकी पढ़ाई बंद करा कर शादी की तैयारी कर रहें है.? पढ़ें अगले भाग में।

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