Secret Admirer - 53 books and stories free download online pdf in Hindi

Secret Admirer - Part 53

"मैने इतने साल उसकी आंखों की वोह चमक बहुत मिस की। मैं नही जानती की तुम दोनो के बीच यह रिश्ता कहां तक पहुंचा है, लेकिन मैने देखा है की तुम उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर जाति हो। अब मुझे वोह बेबस आदमी नही दिखता जो पहले मेरे पास आया करता था। मैं अब उस आदमी को देख रहीं हूं जो एक बार अपनी जिंदगी पूरी तरह से खो चुका था वोह अब फिर से उठने लगा है, जिंदगी जीना फिर से सीखने लगा है। मेरी तुमसे यही इल्तिजा है की हमेशा उसके साथ रहना। उसे तुम्हारी जरूरत है। और उसकी आंखों में देख कर मुझे यह एहसास होता है की वोह तुमसे बेइंतीहा मोहब्बत करता है। मैं जानती हूं की अगर महिमा भी हमें देख रही होगी, तोह वोह बहुत खुश हो रही होगी कबीर के लिए, की उसे तुम मिल गई। अल्लाह तुम दोनो को हमेशा खुश रखे।" उस बूढ़ी औरत ने अमायरा को दुआएं दी और अमायरा का गला मानो चोक हो गया ही। वोह कुछ बोल ही नहीं पा रही थी।

उसने सोचा भी नही था की यह डिनर इस तरह से खत्म होगा। रास्ते भर कबीर अमायरा से पूछता रहा की की महिमा की अम्मी ने उस से क्या कहा और वो बात टालती रही। वोह नही जानती थी की क्या बताए उसे। पहले तोह उसे बहुत गुस्सा आ रहा था कबीर पर की उन दोनो के शादी को लेकर जो समझौता हुआ था वोह महिमा की अम्मी को भी पता है, जबकि उन दोनो के अपने घरवालों को नही पता। लेकिन बाद में महिमा की अम्मी की बातें सुन ने के बाद उसे यह एहसास हुआ की कबीर उन्हे कितना अपना मानता है की उन्हे उसने यह समझाया की वोह उनकी बेटी को पीछे छोड़ कर क्यों आगे बढ़ रहा है। जो भी आज रात महिमा की अम्मी ने कहा था उस से वोह सब याद करते हुए अब अमायरा का सिर चकराने लगा था। उन्होंने उस से कहा था की अब कबीर खुश रहने लगा है, उसे उस की ज़रूरत है, और वोह उस से बहुत करता है।

वोह जानती थी की कबीर पहले के मुताबिक अब कुछ शांत था। कल की घटना ने, जब कबीर और वोह महिमा के शोक सभा में आए थे, अमायरा को यह यकीन दिला दिया था की कबीर को उसकी जरूरत है, वोह चाहता है की अमायरा हर कदम पर उसके साथ खड़ी रहे। पर क्या वोह सच में तैयार है, यह यकीन करने के लिए की कबीर उस से सच में बहुत प्यार करता है? की बाद में कबीर को आगे चल कर कोई पछतावा नहीं होगा की उसने सम्मोह को प्यार समझ लिया। और अपनी गलती रियलाइज होते ही वोह उसे छोड़ नही देगा। क्या वोह तब इस बात को बर्दाश्त कर पाएगी? क्या वोह सह पाएगी? यह तोह पक्का था की कबीर हर दिन, हर पल उसके नज़दीक बढ़ रहा है पर क्या वोह खुद तैयार है उसकी तरफ एक कदम बढ़ाने के लिए?
उसके एक भी सवाल का जवाब उसे नही पता था और ना ही वोह जानती थी की इसका हल कैसे ढूंढा जाए। वोह बस इतना जानती थी की वोह अब उस से दूर एक पल के लिए भी नही रह सकती थी। पर वोह यह नही जानती थी जो एहसास उसके अंदर उमड़ रहें हैं उसे क्या नाम दे, जो वोह उसके लिए महसूस करने लगी थी।
तभी उस के कानों में गाड़ी में बज रहे गाने की आवाज़ पड़ी। उसने महसूस किया की गाने के बोल उसकी व्यथा पर बिलकुल फिट बैठते हैं।

प्यार कोई बोल नही....

प्यार आवाज़ नही...

एक खामोशी है....
सुनती है कहा करती है...

सिर्फ एहसास है ये.... रूह से महसूस करो...

प्यार को प्यार रहने दो.... कोई नाम न दो...














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कहानी अभी जारी है...