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अपहरण - भाग १

चंदनपुर एक छोटा-सा गाँव था, जहाँ के लोग सीधे-सादे थे। अपनी मेहनत से कमाना, खाना और ख़ुश रहना, यही वहाँ का दस्तूर था। शांति के साथ रहने के लिए चंदनपुर आसपास के गाँव में बड़ा ही मशहूर भी था। गाँव का सरपंच अभिनंदन भी नेक दिल, बहुत ही अच्छे स्वभाव का इंसान था। वह हमेशा गाँव वालों की भलाई के लिए, गाँव के विकास के लिए, कुछ ना कुछ काम करता ही रहता था। गाँव के लोग उससे ख़ुश भी थे। पिछले 10 सालों से गाँव का मुखिया वही था।

उसका बेटा था रंजन, जो जवान हो रहा था। 16 साल का रंजन अपने पिता की दौलत, शोहरत का भरपूर फायदा उठाता था। गाँव की लड़कियों पर हमेशा उसकी बुरी नज़र रहती थी। आते-जाते उनके साथ छेड़खानी करना, उनके ऊपर अश्लील तंज कसना, दादागिरी करना, यह सब उसके रोजमर्रा के काम थे।  अभिनंदन उसके साथ हमेशा बहुत प्यार से पेश आते थे। उसे हमेशा समझाते भी थे लेकिन रंजन कभी अपने पिता की बातों पर ध्यान नहीं देता था। रंजन की इतनी घटिया हरकतों के विषय में अभिनंदन को ज़्यादा कुछ पता नहीं था। लोग उनका लिहाज करके रंजन की शिकायत करने उनके पास नहीं जाते थे। इसी बात का फायदा उठाकर रंजन दिन प्रति दिन और अधिक बिगड़ता ही जा रहा था। 

धीरे-धीरे रंजन के कारण अभिनंदन का प्रभाव गाँव में कम होने लगा। लोग आपस में चर्चा करते कि रंजन को अपने पिता की कुर्सी की गर्मी है, घमंड में चूर हो रहा है वह। यदि पिता की कुर्सी ही नहीं बचेगी तो घमंड भी चकनाचूर हो जाएगा। इस बार के चुनाव में उन्हें कोई दूसरा ही मुखिया चुनना होगा। रंजन की बढ़ती बदतमीजी देखते हुए सब लोग अब सत्ता में परिवर्तन चाह रहे थे। चुनाव का समय भी निकट ही था।

इसी बीच गाँव के सबसे धनाढ्य व्यक्ति वीर प्रताप सिंह इन्हीं सब कारणों के कारण चुनाव में खड़े हो गए। अभिनंदन की ही तरह वह भी सुलझे हुए, बहुत ही नरम स्वभाव के इंसान थे। किसी भी पद पर ना होते हुए भी गाँव वालों के लिए हमेशा कुछ ना कुछ करते ही रहते थे। उनका बेटा राज बिल्कुल अपने पिता की ही तरह सुलझा हुआ इंसान था। गाँव वालों के बीच उसका बहुत अच्छा प्रभाव था। गाँव की लड़कियाँ रंजन से बहुत परेशान थीं, लोग भी परेशान हो रहे थे। इसी परेशानी के चलते अभिनंदन बुरी तरह से चुनाव हार गए। वीर प्रताप की जीत तो निश्चित ही थी, वह जीत गए और सरपंच का सारा काम संभालने लगे।

गाँव के लोग रंजन की शिकायत करने उनके पास आते। एक दिन वीर प्रताप ने अभिनंदन को अपने घर बुलाया और रंजन के विषय में आई हुई शिकायतें उन्हें बताईं। उन्होंने कहा, "अभिनंदन साहब अपने बेटे पर लगाम लगाइए। गाँव के लोगों को परेशानी हो रही है। आपका बेटा भी आपके हाथ से निकल रहा है। यह लगाम लगाने का सही वक़्त है वरना आप और आपका परिवार किसी बड़ी मुसीबत में आ जाएँगे।"

"वीर प्रताप जी आपको क्या लगता है मैं उसे समझाता नहीं लेकिन वह है कि मानता ही नहीं। मैं ख़ुद तंग आ चुका हूँ। मैं जानता हूँ मेरी हार का असली कारण मेरा बेटा रंजन ही है। सोचता हूँ उसे शहर भेज दूँ लेकिन डर लगता है वहाँ जाकर तो वह और भी स्वतंत्र हो जाएगा। बस इसी डर से नहीं भेजता।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः