Halal or Halal? in Hindi Classic Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ह ला ला या हलाल ?

ह ला ला या हलाल ?



शबाना का शौहर अब्बास जब से बेरोजगार हुआ था मोहल्ले के लम्पट बदमाशों से उसकी दोस्ती गहरी हो गयी थी। उन्हीं में से एक कादिर उसका लंगोटिया यार बन गया था। पढ़ी लिखी शबाना एक फर्म में सहायक मैनेजर के पद पर कार्यरत थी। गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह चल रही थी।

कादिर व मोहल्ले के लम्पटों की सोहबत में अब अब्बास को शराब की लत भी लग चुकी थी। मोहल्ले की गलियों से होता हुआ शराब का दौर अब उसके घर में भी चलना शुरू हो गया था।

कादिर अक्सर उनके घर में ही डेरा जमाए रहता। उसकी भूखी निगाहें शबाना के जिस्म को मानो कुरेदती ही रहती थीं। शाम को थकीमांदी शबाना घर आकर अब्बास और कादिर की तीमारदारी में जुट जाती। कादिर की गंदी निगाहों को पहचानते हुए शबाना ने उसे अपने घर पर न लाने की अब्बास से दरख्वास्त भी की लेकिन दोस्ती और शराब का भूत उसके दिलोदिमाग पर हावी था सो वह शबाना की बातों पर क्या ध्यान देता ?

इसी मुद्दे को लेकर आये दिन अब्बास और शबाना में तकरार होने लगी जो दिनोदिन बढ़ती ही गयी।

एक दिन शाम के समय अभी कादिर अब्बास के घर नहीं पहुंचा था कि तभी उसको लेकर शबाना और अब्बास के बीच एक बार फिर बहस शुरू हो गयी। रोज रोज की बहस का अंत कर देने की नियत से अब्बास ने गुस्से की अधिकता में चिल्लाकर कह दिया ” तंग आ गया हूँ मैं तुम्हारे इस रोज रोज के झगड़े से। में तुम्हें तलाक देता हूँ । तलाक ! तलाक ! तलाक ! “

इतना कहकर अब्बास जैसे ही मुड़ा उसने सामने कादिर को खड़े पाया जिसके हाथों में शराब की नई बोतलें चमक रही थीं।
बोतल एक तरफ रखते हुए कादिर ने अब्बास के दोनों कंधों को पकड़कर झिंझोड़ते हुए कहा ” अब्बास भाई ! ये तुमने क्या कर दिया ? शबाना भाभी को तलाक दे दिया ? अरे इसके पहले कुछ तो सोचा होता । आज उसी की कमाई से तुम्हारा घर चल रहा है और तुमने उसे ही तलाक दे दिया । तौबा करो और उनसे फिर से निकाह कर लो । “

अब अब्बास को भी हकीकत का भान हुआ । उसका गुस्सा ठंडा पड़ चुका था । दिमाग के किसी कोने से आवाज आई ‘ अबे बेवकूफ ! तैश में आकर तलाक दे तो दिया है लेकिन भूल गया कि आज तक तू उसीकी कमाई पर ऐश करता आया है । अब किसकी कमाई पर ऐश करेगा ? ‘

अपनी स्थिति का भान होते ही अब्बास के चेहरे पर पछतावा स्पष्ट दिखने लगा था । लेकिन अब क्या हो सकता था ? अब तो कादिर गवाह भी बन चुका था उनके बीच हुए तलाक के मामले का । यदि वह नहीं होता तो शायद वह आपस में बात करके मामला रफादफा भी करा देता लेकिन अब कादिर को कौन समझायेगा ? थोड़ी ही देर में अब्बास के दिलोदिमाग में ढेर सारी बातें कौंध गयी और अगले ही पल वह मूर्ति सी बनी खड़ी हुई शबाना के कदमों में झुक कर उससे माफी की मांग कर रहा था । ” शबाना ! मुझे माफ़ कर दो शबाना ! में गुस्से में बहक गया था । तुम भी तो बार बार कादिर का नाम लेकर मुझे उकसाती रहती हो जबकि तुम अच्छी तरह जानती हो वह मेरा पक्का यार है । हर घड़ी मेरा साथ निभाता है और तुम उसीकी बुराई करती हो । अब देखो न ! इतना होने के बाद भी मेरा वही दोस्त तुम्हारी तरफदारी कर रहा है और तुमसे फिर से निकाह करने के लिए कह रहा है । ऐसा करो जो कुछ हुआ उसे भूल जाते हैं । ठीक है ? ऐसा मान लेते हैं न मैंने कुछ कहा और ना ही तुमने कुछ सुना । कोई तलाक वलाक नहीं और न ही कोई निकाह ! और फिर किसे पता है कि यहां क्या हुआ है ? “

तभी उसे टोकते हुए कादिर बोल पड़ा ” लहौलविलाकुवत मियां ! ये तुम क्या कह रहे हो ? अल्लाह के हुक्म से नाफरमानी की तुमने सोची भी कैसे ? क्या तुम्हें अल्लाह का बिल्कुल भी खौफ नहीं है ? माना कि तुमने गुस्से में आकर शबाना भाभी को तलाक दे दिया और अब अपनी गलती मानते हुए फिर से उनसे निकाह करना चाहते हो लेकिन आखिर शरीयत भी कोई चीज है ? और इस्लाम में रहते हुए तुम शरीयत की अनदेखी नहीं कर सकते । अब अगर तुम शबाना भाभी से निकाह करना ही चाहते हो तो तुम्हें उनका किसी से ‘ निकाह ए हलाला ‘ करवाना ही पड़ेगा और उसके बाद ही तुम्हारा और भाभी का निकाह जायज माना जायेगा । हाँ ! हालात को देखते हुए एक विचार मेरे मन में आ रहा है । अगर तुम चाहो तो मैं अभी इसी वक्त शबाना भाभी से ‘ निकाह ए हलाला ‘ करने के लिए तैयार हूं । किसी को कानोंकान कोई खबर भी नहीं होगी । समाज में रुसवाई और खर्चे से भी बच जाओगे और तुम्हारा निकाह भी जायज हो जाएगा । अल्लाह के सामने सुर्खरू बने रह पाओगे । बस एक रात की ही तो बात है और उसके बाद शबाना भाभी फिर से हमेशा के लिए तुम्हारी । एक दोस्त के नाते मैं तुम्हारी इतनी मदद करने के लिए तैयार हूं अगर तुम्हें ऐतराज ना हो तो ? नहीं तो फिर जैसे तुम्हारी मर्जी । मुझे क्या ? ” कहने के बाद कादिर बाहर दरवाजे की तरफ लपका ।

आगे बढ़कर अब्बास उसका रास्ता रोकते हुए बोला ” दोस्त ! तू ही बता भी रहा है और तू ही ठुकरा भी रहा है । मुझे फख्र है तेरे जैसे दोस्त पर जो हर वक्त काम आता है चाहे जैसा भी वक्त हो । अब ज्यादा ना इतरा और शबाना से निकाह ए हलाला कर ले और फिर सुबह उसे तलाक दे देना ताकि में उससे निकाह कर सकूं । यह सारी बात सिर्फ हम तीनों के बीच ही रहेगी । जमाने की रुसवाई से बचने का यही सबसे मुफीद तरीका है । चल अब फटाफट तैयार हो जा ! तुम दोनों मियां बीवी और में काजी ! बस ! और किसी की क्या जरूरत ? “

और सामने ही खड़ी बूत बनी पढ़ी लिखी शबाना कोई फैसला नहीं कर पा रही थी । क्या वह इस मजहबी जुनून हलाला के नाम पर खुद को किसी वहशी दरिंदे के हाथों हलाल हो जाने दे ?

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Lalita Sharma

Lalita Sharma 7 months ago

Dr Shailendra Prajapati
jadav hetal dahyalal

yeh aurate bol kyun nahi deti chalo achhcha hai jaan chhuti meri ab mai kisi aur se nikah karne k liye aazad hun.aur tum mere liye gair mard ho.

Hasmukhbhai

Hasmukhbhai 9 months ago

Ranjan Rathod

Ranjan Rathod 9 months ago