Udaan - 2 - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

उड़ान - चेप्टर 2 - पार्ट 4

काव्या अपने पापा के इस तरह के बर्ताव से हैरान थी।वह जिस नेहा मैम की इतनी इज्जत करती थी उनके बारे में ऐसा सुन कर उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। पर उसके दिल में नेहा मैम की जो छवि थी वह उसके पापा के इन कड़वे बोलो से धूमिल नहीं हो पाई थी। वह अब भी मानती थी की नेहा मैम जैसी दिल की अच्छी औरत कभी ऐसा नहीं कर सकती थी। वह मन ही मन ये सोच के बहुत खुश थी की नेहा मैम उसकी मम्मा है। पर उसके मन में अभी भी एक शंका थी जिसे वह समझ नहीं पा रही थी। तभी कमरे में रीतू दीदी आ गई। उसने दरवाजे को अंदर से बंद कर दिया। और धीमी आवाज में बोला।
"काव्या बिटिया मेरी बात ध्यान से सुनना"
"हां बोलो रीतू दीदी"
"बेटा ...ये बात मुझे तुम्हें बहुत पहले ही बता देनी चाहिए थी पर में डरती थी की कही तुम मुझे गलत न समझ बैठो" रीतू ने गंभीर स्वर में कहा
" ऐसी क्या बात है दीदी जल्दी कहो... यूह पहेलियां ना बुझाओ " उत्सुकता से काव्या ने कहा
"जब तुम 7 साल की थी तब तुम्हारी मम्मी तुम्हें छोड़ गई पर तुम्हारे उस टाइम से मैं तुम्हारे साथ हूं...ये कोई संयोग नही है बेटा... ये मेरा तुम्हारी मां को दिया गया वादा है की मैं हमेशा तुम्हारा ख्याल अपनी बच्ची जैसा रखूंगी।" रीतू ने उदास आवाज में कहा
"आप क्यू बात को घुमा रही है दीदी...क्या कहना चाहती हो आप साफ साफ क्यू नही कहती " विस्मित हो काव्या ने कहा।
"देखो बेटा , मुझे नहीं पता तुम्हारे पापा ने तुम्हारे दिमाग में क्या क्या भरा है,.,.पर जहा तक मैं जानती हु इन सब में तुम्हारी मां की कोई गलती नहीं है...तुम तो उनकी आंखों का तारा थी...तुम्हे छोड़ कर जाने का फैसला उनका अपना नही था...उनका बस चलता तो वो हमेशा तुम्हारे साथ रहती साये की तरह पर वक्त को कुछ और ही मंजूर था। नेहा दीदी ही तुम्हारी मां है काव्या बेटा... पर देखो उनकी किस्मत ...तुम सामने थी फिर भी वो तुमसे ये तक नही कह सकी की वो तुम्हारी मां है।
डरती थी शायद तुम्हे फिर से खोने से। जैसे बचपन में एक बार खो दिया था उसी तरह वो तुम्हे इस बार नही खोना चाहती थी।" बोलते बोलते रीतू दीदी की आंखे भर आई थी
"क्या हुआ था ...बताएगी भी या बस रोती रहोगी "
"तुम्हारी मां अनाथ आश्रम के बच्चो के लिए काम करती थी। उन दिनों तुम्हारे पापा का बिजनेस इतना अच्छा नहीं चलता था। और तुम्हारी मां भी पूरे दिन तुम्हारे नखरे उठाने में और अपने पति की सेवा करने में बिजी रहती थी। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। पैसे कम थे पर खुशियां बहुत थी। जान बस्ती थी तुम में ..,तुम्हारे मां बाबा की। पर वक्त की ऐसी बुरी नज़र लगी की सब धीरे धीरे बर्बाद हो गया। तुम्हारे पापा को अमीर बनने का शोक चढ़ गया। जल्द से जल्द अमीर बनने की चाह में उन्होंने गलत रास्ते पर चलना मंजूर कर लिया। नेहा दीदी ने उन्हें लाख समझाया पर वो नहीं माने।और एक दिन पुलिस उन्हे पकड़ कर ले गई।
कुछ दिन जेल से लौट आने पर उन्होंने देखा की नेहा और काव्या दोनों घर पर नहीं हैं। उन्होंने दोनो को बहुत दिनों तक ढूढा तब जा कर उन्हे दोनो मेरे घर पर मिले। मेरी मम्मी नेहा दीदी के घर पर काम करती थी तो उनको बचने का सबसे अच्छी जगह मेरा घर ही मिली। पर साहब ने नेहा दीदी को ढूंढ लिया और वो उन्हे जबरदस्ती घर ले गए।
नेहा मैम किसी भी सूरत में अपनी बच्ची को ऐसे आदमी के साथ रखने के पक्ष में नहीं थी पर साहब के दिल से अमीर बनने का जुनून गया ही नहीं।
उन्होंने नेहा मैम को जबरदस्ती घर से निकल दिया और कहा कि अगर वो आज के बाद काव्या के आस पास भी नजर आई तो वो काव्या को जान से मार देंगे।
साहब के पागलपन को देखते हुए अपनी बच्ची की जान बचाने के लिए वह मजबूरन अपनी बेटी से दूर हो गई। इस दरमियान उन्होंने बहुत कोशिश की अपनी बच्ची से मिलने की पर साहब के पागलपन के आगे एक मां हार गई थी। एक बार तो जब चुपके से नेहा दीदी तुमसे मिलने आई तो साहब ने बंदूक तान दी तुम्हारे माथे पर।और उन्होंने गोली चला दी थी वो तो अच्छा हुआ मम्मी वक्त पर आ गई और बंदूक का निशाना चूक गया। उस दिन के बाद नेहा दीदी ने पूरी तरह से तुमसे दूरी बना ली। वह तुम्हारी जान की दुश्मन नहीं बनना चाहती थी। वह ये भी जानती थी की तुम्हारे पापा तुम्हारी परवरिश में कोई कमी नहीं रखेंगे। पर फिर भी उन्होंने तुम्हारा ख्याल रखने के लिए मुझे भेज दिया। तब से अब तक में तुम्हारे साथ हूं।
मेने देवी के रूप में पूजा है हमेशा नेहा दीदी को।
तुम्हारे साथ न हो कर भी उन्होंने तुम्हारे अंदर अपने रंग भरे हैं...तुम बिलकुल अपनी मां जैसी हो,...प्यारी और मासूम।
और तुम्हारे कॉलेज में आने पर ही सिर्फ तुम्हारा साथ पाने के लिए उन्होंने अनाथ आश्रम से अपना वक्त निकाल कर कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया ताकि तुम्हें रोज देख सके...यकीन मान बेटा नेहा दीदी से ज्यादा तुम्हे इस दुनिया में कोई नही चाह सकता।"
इतना कह कर रीतू दीदी का गला रुध गया और वह फूट फुट कर रोने लगी।
काव्या की आंखों से अविरल अश्रुधारा बह निकली।
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कितना दर्द छुपा रखा था मां ने अपने दिल में। वह इतना सुनने के बाद खुद को रोक नहीं पाई और चल दी अपनी मां से मिलने जो बरसो से अपनी बेटी का इंतजार कर रही थी।
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उधर नेहा उदास बैठी गहरी चिंता में थी
वह सोच रही थी की इस बार फिर उसने अपनी बच्ची को खो दिया।
तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई।
मॉं!
नेहा ने मुड़ कर देखा तो काव्या खड़ी थी।
"क्या बोला तुमने वापस कहो तो" नेहा ने रुआसी हो कर बोला
मॉं ! कहते ही काव्या नेहा से लिपट गई और गले मिल दोनो मां बिटिया रोने लगी।
हवाओ में अलग ही सुकून था आज।
बहुत देर तक दोनो इसी तरह खड़ी रही जब अलग हुई तो मानो दोनो बरसो से साथ थी।
थी नेहा की नज़र दूर खड़े जीवन पर गई। वह अपनी आंखों में आंसू लिए खड़ा था
शायद पछतावे की आग में जल रहा था।
नेहा कुछ बोलती इससे पहले ही वह हाथ जोड़ के नेहा के पैरो में गिर गया।
" नेहा मुझे माफ कर दो...आज मुझे बोलने दो नेहा , मैं जानता हूं मेरी गलती की कोई माफी नहीं हैं ,मेने बरसो तक एक बेटी को अपनी मां से दूर रखा...पर तुम यकीन मानो जब तक मुझे इस बात का अहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मैं तुम्हे खो चुका था नेहा, काव्या को नहीं खोना चाहता था। मैं गलती पर गलती करता गया और इतना बुरा बन गया तुम्हारी नज़रो में ... उस दिन कॉलेज में तुम्हे काव्या के साथ देख में डर गया। फिर से अपने छोटे से परिवार को टूटने नही देना चाहता था। इसी डर से तुम्हे थप्पड़.... इतना कह जीवन रोने लग गया । उसकी आंखों से दुख और पछतावे के आंसू निकल रहे थे। नेहा ने सच्चे आंसू देख जीवन को माफ कर दिया।
पर वह जीवन के साथ रहने के लिए राजी नहीं हुई।
तब जीवन ने कहा "मैं जानता हू नेहा तुम सोच रही होगी की मेरे पास सारा पैसा बईमानी का है...पर ऐसा नहीं है, जिस दिन मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ उसी दिन मेने अपनी सारी पॉपर्टी एक हॉस्पिटल बनाने में लगा दी। मुंबई में बना है वो हॉस्पिटल जिसका नाम तुम्हारे नाम से है। मेने उसके बाद ईमानदारी से काम करना शुरू किया और भगवान की दया से आज सब कुछ है मेरे पास...सिवाए तुम्हारे ।" जीवन की आवाज में दर्द था।
नेहा एक साइकोलॉजिस्ट थी तो उसकी नज़र से कुछ भी बचना मुमकिन नही था।
उसने तो इतने सालो से भगवान से बस एक दुआ की थी की किसी भी तरह उसका परिवार फिर से एक हो जाए।
उसने जीवन की तरफ हाथ बढ़ा कर अपनी बाहें फैला दी।
काव्या और जीवन दोनो एक साथ नेहा के गले लग गए
और मौसम खूशमिजाज हो उठा।

To be continued......