BOYS school WASHROOM - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

BOYS school WASHROOM - 24

अभी तो बोर्ड पेपर होने में चार-पांच महीने है, फ़िर पता नहीं अभी से फेयरवेल की ज़रुरत ही क्या थी! ना तो ये बेवक़्त का फेयरवेल होता ना ही हम आज ऐसे यहाँ होते…..प्रज्ञा बाहर देखते हुए हताश होकर बोलती है।


आंटी यहाँ हमारे स्कूल में ऐसा ही होता है...मैंने भी जब यहाँ से अपनी इंटर की थी तब भी इसी वक़्त फेयरवेल पार्टी हुई थी।


लेकिन उसकी कोई वजह भी तो होगी गुंजन? अविनाश


हाँ अंकल वो अब कुछ टाइम में बच्चों के प्री-बोर्ड एक्साम्स शुरू हो जाएंगे और फ़िर प्रैक्टिकल वगेरा...जिसके बाद टाइम ही नहीं बचता और प्री-बोर्ड के बाद से ही काफ़ी बच्चे स्कूल आना छोड़ देते हैं इसलिए यहाँ फेयरवेल पार्टी पहले ही कर देते हैं ताकि बाद में किसी को दिक्क़त ना हो।


आज कल के स्कूल भी ना पता नहीं क्या-क्या करते रहते हैं….और ये वॉचमैन पता नहीं कहाँ मर गया...नील कमरे से बाहर निकलते हुए बोलता है।


अरे!पापा भी ना…


सही कहा नील ने,पता नहीं क्या-क्या होने लगा है अब..,...प्रज्ञा तुम कब तक ऐसे ख़डी रहोगी इदर बैठ जाओ आकर बस कुछ घंटो ही की और बात है, सुबह होते ही हम लोग ढूँढ़ना शुरू कर देंगे बच्चों को।


सुबह तो ठीक है अविनाश लेकिन ये चारों तरफ़ पानी तो देखो...यहाँ तक पानी आ चुका है….हमारा स्टेशन को डूब ही गया होगा….वैसे मुझे कभी इतनी टेंशन नहीं होती लेकिन आज पता नहीं क्यूँ?......


"ये लीजिये सर चाय" पानी से तर प्रकाश एक हाथ में सामान की थैली पकड़ा होता है और एक हाथ में कस कर बीड़ी का बंडल।


अविनाश झट से थैली लेकर उसमें से सामन निकालते हुए "चाय की थैली में से पानी टपक रहा है प्रकाश, नशे में हो क्या!"


मौका देखते ही नील भी धीमी आवाज़ में एक ताना मार देता है "चाय, पानी में डूब गई, लेकिन बीड़ी पर एक बूँद तक नहीं गिरी"


जिसका जवाब प्रकाश तुरंत देते हुए कहता है "सर!पानी पड़ ही रहा है, नींद में आग,... आप लगा दिए हो, तो अब हम ज़रा धुआँ ही उठा दें"


नील दो घूँट चाय पीता ही है की प्रकाश की बात उसे गुस्सा दिला देती है और वो चाय का कप फेंक प्रकाश की तरफ़ दौड़ पड़ता है।दोनों में हाथापाई शुरू होती इससे पहले ही अविनाश, नील और प्रकाश के बीच में आ जाता है।


"हद में रहकर बात कर समझा, दो मिनट नहीं लगेंगे उठा कर बंद करदूंगा अंदर फ़िर गर्माता रहियो अच्छे से।"


हद पार आप कर रहे हैं और हद में रहने के लिए हमें बोल रहे हैँ….और ऊपर से वर्दी की गर्मी दिखा रहे हैं।


""ऐ प्रकाश चुप!...और नील तुम काबू में करो अपने गुस्से को ज़रा ऐसे लड़-झगड़ कर किसी को कुछ नहीं मिलने वाला यहाँ""


वही तो हम भी कह रहे हैं अविनाश सर!किसी को कुछ नहीं मिलेगा ऐसे!


"तेरी तो (नील एक बार फ़िर गुस्से से)छोडूंगा नहीं तुझे"


"अविनाश इसी ने कुछ किया है हमारे बच्चोँ के साथ…."


अविनाश झल्ला कर -नील! नील! बोहत हुआ दिमाग़ से काम लो ज़रा….और प्रकाश तुम भी अपना मुँह बंद करलो बिल्कुल….


इतने में ही गुंजन "आंटीीी…"


प्रज्ञा अचानक से बेहोश होकर गिर पड़ती है….और गुंजन भी उसे देखते-देखते ही बेहोश हो जाती है...अविनाश और नील…..दोनों को देखने लगते हैं…"प्रज्ञा! प्रज्ञा क्या हुआ",,.... "गुंजन!गुन्नू बेटा…"

इस से पहले की कोई कुछ समझ पाता नील के सर पर कोई किसी चीज़ को ज़ोर से मारता है और खून की लकीर उसकी आँख के ऊपर से होते हुए गुंजन के चेहरे पर गिरती है और फ़िर वो भी वहीं गिर जाता है….अविनाश को अँधेरे में कुछ साफ़ नहीं दिखता लेकिन उसे किसी के हंसने की आवाज़ सुनाई देती है…

और उसके सर अचानक से घूमना शुरू कर देता है...गूंजती हुई आवाज़ में कुछ पल के लिए दो लोगों की हंसी उसे सुनाई देती है फ़िर वो भी वहीं ढेर हो जाता है।