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भ्रम - भाग-12

राजकुमारी मोहिनी के साथ जंगल से लौटने के बाद सेजू ने किसी राज का बिना किसी मेहनत के पता लग जाने की बात कहानी के पिछले भाग में की थी, चलिये देखतें हैं वह राज आखिर था क्या।

भाग-12 "भ्रम"

(मीनपरि एक मिथ्या।)

सेजू एक छोटे से कमरे में बैठी हुई थी। जहां एक पलंग बिछा हुआ था और कुछ बक्से रखे हुए थे, पास ही एक पानी का मटका रखा हुआ था जिसपर एक पीतल का गिलास औंधा था। वहां एक खिड़की थी जिसपर पर्दा था, शायद सेजू वहां किसी का इंतजार कर रही थी। किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी और सेजू ने दौड़ कर दरवाजा खोला। "जल्दी आओ!" सेजू ने कहा और जयंत के अंदर आते ही दरबाजे अच्छी तरह बंद कर लिए। "आज पता चल गया कि रानी सचमुच एक बुरी औरत है, और मीनपरि के साथ इन्ही ने धोखा किया है।"

"तुम यह इतने यकीन के साथ कैसे कह सकती हो?" जयंत ने सेजू से कहा। "आज जो मैंने देखा, वह अगर तुम देख लेते तो तुम भी बिना हिचकिचाहट के यह बात बोल देते।" सेजू ने कहा।

"लेकिन ऐसा क्या देखा तुमने।"

"आज मोहिनी मुझे डराने के लिए यहां के जंगल में ले गई थी, जहाँ उसने मुझे एक डरावने पेड़ के अंदर मतलब उसके खोखले तने में जाने को कहा, मैं उसमे जैसे ही घुसी मैंने देखा कि रानी वहां कुछ तंत्र विधा कर रहीं थीं। कहने का मतलब जादू-टोना। मैं देखकर हक्की-बक्की रह गई। इतने मासूम चेहरे के पीछे इतनी घिनौनी सोच की औरत है!"

"लेकिन हम इसी बात से कैसे यह कह सकते हैं कि रानी गलत हैं और मीनपरि सही।"

"जयंत! जो किताब मुझे रानी और राजा के कमरे मिली थी उसमें भी तो यहीं लिखा है न कि रानी का असली रूप क्या है।"

"हाँ! मगर वह एक जादुई किताब है सेजू! और वह केवल अंधेरे में पढ़ी जा सकती है, और हम ऐसी किताब पर कैसे भरोसा करले। हो सकता है उसमें सब उल्टा लिखा हो।"

"प्लीज जयंत! कुछ भी मत बोलो। अगर रानी अच्छी है तो वह उस जगह पर आज क्यों थी और वहां ऐसे काम क्यों कर रहीं थी, और तुम उनका रूप वहां यदि देखते तो जानते कि वह क्या हो सकतीं हैं और क्या नहीं।"

"हां ठीक है तुम्हारी बात मान लेता हूँ, मगर यह बताओ कि हम रानी को गलत साबित करेंगे कैसे, मेरा मतलब राजा को कैसे बतायेंगे की यह असली रानी नहीं बल्कि 'मीन' एक बुरी औरत है। और हां! एक बार यह किताब तो हमें राजा और रानी के कमरे से ही मिली है, तो यह सवाल भी उठता है कि इस किताब को अभी तक राजा ने क्यों नहीं पढ़ा? और अगर पढा है तो उसने रानी मतलब मीन को सजा क्यों नहीं दी।
कहीं ऐसा तो नहीं कि राजा भी इस षड्यंत्र में शामिल हो और प्रजा को कुछ और ही नजर आ रहा हो?"

"नहीं जयंत! मैं जबसे इस महल में आयीं हूँ, क़ई दासियों और अन्य लोगो से राजा के प्रेम के बारे में सुन चुकी हूं, मैंने सुना है कि राजा, रानी से बहुत प्रेम करते हैं और उन्होंने मीन मतलब रानी की सौतेली बहिन को इसलिए मीनपरि बनने की सजा दी क्योकि उसने राजा से विवाह करने के लिए रानी को जहर देकर मारने की कोशिश की थी।
अगर राजा को रानी से प्रेम नहीं होता तो वह पहले ही मीन को अपनी दूसरी रानी बना सकता था, यहां तो क़ई राजाओं की अनगिनत रानियां भी हैं मगर यहां के राजा की सिर्फ एक ही रानी 'रति" बस हैं। राजा को अगर पता चल जाये कि जो अभी उनके साथ रानी के भेष में रह रही है वह उनकी रानी रति नहीं बल्कि उनकी और इस पूरी प्रजा की दुश्मन 'मीन' है तो राजा यह बात एक पल को भी सहन नहीं करोगे।"

"अरे वाह! मेरे देश के बारे में जितना मैं नहीं जानता उतना तो तुमने दो दिन में जान लिया। कामाल कि लड़की हो। मगर याद रखो यह केवल और केवल तुम्हारा भ्रम है, क्योकि मेरी दुनिया के बारे में मुझसे ज्यादा तुम कभी नहीं जान सकती।"

"तुम चुप करोगे! यह चाहे जो भी है मैं सही को सही करके ही दम लुंगी।"

"हां! जरूर!
इसके लिए सबसे पहले हमें राजा तो नकली रानी के बारे में बताना होगा वो भी इस तरह की उन्हें हमपर पूरा विश्वास हो जाये। क्योकि अगर गलती से भी राजा हम पर भड़का तो, समझो तुम भ्रम में ही मर जाओगी।"

"भ्रम में कोई नहीं मरता..भ्रम खुद मर जाता है।" सेजू ने कहा।

"हाँ! जो भी हो...हमें अपना काम बहुत ही सावधानी से करना होगा।" जयंत ने धीरे से कहा।

"इस काम को कैसे करना है यह भी मैंने सोच लिया है जयंत। बस अब देर है तो करने की।" सेजू के चेहरे पर एक जुनून सा दिखाई देने लगा था।

"कैसे?" जयंत ने पूछा।

"यह जानना तुम्हारे लिए जरुरीं नहीं है अभी, जरूरी है राजा को किसी बहाने ऐसी जगह ले जाना जहां सिर्फ अंधेरा हो और वहां राजा के साथ रानी मतलब मीन कतई न हो।" सेजू ने अलग ही अंदाज में कहा।

"कहीं तुम उस किताब को तो राजा तक पहुँचना तो नहीं चाहतीं।"

"बिल्कुल यही चाहतीं हूँ मैं, जयंत कैसे भी करके यह काम बना दो, पर यह काम ऐसे हो कि राजा को जरा भी शक न हो कि वह किताब राजा से जानबूझ कर पढ़वाई जा रही है। और हम पर तो बिल्कुल भी शक नहीं होना चाहिए।" सेजू ने कहा।

"लेकिन यह होगा कैसे? वो राजा हैं, मैं तो उनका कोई खास नौकर भी नहीं हूँ।"

"इसका मतलब तुमसे इतना भी नहीं होगा अब?" सेजू झल्ला कर बोली।

"ठीक है देखता हूँ क्या हो सकता है।" जयंत ने सेजू से कहा।

क्रमशः....