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अपंग - 62

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"आई नो,समटाइम्स आई बिकम वैरी रूड ---" रिचार्ड भानु का हाथ अपने हाथ में लेकर कह रहा था | उसे वाक़ई अफ़सोस भी होता कि वह जिसको प्रेम करता है ,उससे कई बार ऐसा व्यवहार आख़िर क्यों कर बैठता है ?

हर इंसान के सहन करने की एक सीमा होती है फिर वह अनमना होने लगता है | यह मनुष्य जीवन की एक स्वाभाविक गति होती है |

"मुझे लगता है ,आई एम सो--सो टायर्ड ,आई कांट थिंक प्रॉपर्ली ---" रिचार्ड उसका हाथ सहलाते हुए कह रहा था और वह गुमसुम हो डबडबाई आँखों से उसकी ओर ताके जा रही थी |

"ऐसा मत कहो रिचार्ड,मैं वैसे ही इस अजनबी शहर में अकेली महसूस करती हूँ , --"

"तुम अब भी अजनबी महसूस करती हो--इतने दिन यहाँ रहने के बाद,इतनी इंटीमेसी के बाद भी ?" रिचार्ड जैसे तड़पकर बोल उठा था | अपने प्यार को इस बेबसी की हालत में देखकर वह वैसे ही परेशान हो जाता था |

"मैं शायद कुछ और कहना चाहती थी लेकिन ----" वह फिर से गुम सी हो गई |

भानु ने थककर आँखें मूँद लीं और रिचार्ड ने उसका सिर अपने सीने से सटा लिया | इस प्रकार के क्षण उन दोनों की ज़िंदगी में ही बहुत कम आते थे लेकिन जितने भी होते थे एक सुकून से भर देने वाले होते थे --दोनों को ,जबकि भीतर न जाने कितने द्वन्द भरे रहते थे | इस छुअन की लरज से थरथराते उनके मन व देह उन्हें कभी घड़ी भर का जैसे सुकून देते तो कभी बेचैनियों के झंझावात में उन्हें डुबकी लगवा देते |

इस अहसास को महसूस करते हुए आज भानुमति टूटकर रो पड़ी थी जैसे शब्दों का अकाल था और आँसुओं का सैलाब कुछ कहने की चेष्टा कर रहा हो | रिचार्ड ने उसके आँसू पोंछकर भानु का मुँह चूम लिया |

कभी-कभी कोई बातअचानक ही बस हो जाती है ,होने के बाद ही पता चलता है कि वह हो चुकी है | दोनों अच्छी तरह अपने प्रेम को महसूस करते लेकिन न जाने क्यों दिलों के गुबार को सीने में समेटे रखते | दोनों जानते,समझते थे लेकिन ----एक सीमा पर आकर अटक जाते |

उस दिन जैनी पुनीत को खिला-पिलाकर बाहर घुमाने ले गई थी और ये दोनों अपनी चिंताओं में मसरूफ़ थे ,दिल की धड़कनों को न जाने कैसे संभालते हुए |

बाते-बातें और बातें --उस दिन जैसे दोनों एक-दूसरे की सारी पीड़ाओं को पी जाना चाहते थे | न जाने कब जैनी पुनीत को लेकर आई और वह 'गुड़-नाइट' करके अपने कमरे में यह कहते हुए गया |

"स्टे हीयर ओनली ,आई वॉन्ट टू सी यू इन द मॉर्निंग ---" कहकर उसने भानु और रिचार्ड को 'गुड़ नाइट किस' दिया और जैनी के साथ वहाँ से निकल गया था |

फिर जैसे उसे कोई करंट लगा हो ,पुनीत जैनी का हाथ छुड़ाकर पीछे लौटा ,रिचार्ड के गले में अपनी बाहें लपेट दीं और जैसे बहुत आजिज़ी करते हुए बोला ;

"प्लीज़,बी माई डैड ---" फिर से उसके गाल पर किस करके चला गया | जैनी उस कमरे के दरवाज़े के दूसरी ओर खडी थी |

ये दोनों अवाक् से उसे जाते हुए देखते रह गए थे | ऐसा तो उसने कभी नहीं कहा,किया था |

भानु और रिचार्ड दोनों ही एक अजीब सी स्थिति में थे | दोनों एक दूसरे की बाहों में ऐसे लिपटे हुए थे मानो कोई शैतान उन्हें अलग कर देगा | अपने रोने-गाने को एक-दूसरे में समेटते हुए वे उस दिन न जाने कैसे उस दुनिया में जा पहुँचे थे जो वैसे अजनबी न थी लेकिन वे दोनों उसे अपनी दुनिया में शामिल करने में हमेशा ही हिचकिचाते रहे थे | ये ,अचानक ही कैसे नाज़ुक क्षण आ गए थे उनकी इस चुप्पी भरी दुनिया में ??