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अपंग - 69

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अकेली होने के बावज़ूद भी रिचार्ड ने उसे अकेले कहाँ रहने दिया था | रोज़ाना ही उससे बात करके भानु महसूस करती कि वह उसके पास ही है |

फ़ैक्ट्री खूब अच्छी तरह चल रही थी, पुनीत बड़ा हो रहा था| भानु ने लाखी को बारहवीं कक्षा पास करवा दी थी | भानु चाहती थी कि लाखी बी.ए कर ले |

सब कुछ ठीक-ठाक ही चलने लगा था, बस कभी-कभी भानु को बहुत अकेला लगता | रिचार्ड भी कुछेक महीनों के अंतराल में चक्कर मार ही लेता |

" दी--दी --एक बात बताऊँ ?" लाखी भागती-भागती भानु के पास आई, हड़बड़ाकर बोली ;

'बोल न --"

"सदाचारी महाराज बड़े शिव मंदिर के बड़े पुजारी बन गए हैं ---"

"बड़े मंदिर के पुजारी ?सदाचारी ---?मतलब---जो टीले पर वो---शिब-मंदिर है --उसके ?" उसने अपने हाथ की ऊँगली से दिशा-निर्देश किया |

"क्या बात है ? राजनीति में बेवकूफ़ बनाने से पेट नहीं भरा इसका ?अब भक्तों की लाइन लगाएगा ---नालायक कहीं का, माँ को कैसे जाल मे फँसा रखा था ---" भानु सदाचारी की हरकतों को कभी प्रश्रय नहीं दे सकी, आज तो उसका मन कर रहा था, अभी जाकर उस बेहूदे का मुँह नोच ले |फिर यही सोचकर चुप रह जाती थी कि कीचड़ में पत्थर फेंकने से कमल तो टूटकर उसके हाथ में आ नहीं जाएगा, उसके अपने ही शरीर पर कीचड़ पड़ेगा हुए गंदगी फैलाएगा |

इस आदमी के कारण ही उसके माँ-बाबा को जाने कितने त्रासों को झेलना पड़ा था | उसे बहुत-बहुत-बहुत कोफ़्त थी उस सदाचारी नाम के सद आचार पर | ऐसे लोगों के नाम भी कैसे इतने बनावटी होते हैं, वह सोचती | फिर खुद ही अपने ऊपर लानत भेजती, पूरी दुनिया ऎसी थोड़े ही है जो इस पंडित जाति के सब लोगों पर वह अपना क्रोध उतारने के मूड में आ जाती है |

पता नहीं भानुमति, पुनीत और रिचार्ड का कैसा और किन जन्मों का संबंध था जो वे तीनों कभी एक-दूसरे से खुद को अलग ही नहीं समझ पाते | कोई संबंध नहीं, कोई नाम नहीं, मुलाकात भी कितनी कम, अब तो वो भी कभी-कभी जब रिचार्ड भारत आता | फिर भी उनका अस्तित्व जुड़ा नहीं था, लगता --एक ही मुहब्बत की रेशमी डोर से बंधे हुए हैं ---| जब कभी उसे राजेश के साथ बिताए पुराने दिन याद आते, वह उन्हें कलम के माध्यम से कागज़ पर उतारती और हल्की हो जाती | जब कभी उसे रिचार्ड की याद आती, उन्हें भी वह कलम से कागज़ पर उतारती, कभी शब्दों के रूप में तो कभी चित्रों के रूप में ! उसके चित्र की एक आँख का आँसू जैसे उसकी चुगली कर जाता |

एक वर्ष की अवधि में कई बार आ गया था रिचार्ड और हफ़्ते-दस दिन रहकर चला भी जाता था | उसे देखकर सबके चेहरों पर रौनक आ जाती थी और जब तक वह यहाँ रहता पूरा वातावरण जैसे खिला-खुला लगता |

मि. दीवान को भी रिचार्ड बड़ा प्यारा लगा था | वह फ़ैक्ट्री जाता और सबसे बातें करता | उसने सबको अपना मित्र बना लिया था | उसकी सरलता देखकर मि. दीवान ने कई बार भानु से अपने मन की इच्छा ज़ाहिर भी की थी लेकिन भानु थी कि टाल ही जाती थी | दीवान अंकल ने घुमा फिराकर कितनी ही बार भानु को संकेत किया कि पुनीत को बाबा की ज़रुरत है | भानु उनका

इशारा खूब समझती लेकिन कोई उत्तर न देती | धीरे-धीरे वे और उनके जैसे और वैल -विशर --सबने चुप्पी लगा ली |

एक दिन लाउडस्पीकर पर चिल्ला-चिल्लाकर एनाउंस किया जा रहा था ;

"बहनों-भाइयों ! आप सबको यह जानकार प्रसन्नता होगी कि आपके शहर के सबसे बड़े शिव मंदिर में एक बड़ी पूजा की योजना की गई है | यह पूजा शिव-रात्रि के अवसर पर शुरू की जाएगी और पूरे सप्ताह तक चलेगी | आप सबको इस महापर्व की पूजा में सप्रेम आमंत्राण है | आप सभी प्रभु चरणों में शीष नवाकर अपने जीवन को सफ़ल बनाएँ |"