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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 1

भाग - 1
जुड़ी रहूँ जड़ों से
शहर की सबसे आलीशान कोठी में एक तरफ बैडमिंटन कोर्ट है जहाँ अभी भी कुछ लोग काम करे रहे है। इसी के दूसरे छोर पर दो आउट हाऊस भी बने हुए है। दोनों आउट हाऊस हरियाली से घिरे हैं जो कोठी की सुन्दरता बढ़ाते हैं। उन दोनों आउट हाऊस में कोठी में काम करने वाले माली काका और चौकीदार का परिवार रहता है। इसीलिए दोनो घरों से रोशनी के साथ ही हँसी की आवाज भी आ रही है।
कोठी में दूसरी तरफ बहुत ही बड़ा लॉन है जिसके बीच में नरम दूब है, तो चारों ओर हरी-भरी बेल और रंग-बिरंगे फूलों वाले पेड़-पौधे हैं । लॉन के एक कोने में आर्टिफिशल घास से बना बहुत ही सुंदर और बड़ा छाता लगा है जिसके नीचे कुर्सियाँ और टी टेबल रखा है और दो तरफ बड़े सुंदर झूले रखे हुए हैं।
हर तरफ बिखरी संपन्नता के बीच वहीं पार्क में लगे झूले पर बैठी है उदास और गुमसुम मालकिन तबस्सुम। वो ख्यालों में इस कदर डूबी है कि हाथ में लिए मोबाइल की घंटी तक को नहीं सुन पा रही।
अचानक मोबाइल से आती रोशनी देखकर उन्हें मोबाइल की घंटी बजने का ध्यान आया और उन्होंने फोन उठाया। फोन उनकी फूफी का था जो इसी शहर में रहती है कहने को जरूर वो उनकी फूफी है पर बातें ऐसे करती हैं जैसे पक्की सहेलियाँ हों। एक बार दोनों बात करने लगती हैं तो फोन को घंटे भर पहले नहीं छोड़तीं।
फूफी का फोन आते ही तबस्सुम के मायूस चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी और वो बच्चों की तरह चहक उठी - "फूफी मुझे तो ये सोच कर बहुत खुशी हो रही है कि दस साल बाद अपनों से मिलूंगी। कितने साल हुए अपना मुल्क छोड़े। बहुत याद आती है अपने वतन और अपनों की है….भाईजान-भाभीजान, नाजनीन आपा तस्नीम आपा बि… …...।"
" हाँ.. हाँ तब्बू बस कर सब आ रहे हैं, पर…
" पर क्या फूफी?"
"वो.. असगर नहीं आ रहा…!"
"क्या! भाईजान नहीं आ रहे, पर क्यों ? "
"वही हमेशा का राग.…..!"

बात करते-करते ना चाहते हुए भी तबस्सुम का ध्यान आउट हाउस से आ रही हँसी की ओर चला ही जाता है। फूफी की बात सुनकर वो फिर उदास हो जाती है और कहती है - "फूफी आप कहिए ना भाईजान से, यही तो मौका था जब उनसे मिल लेते….।" हमेशा की तरह दोनों की बातें आज भी लंबी चलने वाली है।
इधर आउटहाऊस के साथ लगी पार्किंग में एक लंबी गाड़ी खड़ी है जिस पर प्रेस लिखा है। माली काका और उनकी पत्नी लॉन में बिछी पाइपें समेट ही रहे थे कि
मेन गेट के बाहर से हार्न की आवाज आई। आवाज सुनते ही चौकीदार ने गेट खोला तो एक-एक करके दो गाड़ियाँ अंदर आई ।
गाड़ियों के आते ही मालकिन के पास शांति से बैठे दोनों कुत्ते ब्राउनी और टाइगर भौंकते हुए उनकी ओर दौड़ पड़े और - "अच्छा ख़ुदा हाफ़िज़ फूफी फिर करते हैं आपसे बात।" कहते हुए तबस्सुम ने भी फोन काट दिया।
पहली गाड़ी से उतरे शहर के सबसे पुराने और सबसे बड़े चार्टटेंड अकाउंटेंट यानी घर के मालिक मिस्टर अयूब खान और दूसरी गाड़ी से उतरे उनके साहबजादे सी.ए.अमन खान। ब्लेक सूट-बूट पहने खान के गालों पर जहाँ सफेद दाढ़ी पर्सेनल्टी में चार चांद लगा रही थी वहीं ग्रे सूट पर ब्लैक दाढ़ी अमन के लुक को स्टाइलिश बना रही थी।
क्रमश...
सुनीता बिश्नोलिया