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अपंग - 74

74

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अगले दिन सुबह 'जागो मोहन प्यारे' की शास्त्रीय धुन वातावरण में जैसे एक पवित्र, सौंधी बयार घोल रही थी | भानु कब की नीचे आ चुकी थी | नहा-धोकर उसने तुलसी चौरा में दीप व अगरबत्ती लगा दी थी | उसके काले, लम्बे, घने बाल खुले थे जो उसके चेहरे पर पवन के झौंके के कारण मंडरा रहे थे | वह बरामदे की उस आराम कुर्सी पर बैठी आज का अखबार उलट-पलट रही थी जिस पर बाबा बैठा करते थे |वह कुर्सी आगे-पीछे झूलती रहती | आजकल पुनीत को भी जब वह कुर्सी ख़ाली मिल जाती, वह उस पर अपना अधिकार जमा लेता | उसके सामने की मेज़ पर एक खाली प्याला चाय का रखा था जिसे शायद उसने अभी ख़तम किया था |

"गुड़ मॉर्निग ---" भानु को पता भी नहीं चला, कब रिचार्ड ऊपर से दबे पाँव उतर आया था | वैसे भी वह कुछ अधिक सॉफिस्टिकेटेड था | उसका उठना-बैठना, चलना-फिरना, बातचीत करना, किसी को कुछ समझाना, यहाँ तक कि डाँटना तक इतना सलीकेदार होता कि कभी भानु सोचती कि इससे अच्छा तो वह चुप ही रह ले | कुछ तो रौब पड़े | उसने रिचार्ड को इतने दिनों में दो-एक बार ही गुस्से में देखा था, वह भी बड़े ठंडे गुस्से में या फिर उसके अपने यानि भानु के लिए ही |

"गुड़ मॉर्निग रिच ---" भानु ने कहा और उठने लगी |

"क्यों ? कहाँ जा रही हो ? ?

"नहीं, कहीं नहीं ---"

"तो बैठो न, पुनीत स्टिल स्लीपिंग --ही इज़ वैरी टायर्ड ---" उसने मुस्कुराकर कहा |

भानु के मुख पर मुस्कान तैर गई | उसका बेटा कमाल का ही है |पागल हो जाता है, वह रिचार्ड को देखकर | यह भी कोई पुराना रिश्ता ही होगा, इसीलिए तो वर्ना ---

"क्या सोच रही हो ?" रिचार्ड ने भानु की आँखों में देखकर पूछा |

"नथिंग मच---कॉफ़ी ? "

रिचार्ड मुस्कुरा दिया | भानु के टॉपिक बदलने की आदत से वह अब अच्छी तरह परिचित हो चुका था |

"लाखी ---" भानु ने आवाज़ दी और दो मिनट में लाखी कॉफ़ी लेकर हाज़िर थी |

" तुम बाजीगर ---नो--नो---जादूगर हो क्या ?" रिचार्ड ने मुस्कुराकर लाखी से कहा |

भानुमति ज़ोर से हँस पड़ी | रिचार्ड ने चौंककर उसकी ओर देखा --

"व्हाट हैप्पंड ? कुछ गलत है क्या?" उसने पूछा |

"नहीं--नहीं --कुछ ख़ास नहीं ---" भानु ने उत्तर दिया लेकिन रिचार्ड को उत्तर ठीक नहीं लगा | उसने ज़रूर कुछ गड़बड़ तो की है --

"बोलो न ---" रिचार्ड ने कहा |

"अरे ! दोनों एक ही तो हैं ---डोंट ट्राई टू बी पर्फेक्निस्ट ---" भानु ने हँसकर कहा |

"गुड मॉर्निंग रिचार्ड भैया ---" वह रिचार्ड को ऐसे ही पुकारती थी |

"गुड मॉर्निंग डीयर ---देखो न, तुम्हारी दीदी ने अर्ली मॉर्निंग मेरी खिंचाई कर दी है -- " फिर बोला ;

" तुम जादूगर हो --इतनी जल्दी कॉफ़ी कैसे बनाकर ले आई ?"

"मुझे मालूम था आप आने वाले हैं, दूध गर्म था | आपकी आवाज़ सुनी और दीदी के कहने से पहले ही मैंने आपके मग में कॉफ़ी डाल दी थी |" लाखी ने मुस्कुराकर कहा |

"स्मार्ट गर्ल --"रिचार्ड ने उसके हाथ से कॉफ़ी का मग लिया तो उसने ट्रे भानु की तरफ़ बढ़ा दी |

"अभी तो चाय पी है तेरे साथ ---|" उसने ख़ाली प्याले की ओर इशारा किया |

"फिर भी मुझे पता है आप रिचार्ड भैया को कंपनी ज़रूर देंगी ---" उसने हँसकर कहा और कॉफ़ी मेज़ पर रखकर, ख़ाली चाय का कप वहाँ से उठाकर भाग गई | भानु और रिचार्ड एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा उठे | कितना समझने लगी है यह लड़की !

"लाखी , कुक आंटी को बोलना, आज कचौरी और आलू की चटाके वाली सब्ज़ी बनाएंगी --" अचानक ही रिचार्ड ने कहा तो भानु को कुछ आश्चर्य हुआ | वह कभी कहता नहीं था इस तरह --वह कहा करता था ;

"मैं जब भी इंडिया आता हूँ--ओवर-वेट होकर जाता हूँ | उसने अपने पेट पर दो बार टैप किया |

" अच्छा है न !"

"न--न --ओवर वेट इज़ नॉट गुड़ --" उसने मुस्कुराते हुए तुरंत उत्तर दिया |

"अच्छा लगता है जब तुम इंडियन फ़ूड इतने चटकारे लेकर खाते हो | वैसे, एक बात ज़रूर सोचती हूँ तुम इतना स्पाइसी फ़ूड कैसे खा लेते हो, वो भी इतना एन्जॉय करके --"भानु ने पूछा |

"ओह ! --आई एंजॉय एवरी इंडियन ----आई मीन ---बिकॉज़ ऑफ़ माई मदर ---" उसने शरारत करने की कोशिश तो की थी लेकिन बीच में चुप हो गया था |

भानु आँखें नीची करके मुस्कुरा दी फिर बोली ;

"लेकिन --वो तो ---"

"हाँ, यह तो सही है लेकिन माँ डैड को आदत डाल गई थीं न --इतने स्पाइसी फ़ूड की | " उसने एक लम्बी साँस भरी |

अब तो भानु को रिचार्ड कहीं से भी अमेरिकन नहीं लगता था | उसने कितनी जल्दी अपने आपको बदल डाला था कि भानु को इतना विश्वास ही नहीं होता कि यह बंदा वही मनमौजी रिचार्ड है जिसके चारों तरफ़ लड़कियाँ घूमती रहती थीं | उसके जीवन में आए दोनों पुरुष इतने अविश्वसनीय रूप से बदल गए थे | एक राजेश और दूसरा ये रिचार्ड ----

"डैडी का एक इंडियन कुक अभी ज़िंदा है, वही उनका खाना बनाया करता था | माई डैड वाज़ सो डैडिकेटेड टु माई मॉम --आफ़्टर हर ऑल्सो ही वाज़ सो मच इनवॉल्ड --ही ऑल्वेज़ यूज़ टू फ़ील दैट शी वॉज़ ऑल्वेज़ विद हिम ---" वह बहुत संवेदनशील हो गया था |

"क्या बात है तुम काफ़ी उदास हो ---" भानु ने कहा |

"आज मॉम-डैड की एनिवर्सरी है --उन दोनों को कचौरी-आलू बहुत पसंद थे | आफ़्टर मॉम डैडी को हमेशा यही लगता रहा कि वह उनके साथ हैं | मैं उनके रिलेशन की बहुत रेस्पेक्ट करता हूँ|" " ओह ! इसीलिए उदास हो ---?" भानु ने पूछा |

"यस, याद तो आती है उनकी ?" ---" फिर दो पल रुककर बोला ;

"आदमी कितने चेहरे बदल लेता है ---!" उसकी लंबी साँस सुनकर भानु परेशान हो गई |

"ऐसा तो क्या हुआ है रिच ?" उसने रिचार्ड के कंधे पर हाथ रखकर उसे सांत्वना दी |

"रुक हैज़ लेफ़्ट द जॉब ----"

अचानक कहाँ से कहाँ आ गया था वह ? अपने मॉम-डैड की बात कर रहा था और रुक पर आ गया | कुछ तो बहुत बड़ी बात हुई थी ---

"इसलिए परेशान हो ----?" भानु ने धीरे से पूछा |

" ओ ! नो-नो---"

"फिर ?"

"एक्च्वली रुक ने मेरे एक इंडियन मैनेजर से प्रेम किया ---राजेश अंदर चला गया था तो उसको फँसा लिया इसने ---" वह वास्तव में दुखी था |

"दैट फुलिश परसन हैज़ लेफ़्ट हिज़ वाइफ़ | ही सैंड हर हियर इन इंडिया ---"उसने अपने किसी मैनेजर के बारे में भानु को बताया |

"ओह ! तुम क्या रुक को ढूंढने आए हो ?"

"नहीं। ऐसा तो नहीं है | मैं इसमें क्या कर सकता हूँ ?यस आई वांटेड टु गिव सम मनी टू द लेडी--शी मस्ट बी इन नीड-" वह चिंतित था |

आख़िर कौन किसी के बारे में इतनी गंभीरता से सोचता है, वह भी एक विदेशी इंसान अपने भारतीय कर्मचारियों के बारे में ?रिचार्ड किसी अलग किस्म का ही बंदा था |

"वह यहाँ पर ही है ----" भानु उसे बताया |

"मीन्स---रुक इज़ हीयर --, इसी शहर में ?" उसका मुँह फटा रह गया |