Ramayana books and stories free download online pdf in Hindi

रामायण

श्रद्धेय रामानंद सागर कृत रामायण को असाधारण लोकप्रियता देखकर यह सोचता हूँ कि आखिर उनकी रामायण में ऐसा क्या है जो लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है!!! 80 के दशक के उत्तरार्ध में कर्फ्यू जैसे हालात पैदा कर देने वाला धारावाहिक और उसके पात्र कालजयी कैसे हो गए????

आलोचक की दृष्टि से देखा जाए तो भगवान राम के बाल्यकाल की भूमिका निभाने वाला बालक, मर्यादा पुरुषोत्तम के सुदर्शन, अलौकिक व्यक्तित्व के साथ बिल्कुल भी न्याय नहीं कर पाता है। अरुण गोविल कभी भी किशोर और नव-युवा राम जैसे नहीं दिखे बल्कि हमेशा ही प्रौढ़ और परिपक्व लगे।शुरुआती कुछ एपिसोड में वे भावहीन दिखते हैं, उनके चेहरे पर सदैव एक ही भाव रहता है, निर्विकार सा। हालांकि बाद में वे अपने रोल के साथ पूरा न्याय करते हैं। इतना कि भगवान राम और अरुण गोविल एक दूसरे के पर्याय बन गए।

रामानंद सागर कृत रामायण धारावाहिक में महाराज दशरथ, कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी, सुमंत्र जैसे गौण पात्र भगवान राम के जन्म से लेकर उनके वनगमन तक एक ही वय के लगते हैं। निर्माता ने उनके केश तक सफेद करने की जहमत नहीं उठाई। महाराज दशरथ की भूमिका निभाने वाले कलाकार का facial expression अत्यंत साधारण है और शत्रुघ्न का किरदार तो बहुत ही कमजोर बन पड़ा है। अगर सिर्फ राम कथा की ही महिमा होती तो इसके बाद भी रामायण की कथा पर आधारित कई धारावाहिक बने। लेकिन वे तमाम धारावाहिक रामानंद सागर कृत रामायण के पासंग भी नहीं रहे।

तो फिर अत्यंत कम बजट और सीमित संसाधनों में रामानंद जी ऐसा क्या जादू कर गए जो पुनः कोई दोहरा नहीं पाया??

मुझे तो इस प्रश्न का एक ही उत्तर सूझ पड़ता है और वह यह कि बाकी सभी निर्माताओं ने दिमाग लगाकर रामायण का व्यावसायिक निर्माण किया उन्होंने पैसा कमाने के लिए धारावाहिक बनाया। जबकि रामानंद सागर स्वयं एक समर्पित रामभक्त थे, उन्होंने रामायण दिल से बनाई, भक्ति से बनाई। कॉस्ट्यूम, सेट, डिज़ाइन, पात्र गौड़ रहे, भाव सर्वोपरि रहा।इसीलिए रामानंद सागर कृत रामायण सीधे लोगों के दिलों में उतर गई और रिकॉर्ड तोड़ सफलता अर्जित की, ब्लॉकबस्टर बन गई।

भावविभोर भक्त की मर्यादा तो भगवान को रखनी ही पड़ती है!!!!!!!


श्रद्धेय रामानंद सागर कृत रामायण को असाधारण लोकप्रियता देखकर यह सोचता हूँ कि आखिर उनकी रामायण में ऐसा क्या है जो लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है!!! 80 के दशक के उत्तरार्ध में कर्फ्यू जैसे हालात पैदा कर देने वाला धारावाहिक और उसके पात्र कालजयी कैसे हो गए????

आलोचक की दृष्टि से देखा जाए तो भगवान राम के बाल्यकाल की भूमिका निभाने वाला बालक, मर्यादा पुरुषोत्तम के सुदर्शन, अलौकिक व्यक्तित्व के साथ बिल्कुल भी न्याय नहीं कर पाता है। अरुण गोविल कभी भी किशोर और नव-युवा राम जैसे नहीं दिखे बल्कि हमेशा ही प्रौढ़ और परिपक्व लगे।शुरुआती कुछ एपिसोड में वे भावहीन दिखते हैं, उनके चेहरे पर सदैव एक ही भाव रहता है, निर्विकार सा। हालांकि बाद में वे अपने रोल के साथ पूरा न्याय करते हैं। इतना कि भगवान राम और अरुण गोविल एक दूसरे के पर्याय बन गए।

रामानंद सागर कृत रामायण धारावाहिक में महाराज दशरथ, कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी, सुमंत्र जैसे गौण पात्र भगवान राम के जन्म से लेकर उनके वनगमन तक एक ही वय के लगते हैं। निर्माता ने उनके केश तक सफेद करने की जहमत नहीं उठाई। महाराज दशरथ की भूमिका निभाने वाले कलाकार का facial expression अत्यंत साधारण है और शत्रुघ्न का किरदार तो बहुत ही कमजोर बन पड़ा है। अगर सिर्फ राम कथा की ही महिमा होती तो इसके बाद भी रामायण की कथा पर आधारित कई धारावाहिक बने। लेकिन वे तमाम धारावाहिक रामानंद सागर कृत रामायण के पासंग भी नहीं रहे।

तो फिर अत्यंत कम बजट और सीमित संसाधनों में रामानंद जी ऐसा क्या जादू कर गए जो पुनः कोई दोहरा नहीं पाया??

मुझे तो इस प्रश्न का एक ही उत्तर सूझ पड़ता है और वह यह कि बाकी सभी निर्माताओं ने दिमाग लगाकर रामायण का व्यावसायिक निर्माण किया उन्होंने पैसा कमाने के लिए धारावाहिक बनाया। जबकि रामानंद सागर स्वयं एक समर्पित रामभक्त थे, उन्होंने रामायण दिल से बनाई, भक्ति से बनाई। कॉस्ट्यूम, सेट, डिज़ाइन, पात्र गौड़ रहे, भाव सर्वोपरि रहा।इसीलिए रामानंद सागर कृत रामायण सीधे लोगों के दिलों में उतर गई और रिकॉर्ड तोड़ सफलता अर्जित की, ब्लॉकबस्टर बन गई।

भावविभोर भक्त की मर्यादा तो भगवान को रखनी ही पड़ती है!!!!!!!