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अपंग - 77

77

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अचानक भानुमति के कमरे के दरवाज़े पर नॉक हुई |

"प्लीज़ गैट अप ---इट्स 4 ----" लगता है रिचार्ड सारी रात सोया ही नहीं था |

"इट्स टू अर्ली ---"कमरे में से आवाज़ आई |

"नो--प्लीज़ गैट अप---बी रेडी ---"

"हम्म---कमिंग ---"

"आई एम गोइंग डाउनस्टेयर्स ---कम फ़ास्ट "कहकर वह नीचे उतर गया | भानु ने उसके नीचे उतरने की पदचाप सुनी | वह फटाफट बाथरूम में चली गई | उसका दिल भी तेज़ी से धड़क रहा था |

रिचार्ड को नीचे देखकर लाखी की ऑंखें खुल गईं | वह किचन के पास वाले कमरे में सोती थी |कोठी की साइड में बरामदे के नीचे कुछ सीढ़ियाँ उतरकर दो छोटे कमरे बने हुए थे जिनमें चौकीदार का परिवार रहता था | इसीलिए लाखी को नीचे सोने में अकेलापन नहीं लगता था | माँ-बाबा के जाने के बाद चौकीदार की पत्नी खाना बनाने लगी थी | चौकीदार कई वर्षों से था और बगीचे के साथ घर की भी पूरी तरह देखभाल करता था | बच्चे न होने से लाखी उनके लिए बच्ची सी थी और वह भी उनका बहुत सम्मान करती थी |

बगीचे में कुछ-कुछ दूरी पर बल्ब लगे हुए थे जिनकी रोशनी बरामदे तक आ रही थी फिर भी रिचार्ड ने बरामदे की छोटी बत्ती जला दी थी जिससे तुरंत ही लाखी की ऑंखें खुल गईं |

"गुड़ मॉर्निग लाखी ---" रिचार्ड ने कुर्सी खींचकर बैठते हुए कहा |

"गुड़ मॉर्निंग रिचार्ड भैया ----"

लाखी ने उसकी बात का जवाब तो दिया लेकिन वह बेहद नींद में थी | हाथ -मुँह धोकर आई और रिचार्ड से चाय-कॉफ़ी के लिए पूछा |

"यस, टू कप चाय प्लीज़, दीदी भी आ रही है --" और वह भानु का इंतज़ार करने लगा |

उधर से भानु सीढ़ियों से उतरी, इधर से लाखी दो कप चाय ट्रे में ले आई थी |

"अरे, लाखी !तू भी जाग गई ---?" भानु भी बैठ गई थी | चाय के प्याले अब दोनों के हाथों में थे |

"डिड यू टेक बाथ ? सो अर्ली ?" रिचार्ड ने भानु की ताज़गी देखकर कहा |

"हम्म--सोचा, मंदिर जा रहे हैं तो ----" रिचार्ड धीमे से मुस्कुराया और चाय सिप करने लगा |

भानु जानती थी रिचार्ड ने गई रात अमेरिका बात तो की थी लेकिन उसने इस विषय पर उससे कोई चर्चा नहीं की थी | न ही भानु ने उससे कुछ पूछा था | चाय पीकर दोनों खड़े हुए | भानु ने लाखी से कहा कि वह ऊपर चली जाए, कहीं पुनीत की आँखें खुल गईं तो वह शोर मचा देगा | और बरामदे की सीढ़ियों से नीचे उतर गए |

"कौन ?" चौकीदार के कमरे से आवाज़ आई |

"हम हैं --मंदिर जाना है --"

"ठहरिए बीबी, मैं आता हूँ ---"

"कार लूँ ----?" भानु ने रिचार्ड से पूछा |

"कोई शार्ट कट है, यू टोल्ड मी ---" रिचार्ड ने कहा

"हाँ, है न --गार्ड भैया पीछे, बाग़ के सीढ़ियों वाले पीछे के रास्ते का गेट खोलना पड़ेगा | "

"आप लोग चलिए, मैं चाबी लेकर आता हूँ ---" चौकीदार ने कहा और अपने कमरे में चाबी लेने चला गया | शाम को पीछे और आगे दोनों गेट्स बंद कर दिए जाते थे | सुबह आगे के गेट का छोटा भाग खोल दिया जाता, कोई गाड़ी आनी-जानी होती तब ही पूरा गेट खुलता था | पीछे का तो तभी खोला जाता जब किसी को पहाड़ियों से चढ़कर मंदिर जाना होता |

चौकीदार ने जल्दी से उनके आगे जाकर बगीचे के पीछे का गेट खोल दिया था |

"बीबी ! गेट खुला रखना है --या ---?"

"हाँ, भैया, खुला ही रखो | हम लोग मंदिर में चक्कर मारकर आते हैं | बाहर से बंद कर दते हैं, हम लोग खोल लेंगे | " भानु ने गेट के दूसरी तरफ़ से कुंडा बंद कर दिया और दोनों आगे बढ़ गए | कुछ ही कदम पर मंदिर में ऊपर जाने की सीढ़ियाँ थीं |

"जी, बीबी---" चौकीदार पीछे घूमकर कोठी की ओर बढ़ गया |

अभी वातावरण में अँधेरा पसरा हुआ था लेकिन आकाश से झुटपुटा सा झाँकने लगा था | नीचे से मंदिर की बत्तियाँ जगमग करती दिखाई दे रही थीं | हाल ही में शिवरात्रि होकर चुकी थी, मंदिर को बहुत सुन्दर सजाया गया था जिसका प्रभाव अभी भी दिखाई दे रहा था |

उस झुटपुटे में पवन का सुगंधित झौंका उन दोनों के शरीर से टकराकर एक अजीब सी संवेदना भर रहा था | रिचार्ड के मन और तन में भानु के और करीब होने की ललक जागी | वह भानु का हाथ पकड़कर पहाड़ी पर बने पत्थर के चौंतरे पर बैठ गया | उसका शरीर कंपकपा रहा था | उसने भानु का हाथ अपनी तरफ़ खींचकर उसे अपने पास बैठा लिया | भानु के नहाए शरीर व बालों की सुगंध उसको अपनी ओर खींच रही थी | भानु ने उसके कंधे पर सिर रखकर दो मिनट आँखें मूँद लीं | युगल प्रेमी एक अजीब सी मन:स्थिति में थे | अचानक सीढ़ियों पर लोगों की पदचाप सुनाई दी |वे संभलकर बैठ गए | रिचार्ड भारतीय सलीकों से खूब वाकिफ़ था |आसमान से कुछ अधिक उजाला झाँकने लगा था, नीचे से और भक्तगण चढ़ने की आवाज़ें आने लगी थीं | भानु की कोठी के पिछले गेट के दोनों ओर कुछ गलियाँ सी थीं | शॉर्टकट से चढ़ने के लिए लोग इन गलियों का स्तेमाल करते थे |

पदचाप से दोनों चौंककर एलर्ट हो गए थे | रिचार्ड ने भानु की उड़ती हुई ज़ुल्फ़ों को एक बार बड़ी कोमलता से अपने हाथों से पीछे की ओर किया फिर इधर-उधर देखकर उसके गाल को चूम लिया | भानु हकबक रह गई फिर लजाकर उसने अपना चेहरा नीचे कर लिया | अब दोनों मंदिर की ओर जाने वाली सीढ़ियों पर चढ़ रहे थे | मंदिर में से घंटों की आवाज़ें ज़ोर-शोर से आनी शुरू हो गईं थीं और महसूस हो रहा था कि भक्तों की भीड़ बढ़ गई है |दोनों चुपचाप सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे | इतनी देर में किसी ने एक भी शब्द नहीं बोला था | बस, ह्रदय की धड़कनों से ही वे एक-दूसरे को महसूस कर रहे थे | लगभग दसेक मिनट में वे पहाड़ी मंदिर के प्रांगण में थे |