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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 25

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

25

 

 

चारों जन सिर जोङ कर बैठे । सलाह यही बनी कि जैसे भी हो , आज ही यह काम निपटा देना है । कल का क्या भरोसा । बात बिगङने में मिनट लगते हैं । सौ सज्जन तो दो सौ दुश्मन होते हैं । क्या पता , कौन बनी बनायी बात बिगाङने  जाय । इसलिए जो होना है , आज ही हो जाय ।

फैससला होते ही  शऱण सिंह तुरंत गुरद्वारे चल पङा । वहाँ उसने भाई जी से दो घंटे बाद आंनंदकारज कराने का आग्रह किया । भाई जी को मनाकर  लौटते हुए वह अपने शरीके के कई घरों में जयकौर को चुन्नी चढाने की रसम करके विदा करने की  बात कह कर न्यौता देता आया ।

इस बीच एक सूट अंग्रेज कौर ने अपनी पेटी से निकाला और एक सूट छिंदर कौर ने । एक सूट कोरा सिला पङा था जो देखने दिखाने की संभावना को देखते हुए पहले से सिलवा कर रख लिया गया था । इससे ज्यादा की न तो गुंजाइश थी , न समय । तो जैसे तैसे रसम निभाने की तैयारी हो गयी ।

छिंदर कौर तुरंत पङोस के दो चार घरों की औरतों को बुला लाई । औरतों ने तुरंत ईंटों के चूल्हे जलाए और उङद चने की दाल चढा दी । खेत से लङके गोभी तोङ लाए तो गोभी आलू बना लिए गये । आटा भून कर हलवा बना । सात सुहागनों ने मेंहंदी घोल कर जयकौर की हथेलियों पर चाँद बना दिये । गांव की सात बहुओं ने हल्दी में तेल डाल कर वटना (उबटन ) बनाया और जयकौर को लगा दिया । जब तक रोटी बन कर तैयार होती , जयकौर को नहला धुला कर तैयार कर दिया गया ।

चरण सिंह कार की चाबी मांगने भोला सिंह के पास पहुंचा तो वह चौंका – क्या ?

जी भाई , जो काम निपट जाय वही अच्छा । बस एक घंटे में भाई जी आते होंगे महाराज के साथ । लावां पढवा देंगे ।

भोला सिंह ने हैरान परेशान होकर देखा – इतनी जल्दी ? आज ही ? यह सब ?

आपको ऐतराज तो नहीं न । कोई समस्या है तो बताओ ।

बाजार से क्या मंगवाना था ?

थोङी मिठाई ...।

भोला सिंह ने गेजे को पैसे और कार की चाबी देकर फरीदकोट भेजा – गेजे ऐसा कर । पचास किलो लड्डू और बीस किलो गुलाबजामुन या छोटे रसगुलल्ले ले आ । और बाकी इन लोगों से पूछ ले , इन्हें क्या चाहिए । अंगेज कौर ने लिस्ट बनाई । रुमाला साहब , गठजोङ का कपङा , गले में पहनने के लिए दुपट्टा , सवा किलो मेवे , श्रंगारपेटी , जयकौर के लिए सैंडल और यह लिस्ट गेजे को दे दी ।

तब तक लङकियों और औरतों ने सुहाग के गीत गाने शुरु कर दिए थे ।

एक घंटे डेढ घंटे में ही गेजा सारा सामान लेकर हाजिर हो गया ।

दोनों भाभियों ने भोला सिंह के हाथों पर भी मेंहदी से गोल बिंदी बना कर शगुण किया । भोला सिंह ने दोनों को ग्यारह ग्यारह सौ रुपए निकाल कर शगुण में दिये । दोनों बहुए इतने पैसे एक साथ देख कर खुश हो गयी ।

धीरे धीरे जात बिरादरी और पङोस के लोग आँगन में जुङने शुरु हो गये । औरतों ने आँगन में दरियाँ , खेस बिछा दिए । सही दो बजे दोनों भाई गुरुग्रंथ साहब लेकर आए और पालकी में विराजमान कर दिए गये । रागियों ने कीर्तन शुरु किया । संगत ने माथा टेक कर प्रणाम किया । छिंदर कौर जयकौर को लेने पहुँची  - चल बीबी , महाराज की हजूरी मे चल । आज से तू बङी सरदारनी हो रही है । तेरी नयी जिंदगी शुरु हो रही है । तुझे ढेर सारी बधाइयां ।

रिश्ते की एक पङोस की भाभी बोली – बङे घर वाली ससुराल जाकर हमें भूल न जाना लाडो । आती जाती रहना ।

मेरे मामे भाभी ।

बहना , उन्हें बुलाने का तो टाईम ही नहीं मिला । शाम को मिठाई के साथ बता आएंगे । वे तुझे मिलने आएंगे तेरी ससुराल में ।

जयकौर को सुभाष की याद आई । वो कहाँ है इस समय – उसने इधर उधर देखा । कहीं दिखाई नहीं दिया । सामने उसकी छोटी बहन बैठी थी । उसने इशारे से उसे अपने पास बुलाया – मैना , तेरा भाई कहां है ।

वह तो आज सुबह बुआ के घर मुदकी गया है । बुआ अस्पताल में है । साथ में माँ गई है । दोनों परसों आएंगे ।

ओह अब वह क्या करे । उसकी प्रेम कहानी तो शुरु होते ही अंत तक पहुँच गयी है । किससे कहे अपने मन की बात । और इतने जमावङे में उसकी बात सुनेगा कौन -  उसकी आँखों में आँसू झिलमिलाने लगे ।

तब तक अंग्रेज कौर  अंदर चली आई थी –  तुम दोनों यहाँ अंदर बैठी क्या कर रही हो । वहां सब लोग जयकौर का इंतजार कर रहे हैं । फेरों में देर हो रही है ।

मैना झटपट फुदक कर बाहर औरतों के गोल में जा बैठी ।

 अंग्रेज कौर ने रोती हुई जयकौर को देखा तो उसकी आँख भी भर आई – रो मत जयकौर । लङकियाँ बेगाना धन । एक दिन मायके की दलहीज छोङ कर सबको ससुराल जाना ही पङता है । दुनिया की यही रीत है । चल सयानी बन । उठ जा । जल्दी कर । बाहर सारे लोग हमारा राह देख रहे हैं ।

उसने एक ओर से बाजू पकङ कर जयकौर को उठाया । दूसरी ओर से छिंदर कौर ने मजबूती से पकङ रखा था । वे उसे घूंघट निकलवा कर बाहर ले आईं और भोला सिंह के बगल में बैठा दिया । पाठी ने फेरों के छंद पढे । चरण सिंह ने गठजोङ किया । भोला सिंह और जयकौर ने भूमि पर सिर टिका कर प्रणाम किया । पाठी ने सबको प्रशाद दिया । सब लोगों ने दोनों भाइयों को बधाई दी । उसके बाद लंगर लाया गया । घराती बाराती सब लोग एक साथ पंगत में खाना खाने बैठे । पङोसियों में खुसरपुसर हुई – लङका बङा लगता है । बङी उम्र का है ।

दूसरा बोला – लङका कौन सा , आदमी बोलो आदमी । यह तो अच्छा खासा आदमी ही दिखाई देता है । 

किसी ने घुङका – चलो चुप करो ओए । बिन माँ बाप की बच्ची अपने घर बार की हो गयी । भाइयों से जैसे बना सरा , उन्होंने कर दिया । सब ठीक से निपट गया । अब इन बातों का क्या फायदा । तुम लोग लड्डू खाओ । हलवे का मजा लो ।

सब लोगों ने पेट भर कर भोज का मजा लिया । भोज के बाद औरतों ने पूर्वजों को नवविवाहित जोङे का माथा टिकवाया । बङों के नाम के लढ्डू निकाले गये । और भी कई छोटी मोटी रस्मे की गयी ।  सवा पाँच बजे विदाई हुई । गेजा कार दरवाजे पर ले आया । चलने से पहले जयकौर सबके गले लग कर रोती रही .। आखिर में दोनों भाइयों ने जयकौर को कार में बिठाया । कार संघवा के रास्ते पर चल पङी ।    

 

बाकी फिर ...।