Khaali Kamra - Part 5 books and stories free download online pdf in Hindi

खाली कमरा - भाग ५  

ऐशो आराम से पली हुई खुशबू अपनी ससुराल में कभी किसी काम को हाथ नहीं लगाती। परंतु राधा ख़ुशी-ख़ुशी जैसे पहले काम करती थी वैसे ही अभी भी करती रही। राधा मन ही मन सोचती कि बड़े घर की लड़की है, धीरे-धीरे घुल मिल जाएगी, समय तो लगेगा ही। राधा नहीं जानती थी कि खुशबू को तो उससे बात करना ही पसंद नहीं है इसीलिए वह अपने स्वयं के कमरे से ज़्यादा बाहर आती ही नहीं थी।

राहुल यह सब देखता किन्तु कभी खुशबू को कुछ नहीं कहता। उसे लगता था माता-पिता तो होते ही हैं काम करने के लिए। उसने बचपन से राधा और मुरली को हल में जुते हुए बैल की तरह ही देखा था। जिनका काम था उसकी ज़रूरतों को पूरा करना लेकिन राहुल अपने कर्त्तव्य भूल चुका था।

बूढ़ी दादी और मुरली, खुशबू की यह सारी हरकतें देख रहे थे। धीरे-धीरे खुशबू को परख रहे थे। समय आगे खिसकता जा रहा था। राहुल कभी खुशबू से नहीं कहता कि खुशबू माँ का हाथ बटाओ। यदि खुशबू राधा का अपमान करती तो भी वह शांति से सुनता रहता। राधा तो फिर भी शांत थी लेकिन मुरली और दादी को राधा का अपमान सहन नहीं हो पा रहा था। राधा ना कभी किसी से शिकायत करती ना ही खुशबू से नाराज़ होती। 

खुशबू को अब हर चीज की कमी खलने लगी थी। उसे अपना वह घर याद आता तो वह स्वयं को कोसने लगती। लेकिन राहुल? राहुल तो उसे बेइंतहा प्यार करता है, यह सोच कर अपने आप को समझा लेती। अब राहुल को एक कंपनी में नौकरी मिल गई। नौकरी की ख़बर सुनते ही परिवार में सब बहुत ख़ुश हो गए।

इस समय खुशबू की ख़ुशी का भी ठिकाना नहीं था। वह अपने मन में सपने बुन रही थी तभी उसे मुरली की आवाज़ आई।

मुरली ने राहुल से कहा, “राहुल बेटा जाओ जाकर दादी के पाँव छूकर उनका आशीर्वाद लो।”

अनमने मन से ही सही राहुल अपने पिता की बात टाल न सका और दादी के पाँव छूने उनके पास गया।

उसके पाँव छूते ही दादी ने कहा, “बेटा हमारा सपना पूरा हुआ अब तुम अपने माता पिता की सेवा करना।”

“जी दादी,” कहते हुए वह अपने कमरे में वापस चला गया।

उसने खुशबू की तरफ़ देखा और कहा, “तुम भी नौकरी क्यों नहीं कर लेतीं। टाइम भी अच्छा कटेगा और …” 

“नहीं राहुल नौकरी-वौकरी मुझसे नहीं होगी। मुझे तो घूमने जाना, फ़िल्म देखना, शॉपिंग करना पसंद है। क्या तुम अपने माँ-बाप की सेवा करने के लिए हमेशा यहीं रहने वाले हो?”

“क्या खुशबू तुम भी ना …”

“…तो राहुल तुम जल्दी से जल्दी कोई दूसरा घर ढूँढ लो। यहाँ इन बूढ़ों के साथ रहने में मेरा दम घुटता है।”

राहुल ने कहा, “खुशबू अभी-अभी तो नौकरी लगी है। इतनी जल्दी नया घर? यह मुमकिन नहीं है।”

“तो फिर इन लोगों से कह दो, कहीं और अपने लिए घर ले लें। यहाँ मुझे यह घर छोटा पड़ता है।”

मुरली, राधा और दादी ने खुशबू के मुँह से निकले यह ज़हरीले शब्द सुन लिए। छोटे से घर में बात कहाँ छुपती है। यदि आवाज़ ऊँची करके बात की जाए तब तो आवाज़ गूंजने ही लगती है। खुशबू के इन शब्दों ने दादी को ऐसी चोट पहुँचाई कि वह चक्कर खाकर वहीं गिर पड़ीं।

मुरली और राधा उन्हें उठा रहे थे, तभी अंदर से राहुल की आवाज़ आई, “अरे खुशबू धीरे बोलो, वे सुन लेंगे। देखो खुशबू मैं भी तुम्हारे साथ अकेले रहना चाहता हूँ लेकिन उनके ही घर से उन्हें निकालूं कैसे?” 

राहुल के मुँह से ऐसे कड़वे शब्द सुनकर दादी रो पड़ीं। उनकी आँखों में आज वह दृश्य दिखाई दे रहा था, जब राहुल की पढ़ाई के लिए उन्होंने अपना वह मंगलसूत्र जिसे कभी उन्होंने अपने से अलग नहीं किया था, अपने गले से उतार कर दे दिया था।

राधा अपना सर मुरली के कंधे पर रखकर निढाल-सी हो गई थी। उसकी आँखें सूखी थीं लेकिन दिल रो रहा था। उसमें दर्द का ज्वार भाटा उठा हुआ था। आज मुरली अपने वह शब्द याद कर रहा था, जब उसने राधा से कहा था कि यह सब सही नहीं हो रहा है। भविष्य और भाग्य अब क्या करेगा और क्या-क्या उनसे करवाएगा; यह तो वक़्त ही बताएगा।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः