Khaali Kamra - Part 6 books and stories free download online pdf in Hindi

खाली कमरा - भाग ६  

आज वक़्त उन्हें यह बता रहा था कि उनका बुढ़ापा सुरक्षित नहीं है। वह सोच रहा था जिस बेटे के लिए अपना तन-मन-धन सब कुछ उस पर न्यौछावर कर दिया, वही बेटा आज अकेले रहना चाहता है। उनके बिना? केवल उसकी पत्नी के साथ? आख़िर क्यों? उन्होंने बिगाड़ा ही क्या है। वो तो शांति से रहते हैं, कभी कोई कलह नहीं करते। किसी पर कोई नियंत्रण नहीं करते। वाह रे भाग्य कैसी तेरी माया, कोई समझ ना पाया।

रात को राधा ने मुरली से कहा, “मुरली अब मुझे यहाँ नहीं रहना।” 

“यहाँ नहीं रहना मतलब?”

“बस मुरली चलो यहाँ से, राहुल और खुशबू को रहने दो इस घर में।”

“तुम ये क्या कह रही हो राधा? यह हमारी, हम दोनों की खून पसीने की कमाई से बनाया हुआ घर है। इसकी एक-एक ईंट हमारी साँसों की गर्मी से बनी है। इस घर की रेती और सीमेंट हमारे पसीने से सनी है।”

“नहीं मुरली मैं कुछ नहीं जानती। मैं बस इतना ही चाहती हूँ मेरे बच्चे ख़ुश रहें यदि उन्हें हमारा यहाँ रहना पसंद नहीं तो कोई बात नहीं, हम यहाँ से चले जाएंगे।”

“कौन-सी मिट्टी की बनी हुई हो तुम राधा। जीवन भर इतनी घोर तपस्या के बाद क्या मिला है तुम्हें? फिर भी तुम यह कह रही हो। यदि तुम्हारा यही फैसला है कि तुम यह घर उन्हें दे देना चाहती हो तो फिर हमें यहाँ से जाना ही होगा क्योंकि तुम्हारा इतना अपमान होते हुए तो मैं भी नहीं देख सकता।”

बात करते-करते वह दोनों नींद की गोदी में समा गए।

सुबह उठकर राधा रोज़ की तरह दादी को उठाने गई और आवाज़ दी, “अम्मा …अम्मा…”

किन्तु अम्मा चुपचाप थीं क्योंकि वह जवाब दे ही नहीं सकती थीं।

राधा ज़ोर से चिल्लाई, मुरली जल्दी आओ, “ये देखो अम्मा...”

तब तक मुरली दौड़ता हुआ आया, देखा तो दादी मृत्यु लोक जाने के लिए टिकट कटा चुकी थीं। 

राधा ने रोते हुए राहुल के कमरे में झांका तो पता चला वे तो सुबह की सैर के लिए निकल गए हैं।

राधा ने राहुल को फ़ोन लगाया पर तब फ़ोन खुशबू के हाथ में था। उसने कहा, “हेलो…”

राधा ने कहा, “खुशबू अपनी दादी …दादी नहीं रहीं। तुम जल्दी घर आ जाओ।” 

“हाँ-हाँ आ जाएंगे, बस राहुल की थोड़ी कसरत और बाक़ी है। वह पूरी करके आ जाएंगे।”

राधा सन्न रह गई और रोते-रोते फ़ोन काट दिया।

खैर राहुल और खुशबू के लौटने के बाद दादी का अंतिम संस्कार तो हो गया किंतु मुरली इस बात से बहुत दुखी था कि जीवन की अंतिम घड़ी में उसकी माँ अपने साथ सुने हुए कड़वे शब्द लेकर गई।

तेरह दिन बीत गए और दादी का तेरहवां भी हो गया। राधा का मन अब इस घर में नहीं लगता था। फिर भी वह हमेशा की तरह अपना सब काम करती ही रहती थी। इस समय के दुखी माहौल से बचने के लिए खुशबू और राहुल तेरहवीं होने के बाद कुछ दिन के लिए घूमने चले गए। जब वे वापस आए तो खुशबू ने देखा कि उसका कमरा अव्यवस्थित है और अलमारी भी ठीक से जमी हुई नहीं लग रही थी। 

गुस्से में तमतमाती वह कमरे से बाहर आई और चिल्लाते हुए पूछा, “माँ मेरे कमरे में कौन आया था?”

राधा चौंक गई और उसने पूछा, “क्या हुआ बेटा?”

“माँ पूरा कमरा, अलमारी, सब तहस-नहस हो रहा है।”

“खुशबू, दादी के कारण मिलने कुछ मेहमान आ गए थे। साथ में दो छोटे बच्चे भी थे इसीलिए …”

खुशबू गुस्से में चिल्लाई, “तो अपने कमरे में भीड़ इकट्ठी कर लेते ना? मेरे कमरे में क्यों?”

राधा से नाराज़ होकर खुशबू के मुँह से निकल गया। उसने कहा, “आप लोगों के कारण मेरा जीवन न …”

राधा ने आगे के शब्दों को मन ही मन पूरा कर लिया कि आख़िर खुशबू क्या कहना चाह रही थी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः