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निष्प्राण (हिंदी)

निष्प्राण (हिंदी)

By अंकित भाष्कर

 


 

 

 

" हेलो कहाँ रह गए.......? और कितना समय लगेगा.......? "
                कहते हुए मोबाइल फोन को कान पर लगाए सामने से आनेवाले जवाब का इंतजार करते हुए ' वो ' थोड़ी घुस्से में बात कर रही थी।
" बस हो ही गया.... बैग में पानी की बोतल और साथ में माँ के हाथो द्वारा बनाया कुछ खाने के लिए लेना रह गया था। "
    सामने से जवाब आते ही ' वो ' आगे बोलने लगी
" जल्दी करो.... ११:३० को आखरी बस हैं वह छूट न जाए इसका ध्यान रखना। मैं यह आपका इंतजार कर रही हूं। जल्दी आओ फोन रख रही हूं। "
                   इतना कहकर उसने मोबाइल फोन को अपनी आंखों के सामने लाकर चल रही कॉल काट दी। बाई ओर मोबाइल फोन के सफेद स्क्रीन पर नजर डालते हुए उसने समय देखा तो रात के १०:४५ बज रहे थे। इधर उधर देखते हुए उसने अपने हाथ में रखा मोबाइल फोन बंद कर दिया। एक पिछड़े गांव के हद पर बने ST स्टैंड की 5 फुट ऊंची दीवार के सामने आनेजानेवाले लोगों को तकलीफ न हो इसके लिए बनाए गई लकड़ी की खुर्शी पर बैठी ' वह ' अपनी सहेली का इंतजार कर रहीं थी।
                        गाँव पिछडा होने के कारण लोगो का आनाजाना भी बहुत कम था। तीन दिन पहले कॉलेज से छुट्टी लेकर गांव लौटी ' निमा ' और उसकी सहेली को शहर के कॉलेज में आखरी पेपर होने के कारण रात में शहर पहुंचने के लिए सफर करना पड़ रहा था। रात लंबी थी। दिन भर गपशप करते-करते जाने कैसे दिन खतम हो गया पता ही नही चला। अब देर रात अपने दोस्तो के साथ सफर करना उसके लिए कोई नई बात नही थी। कभी-कभी कॉलेज की छुट्टी श्याम को होने के कारण ' वह ' और उसकी सहेलियां रात को सफर करके घर लौट आती थी। गांव के पिछड़ेपन के वजह से ST बसेस भी बहुत कम चलती थी। यह पता चलते ही की उसकी सहेली को आने में देर हो जाने वाली हैं तो उसके पास अपनी सहेली की प्रतीक्षा करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था। लकड़ी की खुर्सी पर बैठी ' वो ' अब अपने आसपास का दृश्य निहार रही थी। दाई ओर देखने पर रात के अंधेरेको थोड़ा कम करते हुए, अंधेरेमे खड़े काले रंग के खंबे पर लगा बल्ब, बल्ब का फेज टूट जाने के कारण बहुत ही कम प्रकाश उत्सर्जित कर रहा था। उस बल्ब के फीके नारंगी रंगके उजाले में उसीसे ३० से ४० कदम की दूरी पर हवा के विभिन्न झोंको से झूमता एक लंबा, घना और विशाल पेड़ अपनी आड़ी-टेढ़ी शाखाएं फैलाए खडा था। उसी पेड़ के नीचे उसके विशाल बुड पर देखा तो गांव के लोगो को बैठने और पेड़ थोड़ा अच्छा दिखे इसीलिए बनाए गए गोलाकार कट्टे का थोड़ा भाग टूटकर उसका मलमा ( जैसे सीमेंट, रेती, और पत्थर के कुछ भाग ) पेड़ के इर्द-गिर्द फैला हुआ था। तभी सड़क के बाई ओर से आ रहीं चार पहिया गाड़ी, गाड़ी की जोर-जोर से से हॉर्न बजाते हुए अपनी सामान्य गति से वहां से गुजरी। तभी उसके दिमाक में एक खयाल आया। खयाल आते ही वह थोड़ी अस्वस्थ हो गई। लग रहा था की मानो उसके दीमाक में एक अजीब सा डर अपना घर किए जा रहा हो। दिमाक में खयाल आया ही था की तभी उसकी आंखे सामने सड़क के दोनो और का दृश्य देखने लगी। सामने अंधेरी सुनसान पक्की सड़क के उस पार एक काली बिल्ली अपनी खूंखार आंखों से उसे घूरे जा रही थी। मानो जैसे उसको निमा साथ होने वाली परिक्रमा को पहले ही समझ लिया हो। उसकी लाल-भड़क आंखे उस काले गहरे अंधेरे में और भी भयंकर और डरावनी लग रही थी। उसे ऐसे घूरते हुए देखकर उसका हल्कासा दिमाक का डर अब और भी ज्यादा जोर पकड़ने लगा था। अब तो जैसे ही उसकी आंखे उस बिल्ली की आंखों से मिलीं तो मास्तिक के अंदर अपना घर करने वाला डर अब उसके पूरे शरीर में फैल गया। उसकी आंखे अब उसका साथ नहीं दे रही थी। उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था। बिल्ली की डरावनी आंखों से अपनी अशहयोगी आंखे हटाते हुए वह अपनी बाई ओर मुड़ी, तो अपनी जगह से दो कदम पीछे हट गई। शरीर के नसों में बहने वाला डर अब चेहरे से बाहर छलकने लगा। थोड़ी देर पहले हुए नजारे को देखकर वह डर से सफेद पड गई थी। अपनी आंखों पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था। थोड़ी देर पहले घटा हुआ नजारा बार-बार उसको याद आ रहा था। सामने एक काली इंसानी आकार की परछाई उसके पास आकर खड़ी हुई और पलक झपकाते ही वह काली परछाई गहरे काले अंधेरे में कही गायब हो गई। वह एक एक पल उसके डर को और भी बढ़ावा दिये जा रहे थे। तभी एक अजीब सी आवाज से वह होश में आई। आवाज....... किसी की जोर-जोर से चलने की आवाज..... वह आवाज से उसके दिमाक में रह-रह कर अनचाहे खयाल आ रहे थे। वह आवाज को ध्यान से सुनने लगी, लगा आवाज उसके पीछे से आ रही हो। जैसे ही वह अपनी पीछे की ओर मुड़ी तो वही काली इंसानी परछाई उसकी और तेजी से दौड़ रही थी। वह भयानक दृश्य देखकर उसने डर के मारे अपनी आंखे बंद कर ली। लेकिन इस बार वह इंसानी परछाई गायब नही हुई तो एक भयानक प्रकार से उसपर झपटी। तभी वह अपनी जगह पर उठकर बैठ गई। सारा शरीर पसीने से पानी पानी हो गया था। उसकी गहरी नींद टूट गई थी। हाथ में रखा मोबाइल फोन नीचे जमीन पर गिर गया। मोबाइल फोन की सफेद स्क्रीन पर नजर गई तो रात के ११:३० बज चुके थे। मोबाइल फोन पर दिखे समय को देखते हुए अपने इधर उधर देखा तो वह उसी लकड़ी की खुर्शी पर बैठी अपनी सहेली का इंतजार कर रही थी। मन में अज्ञात डर अभी भी उसके मास्तिक में घर करके बैठा था। अपनी जगह से उठकर अपना मोबाइल फोन जमीनपर से उठाया और सामने लगी खुर्सी के आगे अपने घुटनों के सहारे वही बैठ गई। सामने खुर्सी पर देखकर फिर से गांव के काले सुनसान सड़क को बारबार देखे जा रही थी। लेकिन उसके सामनी वाली लगी वही लकड़ी की खुर्शी पर उसका प्राण निकला निष्प्राण शरीर उपर कही आसमान की तरफ देखे जा रहा था............

 


समाप्त

 


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