Danvendra - Rudra books and stories free download online pdf in Hindi

दानवेन्द्र - रुद्रा

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आजसे कुछ 2000 वर्ष पूर्व एक महाशक्तिशाली अघोरी हुआ । उसने अपने तपोबल से बहोत सी विद्याओ मे महारथ हासिल कि थी । सम्मोहन, से लेकर रूप बदलने तक ।
वो अपने इसी शक्ति ओ के जोर पे एकाधिकार और एक छत्र शाशन करना चाहता था । इस लिए उसने अपनी सेना खड़ी करने का निश्चय किया , लेकिन वो नहीं चाहता था कि उसकी सेना अन्य सेनाओ कि तरह सामान्य सैनिको से बनी हो इस लिए उसने कुछ अपने पसंदीदा लोगो को एक काम दिया , वो ऐसे लॉगो को ढूंढ के लाए जो कुछ खास ताकतों के अधिकारी हो ।
वहीं एक और राज्य मे उसके विरोधीओ कि संख्या दिनब्दिन् बढ़ती हि जा रही थी।
और उस अघोरी ने अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद से गुजर जाने का निश्चय किया, आखिर क्या थी वजह कि वो इतना क्रूर बना ?
आखिर क्यों वो एक जानवर से भी ज्यादा निर्दयी बन ???
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तो इस प्रकरण कि शुरुआत होती है । अनंत साम्राज्य से जो बहुत हि विशाल भूमि भाग और जल भाग को अपने आप मे समेटे एक मजबूत साम्राज्य बन चुका था । एक वक्त ये सिर्फ १०० गांवो का बस एक समूह हुआ करता था।
वहाँ पर उस वक़्त सम्राट अनंत पाल का राज था। गुणों मे निपुण शौर्य मे विक्रमादित्य और ज्ञान मे स्वयं सहदेव के बरोबर थे । उनकी ख्याति चारों और थी । उनके राज्य मे वैसे तो स्वर्णिम समय चल रहा था । लेकिन उनको कोई संतान नहीं थी , इसी वजह से वो बेहद परेशान रहा करते थे एक शाम अपना राजकाज खत्म करके वो बागीचे मे बैठकर इसी विषय पर सोच- विचार कर रहे थे , वो अपनी हि दुनिया के अकेलेपन मे पूरी तरह से खोए हुए थे तभी सेनापति विक्रांता वहाँ आए ।
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विक्रांता - सम्राट कि जय हो !

"सम्राट उस वक़्त भी अपनी सोच मे हि खोए हुए थे "

विक्रांता - (दोबारा सम्राट के पास जाके) सम्राट कि जय हो ।
"वो समज जाता हे कि सम्राट को कोई बड़ी हि चिंता अंदर से खाए जा रही है , और वो पास जाके उनको उनकी विचारो कि दुनिया से बाहर लाता है, तभी

सम्राट - (अचानक से उनकी और देखते हुए )
अरे विक्रांता आप कब आए ।

विक्रांता - जब आप अपनी सपनो कि दुनिया कि सैर कर रहे थे तभी (हसते हुए )

सम्राट - अरे , हा वो मे ज़रा सा राज काज के मामलों मे खो गया था ।

विक्रांता - मुझे तो नहीं लगता ।

सम्राट - सच कहे रहा हूँ क्या , मैंने कभी आपसे कोई बात छुपा के रखि है कभी।

विक्रांता - पहले का तो पता नहीं पर अभी लग रहा है कि आप अपने हृदय पे पथ्थर बाँध के कोई बात हमसे छुपा रहे हो सम्राट । बेझिजक हमसे कहिये हो सके तो मे आपकी सहायता अवश्य करूँगा ।

" सम्राट को लगता है कि अब इस बात को और नहीं छुपाना चाहिए और फिर वो अपने मन कि बात विक्रांता से कहने लगते है "
सम्राट - सुनो विक्रांता वैसे हम दोनों साथ मे बड़े हुए , साथ मे एक हि गुरुकुल मे शिक्षा भी ली और पीढ़ीओ से हमारे और तुम्हारे परिवार के बीच एक पारिवारिक सम्बन्ध रहा है ।
मे तुम्हें सिर्फ सेनापति हि नहीं बल्कि अपना परम मित्र हि मानता हूँ और इसी लिए अब ये बोज मे ज्यादा अपने मन पे हावी नहीं होने दे सकता इसी लिए तुमसे कहेता हूँ ।
विक्रांता - वैसे सम्राट आप मेरी इतनी कदर करते है ये जान के अच्छा लगा ।

सम्राट - जी हा ।

विक्रांता - पर ऐसी क्या खास बात है जो आपको इतना खाए जा रही है।

सम्राट - हमारे राज्य मे चारों और खुशहाली है कोई गरीब या दुःखी नहीं है । धन , वैभव , एश्वर्य , सेना मित्र किसी बात कि कमी नहीं है ।

विक्रांता - हा ! सम्राट तो परेशानी क्या है ??

सम्राट - तुम हि बता दो कि आखिर किस चीज़ कि कमी है हमारे पास ?

विक्रांता - (सोच मे पड़ जाता है पर, अचानक से ) सम्राट वैसे तो सब कुशल मंगल है पर ,

सम्राट - पर क्या ? विक्रांता !

विक्रांता - "उत्तराधिकारी "

सम्राट - (आंखे आंसू ओ से भर जाती है और वो विक्रांता कि और हि देख रहे है ) हा यही चिंता खाए जा रही है । क्या तुम्हारे पास है इसका कोई निवारण विक्रांता ?

विक्रांता - जी हा महाराज है

सऔर राट - (अत्यंत ख़ुशी कि मुद्रा मे उठ खड़े होकर विक्रांता को गले लगा लेते है ) तो बताओ विक्रांता कैसे संभव है ? ये इस के लिए जो करना पड़ेगा हम करेंगे !

विक्रांता - मार्ग बड़ा कठिन है , और इसमें आपके धैर्य कि परीक्षा भी होगी ।

सम्राट - जो भी हो हम करेंगे

विक्रांता - मैंने राजवैद्य जी से सुना है कि हमारे राज्य कि सीमा मे जो जंगल है वहाँ पर एक आश्रम मे एक ऋषि रहते है और वो अपनी साधना से आपको पुत्ररत्न् प्राप्त करवा सकते है ।
लेकिन वो मार्ग मे एक अघोरी भी रहेता है जो मायाजाल और इंद्रजाल का बड़ा ज्ञानी है और साथ मे हि बड़े दुष्ट स्वाभाव का है वो सब यात्रिओ को परेशान करता रहेता है और उनसे अजीब सी इच्छा से पूर्ण करने को कहेता है और वो अगर पूर्ण ना करो तो समजलो आपका वापस आना असंभव ।
"सम्राट सोच मे पड जाते है पर फिर भी वो जाने का निश्चय पक्का कर लेते है "

सम्राट - वैसे भी विक्रांता बिना उत्तराधिकारी ये राज्य यतीम हो जाएगा इससे तो अच्छा है कि हम ऋषि से मिलले

विक्रांता - जैसी आपकी इच्छा फिर भी एक बार महारानी से इस विषय पर चर्चा करके हि निर्णय लिजियेगा

सम्राट - हा जरूर !

(दोनों कि बातों मे कब दिन ढल गया पता हि नहीं चला ओर् तभी महारानी का भेजा हुआ सेवक वहाँ आ पहुंचा )



°°°क्या महारानी इस बात के लिए राजी होगी ??
क्या सम्राट और विक्रांता वहाँ तक जा सकेंगे ??

जानिए आगे कि कहानी मे, •••••••••••••••क्रमश्
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