Devil's Queen - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

डेविल्स क्वीन - भाग 20

अगली सुबह जब अनाहिता सो कर उठी तो उसने अपने आस पास देखा, सब सामान्य था। अभिमन्यु शायद रात में घर आया ही नहीं था। वोह बाथरूम में चली गई।

थोड़ी देर बाद वोह अपने कमरे से बाहर निकली और धीरे धीरे सीढियां उतरने लगी। चारों तरफ शांति छाई हुई थी।

"गुड मॉर्निंग!" माया ने ग्रीट किया जब अनाहिता किचन में आई। उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट थी और हाथ में पैनकेक की एक प्लेट।

"क्या....क्या अभिमन्यु यहाँ हैं?" अनाहिता ने बाहर आ कर डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए पूछा। उसी जगह पर जहां कल उसके साथ वोह भयानक अपमान हुआ था। शायद माया तब जा चुकी थी इसलिए तो उसने कल लंच और डिनर के समय पर कुछ भी अलग व्यवहार नही जताया था। शायद उसने कल का वोह मंजर देख ही नही था? पर क्या वोह रोकती अभिमन्यु को अगर वोह देख भी लेती?

"नही। वोह जा चुके हैं, एक घंटा पहले ही। अब वोह सीधे डिनर पर ही मिलेंगे। कल रात भी देर से आए थे और स्टडी रूम में चले गए थे। सुबह भी जल्दी ही निकल गए।" माया ने एक छोटे से बर्तन में गर्म गर्म मैपल सिरप टेबल पर रखते हुए कहा।

मैं यहाँ सारा दिन क्या करूंगी? कल भी सारा दिन अपने कमरे में पड़ी रही। अपने घर में तो मेरे पास मेरा कंप्यूटर था, मेरा फोन था, मेरी अपनी लाइफ थी।

"यहाँ कहीं आस पास बुक स्टोर है?" अनाहिता ने माया से पूछा।

"बुकस्टोर? क्यों? आपको कोई किताब खरीदनी है, मैडम?"

"हम्म! क्या मैं गाड़ी यूज कर सकती हूं या फिर कोई है जो मुझे छोड़...."

"यह नहीं हो सकता, मैडम।" माया ने सिर ना में हिलाया और उसकी प्लेट में पैनकेक सर्व करके अंदर किचन में चली गई।

ऑफकोर्स, वोह उस से कह गई की तुम कहीं बाहर नही जा सकती। हाँ, इस घर में कैद नही हो लेकिन इस घर से बाहर जाने की इजाज़त नही है।

अनाहिता ने चुपचाप अपना ब्रेकफास्ट फिनिश किया और प्लेट उठा कर किचन में ले आई।
"क्या आज मैं आपकी मदद करूं?"

दुबारा उसे जवाब में ना मिला।

"मैं सब कर लूंगी और बाकी के और लोग भी हैं काम करने के लिए।" माया ने कहा और अचानक साइड काउंटर पर रखे उसके आईपैड पर बीप का साउंड बजने लगा।

माया अपने आईपैड में चैक करने लगी और कुछ स्वाइपस के बाद एक लाइव वीडियो चलने लगी। यह उस मैंशन के बाहर की वीडियो थी। "लगता है आपका सामान आ गया है।"

"मेरा सामान?" अनाहिता ने भी उसके आईपैड में नज़र गड़ाई। "ओह! हाँ मेरा सामान।"

वोह दोनो किचन से बाहर आए। दो आदमी एक एक बॉक्सेस लिए अंदर आ रहे थे। दोनो सीढ़ियां चढ़ने लगे जैसे जानते हो की उन्हे कहां जाना है, कौन से कमरे में जाना है।

वोह सोचने लगी की अभिमन्यु के आदमी उसके बारे में बात करते हैं उसके पीठ पीछे, इस सोच ने अनाहिता को असहज कर दिया।

जब वोह दोनो वापिस नीचे आ गए तो अनाहिता अपने कमरे में जाने लगी।

पीछे से आवाज़ देते हुए माया ने अनाहिता से कहा, "मैं एक लड़की को भेजती हूं, आपकी मदद के लिए। वोह जल्द ही आ जायेगी।"

वोह बस दो ही तो बॉक्स थे जिसमे अनाहिता की पूरी जिंदगी पैक हो रखी थी।

"नहीं, कोई बात नही। मुझे जरूरत नही है। वोह बस कपड़े ही तो हैं, मैं खुद कर लूंगी। वैसे भी मेरे पास और करने के लिए कुछ नही है।" अनाहिता ने बिना किसी भाव के पलट कर देखा।

बदले में माया जी बस हल्के से मुस्कुरा कर रह गई।

अनाहिता ने बॉक्स खोल कर देखा, ऑलमोस्ट सब कपड़े ही थे। उसके पिता के घर आखिर उसका था ही क्या। उस घर में अनाहिता का कुछ नही था। पर वोह बहुत खुश थी अपना लैपटॉप और टैबलेट देख कर। उसका टैबलेट नॉवेल की लाइब्रेरी से भरा हुआ था। उसके पास कुछ करने को तो नही था, कम से कम वोह बुक पढ़ कर अपना समय काट सकती थी।

वोह धीरे धीरे बॉक्स में से सामान निकाल कर लगाने लगी। जब उसका पूरा काम खतम हो गया तो वो एक कुर्सी पर बैठ गई और खिड़की से बाहर देखने लगी। उस खिड़की से बाहर का गार्डन नज़र आता था जो की बहुत खूबसूरत बना हुआ था। वोह गार्डन बहुत बड़ा था और उसमे फलों के पेड़ के साथ साथ लाइन से पाइन ट्री भी लगे हुए थे। पूरा गार्डन ऊंची ऊंची दीवारों वाली बाउंड्री से घिरा हुआ था।

क्या इन ऊंची ऊंची बाउंड्री को पार करना बहुत ही मुश्किल है? पर अगर कर भी लिया तो मैं जाऊंगी कहां?

काफी देर तक अनाहिता ऐसे ही बैठे बाहर के सुंदर वातावरण को निहारती रही। यह हमेशा से ही उसे अपनी ओर खींचता था।

"अनाहिता," उसके कमरे का दरवाज़ा खुला और अभिमन्यु कमरे के अंदर आया।

"तुम नॉक कर के नही आ सकते थे?" अनाहिता ने पीछे पलट कर देखा और फिर वापिस मुड़ कर खिड़की की तरफ देखने लगी। कल के बाद आज वोह उस से मिल रही थी। अब तो वो उसकी शक्ल तक नही देखना चाहती थी। उसे तो माया ने बताया था की अभिमन्यु रात तक आएगा। उसने सोचा था कल को तरह आज भी वोह जल्दी सो जायेगी और उसका अभिमन्यु से सामना नहीं होगा। लेकिन वोह इतनी जल्दी क्यूं घर आ गया था? फिर से कल सुबह की उसकी हरकत याद आते ही उसके चेहरे के भाव बदल चुके थे।

"नॉक? वोह भी अपने ही घर में? नही," अभिमन्यु ने शांत लहज़े में कहा और उसके पीछे आ कर खड़ा हो गया। "मैं तो तुम्हे यह देने आया था, पर....अगर तुम लड़ने के मूड में हो तो मैं और दिन इसे अपने पास रख सकता हूं।"

अनाहिता ने पीछे पलट कर देखा। वोह उठ खड़ी हुई। अभिमन्यु के हाथ में उसका फोन था। अभिमन्यु के चेहरे पर कोई मुस्कुराहट नही थी बल्कि उसकी एक आई ब्रो उठी हुई थी। अनाहिता ने झट से उसके हाथ से अपना फोन ले लिया।

"थैंक यू," अनाहिता ने धीरे से कहा।

क्या उसने इसके साथ कुछ किया है? क्या कोई ट्रैकर या चिप लगाई है? या कोई ऐप इसमें इंस्टॉल कर दिया है? क्यों उसने मेरा फोन इतने दिन तक अपने पास रखा था? क्या वोह जान जायेगा की मैं किस से बात कर रही हूं? किसको मैसेज कर रही हूं?

"मैने तुम्हारे पापा से बात की थी।"
















✨✨✨✨✨
कहानी अगले भाग में जारी रहेगी...
अगर कहानी पसंद आ रही है तो रेटिंग देने और कॉमेंट करने से अपने हाथों को मत रोकिएगा।
धन्यवाद 🙏
💘💘💘
©पूनम शर्मा