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मैरीड या अनमैरिड (भाग-1)

दफ्तर की खिड़की से झाँकता हुआ सूरज ठीक मेरे सामने कुछ इस तरह आ गया मानों कह रहा हो अलविदा ! कल फिर आऊँगा । मैं टकटकी लगाए हुए डूबते सूरज को देखती रहीं । अस्त होता सूरज दिल में सूनापन भर देता हैं । धीरे - धीरे से सरकता हुआ सूरज पश्चिम दिशा में ऐसे दुबक गया मानो अपने घर चला गया हों । घर को जाते पँछी जब झुण्ड बनाकर आसमान में दिखते तो लगता मुझसें कह रहें हो तुम किसके साथ घर जाओगी ? घर सबकों जाना होता है फिर चाहें वो पँछी हो या सूरज ! मुझें सूरज का आना औऱ जाना दोनों पसन्द हैं क्योंकि सूरज अकेले ही आता हैं औऱ अकेले ही चला जाता हैं बिल्कुल मेरी तरह !

मुझें क़भी अपने सहकर्मियों को साथ आते जाते देखकर कोफ़्त नहीं हुई फिर आजकल क्यूँ मैं किसी लव बर्ड को देखकर चिढ़ने लगीं हुँ । जो जिंदगी मैं जी रहीं हुँ यहीं तो मेरा सपना था। फिर क्यों मन में वो संतोष नहीं हैं ?इस सफ़ल जिंदगी को जीने के लिए मैंने कितने पापड़ बेले थें ? कितनी ही इच्छाओं का गला घोंट दिया था ?
मुझें तो प्यार औऱ शादी जैसे लफ़्ज़ से भी चिढ़ हुआ करतीं थीं । फिर अब क्यों मुझें किसी साथी की कमी महसूस होतीं हैं । मेरे दिल औऱ दिमाग के बीच द्वंद चलने लगा दिमाग कहता जो जिंदगी जी रहीं हो यह हर किसी को नसीब नहीं होतीं । आज यहाँ नहीं होती तो कहीं चूल्हा फूंक रहीं होतीं । इस पर दिल कहता इन सफलताओं औऱ महत्वकांक्षाओं की मंजिल क्या यह अकेलापन हीं थीं ? मन में आए विचारों के उफ़ान पर अंकुश मेरे बॉस की आवाज़ ने लगाया।

वह मेरे केबिन के दरवाजे से खुद को टिकाकर दोनों हाथ बांधे हुए खड़े थे औऱ मंद- मंद मुस्कुरा रहें थें ।

" बधाई हों मिस मालिनी " - प्रमोशन हो गया हैं आपका औऱ 20% सेलेरी भी बढ़ा दी गई हैं ।
ऐसे ही काम करतीं रहों । औऱ हाँ आज जल्दी घर चली जाना औऱ पार्टी करना - कहते हुए सर वहा से चले गए ।

" पार्टी " किसके साथ ? मैंने अपने आप पर ही तंज कसते हुए मुस्कुरा कर खुद से ही कहा।

बड़े शहरों में , गगनचुंबी इमारतों के बीच , लगातार भागती हुई , दूधिया स्ट्रीट लाइट से रौशन सड़को पर सफ़र करतें लगभग सभी सफल व महत्वाकांक्षी लोगों का जीवन मेरी ही तरह होता हैं - " तन्हा सफ़र " । भीड़ में भी अकेलापन हमेशा साथ रहता हैं।

विचारों की उधेड़बुन में मैं कब पार्किंग लॉट में पहुँच गयी पता ही नहीं चला । अपने पर्स से मैं अपनी चमचमाती मेहरून कलर की " किया सेल्टॉस " गाड़ी की चाबी ढूढ़ने लगीं । यह गाड़ी मैंने पिछले महीने ही लोन पर ली थीं । गाड़ी को स्टार्ट करके मैं अपनी ही धुन में खोई हुईं गाड़ी ड्राइव कर रहीं थी कि एक वाकये से मेरी हँसी फुट पड़ी ।

हुआ यूं था कि जब मैंने गाड़ी के लोन के लिए फाइनेंस कम्पनी से बात की थीं तो कम्पनी से लोन एक्सिक्यूटिव मेरे दफ्तर ही चला आया था।
वह फॉर्म को स्वयं भर रहा था मैं फॉर्म से सम्बंधित जानकारी उसे मुहैया करवा रहीं थीं । तभी उसने मुझसें पूछा - मैरिड या अनमैरिड ?

प्रश्न तो सरल औऱ सीधा था पर मैं इस प्रश्न से उस पर बिफ़र गई थीं । आप फॉर्म रख दीजिए मैं खुद भरकर आपके ऑफिस भेज दूँगी।

जब हम किसी बात से दूर भागते हैं या जिससे बचना चाहतें हैं तब वहीं किस्सा या बात हमारे सामने जाने - अनजाने आ जाती हैं। मेरे साथ भी कुछ यहीं हो रहा था।

घर पहुँचते ही मैंने मम्मी को कॉल लगाया औऱ अपने प्रमोशन की बात बताई। मम्मी खुश तो हुई पर उतनी नहीं क्योंकि यह मेरी पहली सफलता नहीं थीं । मम्मी की खुशी तो अब मेरी शादी हो जाने पर दुगनी होगीं ।

मम्मी - पापा जब भी कॉल करतें तब उनके पास जैसे दूल्हों की लिस्ट बनीं रहतीं। मेरी शादी के अलावा औऱ कोई बात उन्हें सूझती ही नहीं। मैं भी झल्लाकर कह देतीं - अगर आपको लगता हैं कि मैं बोझ हुँ तो फिर कही भी रिश्ता तय क्यों नहीं कर देतें । मेरी पसन्द - नापसंद की जहमत भी क्यो उठाते हैं आप ?

इस पर मम्मी कहती - " तू तो हमारी राजकुमारी हैं " बेटा हर माता - पिता का यह सपना होता हैं कि वह अपनी राजकुमारी के हाथ पीले करके किसी राजकुमार को सौंप दे ।

मैं मम्मी की आवाज़ में अक्सर उनके दुःख को महसूस करतीं । इसलिए इस बार मैंने मम्मी से कह दिया - " अच्छा ठीक हैं आप लड़के देखना शुरू कीजिए जब कोई पसन्द आ जाये तो मुझें बता दीजियेगा "

मम्मी मेरी इस बात पर खुश हो गई औऱ फिर मेरे फोन की गैलेरी दूल्हों के फोटो से सज गई ।

मम्मी के कहने पर ही रिंकी मौसी ने मुझें समाज के एक मॅट्रिमोनी ग्रुप में भी एड कर दिया था।
समय मिलने पर जब भी मैं ग्रुप को देखती तो लगता ग्रुप नहीं कोई दूल्हा - दुल्हन का बाजार लगा हुआ हो । सबके फ़ोटो के साथ पसन्द - नापसंद , गुण , गोत्र औऱ भी बहुत सी जानकारी लिखी हुई रहतीं। पसन्द आए तो स्टार करते जाओ औऱ नहीं तो फिर स्क्रोल करो औऱ आगे बढ़ जाओ। मैंने भी कुछ लड़के शॉर्टलिस्ट किये औऱ बेमन से सिर्फ मम्मी की ख़ुशी के लिए मम्मी के नम्बर पर फॉरवर्ड कर दिए।

हम जब अपनों की ख़ुशी के लिए समझौता करतें हैं तब अक्सर हम अंदर से टूटकर बिखर जाया करते हैं । समझौते होते ही ऐसे हैं। यह अक्सर एक को ख़ुशी औऱ दूसरे को तकलीफ़ दे जाते है।

मैंने फ्रीज़ से अपनी फेवरेट मैंगो आइसक्रीम निकाली औऱ अपना मन हल्का करने के लिए टीवी ऑन कर लीं । टीवी पर एड आ रहा था - "जीवनसाथी डॉट कॉम का" । एक पिता सेहरा लिए हुए लड़के के पीछे दौड़ लगा रहे थें । बरबस ही मेरी उँगलियाँ रिमोट के लाल बटन पर चली गई औऱ बटन प्रेस होते ही टीवी स्विच ऑफ हो गई। रिमोट को सोफ़े पर फेंक कर मैं बॉलकनी में आ गईं। मेरे हाथ में पिघलती आइसक्रीम को देखकर मुझें महसूस हो रहा था जैसे मेरा दिल पिघल रहा हों ।

तभी मेरे मोबाईल पर मैसेज बीप बजी। मैंने मोबाइल देखा तो मेरे स्कूल के क्लास टीचर अमित पांडेय सर का मैसेज था । सर ने एक कार्ड व्हाट्सएप किया था जिसमे बेंच नंबर 2004 के विद्यार्थियों के लिए आयोजित मिलन समारोह के लिए निमंत्रण था। कार्ड के नीचे कैप्शन में सर ने लिखा था पति व बच्चों को भी लेकर आ सकते हैं । कैप्शन मानो मुझें चिढ़ा रहा हों । मैंने फोन को रख दिया औऱ बॉलकनी में लगे रातरानी के पौधें को निहारने लगीं। रातरानी की भीनी - भीनी खुशबू मुझें सुकून दे रहीं थीं औऱ एक सबक भी की अकेले अपने दम पर भी वातावरण को महकाया जा सकता हैं जिसके लिए अन्य पोधों की तरह सूर्य प्रकाश का होना जरूरी नहीं हैं ।

मैंने रातरानी से नजरें हटाई औऱ अनंत आसमान को ताकने लगीं। असंख्य तारों के बीच अकेला चांद अपनी चाँदनी को धरा पर छिटक रहा था।
तभी फोन की घण्टी बजी। मेरी स्कूल फ्रेंड संजना का फोन था। मैंने कॉल रिसीव किया।

" हेलो मिस मालिनी " - संजना ने चहकते हुए कहा।

हेलो संजना ! हाऊ आर यु ? कॉल्ड ऑफ्टर सेवरल डेज ...

संजना - हाँ , अमित सर ने इनविटेशन कार्ड सेंड किया था । तू भी आ रहीं हैं न ?

हम्म ! देखती हूँ - मैंने बूझे मन से कहा ।

संजना से बात करने के बाद मैं सोने चली गई । कल मुझें जल्दी उठना हैं , क्योंकि मुझें कल प्रेजेंटेशन देना हैं।

शेष अगले भाग में ......