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मैरीड या अनमैरिड (भाग-7)

यादों की किताब जब खुलती हैं तो उसके पन्नों से अक्सर ख़ुशनुमा लम्हों की महक आती हैं । हर पलटता हुआ पन्ना दिल को एक रूमानी अहसास से भर देता हैं ।

आनंद को गाता हुआ देखकर मैं अपने अतीत में खो गई । आनंद क्लास 10th में न्यू स्टूडेंट की तरह आया था पर उसके वाचाल औऱ मिलनसार स्वभाव के कारण चंद दिनों में ही वह लगभग आधी क्लास का दोस्त बन गया था। आनंद कभी कोई क्लास बंक नहीं करता । वह हमेशा फर्स्ट बेंच पर बैठना पसंद करता था औऱ इधर - उधर की बातों पर ध्यान देने की बजाय हमेशा पढ़ाई में मशरूफ़ रहता। आनंद औऱ मेरी दोस्ती की वजह भी यहीं थीं । आनंद बिल्कुल मेरी तरह था। हम दोनों जब भी फ्री होते तो केन्टिंग में समोसे खाने जाते। केन्टिंग में हम दोनों पुरानी फ़िल्म के गीत गुनगुनाते।

साल बीतते गए औऱ हमारी दोस्ती औऱ भी गहरी होती गईं । हमने एक ही कॉलेज में एडमिशन लिया। आनंद ने मुझें कभी भी किसी बात पर ऐसा महसूस नहीं करवाया जिससे मुझें लगे कि वह मुझ पर कोई बात थोप रहा हैं । बहुत सी बातें ऐसी भी होतीं थी जहाँ हमारे विचार नहीं मिलते थे। पर आनंद हमेशा यहीं कहता कि तुम जिस नजरिये से देख रहीं हो वह भी सही हैं । हम दोनों की आपसी समझ बहुत अच्छी थी । यहीं वजह थी कि हम दोनों का कभी भी झगड़ा नहीं हुआ। लेक़िन 14 फ़रवरी का वह दिन हमारी दोस्ती पर काल बनकर आया था। उस दिन आनंद गुलाब के फूल औऱ कार्ड लिए मेरे पास आया था औऱ उसने कहा था - कॉलेज के एक लड़के ने तुम्हारे लिए दिया हैं। वह लड़का कौन था यह तो मुझें आज भी नहीं पता। पर मेरा गुस्सा आनंद पर ही फूटा। मैंने कार्ड औऱ फूल आनंद के मुहँ पर फेंकते हुए कहा था - किसी के मैसेंजर बनकर आए हो ? जबकि तुम्हें अच्छे से पता हैं मुझें इन बातों से सख्त नफ़रत हैं। आज के बाद मुझें अपनी शक़्ल भी मत दिखाना। गुस्से से आग - बबूला होकर में वहाँ से चली गई थीं । मैंने आंनद के नम्बर ब्लैक लिस्ट में डाल दिये थे। मार्च में फाइनल ईयर के एग्जाम थे जो अप्रैल फर्स्ट वीक तक चले। एग्जाम के बाद मैं अपनी नानी के घर चली गईं । परीक्षा परिणाम के समय भी मैं कॉलेज नहीं गई। मैंने यूनिवर्सिटी में टॉप किया था। उसके बाद मुझें जॉब का ऑफर मिल गया औऱ मैं बेंगलुरु आ गईं । 14 फरवरी पर जो झटका आनंद ने मुझें दिया था उस झटके से हम दोनों की दोस्ती टूट गई। न उसने कभी मुझसे बात करने की कोशिश की न मैंने ।

अतीत की कड़वी यादों ने मन को भारी कर दिया था। मुझें अपना हलक सूखता हुआ महसूस हुआ। मैं पानी लेने के लिए स्टॉल की औऱ जा ही रहीं थीं कि हाथ में पानी की बॉटल लिए हुए आनंद मेरी ही तरफ आता दिखाई दिया । मेरे नजदीक आकर उसने बॉटल को मेरी औऱ बढ़ाते हुए कहा - मुझसें फिर से दोस्ती करोगी....?

मैंने मुस्कुराकर कहा - हाँ

हम दोंनों कुर्सी पर बैठ गए। आनंद औऱ मेरी दोस्ती के समीकरण अब बदल गए थे । अब हम बेतकल्लुफी से बात नहीं कर रहें थे। सालों बाद हुई बातचीत में झिझक औऱ औपचारिकता ही महसूस हो रहीं थीं। आनंद ने कुछ देर चुप्पी साधने के बाद कहा - आई ऍम वेरी सॉरी मालिनी! मुझें उस दिन ऐसा नहीं करना था। तुमने जो गुलाब मेरे मुहँ पर मारे थे उसके काँटे भी मुझें इतने नहीं चुभें थे पर तुमसे दोस्ती टूट जानें का दंश सालों तक चुभता रहा।

"एक्चुअली मुझें भी अफ़सोस हैं उस दिन के अपने बर्ताव पर"- मैंने अचकचाकर आनंद से कहा । वो बात ये हैं आनंद कि कई बार हम दुनिया को अपने नजरिये से देखने लगतें हैं । हम इतने खुदगर्ज हो जाते हैं कि हम चाहतें हैं कि हमारे अपने हमे उसी नज़र से देखें जैसा हम चाहतें हैं।

हम्म! आनंद ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा ।
खैर छोड़ो , औऱ सुनाओ कैसी कट रहीं हैं ज़िंदगी ?

मैंने हँसकर कहा - जब स्कूल-कॉलेज में थीं तब लगता था मानो सपने औऱ ज़िंदगी दोनों मेरी मुट्ठी में कैद हैं। अब लगता हैं ज़िंदगी मुट्ठी से फ़िसलती रेत की तरह फ़िसल रहीं हैं। बड़े शहर में आधी अधूरी जिंदगी जीती हुँ । चॉपस्टिक से खाना सीख लिया हैं। सो कॉल्ड सक्सेसफुल ज़िंदगी से ख़ुश हुँ। तुम बताओं कुछ ?

आनंद मेरी बात पर मुस्कुरा दिया औऱ बोला - तुम बिल्कुल भी नहीं बदली। बस चेहरे पर अब वो लड़कपन नहीं हैं। अपने बारे में क्या कहूं ? तुमसे दोस्ती टूट जाने के बाद मैं भी बहुत टूट गया था। मैंने भी भोपाल छोड़ दिया औऱ दिल्ली चला गया था। अब आर्किटेक्चर हुँ । कुछ महीनों पहले पापा गुज़र गए इसलिए अब भोपाल में ही रह रहा हूँ।

मैंने दुःख करते हुए कहा - ओह बहुत बुरा हुआ। मुझें तो पता ही नहीं चला। वरना तुमसे सम्पर्क जरूर करतीं।

अचानक हम दोनों चुप हो गए। आनंद मंच की औऱ देखने लगा औऱ मैं अपने मोबाइल में देखने लगीं। मुझें सच में आनंद के लिए बहुत बुरा लग रहा था। आनंद की मम्मी उसे बचपन में ही छोड़कर चली गई थीं , जिन्हें याद करके अक़्सर उसकी आँखें गीली हो जाया करतीं थीं। आनंद कितना अकेला हो गया होगा न ? सोंचकर ही मेरा दिल किसी सूखे हुए पत्ते की तरह कांप उठा।

मैं आनंद से एक प्रश्न पूछना चाहतीं थीं - मैरिड या अनमैरिड ?

जिस प्रश्न को सुनकर मैं चिढ़ जाया करतीं हुँ वहीं प्रश्न मैं आनंद से कैसे पूछूं ?

शेष अगले भाग में....