Nishbd ke Shabd - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

नि:शब्द के शब्द - 4

नि:शब्द के शब्द - धारावाहिक - चतुर्थ भाग

अभी तक आपने पढ़ा है कि, मोहिनी की आत्मा भटकते हुए अपने मंगेतर मोहित से न केवल मिलती ही है बल्कि उसे सब कुछ बता देती है। मोहित के चाचा के लोग उसे मारने की साजिश करते हैं, पर मोहिनी उसकी रक्षा करती है।

आत्माएं कहां रहती हैं? कौन उनकी हिफाजत करता है? मरने के बाद उनका कैसा संसार और आत्मिक जीवन होता है? इन समस्त बातों की जानकारी केवल सुनी हुई कहानियों के आधार पर लिखी गई हैं, किसी भी धर्म विशेष से इसका कोई भी संबंध नहीं है और ना ही कोई प्रचार आदि करना है। इस कहानी में लिखी गई सारी बातें मात्र एक कल्पना है और कहानी की रोचकता को बनाए रखना है।



मनुष्य का पुत्र


'उस राजा के महल के बाहर सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है- 'शान्ति का राज्य- मनुष्य का पुत्र.'

'फिर?' मोहित ने पूछा.

'अगर वह भगवान है, अथवा ईश्वर जैसी शक्ति रखता है तो मैं उससे विनती करूंगी कि, मुझे फिर से संसार में भेज दे.'

'क्या बात करती हो? ऐसा कभी हुआ है. कोई मर कर भी वापस आया है?'

'यूँ, तो भटकी हुई आत्माओं पर भी कोई विश्वास नहीं करता है, लेकिन मैं ही तुम्हारे सामने बैठी हुई हूँ.'

'हां, यह तो है?'

मोहित सुनकर चुप हो गया.

'इसलिए, मैं वहां जाऊँगी और उसके पैरों पर गिर कर रोऊंगी. हाथ जोड़कर क्षमा मांगूगी, कि मुझे तुम्हारे पास फिर से भेज दे.' मोहिनी ने कहा तो मोहित कुछ भी नहीं बोला. केवल बड़ी हैरत के साथ मोहिनी की आत्मा को देखता रहा.

कुछेक पलों तक, मोहित के कमरे में खामोशी बनी रही. दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोला. केवल चुप बने रहे. चुप बैठे हुए सोचते रहे, अपने उस प्यार के दीपों के लिए, जो अपनी रोशनी दे भी नहीं पाए थे कि, उनकी तकदीर ने उन पर अपनी गाज़ गिरा दी थी.

'अब मुझे चलना चाहिए. देर से पहुंची और अगर पकड़ी गई तो फिर हमेशा के लिए कैद कर दी जाऊंगी.'

'ठीक है. अपना ध्यान रखना.' मोहित बोला.

'मैं, तो अपना ध्यान रखूंगी ही, लेकिन तुम भी होशियार रहना और भूल कर भी अपने चाचा के लड़कों के साथ कहीं भी अकेले मत जाना.'

यह कह कर मोहिनी, वायु की तीव्रता के साथ अपने स्थान से उठी. पल भर में ही वह अपने ही स्थान पर लोप हुई और बाहर निकल गई. मोहित ने आश्चर्य के साथ दरवाज़े के पटों के बंद होने की आवाज़ सुनी और फिर उन्हें अपने ही स्थान पर थिरकते हुए देखता रहा.

- - -

दूसरा दिन.

आकाश में सूर्य तमतमा रहा था. एक बड़ा ही अजीबो-गरीब चौंका देने वाला दृश्य था. आसमान बादलों से ऊपर बिलकुल रिक्त, शून्य और नीला था. सूरज अपने पूर्ण जोश के साथ अपनी गर्माहट पर था, लेकिन बादलों के नीचे, धरती के बदन पर धुआंधार बारिश हो रही थी. धरती पर एक प्रकार से प्रकृति और वातावरण का प्रकोप छाया हुआ था. लोग इस तीव्र वर्षा के कारण अपने-अपने घरों में चुप और शांत बैठे हुए थे और बादलों के ऊपर नीलाकाश में दिल को तसल्ली देनेवाली शान्ति फ़ैली हुई थी.

इसी शान्ति के सहारे, मोहिनी की आत्मा डरते-कांपते हुई बड़ी दूर से, पाले से भी अधिक सफेद बादलों की ओट से चुपचाप उस राजमहल को देख रही थी, जिसकी हरेक वस्तु चोखें सोने के समान अपनी चमक फैला रही थी. उस राजमहल के गढ़ की दीवारें तक बड़ी दूर से सोने-चांदी की मिली हुई अपार चमक से जैसे सभी की आँखें चौंधिया रही थीं. सबसे अजीब और अनोखी बात थी कि, देखने से यह स्थान सचमुच ही एक राज्य के समान अपनी शान बिखेर रहा था. इस राजमहल की किसी भी दीवार पर, कहीं से भी देखो तो एक ही बात लिखी हुई दिखाई देती थी- 'शान्ति का राज्य- मनुष्य का पुत्र'. इसके अतिरिक्त, एक अन्य और आश्चर्य की बात जो थी, वह यही कि, राजमहल, जो एक गढ़ के ही समान दिखाई देता था, उसकी मीलों लम्बी दीवार थी और दीवार की ऊंचाई भी कोई नाप नहीं सकता था. एक राजा का राज्य होते हुए भी, राजमहल की दीवार के बाहर, उसके आस-पास उसकी सुरक्षा के लिए, एक भी सैनिक दिखाई नहीं देता था. कोई भी किले जैसा विशाल गेट और गेट के बाहर सिपाही आदि भी नहीं थे. राजमहल को चारों तरफ से सफेद बादलों के सायों ने घेर रखा था. चारो तरफ बड़ी प्यारी शान्ति का आलम पसरा हुआ था. फिर भी किसी भी जीवित प्राणी और मनुष्य आदि के समान चलते-फिरते जीवों से शून्य इस अद्धभुत राज्य की सरहदें अनिश्चित और संदेहयुक्त प्रतीत होती थी. यदि कुछ दृश्य प्रभावित करता था, तो वह थी उसकी अपार सोने-चांदी जैसी चमक. मोहिनी की समझ में कुछ भी नहीं आता था कि, यह सोने की किले जैसी दीवारों से सुरक्षित और घिरा हुआ महल, जिस पर एक राज्य के बारे में और राज्य के राजा का भी अजीब ही नाम- 'मनुष्य का पुत्र', लिखा हुआ है, क्या आत्माओं का संसार है? दुष्ट और भूतों की दुनिया है? अथवा नर्क और स्वर्ग जैसा कोई स्थान है?

मोहिनी ने दूर से देखते हुए बहुत कुछ सोचा. उसने इस प्रकार के शान्ति भरे राज्य के लिए संसार में रहते हुए ना तो कभी किसी किताब में पढ़ा था और ना ही किसी के मुख से सुना था. हां, इतना जरुर था कि वह विश्व शान्ति जैसी बातों के बारे में राजनीति और अखबारों में तो अवश्य सुन और पढ़ लेती थी, परन्तु वास्तविक शान्ति को उसने इस नई दुनियां में मरने के बाद ही महसूस किया था. यह ऐसी शान्ति थी कि, मानव जीवन के हर दुःख, चिंता, बीमारी और परेशानी आदि से वंचित थी और जहां पर भूख-प्यास जैसी भी कोई बात नज़र नहीं आती थी. राजमहल और उसके आस-पास का सारा आलम सफेद रोशनी के झाग में नहाया हुआ था और मजे की बात थी कि, वहां पर कोई भी विद्दुत की रोशनी, पानी के जलाशय, नदी, वृक्ष और चाँद-सितारों, सूर्य जैसी भी कोई दुनिया नहीं थी.

मोहिनी ने हिम्मत की. साहस जुटाया और वह जैसे सबसे छुपती-छिपाती हुई राजमहल की दीवार के पास जाने के लिए आगे बढ़ने लगी. हांलाकि, उसे वहां पर कोई भी नहीं दिखाई देता था, परन्तु उसे ऐसा प्रतीत होता था कि, मानों लाखो गुप्त आँखें उस पर निगरानी कर रही हैं. अन्धेरों में जासूसी करती हुई आँखें अपनी चमक से फिर भी पहचान ली जाती हैं, मगर जब यही आँखें भरपूर चकाचौंध, ज्वाला जैसी प्रज्वलित रोशनी में किसी की भी छुप कर निगरानी करें तो इन्हें कैसे पहचाना जा सकता है?

इन्हीं सारी बातों के विषय में, मोहिनी डरती, कांपती हुई जैसे ही राजमहल की दीवार के सामने पहुँची, अचानक किसी भयंकर तूफानी, बादलों जैसी गड़-गड़ाहट की आवाजों साथ किसी किले के विशाल, भारी दरवाज़ों के खुलने का भारी स्वर सारे आसमानी वातावरण में फैल गया. इस प्रकार कि मानों एक साथ, लाखों बब्बर शेर किसी सूने और खामोश जंगल में दहाड़ने लगे हों.

मोहिनी ने सुना तो मारे भय के उसकी चीख ही निकल गई. वह अपनी दोनों आँखें बंद करके, वहीं नीचे गिर पड़ी और अचेतन जैसी अवस्था की शिकार हो गई. तभी अचानक से एक आवाज़ उसके कानों में सुनाई दी,

'भटकती हुई लड़की की परेशान रूह, क्या तुम्हें मालुम नहीं है कि, यहाँ किसी को भी बगैर अनुमति आने की इजाजत नहीं है?'

'?'- मोहिनी ने भय के साथ अपनी आँखें खोली- सामने देरखा तो पहले से और भी अधिक अचरज से भर गई. उसके सामने दूध के सफेद झाग से भी अधिक दूधिया और सफेद सिपाहियों की पोशाकों में लाखों की, मीलों तक फैली हुई फौज, अपने-अपने हाथों में नंगी तलवारें लिए हुए, उसका मार्ग रोके हुए खड़ी हुई है.

'?'- तुमने सुना कि, हमने क्या कहा है?'

'हां.' जाने कैसे मोहिनी के मुख से निकल गया.

'तो फिर वापस चली जाओ.'

'कहाँ पर वापस चली जाऊं? मेरा तो ठिकाना ना यहाँ है और ना ही संसार में?'

'हमें पता है.'

'तो फिर मैं क्या करूं?'

'इस बारे में हमें कोई भी फैसला करने का ना तो अधिकार है और ना ही कोई भी इजाजत.'

'मैं, आपके महान राजा, जिनका नाम, 'मनुष्य का पुत्र' लिखा हुआ है, से एक बार मिलना चाहती हूँ.'

'हम, तुमको बगैर इजाजत प्रवेश की अनुमति नहीं दे सकते हैं.'

'तो बताइए कि, मुझे यह अनुमति कैसे और कहाँ से मिलेगी?'

'यह भी हम नहीं बता सकेंगे, क्योंकि जब हमें आदेश मिलता है तभी हम उस इंसान को लेकर यहां आते हैं.'

'कैसा है आप लोगों का यह अनोखा शान्ति का राज्य और इसके नियम?'

'वापस चली जाओ.'

'?'- मोहिनी बेबस होकर रोने लगी तभी अचानक से फिर जैसे हजारों बादलों की गर्जन के साथ एक बड़ा ही कोमल और मीठा शब्द सुनाई दिया,

- इस दुखिया और परेशान बाला को राज दरबार में आने दिया जाए.'

'?'- तुरंत ही खुले हुए दरवाज़े खुले रहे और उसके सामने एक ऐसा लम्बा और सीधा मार्ग दिखाई दिया जिसके नीचे और दाए, बांये, चारों दिशाओं से सफेद अग्नि जैसी ज्योति दिखाई दे रही थी.

'आप अंदर जा सकती हैं.' किसी ने मोहिनी से कहा और फिर पलक झपकते ही मीलों तक खड़ी हुई अतिवाहिकीय जैसी सेना लुप्त हो गई. यह सब देख कर मोहिनी ने आगे बढ़ना चाहा तो उसे ऐसा लगा कि वह किसी सवारी पर बैठी हुई तो जा रही है, मगर ले जानेवाली सवारी भी दृश्यविहीन है. वह किस वाहन पर बैठी है, कौन उसे ले जा रहा है और वह कहाँ जा रही है? मोहिनी कुछ भी समझ नहीं पाई.

मोहिनी ने मीलों तक लम्बी यात्रा पूरी की, मगर उस यात्रा को पूरा करने में कुछेक पल ही लगे- मोहिनी यह सब देख कर हैरान थी. तभी अचानक से कोई तीव्र भागती-सरकती हुई, वायु से अधिक तेज वाहन-गाड़ी-सी थमी और मोहिनी को एक झटके से उतारकर जैसे हवा में ही विलीन हो गई. मोहिनी आश्चर्य से यह सब देख ही रही थी कि, उसी समय उसकी आँखों के सामने तेज धधकता हुआ सूर्य के गोले जैसा प्रकाश उसके सामने प्रस्फुटित हुआ. मोहिनी जान गई थी एक कौंधते हुए तीव्र प्रकाश के साथ आने वाला उससे मीलों दूर खड़ा दिखाई देता था, मगर जब वह उसे ध्यान से देखती थी तो वह बहुत करीब तो दिखता था, मगर उसके तेज को वह अपनी आँखों से नहीं देख सकती थी. देखते ही देखते वह सूर्य के गोले जैसी चमक के साथ आने वाला अपने भव्य सिंहासन पर विराजमान हो गया. उसके चेहरे पर इतना अधिक प्रकाश फैला हुआ था कि, उसका चेहरा कोई भी नहीं देख सकता था. केवल मुखमंडल के सामने जैसे कोई नया सूरज धधक रहा था. मोहिनी ने चुपचाप अपना सिर नीचे झुका लिया.

तभी उस विराजमान राजा ने अपनी बहुत ही कोमल आवाज़ में मोहिनी से कहा कि,

- बेटी ! मुझे तुम्हारी परेशानी ज्ञात है. फिर भी मुझे तुम्हारी बहुत सी बातें पसंद नहीं हैं. -

'?'- मोहिनी चुप ही रही.

- तुम सारे नियम तोड़कर संसार में जाती हो. अपने प्रेमी से मिलती हो और उसे बचाने के लिए लोगों की हत्या भी करती हो? -

'?'- मोहिनी कुछ भी नहीं कह सकी.

- लेकिन, आज के बाद फिर कभी भी ऐसा नहीं करना. प्रायश्चित करो और क्षमा मांगों, तभी मैं तुमको न्यायालय में बचा पाऊंगा. -

'मैं, बहुत अधिक शर्मिंदा हूँ. अब कभी फिर ऐसा नहीं करूंगी.'

- मैं जानता हूँ, तुम बार-बार संसार में क्यों जाती हो? -

'जब जानते ही हैं तो मेरे जाने की परेशानी को हल भी कर दें.'

- कर तो दूँ, मगर तुम्हारे लिए शरीर कहाँ से लाऊंगा? -

'प्रभु, आपके लिए तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है?'

- नामुमकिन तो नहीं है, परन्तु नियम नहीं तोड़े जाते हैं. हमारे अनंत राज्य के भी नियम होते हैं.-

'?'- मोहिनी खामोश हो गई.

- पर हां, तुम्हारी समस्या हल हो सकती है. -

'?'- मोहिनी के मुख पर अचानक ही प्रसन्नता की एक लहर आ गई.

- तुमको, किसी दूसरे शरीर में भेजा जा सकता है, लेकिन उसके बाद तुमको बहुत सारी दुनियाबी परेशानियों से सामना करना पड़ेगा. -

'मुझे मंजूर होगा, इस दुनियां के कर्त्ता.'

- तो फिर इंतज़ार करो. जब भी तुम्हारे समान, तुम्हारी ही उम्र की कोई आत्मा, तुम्हारे ही जैसा कोई शरीर छोड़ कर यहाँ आयेगी, तुमको उसके शरीर में, भेज दिया जाएगा. -

'?'- मोहिनी मारे प्रसन्नता के जैसे अपने ही स्थान पर उछल-सी पड़ी.

- और अब तुमको संसार में शरीर के साथ ही भेजा जाएगा. जब तक तुम्हें नहीं भेजा जाता है, तब तक इसी राज्य की सीमा में, तुम्हें आत्माओं के संसार में रहना होगा. -

- दूसरे ही पल वह एक ऐसे स्थान में खड़ी थी, जहां पर सैकड़ों, लाखों आत्माएं हर तरफ विचरण करती नज़र आती थी. कितनी ही एक बड़े से मैदान में भागती थी, दौडती थीं. कितनी ही वृक्षों पर बैठी थी, अपने पैर लटकाए हुए आपस में बातें करती थीं. वे आपस में हंसती थी तो लगता था कि, चीख और चिल्ला रहीं है. बड़ा ही डरावना और भयानक दृश्य था. आपस में खेलती और भागती थीं. भागते हुए जब भी वे एक-दूसरे को पकड़ना चाहती थीं और उन्हें रोकने के लिए, उनके बालों को पकडती थीं तो मीलों तक उनके बालों के साथ, उनके शरीर भी लम्बे होकर खींचते ही चले जाते थे.

कितनी अजीब-सी दुनिया थी इनकी? जब ये संसार में थीं तो, इन्हें हसीनों की मलिका कहा जाता था. लोग इन्हें देखते ही आहें भरते थे, फिकरे कसते थे, कोई इन पर मरने को कहता था तो कोई इनके लिए अपनी जान हथेली पर लिए फिरता था. सबसे अजीब बात थी कि, यह सब आत्माएं केवल स्त्रियों ही की थीं. मनुष्यों की कहाँ और किस दिशा-क्षेत्र में थीं, किसी को भी नहीं मालुम था.

ये सारी भटकी हुई आत्माएं, अपनी ही आत्मिक दुनिया में, ना मालुम खुश थी? परेशान और दुखी थीं? मगर, हंसती थीं, खेलती थीं, चीखती और चिल्लाती थीं, आपस में मानो, लड़ती और झगड़ती भी थीं. देखते ही प्रतीत होता था कि, दुनियां-जहान का शोर यहाँ समाया हुआ है, पर ये शोर नीचे की सांसारिक दुनिया में किसी को भी नहीं सुनाई देता था.

मोहिनी, चुपचाप एक स्थान पर, अपने घुटनों को मोड़कर बैठ गई और अपने दोनों हाथों को अपने मुड़े हुए घुटनों पर बंद करते हुए, उसने अपना सिर घुटनों पर रख कर आँखें बंद कर लीं. वायु नहीं थी, फिर भी उसके लम्बे बाल ना मालुम किस वायु-वेग प्रवाह से उड़ते हुए आपस में कभी बिखरते थे तो कभी जालियां-सी बना रहे थे.

- क्रमश: