Ek Ruh ki Aatmkatha - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

एक रूह की आत्मकथा - 21

कामिनी और अपने पति समर को एक साथ रहते देख लीला के सीने पर सांप लोट रहा था।वह बार -बार रेहाना के घर दौड़ रही थी।उससे समाधान सुझाने को कहती पर रेहाना क्या कहती?उसके अपने ही जीवन में इतनी घटनाएं घट चुकी हैं कि वह खुद से ही दूर भागती रहती है।
अभी अभी लीला उसके घर से गई थी।रेहाना मानसिक रूप से इतना थक गई थी कि आज उसने ऑफिस से छुट्टी लेने का मन बना लिया और बिस्तर पर लेट गई।थोड़ी देर में ही वह गहरी नींद में थी।अचानक उसके सपनों में उसका अतीत एक फ़िल्म की रील की तरह चलने लगा।
पाँच वर्ष पूर्व
रेहाना को ऐसा लग रहा था जैसे उसके प्राण निकल जायेंगे। जैसे वह चिता पर लेटी हुई है या फिर नरक की आग में जल रही है। इतनी जलन- इतनी तड़प- इतनी बेचैनी......उफ, रह-रहकर सीने में ऐसी तकलीफ होती जैसे वहाँ आग का गोला अटक गया हो। वह बार-बार तड़पकर रोने लगती। उसके हाथ दुआ के लिए ऊपर उठ जाते- 'या खुदा, रहम कर....रहम ! मुझे इस तकलीफ से निजात दिला।’ पर दर्द था कि बढ़ता ही जा रहा था। वह सोच रही थी तो क्या यह उसके पापों का दण्ड है ? पाप ! पर उसने तो कोई पाप नहीं किया है-हाँ प्रेम जरूर किया है....प्रेम ! पर कौन मानेगा इसे प्रेम ! पर पुरूष से स्त्री का प्रेम हमेशा कठघरे में खड़ा रहा है !क्यों हो गया था उसे प्रेम।उसे याद है जब पहली बार रमेश ने प्रेम का नाम लिया था, उसने बुरी तरह डाँटा था उसे। वह विवाहिता थी। उससे मजाक का रिश्ता था, इसलिए सबके सामने भी वह उससे मजाक करता रहता। सब उसकी उम्र देखकर बात हँसी में टाल देते। कम से कम उम्र में उससे पाँच साल छोटा तो था ही वह। वह उसके शौहर की मित्रमंडली में था और जब सब लोग सपरिवार किसी महफ़िल में उपस्थित होते, वह उसके इर्द-गिर्द ही रहता ।वह दूसरी औरतों का मज़ाक बनाता और उसकी तारीफों के पुल बाँधता रहता। अपनी दूसरी भाभियों से भी वह उसकी प्रशंसा करता। उसके बाल ,उसकी आँखें, उसके होंठ, उसका भोला चेहरा और उसकी योग्यता रमेश की बातचीत के प्रिय विषय थे । वह उसका प्रशंसक है यह बात सभी जानते थे। वह कभी भी उसे फ़ोन कर सकता था, उससे मिलने आ सकता था। उसके पति को भी इस पर कोई ऐतराज न था क्योंकि ऐसी-वैसी कोई बात ही न थी। पूरे तीन वर्ष तक ऐसे ही चलता रहा। वह उसका ध्यान रखता, उसकी परेशानियों को उसके शौहर आदिल से ज़्यादा समझता। फोन के माध्यम से जैसे हर पल उसके पास ही होता था ।वह उसके शौहर आदिल को मजाक में कौआ कहता और उसे ’हंस’। पार्टियों में आदिल को हटाकर खुद उसके पास बैठ जाता और कहता-’'अब हुई न जोड़ी , आप भी गोरी मैं भी गोरा । काले भाई साहब को छोड़िए, मेरे पास रहिए। उनसे ज्यादा ही कमाता हूँ।’'
बात मजाक में उड़ जाती। उसने देवर का पूरा स्नेह उसकी झोली में डाला था। उसके अपने देवर उससे बात करना तो दूर उसे भाभी -जान तक न कहते इसलिए वह उसे और भी प्यारा लगता।आदिल को सिर्फ उसकी देह से मतलब था। वे कभी उसकी भावनाओं को समझने का प्रयास नहीं करते थे। वह एक कल्पनाशील, भावुक स्त्री थी ,जिसे जीवन में किसी ने प्यार नहीं किया था। न माँ-बाप ने, न किसी भाई-बन्धु ने। न कोई हितैषी रिश्तेदार था, न हमदर्द दोस्त। कड़ा संघर्ष करके उसने अपना एक मुकाम हासिल किया था और आत्मनिर्भर हुई थी पर बहुत अकेली थी वह। इसी अकेलेपन से उबकर उसने निहायत शरीफ लगने वाले दिखने में बिल्कुल ही साधारण व बेरोजगार आदिल से विवाह कर लिया था। इस विवाह ने उसे रहे-सहे रिश्तों से भी काट दिया था पर उसने यह सोचकर सब्र कर लिया कि विवाह के बाद तो वैसे ही लड़की को माँ से जुड़े रिश्तों को छोड़ना पड़ता है।उसने सोचा था कि पति का परिवार उसे अपना लेगा। प्यार व सम्मान देगा,पर उसका यह सपना भी टूट गया। वह पारम्परिक बहू की भूमिका में रही तो उन्होंने उसे गरीब और गंवार समझा। उसे हर कदम पर उपेक्षित किया । ससुराल में उसे तमाम तरह की मानसिक यंत्रणाओं के दौर से गुजरना पड़ा।ससुराल पक्ष पैसे वाला था| परिवार में आदिल को छोड़ सभी अच्छी नौकरियों में थे|नव धनाढ्य थे ।सारी सुख-सुविधाओं से लैस पर सब कुछ उनके अपने लिए था|वह तो खैर पराई थी पर घर के सबसे बड़े लड़के आदिल की भी वहाँ कोई इज्जत नहीं थी।आदिल ने जब इस वस्तुस्थिति को भाँप लिया कि उनके घर वाले उनके रिश्ते को मन से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं तो उसे लेकर सड़क पर आ गये। उसने इसका विरोध किया था। उसने कभी-भी वह घर छोड़ना नहीं चाहा था पर निर्णय लेने के मामले में वह हमेशा ही कमजोर रही थी। वह आर्थिक रूप से सक्षम थी, नौकरी करती थी इसलिए कुछ वर्ष किराये के मकान में गुजारने के बाद अपना एक छोटा -सा घर बना लिया। अपना घर । अपनी सारी पूंजी उसने इसमें लगा दी पर आदिल को यह अच्छा न लगा। जमीन उसने विवाह पूर्व लिया था इसलिए उसके ही नाम था, जिसे उसने बदला नहीं। आदिल को इस बात का हमेशा मलाल रहता। इधर वे एक आफिस में पन्द्रह-सौ की नौकरी करने लगे थे। नौकरी और घर दोनों जगह खटते हुए उसने आदिल से मानसिक सहयोग चाहा। आर्थिक रूप से वे कमजोर थे इसलिए खर्च से उन्हें मुक्त ही रखा पर वह साथ देने को तैयार न थे। परिवार और समाज के लोग उसके इस विवाह को स्वीकृति नहीं दे रहे थे क्योंकि उनका विवाह वह पारम्परिक विवाह न था जिसमें जाति, खानदान और अर्थ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उन्होंने लव मैरिज किया था।लोगों की इस मानसिकता के कारण कभी- कभी वह तमाम तरह की उलझनों में गिरफ़्त हो जाती और चाहती कि आदिल उसकी तकलीफ़ बाँटें। आदिल ने उसका दुःख समझते हुए भी ऐसा कभी नहीं किया। उसकी तकलीफ़ उन्हें हल्की और फालतू लगती। वह अपने मकान को घर जैसा बनाने में उनका साथ चाहती । उनका कुछ समय और ध्यान चाहती पर वे निरर्थक कार्यो में अपना सारा समय, सारी ऊर्जा खर्च कर कराहते हुए घर में प्रवेश करते। वह झुंझला जाती । उनसे लड़ती-झगड़ती भी पर उन पर कोई असर नहीं होता था। वह उन्हें प्यार करना चाहती थी पर उसे उनमें प्यार करने लायक कुछ भी नहीं मिलता था। वह हताश-निराश होकर दूसरे कामों में लग जाती। वे उसे प्राप्त की जा चुकी निरर्थक वस्तु समझते। उसके विचार उन्हें दोयम दर्जे के लगते। वे अपने मित्रों में उसे मूर्ख, पागल, स्वार्थी, अवसरवादी, महत्वाकांक्षी और जाने क्या-क्या कहते थे । वह खूब रोती-तड़पती। अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो जाती। फिर खुद को समझाकर उन्हें माफ कर देती। आखिर करती भी क्या ! विवाह का निर्णय भी तो उसका अपना था। उनके मित्र भी उनके पक्ष में रहते। उसका कोई न था ।कभी-कभी तो उनके मित्र भी उसका अपमान कर देते और वे मुस्कुरा कर आनन्द लेते। अपने घर-वालों से भी उन्होंने चोरी-छिपे रिश्ता जोड़ लिया था। उसके न रहने पर उन्हें घर बुलाते और उनको ज्यादा समय देते। उसे इस बात से शिकायत न थी। शिकायत थी तो बस इस बात की कि यह सब उससे छिपकर करते थे। उसने कभी उनको अपने घर जाने से रोका नहीं था और ना ही वे मना करने पर मान जाने वाले जीव थे । उनके घर वाले सबसे उसकी शिकायत करते। इस बात की जानकारी होने पर भी वे चुप ही रहते जैसे वह सचमुच गुनहगार हो। उसे उनके इस रवैये से बड़ा कष्ट होता था। बड़ा ही शुष्क, नीरस स्वभाव था उनका। दिन-रात शारीरिक, मानसिक श्रम करने के बाद वह थोड़ी खुशी चाहती थी। कम से कम शौहर का मुस्कुराता चेहरा ही दीखे पर वे चेहरा गिराये ,मुँह सिले उसका तनाव बढ़ाते रहते थे। कुछ कहने पर जहर ही उगलते। घर छोड़कर चले जाने की धमकी देते। वह हार रही थी, टूट रही थी। जीवन के सारे रंग उदास हो गये थे। बस अपने काम में इतना व्यस्त रहती कि बाकी चीजें भूल जाये पर उसका मन घुट रहा था। वह धीरे-धीरे खत्म हो रही थी। अकेलापन बढ़ता जा रहा था। मानसिक अकेलापन। वह सोचती, काश ! कोई ऐसा होता जिससे वह मन की बात कर सकती। यूँ तो कहने को सब कुछ था उसके पास पर प्यार न था। कभी-कभी वह उन्हें पास बिठाकर समझाती कि उनकी किस-किस बात से उसे तकलीफ़ होती है और उनसे क्या चाहती है ? उनसे अपने बीते हुए कल , वर्तमान व भविष्य की बातें करती ।साथ ही ढ़ेर-सारी प्यार की बातें भी करती। वे इधर उसकी बात सुनते जाते उधर उनका हाथ उसके शरीर पर फिसलने लगता। उसकी भावनावों को इससे चोट लगती। उसका तन-मन घृणा से भर उठता। सोचती कि कितना स्वार्थी है यह आदमी !वह उन्हें मना नहीं करती थी पर ज्यों ही उनकी इच्छा पूरी होती वे वैसे ही रूखे और मनहूस -सी शक्ल वाले शख्स में तब्दील हो जाते। वे रात-दिन सेक्स में डूबे रहना चाहते जैसे जल्द से जल्द सब कुछ खत्म करके निकल लेना है। धीरे-धीरे उनका यह लक्ष्य भी सामने आने लगा। बिना प्रेम का सेक्स उसकी समझ से बाहर था। वह सोचती कि इस आदमी को उससे जरा- सा भी लगाव नहीं है। उसकी बीमारी के क्षणों में भी वे उसकी देह नोंचने में लग जाते। उसे बड़ी वितृष्णा होती। वह सेक्स को भावना पूर्ण अहसास के साथ जीना चाहती थी पर वे मशीनी अंदाज में सब चाहते थे। वह कब तक रिमोट बनी रहती? काम-काज में भी मशीन और देह सम्बन्ध में भी। आश्चर्य तो यह था कि बाहर ये सबके थे, मित्रों, रिश्तेदारों सबके.........बस उसके न थे। वह अकेले ही घर-बाहर सब जगह जूझती। वे वही सब कुछ करते जो उसे पसंद न था। नशा करते, सूरती-मसाला खाते। गन्दगी से रहते। वह अक्सर उन्हें समझाती-’'मेरा मन खाली मत छोड़ो।’' पर उनके लिए तो वह धीरे-धीरे प्रौढ़ होती स्त्री थी, जिसका कोई महत्व न था। वैसे वे अन्य बातों में बड़े प्रगतिशील थे...........उस पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाते। पर वह स्वयं ही अपने घर-गृहस्थी की मर्यादा से बँधी हुई थी। वह सौन्दर्य-प्रेमी थी। हर काम को सुरूचि पूर्ण ढंग से करने में विश्वास करती थी पर उन्होंने कभी उसकी प्रशंसा न की थी। उसके हर काम को वे जनाना व फालतू समझते।जीवन ऐसे ही गुजर रहा था उदास.........बेरंग कि जाने कैसे रमेश खुशबू के झोंके की तरह उसके मन में समा गया ।