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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 32

 

सोई तकदीर की मलिकाएं 

 

32

 

भोला सिंह जो बात जयकौर से जानना चाहता था , भाभी के आ जाने से वहीं छूट गयी । भोला सिहं रख्खी के सामने जयकौर से बात न कर सका और घबरा कर चौबारे जा चढा । उसे ऊपर भेज कर रख्खी पूजा की तैयारी में जुट गई । सबसे पहले उसने झाङू लाकर चौंका साफ किया । लोटे में साफ पानी लाकर चारों तरफ छिङकाव किया । फिर उसने दो उपले लिए । उन्हें मिट्टी के चप्पन पर रखा । गुग्गल की बत्ती बनाई , धूप जलाई । एक कङछी भर आटा भून कर हलवा बनाया फिर भोला सिंह और बसंत कौर को पुकारा - तैयारी हो गयी है बहन । नीचे आ जाओ ।
उसके बाद वह नीचे कमरे से जयकौर को बुलाने गयी । जयकौर का रोया रोया उदास चेहरा उसकी कहानी खुद कह रहा था । रख्खी को भीतर आते देख कर जयकौर ने अपनी आँखें चुन्नी के पल्ले से पौंछी और सतर्क हो कर बैठ गई ।
उठ और हाथ मुँह धोकर चौंके में ही आ जा । पितर पूजने हैं ।
जयकौर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने जयकौर को हाथ पकङ कर उठाया । जयकौर छोटी बच्ची की तरह उसकी ऊंगली थाम कर कमरे से बाहर निकल आई । फिर उसने बाहर नल पर ले जाकर उसका हाथ मुँह धुलवाया और चौंके में ले आई । तब तक भोला सिंह और बसंत कौर भी आ गये थे । रख्खी ने गुग्गल जलाया । धूप जलाई । थोङी देर में ही पाथियों ने आग पकङ ली । बसंत कौर और रख्खी ने थोङा सा हलवा आग में समर्पित किया । सबने पितरों को हाथ जोङ कर प्रणाम किया और परिवार की सुख शांति के लिए प्रार्थना की । बसंत कौर की आँख से टपके आँसू ने मानो पितरों को अर्घ समर्पित किया । पूजा के बाद प्रशाद खिला कर रख्खी ने दोनों को हिदायत दी – आज पग फेरे की रसम हो जानी चाहिए थी । न हो तो बाई जी , आप ही जयकौर को इसके मायके ले जाओ और फेरा डलवा कर तुरंत वापिस ले आना ।
जी भाभी । आज तो जाना मुश्किल है । थोङा काम है पर कल पक्का जा आएंगे ।
ठीक है । जैसा तुम्हें ठीक लगे पर जा जरूर आना ।
बसंतकौर ने धीरे से कहा – तब तक दोनों न सही , एक सूट तो बन ही जाएगा , पहन कर जाने के लिए ।
हाँ बन तो जाना चाहिए । मैं दोबारा जाकर उसे याद करवा के आती हूँ कि दो नहीं तो एक सूट तो बना ही दे ताकि जयकौर सुबह तो नहा कर पहन ही ले ।
रख्खी अपने घर जाने लगी तो भोला सिंह ने कुर्ते की जेब से पाँच हजार निकाल कर रख्खी को पकङा दिए – ले भाभी , जो मर्जी बनवा लेना ।
रख्खी ने नोट माथे से छुआए और आँचल के छोर से बाँध लिए । जोङी को सौ सौ आसीसें देती हुई गयी ।
शाम को चंद कौर एक सूट सिल कर देने आई तो बसंत कौर ने सुख की सांस ली । अगले दिन सवेरे ही भोला सिंह और जयकौर तैयार हो गये । गेजे के आते ही भोला सिंह ने कार निकलवाई ।जब वे दोनों कार में बैठने लगे तो बसंतकौर ने याद दिलाया – जाते हुए रास्ते से किसी हलवाई से एक डिब्बा मिठाई लेते जाना । पहली बार रिश्तेदारों के घर जा रहे हो ।
ले लूंगा और बता ।
कुछ नहीं ।
फरीदकोट पहुँच कर भोला सिंह ने काऱ बाजार की ओर मुङवा ली । सुनार की दुकान पर जाकर कार रुकी ।
सुबह सुबह बोहनी का समय था । सरार्फ कार से उतरते हुए भोला सिंह के साथ एक औरत को देख कर खुश हो गया । उसने सामने ताक पर रखी गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति को माथा झुकाया और ग्राहकों का स्वागत करने के लिए बाहर दुकान के चबूतरे पर आ गया ।
आओ मालको । राम राम ।
राम राम सेठ । ऐसा कर । एक चेन , कुछ कानों के बालियां कांटे तथा दो चूङियां दिखा । थोङा जल्दी कर । हमें कहीं जाना है ।
सुनार अपनी गद्दी पर जा बैठा और डिब्बे खोल खोल कर सामान दिखाने लगा ।
जयकौर ने धीरे से कहा – इस सब की क्या जरूरत है जी । बाद में कभी ले लेंगे ।
भोला सिंह ने गरदन उठा कर जयकौर की आँखों में झांका । वहाँ अभी अविश्वास और अनिश्चिंतता भरी थी । भोला सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया ।
काफी सारी चीजें देखने के बाद आखिर उन्होंने एक लाकेट , एक चेन , झुमके और दो कङे पसंद किए । वजन हुआ सात तोले । पेमैट करके भोला सिंह ने वह जेवर जयकौर को पहनने को दे दिए । तब तक गेजा साथ ही की हलवाई की दुकान से दो किलो लड्डू बंधवा लाया । यहाँ के काम से निपट कर वे कम्मेआना की ओर चल पङे । कम्मेआना पहुँचते पहुँचते उन्हें ग्यारह बज गये थे । घर पहुँच कर जयकौर ने कुंडा खटखटाया तो दरवाजा अंग्रेज कौर ने ही खोला । दरवाजे पर भोला सिंह और जयकौर को खङे देख वह सकुचा गई । हाथ में पकङी झाङू उसने आँगन में फेंकी । सलवार के चढे हुए पोंहचे खींच कर नीचे उतारे । सिर पर आँचल सही किया ।
भाभी भीतर आने को नहीं कहोगी क्या ? या यहीं से वापिस करने का इरादा है ?
ओह , आ जाओ आओ , भीतर आओ – अंग्रेज कौर ने रास्ता देते हुए कहा । तब तक छिंदर कौर भी तौलिया पकङे पकङे दरवाजे पर आ गयी थी । उसने फैले हुए आँगन को देखा पर अब कोई उपाय नहीं था । वह भाग कर एक कटोरे में तेल डाल लाई । दहलीज के दोलों ओर तेल डाल कर उसने ननद का स्वागत किया और भीतर कमरे में ले आई । कमरे में बिछी इकलौती चारपाई पर धुले अनधुले कपङों का ढेर लगा था । उसने कपङे उठाते हुए दोनों को बैठने का संकेत किया । भोला सिंह चारपाई के एक कोले में बैठ गया । घर में चारों ओर अव्यवस्था फैली थी । कहीं जूठे बरतन लुङके पङे थे , कहीं कूङा पङा था । जयकौर ने आँगन में पङी झाङू उठाई और घर बुहारने लगी । पंद्रह मिनट में ही घर चमकने लगा था । फिर वह जूठे बरतनों के ढेर की ओर मुङी तो छिंदर कौर ने उसका हाथ पकङ लिया – तुम रहने दो बीबी , मैं करती हूँ यह सब । तुम इन बच्चों को नहला दो । तब तक मैं चाय बनाती हूँ ।
भाभी भाई तहाँ है दिखाई नहीं दे रहे ।
यहीं हैं गाँव में , मैंने लङके भगाए हैं । अभी बुला कर ले आएंगे ।
बच्चे बुआ को लौटे देख खुश हो गये थे । जयकौर ने उन्हें नहलाया । बदन पोंछ कर कपङे पहनाए । तभी चरण और शरण आते दिखाई दिए । -
भाई सहब यदि आप के आने का अंदाजा भी होता तो हम नहीं जाते ।
अंदाजा कैसे होता , तुम तो कल किसी से बिना मिले ही चले आए ।
वो .. वो तो .. वो तो .. ।
भोला सिंह खिलखिला कर हँस पङा ।

 

 

बाकी फिर ...