Meet - 3 in Hindi Love Stories by Vaidehi Vaishnav Vatika books and stories PDF | मीत (भाग-३)

मीत (भाग-३)

मुझें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि
अचानक से क्या हो गया ? मेरी ज़िंदगी में जैसे भूकंप आ गया था जिसका केंद्र मेरा मन था औऱ लगा मेरा पूरा शरीर दरक गया , दर्द की दरारें भी इतनी गहरी कि कोई यदि ज़रा सी भी ठेस पहुँचा दे तो मैं टूटकर बिखर जाऊँ ।

मीत मेरे जीवन की धुरी था। मेरा सब कुछ सिमट जाता था उसके इर्द-गिर्द। मेरे दुःख, तकलीफें, ख़ुशी और ढेर सारी ख्वाहिशें भी। जैसे उसका हाथ पकड़कर पहाड़ों पर घूमने की ख्वाहिश, किसी मंदिर पर उसके नाम की मन्नत का धागा बाँधने की ख्वाहिश या फिर किसी भीड़ भरी जगह पर उसका माथा चूम लेने की ख्वाहिश! वो तो हर ख्वाहिश को जीने की हामी भी भर लेता शायद, लेकिन फिर मेरे ही कदम पीछे हट गए ।

मीत की बातें , हर एक शब्द चुभ रहें थें। लगा जैसे वो कोई औऱ ही था जिसनें ये सब कहा था । पिछले दो सालों से मैं उसे जानती हूँ , मुझें क़भी महसूस नहीं हुआ कि मीत मेरे लिए सही इंसान नहीं हैं। पर आज की उसकी बातें मेरी समझ से परे थीं। वो मुझसें लिव इन रिलेशन का कह रहा था । मतलब उसके साथ...बिना शादी के..रहना।

ऐसा नहीं था कि मैं कोई रूढ़िवादी सोच की लड़की थीं पर इतनी आधुनिक भी नहीं थीं कि यह बात मेरे लिए सहज हो।

हम जिस दुनिया में रहतें हैं उसके इतर भी एक दुनिया औऱ हैं " हमारी अपनी दुनिया जिसे हम अपने मन से बनाते हैं " जहाँ रिश्ते हैं , प्रेम हैं , मिलना हैं , बिछड़ना हैं , रूठना हैं , मनाना हैं पर बेबस कर देने वाली उलझनें नहीं हैं । शायद इसीलिए हमें अपने मन की दुनिया में रहना अधिक पसन्द हैं । हम इस दुनिया में खुश रहतें हैं। यहाँ कोई किसी को हर्ट नहीं करता। अचानक से मेरे मन में चल रहीं उथल-पुथल शांत हो गईं । रात के सन्नाटे में अब बस घड़ी की टिक-टिक ही सुनाई दे रहीं थीं ।

कितनी बोझिल थी ये चुप्पी। इस गहरे मौन में मेरा मन भी ठहर गया था। मैं अब कुछ भी नहीं सोच रही थी, ना सच, ना झूठ, ना नफ़रत, ना ही प्यार। जैसे ज़िन्दा होकर भी अपने लिए ख़त्म हो गयी थी।

हमारी उम्मीदों के महल जब धराशायी होंते हैं तब हम मौन हो जातें हैं , मन जैसे उजड़ सा जाता हैं।
शायद इसी को ज़िंदा होकर भी ख़त्म हो जाना कहते होंगे।

रात के 2 बज रहें थें। लगता हैं ये रात जागते हुए ही गुजरेगी , बिना चाय के ये रात कटेगी नहीं । मैं किचन में गई औऱ गैस पर चाय चढ़ा दी। मन हल्का करने के लिए मैंने म्यूजिक सिस्टम ऑन कर दिया। पहला ही गीत था - मीत न मिला रे मन का....

तमाम उदासियों औऱ मन में दबे गुस्से के बावजूद मैं मुस्कुरा दी । इसलिए नहीं कि गाने में मीत का नाम था..बल्कि इसलिए कि हम जिस बात से दूर जाना चाहते हैं उसी से सम्बंधित बात , नाम , किस्सा हमें हर कहीं सुनाई औऱ दिखाई देता हैं।

शेष अगलें भाग में....


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ketuk patel

ketuk patel 5 months ago

Captain Dharnidhar

सुन्दर शब्दालंकार

Abcd Ijdg

Abcd Ijdg 5 months ago

मन मीत मेरे...........

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